सुबह प्रधानमंत्री निवास पर संपादकों की बैठक में परमाणु करार का गुणगान कर वे इसे राष्ट्रहित में बता रहे थे। मगर दोपहर होते होते यही करार उनकी निगाह में राष्ट्र और मुसलिम विरोधी हो गया। नेहा दीक्षित से बातचीत में राज्यसभा सांसद शाहिद सिद्दीकी अपनी राजनीतिक मजबूरियां बयान करते हुए।
सपा छोड़कर बसपा में जाने की क्या वजह रही?
इसकी वजह है परमाणु करार। सपा पहले इस करार के खिलाफ थी लेकिन बाद में उन्होंने कांग्रेस को समर्थन देने का फैसला किया। मैंने समझौते का अध्ययन किया है, समझौते के संदर्भ में कई बार अमेरिका गया हूं और कोंडलीज़ा राइस से भी बातचीत की है। मैंने पाया कि ये समझौता किसी भी तरह से देशहित में नहीं है। इसलिए मैंने सपा से अलग होने का निर्णय किया। सपा एक धर्म निरपेक्ष और समाजवादी दल था जो अपने लक्ष्य से भटक गया है।
समझौते का विरोध करने की एक वजह आपका मुसलमान होना भी है?
कुछ हद तक। दुनिया भर के मुसलमान अमेरिकी नीतियों के विरोधी हैं। अमेरिका के यहूदी समझौते के पक्ष में ज़बर्दस्त लामबंदी कर रहे हैं। यहां तक कि वे भारतीयों को भी प्रभावित करने के प्रयास कर रहे हैं। अमेरिकी हितों के लिए काम करने वाली ये ताकतवर लॉबी हर जगह मौजूद है और मैं उसका साथ नहीं दे सकता। इसके अलावा जॉर्ज बुश के कार्यकाल में दुनिया भर के मुसलमानों पर हुआ अत्याचार भी इसकी एक वजह है।
लेकिन खुद आपके अख़बार ने एक सर्वेक्षण में दावा किया था कि 80 फीसदी मुसलमान महंगाई के मुद्दे पर वोट करेंगे न कि विदेश नीति के मुद्दे पर।
देखिए अगर मुसलमान महंगाई के मुद्दे पर वोट दे सकता है तो वो न्यूक्लियर डील के मुद्दे पर भी वोट दे सकता है। मैं इससे सहमत नहीं हूं। अगर आप मेरे मुसलमान होने को ही करार के विरोध की वजह मानती हैं तो आप ऐसा कर सकती हैं।
आखिर सपा ने कांग्रेस को समर्थन देने का फैसला क्यों किया?
खालिस सियासी वजहों से। उन्हें अहसास हो गया था कि वो किसी भी सूरत में उत्तर प्रदेश की सत्ता में वापस नहीं आ सकते। सत्ता में वापसी के लिए उन्हें कांग्रेस की जरूरत थी इसलिए उन्होंने यूपीए का समर्थन करने का निर्णय लिया। मायावती को मात देने का उन्हें यही एकमात्र रास्ता सूझा। ये राजनीतिक प्रतिशोध की लड़ाई है।
पर अतीत में आप खुद भी मायावती के धुर-आलोचक रहे हैं?
मैं सपा का महासचिव था, ऐसे में आप मुझसे क्या उम्मीद करती हैं? कोई भी उस पद पर ऐसा ही करेगा। राजनीति व्यक्तिगत स्तर पर नहीं होती। ये पार्टी आधारित होती है। मैं कांग्रेस में जा नहीं सकता था और धर्मनिरपेक्ष विचारधारा के कारण भाजपा में जाने का सवाल ही नहीं उठता था। तो फिर उत्तर प्रदेश में कौन सी पार्टी बाकी बची—सिर्फ बसपा। ये राज्य की सबसे बड़ी पार्टी है इसलिए मैंने इसे चुना।
आपको ये विश्वास क्यों है कि बीएसपी और मायावती अपने रुख पर कायम रहेंगी?
इस बारे में मैं कुछ नहीं कह सकता। मैंने एक रास्ता चुना है पर मुझे मंज़िल का पता नहीं है। मैंने एक दांव खेला है मुझे नहीं पता आगे क्या होगा।
किस चीज़ ने मायावती पर विश्वास करने के लिए मजबूर किया?
देखिए, इस देश में मायावती और ममता बनर्जी अकेली ऐसी नेता हैं जिनका कोई आधार नहीं था, न ही ये किसी राजनीतिक पृष्ठभूमि से ताल्लुक रखती हैं, इन्होंने अपनी ज़मीन खुद बनाई है। इन्हें सहारा देने के लिए कोई पिता या संबंधी नहीं था। इनमें हिम्मत थी लिहाजा ये ज़मीन से शीर्ष तक पहुंचे हैं। इसने मुझे प्रभावित किया।
क्या सपा में आप की तरह कोई और नेता ऐसा है जिसे इस मुद्दे को लेकर मुलायम सिंह या अमर सिंह से परेशानी हो?
इस तरह के लोग हर जगह हैं। अमर सिंह मेरे व्यक्तिगत मित्र हैं और मैं उनका सम्मान करता हूं। लेकिन बहुत से लोगों में खड़ा होने और विरोध करने की क्षमता नहीं होती।
क्या सपा में वापस जाने का विचार है?
नहीं फिलहाल तो नहीं।