सौहार्द्र सिखाती देवभूमि

उत्तराखंड में सर्व-धर्म सद्भाव  की कई मिसालें हैं. पहली और सबसे अहम तो यही कि चार धामों में से एक बदरीनाथ की सर्व-स्वीकार्य स्तुति, एक मुस्लिम संत ने लिखी थी.

बदरीनाथ मंदिर के धर्माधिकारी जगदम्बा प्रसाद सती बदरीनारायण की स्तुति- ‘पवन मंद, सुगंध शीतल..’ चमोली जिले में नंदप्रयाग कस्बे के सिद्दीकी परिवार के किसी मुसलिम व्यक्ति द्वारा लिखे जाने की पुष्टि करते हैं. वे बताते हैं, ‘बदरीनारायण की सर्वमान्य स्तुति करोड़ों हिंदू गाते हैं. इस रचना में शब्दों का शानदार निरूपण है. क्लिष्ट शब्दों को स्तुति के संयोजन में इस तरह स्थानबद्ध किया गया है कि स्तुति को आम श्रद्वालु भी आसानी से गा सकता है.’श्री बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति के मुख्य कार्याधिकारी रहे जगत सिंह बिष्ट के मुताबिक उनके बुजुर्गों ने भी उन्हें यही बताया कि इस ‘बदरी स्तुति’ का रचनाकार नंदप्रयाग के सिद्दीकी  परिवार का ही कोई व्यक्ति था.’

इस स्तुति की रचना का समय 100 साल पहले का बताया जाता है. इसे लोकप्रिय बनाने का श्रेय जाता है वीणा महाराज को. वरिष्ठ पत्रकार जगजीत मेहता बताते हैं, ‘प्रसिद्ध संत वीणा महाराज ने 1964 से लेकर 1985 तक बदरीनाथ मंदिर परिसर में नित्य कीर्तन-भजन किया. हर दिन होने वाले कीर्तन की समाप्ति में वीणा महाराज भाव-विह्वल होकर पवन मंद, सुंगध शीतल…आरती ही गाते थे.’ दो दशक तक हुए इस नित्य गायन का परिणाम यह हुआ कि यह स्तुति आम जन की जुबान पर रच-बस गई. बदरीनाथ के आरती गायक पं. पवन गोदियाल बताते हैं कि इसे कई मशहूर गायकों ने भी अपनी-अपनी तरह से गाया है और  इसके लाखों कैसेट और सीडी बिक चुके हैं.

चारों धामों में से एक बदरीनाथ की सर्व-स्वीकार्य स्तुति, एक मुस्लिम संत नसरुद्दीन ने लिखी थी

यह स्तुति किसने लिखी इस बारे में तहलका ने और गहराई से पड़ताल की तो पता चला कि इसके रचनाकार का नाम ‘नसरुद्दीन सिद्दीकी ’ था. नसरुद्दीन  के भाई फकरुद्दीन सिद्दीकी  उस समय (वर्ष 1886-1950)  नंदप्रयाग के प्रतिष्ठित सामाजिक व्यक्ति और व्यापारी थे. वे संयुक्त प्रांत की एसेंबली के सदस्य भी रहे थे. सड़क मार्ग न होने के कारण नंदप्रयाग तब यात्रा का महत्वपूर्ण पड़ाव था. फकरुद्दीन के पोते अयाजुद्दीन बताते हैं कि उनके दादा फकरुद्दीन की भी बदरीनारायण पर अगाध आस्था थी. दादा के भाई नसरुद्दीन संत प्रवृत्ति के थे और आजीवन अविवाहित ही रहे  अयाजुदीन के शब्दों में ‘सभी लोगों ने यही बताया है कि बदरीनाथ की आरती हमारे पूर्वज नसरुद्दीन ने ही लिखी थी, जिसका मुझे गर्व है.’ वे यह भी बताते हैं कि जब कई साल तक उनके दादा को संतान सुख नहीं मिला तो उन्होंने बदरीनाथ में एक धर्मशाला बनाकर दान की. साथ ही नंदप्रयाग में एक खेत भी दान किया जो बदरीनाथ मंदिर में फूल चढ़ाने के लिए फुलवारी के रुप में इस्तेमाल होता था. बदरीनाथ जाने वाले यात्री इस खेत में उगे फूलों को बदरीनाथ को अर्पित करने के लिए ले जाते थे. अयाजुद्दीन के मुताबिक श्रृद्धापूर्वक किए गए इस दान के बाद ही उनके पिता अलाउद्दीन और चाचा कमरुदीन का जन्म हुआ था. 74 साल के कमरुद्दीन सिद्दीकी मुंबई उच्च-न्यायालय में एडवोकेट हैं. वे बताते हैं कि उनके पूर्वज कोटद्वार के पास फलदा-कुमोली के सारस्वत गौड़ ब्राहमण थे. एक अफगानी युवती से शादी के बाद उनके दादा ने इस्लाम अपना लिया. कमरुद्दीन जिस सहजता से नमाज पढ़ते हैं उसी सहजता से गायत्री मंत्र भी जपते हैं. कुछ समय पहले अपने पांच माह के पोते को बदरीनाथ ले गए और बदरीनाथ के ही नाम पर उसका नाम बदरुद्दीन सिद्दीकी रखा.

सद्भाव के ऐसे उदाहरण समूचे उत्तराखंड में देखने को मिलते हैं. नेहरु युवा केंद्र के जिला युवा समन्वयक, योगेश धस्माना बताते हैं कि पौड़ी के बड़े याकूब, साठ के दशक में उत्तराखंड भर में खड़ी होली(गायी जाने वाली होली) के माने हुए गायक थे और हुसैन बख्श की सारंगी हर धार्मिक आयोजन का हिस्सा होती थी. इतिहासकार यशवंत कटोच बताते हैं कि बादशाह अकबर द्वारा अपने किसी कर्मचारी द्वारा पांडुकेश्वर स्थित योग-ध्यान बदरी मंदिर में घंटा चढ़ाए जाने के प्रमाण मौजूद हैं. चंपावत जिले के खूना मलक गांव में 14 वीं शताब्दी में चंद राजाओं ने सौन्दर्य प्रसाधन के सामानों के लिए मुस्लिम परिवारों को इस गांव में बसाया था. इसी शताब्दी में चंद राजाओं  द्वारा अद्भुत स्लेट वाली एक मस्जिद भी बनवाई गई थी. आज भी इस गांव में मुस्लिम परिवार रहते हैं. नैनीताल में चर्च, मस्जिद, मंदिर तथा गुरूद्वारा साथ-साथ खड़े दिखते हैं. शहर में हर साल होली महोत्सव का आयोजन रंगकर्मी जहूर आलम करते हैं. जहूर के नेतृत्व वाली संस्था युग मंच रामलीला में श्रवण कुमार सहित कई नाटकों का मंचन करती है. कुमाऊं मंडल के पहाड़ी क्षेत्रों की रामलीलाओं में मेकअप, तबला वादन, हारमोनियम के अलावा पात्रों के अभिनय में मुसलमानों का योगदान दोनों धर्मों की एकता का ताना-बाना बुनते हैं.

जगत मर्तोलिया के साथ मनोज रावत