इंसान है सलमान

सलमान खान की ताजा हिट फिल्म दबंग में कई चीजों के साथ पहला शब्द जुड़ा हुआ है. मसलन बतौर निर्देशक अभिनव कश्यप की यह पहली फिल्म है, बतौर निर्माता अरबाज खान की और बतौर हीरोइन सोनाक्षी सिन्हा की. पहली ही बार ऐसा हुआ है कि सलमान खान किसी फिल्म में मूंछों में नजर आए हैं. उनके बारे में इन दिनों मीडिया में जो कुछ भी आ रहा है उस पर जाएं तो आपको यकीन सा होने लगेगा कि उनको नापने का पैमाना उनकी मूंछें ही हैं.

पिछले 22 साल से सलमान दर्जनों फिल्मों में एक जैसी ही भूमिका बार-बार निभाते रहे हैं और वह भी असाधारण सफलता के साथ. अब निर्देशक अभिनव कश्यप को लगता है कि उन्हें सलमान के सांचे को बदलने में थोड़ी ही सही पर सफलता मिली है. वे बताते हैं, ‘मूंछें रखने के लिए सलमान को राजी करने में मुझे एक साल लग गया. वे बार-बार यही कहकर इनकार कर देते थे कि मेरे प्रशंसकों को ये पसंद नहीं आएंगी. शूटिंग के पहले दिन तक मुझे जरा भी अंदाजा नहीं था कि वे मान जाएंगे. मगर वे सेट पर आए तो उनके पास कई तरह की मूंछें थीं. मुझे लगता है कि वे मेरे इरादे की मजबूती परख रहे थे.’

लेकिन अभिनव के लिए चुनौतियां और भी थीं. सलमान खान का उसूल है कि वे परदे पर न गाली देते हैं और न चुंबन लेते हैं. साथ ही उन्हें फिल्म में एक सीन ऐसा भी चाहिए जिसमें उनका कसरती बदन दिखे. और अगर यह एक्शन फिल्म है तो यह बेहद जरूरी है कि वे आखिर में खलनायक की जमकर धुनाई करते नजर आएं. इसके अलावा सुबह की शिफ्ट में उनसे काम लेना जरा मुश्किल है. इस सुपरस्टार की मिथकीय आभा इन्हीं बुनियादी रंगों से बनती है. कश्यप कहते हैं, ‘इन नियम-कायदों को दिमाग में बिठा लें तो आप कुछ भी कर सकते हैं.’

सलमान का पहला ही जवाब उनके एक ऐसे पहलू की झलक देता है जिसका अंदाजा उनके बारे में अब तक सुनी और पढ़ी बातों से नहीं लगाया जा सकता हालांकि सलमान पर लिखने के बारे में सोचने पर पहली नजर में ऐसा नहीं लगता कि उन पर बहुत-कुछ किया जा सकता है. अगर आप फिल्मी परदे पर सलमान की मोहक मुस्कान, चमकती आंखें, कॉमिक टाइमिंग और उनसे फूटती अच्छाई देखें तो आपके मन में उनकी छवि एक ऐसे आदमी की बनेगी जो असल जिंदगी में उपजने वाले तनाव को छूमंतर कर दे. लेकिन यदि आप अखबारों में उनके बारे में पढ़ें तो उनकी एक दूसरी ही तसवीर उभरने लगती है- एक गुस्सैल, बददिमाग, लापरवाह और हिंसक व्यक्ति की. हालांकि पिछले कुछ समय से स्थिति थोड़ी-थोड़ी बदल रही है. मीडिया उनके प्रति पहले की तुलना में उदार हो रहा है. 22 साल तक लगातार मीडिया का ध्यान खींचने वाले सलमान खान के बारे में नवीनतम आकलन यह है कि उनका बर्ताव भले ही अच्छा न रहता हो मगर वे दिल के अच्छे आदमी हैं.

मगर क्या सलमान की शख्सियत का पूरा सच यही है? इससे कोई इनकार नहीं करता कि उनमें वह खूबी मौजूद है जो सही मायनों में एक सुपरस्टार को बनाती है. सलमान कहीं दिख जाएं तो लोग अपनी कमीजें फाड़ने के लिए तैयार रहते हैं. ऐसा ही कभी गुजरे जमाने के सुपरस्टार राजेश खन्ना के साथ हुआ करता था. पिछले दो दशक में परिदृश्य में छाए रहे बाकी दो खानों से उनकी तुलना करें तो आमिर के पास प्रतिभा ज्यादा है मगर सलमान सा आभामंडल नहीं. उधर, शाहरुख के पास स्टाइल है मगर शायद वैसा प्यार नहीं जो दर्शकों से सलमान को मिलता रहा है.

तो आखिर ऐसा क्या है जो लोगों को सलमान की तरफ खींचता है? उनकी अब तक की जो विरासत है उसे कैसे समझा जाए? फिल्मों के दीवाने इस देश में हर स्टार से जुड़ी कहानियां होती हैं और हर स्टार की एक कहानी होती है. स्वाभाविक है सलमान पर भी बहुत-सी कहानियां हैं और उनकी भी एक कहानी है.

सलमान से मैं मुंबई के बांद्रा हिल इलाके में उनकी बहन अलवीरा के घर पर मिलती हूं. अपने परिवार के सदस्यों से घिरे वे डाइनिंग टेबल पर बैठे हुए हैं. उनकी आंखें लाल हैं और दाढ़ी बढ़ी हुई. कंधे पर एक तौलिया है जिससे वे बार-बार अपनी नाक पोंछते हैं. उन्हें कुछ समय से तेज बुखार है और उन तक पहुंचना मुश्किल से संभव हो सका है. लेकिन अब भी मुश्किल खत्म हो गई हो ऐसा नहीं लगता. अब उन्हें अकेले में बात करने के लिए राजी करना है. सलमान बड़ी मुश्किल से ऐसा करने के लिए तैयार होते हैं. वे कहते हैं, ‘क्या फर्क पड़ता है. क्या यह इंटरव्यू छपेगा नहीं? लोग तो इसे पढ़ेंगे ही न?’

सलमान का पहला ही जवाब उनके एक ऐसे पहलू की झलक देता है जिसके बारे में अब तक देखी, सुनी और पढ़ी बातों के आधार पर अंदाजा नहीं लगाया जा सकता. फिल्म जगत में उनके अब तक के काम का क्या योगदान रहा है, इस पर वे कहते हैं, ‘सीधी-सी बात है. कुछ पिता ऐसे हैं जो चाहते हैं कि उनके बेटे बड़े होकर मुझ जैसे बनें. दूसरे कहेंगे कि कुछ भी बनना मगर इस आदमी की तरह मत बनना. किसी भी तरह से देखिए, यह अच्छा ही है.’

जुझारू और सटीक बुद्धिमत्ता. सलमान को पता है कि उनके इर्द-गिर्द किस तरह का मजमा लगा है. दायरा थोड़ा बड़ा करें तो उनमें दुनिया की समझ है. और उनकी इस समझ में एक तिरस्कारपूर्ण रवैया नजर आता है. सलमान को समझना मुश्किल है. उनसे बात करना भी आसान नहीं. उनमें पहले से तैयार कोई गर्मजोशी नहीं दिखती. उन्हें अपनी कहानी बताने की भी कोई हड़बड़ी नहीं.

डाइनिंग टेबल पर बैठे सलमान बातों के दौरान एक सवाल पर कहीं खो जाते हैं. और फिर कहते हैं, ‘क्या मुझे गलत समझा गया है? हर कोई मुझसे वही बात पूछता रहता है. मुझे यह समझ नहीं आता. आ सकता था अगर इंडस्ट्री में मेरा यह पहला साल होता. मगर मुझे यहां 22 साल हो गए हैं. मैं क्या हूं यह साफ दिखता है. तो फिर यह क्या सवाल है? बातचीत शुरू करने का तरीका. शब्दों की कमी, विचारों का अभाव? क्या है यह? ऐसा नहीं हो सकता कि आप 22 साल से भी ज्यादा वक्त तक गलत समझे जाते रहें. क्या ऐसा हो सकता है?’

सलमान नर्म लहजे और छोटे-छोटे वाक्यों में अपनी बात कहते हैं, और वह भी खालीपन भरी एक ऐसी नजर के साथ जिसे दरकिनार करना मुश्किल होता है. आप नए सिरे से सोचने के लिए मजबूर होते हैं. आप किसी बच्चे से बात नहीं कर रहे. यह 45 साल का एक  शख्स है. और वह आखिर क्या कहना चाह रहा है? क्या वह आपका मखौल उड़ा रहा है? या फिर अपनी नकारात्मक छवि की जिम्मेदारी ले रहा है? या फिर कहीं यह टिप्पणी सारे पत्रकारों का मजाक उड़ाने के लिए तो नहीं की गई है जो आते हुए तो यह दावा करते हैं कि वे सलमान को ऐसे तरीके से समझना चाहते हैं जैसे पहले कभी नहीं समझा गया, मगर वापस जाकर वही रटी-रटाई बातें लिखते हैं?

सलमान खान स्टीरियोटाइप नहीं हैं. मगर उनसे जुड़े कई किस्सों को अगर जोड़ना हो तो इसकी शुरुआत यहीं से की जा सकती है सलमान खान स्टीरियोटाइप नहीं हैं. मगर उनसे जुड़े कई किस्सों को अगर जोड़ना हो तो इसकी शुरुआत यहीं से की जा सकती है कि जब मैंने सलमान का इंटरव्यू लेने की बात मानवाधिकारों के लिए काम करने वाले एक शख्स को बताई तो उसका कहना था, ‘आप उसपर क्यों लिख रही हो…क्या वह एक अपराधी तत्व नहीं है?’ सिनेमा से जुड़ी उन जैसी शख्सियत के लिए ये स्टीरियोटाइप शिकार, प्रेम प्रसंग, शराब और एक दुर्घटना से उपजी चीजें हैं.

1998 में यानी फिल्मी दुनिया में प्रवेश के एक दशक बाद सलमान पर आरोप लगा कि 28 सितंबर को उन्होंने छह दूसरे लोगों के साथ मिलकर एक ब्लैक बक यानी काले हिरण का शिकार किया. इनमें उनके साथी कलाकार सैफ अली खान, नीलम, सोनाली बेंद्रे और तब्बू शामिल थे. ये सभी उस दौरान हम साथ साथ हैं नाम की फिल्म की शूटिंग के लिए जोधपुर में थे. ब्लैक बक खतरे में पड़ी एक प्रजाति है. तब तक सलमान की छवि एक बिगड़ैल व्यक्ति की बन चुकी थी. इस घटना ने उनकी इस छवि को और पक्का कर दिया. दुर्भाग्य से इस घटना के एक दशक से ज्यादा वक्त बीतने के बाद भी इससे जुड़े पूर्वाग्रहों और सच्चाइयों को अलग-अलग करना मुश्किल है. इस घटना के बारे में कई विरोधाभासी लेख छपे हैं. उनमें से कोई भी ऐसा नहीं जो कोई खास नई बात बताता हो. उदाहरण के लिए, कम ही लोग जानते हैं कि सलमान के खिलाफ तीन अलग-अलग मामले चल रहे हैं. भवाड गांव केस, घोड़ा फार्म केस और कांकणी केस. तथ्यों के घालमेल के बावजूद ये कहानियां एक बुरी छवि बनाती हैं. रिपोर्टों के मुताबिक घटना के कुछ दिनों बाद एक अहम गवाह ड्राइवर हरीश दुलानी ने पुसिस को बताया कि सलमान ने न सिर्फ ब्लैक बक पर गोली दागी बल्कि एक चाकू से उसकी गर्दन भी काटी (कुछ दूसरी रिपोर्टों में दुलानी को यह कहते हुए बताया गया है कि सलमान ने ब्लैक बक की टांगें काटीं). बीते सालों में दुलानी ने कई बार अपने बयान बदले. क्रॉस एक्जामिनेशन से पहले 2002 में वह फरार हो गया. 2006 में वह फिर प्रकट हुआ और एक टीवी चैनल के सामने यह कहते हुए अपने पुराने बयान से एक बार फिर पलट गया कि वन अधिकारियों और कुछ दूसरे लोगों ने उस पर सलमान का नाम लेने का दबाव डाला. मगर ट्रायल कोर्ट ने दुलानी को फिर से बतौर गवाह बुलाने से इनकार कर दिया. इसके बाद जल्दी ही सलमान को दोषी पाया गया और उन्हें कुछ दिन जेल में गुजारने पड़े. उनके साथी कलाकारों को बरी कर दिया गया. अब दुलानी ने दावा किया कि वह इसलिए अपने बयान से पलट गया था कि सलमान के परिवार ने उसे पहले धमकी और फिर रिश्वत देने की कोशिश की. कुछ महीनों बाद एक सत्र अदालत ने निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा. सलमान को फिर से कुछ दिन जेल में बिताने पड़े.

सलमान और उनका परिवार इस बारे में बात नहीं करना चाहते. अलवीरा कहती हैं, ‘मजिस्ट्रेट ने ऑन रिकॉर्ड कहा कि अगर इसमें शामिल शख्स सलमान न होता तो वे मामला खारिज कर देते, मगर कोई यह बात नहीं लिखता.’ सलमान कहते हैं, ‘मुझे बताया गया कि मामला न्यायालय में विचाराधीन है और इस पर कुछ नहीं कहना. मगर क्या यह मीडिया के लिए विचाराधीन नहीं है?’

ब्लैक बक पर मचा बवाल शांत ही हुआ था कि 1999 में फिल्म हम दिल दे चुके सनम की शूटिंग के दौरान सलमान ऐश्वर्या राय के प्रेम में पड़ गए. हर मायने में तूफान मचाने वाला यह अफेयर 2002 में खत्म हुआ. मगर ऐसा लगता है कि इस घटना ने सलमान को असंतुलित कर दिया. चर्चाएं हुईं कि सलमान ऐश्वर्या को बार-बार फोन कर रहे हैं, उनका दरवाजा पीट रहे हैं, खुद को नुकसान पहुंचाने की धमकी दे रहे हैं, उनकी फिल्मों के सेट पर पहुंचकर उनके साथ धक्का-मुक्की कर रहे हैं. पहले-पहल ऐश्वर्या ने इससे इनकार किया. मई, 2002 में फिल्मफेयर को दिए गए एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा, ‘हर कोई इस पर यकीन करने से इनकार करता है कि मेरे चेहरे पर चोट सीढ़ियों से गिरने की वजह से लगी थी…मीडिया मुझे सदी की महिला कहता है. फिर वही मीडिया मुझे ऐसा कैसे दिखा सकता है जैसे मैं दरवाजे पर पड़ा कोई पायदान हूं? अगर मेरे साथ जबर्दस्ती या मारपीट हुई होती तो मैंने भी हिंसक प्रतिक्रिया दी होती…’

हालांकि इसके कुछ ही महीनों बाद 27 दिसंबर, 2002 को अखबार द टाइम्स ऑफ इंडिया से बात करते हुए ऐश्वर्या ने बिलकुुल ही अलग बात कही. उनका कहना था, ‘सलमान खान नाम का अध्याय मेरी जिंदगी का दुःस्वप्न था.’ इसके बाद उन्होंने सलमान की शराब की आदत, उनके दुर्व्यवहार, गाली-गलौज और धोखेबाजी पर काफी कुछ कहा.

किसी नाकाम दिल की ज्यादतियां जब सार्वजनिक हो जाएं तो उनकी गूंज बहुत तेज सुनाई देती है. उस इंटरव्यू को पचाना आसान नहीं रहा होगा. मानो किसी फिल्मी स्क्रिप्ट की तरह उसी रात या कहें कि अगले दिन तड़के सलमान का एक एक्सीडेंट हुआ. एक गायक दोस्त और पुलिस अंगरक्षक के साथ जुहू स्थित होटल जेडब्ल्यू मैरिएट से वापस आते हुए अमेरिकन बेकरी के पास फुटपाथ पर सो रहे नूर अल्ला खान की उनकी गाड़ी के नीचे आकर मौत हो गई. तीन दूसरे लोग घायल हुए. इससे भी बुरा यह रहा कि सलमान ने इस घटना के कई घंटों बाद जाकर पुलिस के सामने आत्मसमर्पण किया. अब अदालत में इस पर बहस हो रही है कि गाड़ी वे चला रहे थे कि उनका ड्राइवर.

लेकिन इससे भी बुरा होना अभी बाकी था. 2003 में अभिनेता विवेक ओबेराय, जिनका नाम थोड़े से समय के लिए ऐश्वर्या राय के साथ जुड़ा था, ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की और दावा किया कि ऐश्वर्या के साथ उनके रिश्ते की वजह से सलमान उन्हें फोन करके धमका रहे हैं. 2005 में हिंदुस्तान टाइम्स अखबार ने सलमान और ऐश्वर्या की वह बातचीत प्रकाशित की जिसे कथित तौर पर बॉलीवुड और अंडरवर्ल्ड पर निगाह रखने के मकसद से पुलिस ने टैप किया था. इसमें सलमान को ऐश्वर्या पर एक शो में हिस्सा लेने का दबाव बनाते हुए सुना गया जो अंडरवर्ल्ड डॉन अबू सलेम करवा रहा था. इस बातचीत में सलमान ऐश्वर्या को अबू सलेम से अपने संबंधों की भी धौंस दिखा रहे थे. 2006 में एक नेशनल फॉरेंसिक लैब ने इन टेपों को फर्जी बताया. हालांकि 2005 में तहलका को दिए एक साक्षात्कार में एक दूसरे अंडरवर्ल्ड डॉन छोटा राजन ने कहा था कि उसने सलमान को दुबई में दाऊद इब्राहिम के साथ खाना खाते देखा है. इन सभी हलचलों के दौरान सलमान खुद कभी मीडिया से रूबरू नहीं हुए बल्कि उन्होंने खुद को दुनिया से दूर कर लिया और खुद को आराम देने के लिए अपने परिवार की सुकून भरी छांह मे चले गए.

उनके साथ समय का तालमेल नहीं बिठाया जा सकता. वे तभी मिलते हैं जब उनको मिलना होता है. तभी फोन उठाते हैं जब उनको उठाना होता है

सलमान की यह आदत है कि कोई अगर उन्हें गहरे टटोलने की कोशिश करता है तो वे बातें मजाक में उड़ाकर सामने वाले को असहज कर देते हैं. वे कहते हैं, ‘समय के साथ आपके स्वभाव में नरमी आती है. मगर जब तक आप जिंदगी में बिलकुल ही गलत ट्रैक पर नहीं चल रहे तब तक आपको बदलने की क्या जरूरत है.’ मैं पूछती हूं कि भारतीय अदालतों के तजुर्बे का उन पर क्या असर पड़ा है और वे बिना कोई गंभीरता दिखाए सोने का अभिनय करते हुए कहते हैं, ‘इन जगहों के माहौल में मुझे नींद आने लगती है.’

कायदे से चलने वाले सलमान के इस व्यवहार पर सिर धुन सकते हैं (उनके भाई अरबाज खान कहते भी हैं कि सलमान को जिंदगी में व्यवस्थित होने की जरूरत है). मगर यही व्यवहार लोगों को उनकी तरफ खींचता भी है. उनमें स्टार जैसी बात भी पैदा करता है. सलमान एक चीज पर बहुत समय तक ध्यान नहीं दे सकते. उनके साथ समय का तालमेल नहीं बिठाया जा सकता. वे तभी मिलते हैं जब उनको मिलना होता है. तभी फोन उठाते हैं जब उनको उठाना होता है. अगर आप मुश्किल में हैं तो हो सकता है कि वे अपना पूरा दिन आपके नाम कर दें. मगर उन पर दबाव डालिए और वे आपके लिए पत्थर जैसे हो जाएंगे. अरबाज चुटकी लेते हुए कहते हैं, ‘जब हम उनसे कोई काम करवाना चाहते हैं तो उन्हें ठीक उलटी सलाह देते हैं.’ सलमान अपनी उदारता के लिए भी जाने जाते हैं. वे हमेशा कुछ न कुछ देते रहते हैं, पैसा, घड़ियां, कारें. अरबाज कहते हैं, ‘ज्यादातर लोग दो को दस कैसे करना है जानते हैं. मगर सलमान को पता है कि कैसे दस को दो करना है. इसीलिए अब्बा उनके पैसे को मैनेज करते हैं.’

सलमान चलन के मुताबिक नहीं चलते. अपने स्टारडम के बावजूद वे बांद्रा का वही लड़का बने रहकर संतुष्ट हैं जो वे अपने करिअर की शुरुआत में थे. उनका आशियाना आज भी वही एक बेडरूम का फ्लैट है जिसके ऊपर उनके माता-पिता रहते हैं. उनके साथ यह फ्लैट चार कुत्ते, तीन बिल्लियां और एक गौरैया साझा करती है. इस गौरैया को हाल ही में उन्होंने बचाया है. कुत्तों के नाम हैं सेंटू, माय लव, मोगली और बीरा. यहीं सलमान पेंटिंग भी बनाते हैं और पार्टियां भी देते हैं. उनकी बनाई तस्वीरों में ईसाई, इस्लाम और हिंदू धर्म के अलग-अलग रूप दिखते हैं.

आमिर खान सलमान के असंभावित दोस्त हैं. वे सलमान को शुरू से जानते हैं और अब उन्हें और भी पसंद करने लगे हैं. आमिर कहते हैं, ‘सलमान आम शख्स नहीं हैं. वे अपनी ही तरह के इंसान हैं. वे रूखे और अप्रत्याशित हो सकते हैं मगर बहुत आकर्षक भी. उनमें एक आभा है, एक नजरिया है. सोचने का एक अजब और अलग तरीका है. वे बहुत बुद्धिमान हैं. वे भले ही पढ़ने का शौक न रखते हों और उन्हें पारंपरिक अर्थों में बौद्धिक न कहा जा सके मगर उनकी बुद्धि बहुत तेज है.’

जिंदगी और काम को लेकर सलमान से बिलकुल उलट नजरिया रखने वाले आमिर के मुंह से यह सुनना अजीब है. फिल्में करने को लेकर आमिर का तरीका मशहूर है. वे एक बार में एक ही फिल्म करते हैं. उधर, सलमान के करिअर पर नजर डाली जाए तो पिछले दो दशक के दौरान उनकी हर साल औसतन तीन फिल्में रिलीज हुई हैं. रामगोपाल वर्मा भी इस रफ्तार से रश्क कर सकते हैं. सलमान के लिए सिनेमा महज एक फॉर्मूला है. वे कहते हैं, ‘दुनिया में सात प्लॉट होते हैं. अच्छा-बुरा, हीरो-विलेन, लड़का-लड़की. क्या फर्क पड़ता है? यह मनोरंजन है. अगर आप कुछ ज्यादा पेचीदा काम करना चाहते हैं तो किताब लिखिए ना.’

सलमान फिल्में सिर्फ इसलिए नहीं करते क्योंकि स्टोरी उन्हें जम जाती है. वे इसलिए भी फिल्में करते हैं ताकि कुछ लोगों की जिंदगी बन जाए या किसी की मुश्किलें टल जाए. यही अतार्किक उदारता उन्हें तारीफ दिलवाती है और आलोचना भी. अरबाज की पत्नी और अभिनेत्री मलाइका अरोड़ा कहती हैं, ‘वांटेड में एक डायलॉग है-मैंने कमिटमेंट कर दिया तो कर दिया. फिर मैं अपने आप की भी नहीं सुनता. सुनने में यह भले ही घिसी-पिटी बात लगे मगर सलमान वास्तव में ऐसे ही हैं.’

बॉलीवुड के सबसे मशहूर पटकथा लेखकों में से एक सलीम खान का यह बेटा इस तरह के नजरिए तक कैसे पहुंचा? सलमान की जिंदगी की कहानी की चाबी शायद इसी विरोधाभास में कहीं छिपी है.

सलीम खान के पिता इंदौर में पुलिस अधिकारी थे. वे नौ साल के ही थे जब उनकी मां की टीबी की वजह से मौत हो गई. मौत से ठीक पहले उन्हें घर लाया गया था. जब वे घर में आईं तो उस समय काला स्वेटर पहने सलीम बरामदे में खेल रहे थे. उन्होंने पूछा, ‘ये बच्चा कौन है?’ वे अपने बेटे को ही नहीं पहचान पा रही थीं. पहचानतीं भी कैसे. पिछले चार साल से उन्हें उससे दूर नैनीताल के नजदीक भोवाली सैनिटोरियम में रखा जा रहा था.
इसके बाद जल्दी ही सलीम के पिता भी चल बसे. उस समय सलीम की उम्र 14 साल थी. उनके बड़े भाई-बहन अब उनके साथ नहीं थे. कुछ की शादी हो चुकी थी. कुछ काम के सिलसिले में अलग रहने लगे थे. 16 बेडरूम के घर के एक हिस्से में सलीम की परवरिश नौकरों ने की. बड़ा होने पर उन्होंने कई सपनों का पीछा किया. वे क्रिकेटर, पायलट, अभिनेता…न जाने क्या-क्या बनना चाहते थे. जब वे इनमें से किसी क्षेत्र में कोई उपलब्धि हासिल नहीं कर सके तो उन्होंने जावेद अख्तर के साथ मिलकर स्क्रिप्ट लेखन शुरू किया. सलीम-जावेद की इस जोड़ी ने सफलताओं की जो नई इबारतें लिखीं वे अब बॉलीवुड के स्वर्णिम इतिहास का हिस्सा हैं.

तब तक सलीम की शादी हो चुकी थी. उनकी पत्नी महाराष्ट्र की थीं जिनका नाम था सुशीला चरक. सुशीला बाद में सलमा खान बन गईं. इसके बाद उन्हें बॉलीवुड की मशहूर अभिनेत्री हेलन से प्यार हुआ. हेलन ईसाई थीं. सलीम कहते हैं, ‘मैं इसे निजी मामला कहकर खारिज कर सकता था. मगर जिम्मेदारी के बिना प्यार की बात मुझे समझ नहीं आती. इसलिए मैंने अपनी पत्नी को इसके बारे में बता दिया. इसके बाद मैं अपने बच्चों के साथ बैठा (सलमान तब 10 साल के थे) और उन्हें यह बात बताई. मैंने कहा, शायद तुम अभी न समझो, मगर जब तुम बड़े हो जाओगे तो तुम मेरी आवाज का लहजा याद करोगे और जान जाओगे कि मैं नाटक नहीं कर रहा था.’

सलमान फिल्में सिर्फ इसीलिए नहीं करते क्योंकि स्टोरी उन्हें जम जाती है बल्कि इसलिए भी करते हैं ताकि कुछ लोगों की जिंदगी बन जाएशुरुआत में सबको झटका लगा मगर बाद में परिवार और भी करीब हो गया. दोनों महिलाएं दोस्त बन गईं. सलमान बताते हैं, ‘इसमें चोट जैसी बात नहीं है. एक वक्त ऐसा भी था जब हम चाहते थे कि अब्बा और हेलन आंटी के बच्चे हो जाएं ताकि हमें और भाई-बहन मिल जाएं.’

आज खान परिवार छोटा-सा भारत है. इसमें हिंदू, मुसलमान, ईसाई सभी एक-दूसरे से अलग-अलग रिश्तों की डोर में गुंथे हुए हैं. सलमान गणपति पूजा के दौरान गणेश प्रतिमा अपने कंधे पर लेकर विसर्जन के लिए भी जाते हैं (जिसके लिए उनके खिलाफ फतवा भी जारी हुआ है) और मलाइका अरोड़ा और हेलन के साथ ईसाई त्योहार भी उतनी ही धूमधाम से मनाते हैं.

सलमान के व्यक्तित्व पर सबसे ज्यादा असर सलीम का ही है. सलमान कहते हैं, ‘क्योंकि वह एक संपूर्ण व्यक्ति हैं. उनमें वे सारी खासियतें हैं जो एक आदमी में होनी चाहिए.’ आपस में बहुत ज्यादा करीब होने पर भी पिता-पुत्र का रिश्ता जटिल है. सलीम के बारे में कहा जाता है कि उन्हें गुस्सा जल्दी आता है और उनके मानदंड बहुत ऊंचे हैं. उनके बच्चों, खासकर सलमान ने अपनी शरारतों और बुरे प्रदर्शनों के लिए कई बार उनसे खूब मार खाई है. ऐसा लगता है कि सलमान की बुनावट अपने पिता के खिलाफ उनके व्यर्थ विरोध से बनी है. 1990 में दिए गए एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था, ‘मैं और मेरे पिता अकसर आंख मिलाकर बात नहीं करते. मैं उन्हें लगातार गलत चीजों पर गलत साबित करने की कोशिश करता रहता हूं और बुरी तरह नाकामयाब होता हूं. मैं बिना मकसद का बागी हूं.’

संघर्ष की गैरमौजूदगी वह बड़ा कारक हो सकती है जो सलमान की जिंदगी में एक बड़ी बाधा रहा है. पेशेवर जिंदगी में उन्हें एक बार ही ना सुननी पड़ी है और वह भी तब जब वे पहली बार ऑडिशन देने गए थे. कुछ समय पहले एक रिपोर्टर से बात करते हुए सलमान ने कहा था, ‘बॉलीवुड में कई लोगों की तरह मुझे सड़कों पर सोकर और चने खाकर जिंदा नहीं रहना पड़ा. इसलिए मैं उन लोगों का शुक्रगुजार हूं जिन्होंने मुझे रिजेक्ट किया. मैंने इसे अपनी चने वाली कहानी बना लिया और एक चुनौती की तरह लिया कि एक दिन मैं सफल होऊंगा और तुम्हें दिखाऊंगा.’

शुरुआत में सलीम अपने बेटे के बारे में बात करने के इच्छुक नहीं जान पड़ते. ‘अपने बच्चों की तारीफ करना हमारी तहजीब नहीं है’ वे कहते हैं. वे चार्ली चैप्लिन की फिल्म ‘लाइमलाइट’ के एक दृश्य के बारे में बताते हैं. इस फिल्म में चैप्लिन एक प्रतिभाशाली नर्तकी की मदद करते हैं. नर्तकी के पहले शो के बाद लोग उसके लिए जमके तालियां बजाते हैं और उस पर फूलों की बारिश करते हैं. बाद में चैप्लिन नर्तकी से पूछते हैं कि उसे कैसा लग रहा था. ‘मुझे नहीं पता’ वह कहती है, ‘मैं तो सिर्फ शोर ही सुन सकती थी किसी को देख नहीं सकती थी.’ ‘तुम्हारी जिंदगी की अब यही त्रासदी होने वाली है’ चैप्लिन कहते हैं, ‘तुम अब केवल शोर ही सुन सकोगी खुद या दूसरों को देख नहीं सकोगी.’

‘कोई अभिनेता मुश्किल से ही खुद के साथ ऐसा होने को रोक सकता है’ सलीम कहते हैं. वे अपने बेटे के बारे में सीधी बात कहने से बचते हैं. लेकिन जो कहते हैं उन्हीं में से उसकी कुछ कमियां सामने आ जाती हैं. ‘सलमान काफी हद तक एक अच्छा लड़का है. वह एक प्रतिभाशाली अभिनेता है मगर अपनी प्रतिभा का ठीक से इस्तेमाल नहीं कर रहा है’, वे कहते हैं. यह पूछने पर कि क्या प्यार और मानवीय संबंधों के प्रति उनके बच्चों का नजरिया उनके जैसा ही अक्लमंदी भरा है, वे कहते हैं, ‘यदि आप एक ऐसी लड़की से प्यार करते हैं जो स्टार हो औऱ अपने करियर की बुलंदी पर हो तो आप उसमें अगले ही दिन से अपनी मां की छवि नहीं ढूंढ़ सकते. आप यह तय नहीं कर सकते कि उसे क्या पहनना चाहिए और क्या नहीं. यह संभव नहीं है (सलमान का इसे लेकर अपना अलग ही नजरिया है. उन्हें नहीं समझ आता कि महिलाएं उनके जिन गुणों की वजह से उनके प्रति आकर्षित होती हैं बाद में उन्हीं को बदलने की कोशिश क्यों करती हैं’).

सलीम के पास वह आईना जो शायद यह दिखाता है कि सलमान की जिंदगी जैसी है उसकी वजह क्या रही है. ‘गलती करना कोई गलती नहीं होती. गलती नहीं करना कभी-कभी गलती होती है और गलतियों को दोहराना सबसे बड़ी गलती होती है.’

दबंग में सलमान को देखकर एक बार फिर हैरानी होती है कि कैसे इतना गंभीर रहने वाला यह शख्स कैमरे पर आते ही इतना शरारती हो जाता है जब सलमान करीब दस साल के थे तो उनके स्कूल स्टैनिसलॉ स्कूल के प्रिंसिपल ने कहा कि अमीर घरों के बच्चे अपनी क्लास के उन बच्चों के लिए एक एक्स्ट्रा टिफिन लेकर आएं जिनके मां-बाप इसका खर्च नहीं उठा सकते. सलमान ने प्रिंसिपल से पूछा कि उनकी क्लास में ऐसे कितने बच्चे हैं. जवाब मिला दस. सलमान अकसर इन दसों को अपने घर लेकर आने लगे. सलीम इस किस्से को बहुत गर्व के साथ याद करते हैं. वे कहते हैं, ‘सलमान में हमेशा से दूसरों के प्रति गहरी संवेदना रही है.’

सलमान ने इस सिलसिले को आगे भी बढ़ाया. कुछ सालों पहले एक शाम आमिर, शाहरुख और सलमान ने साथ में गुजारी थी. तब शाहरुख और सलमान के रिश्ते मधुर हुआ करते थे. आमिर याद करते हैं कि उस मुलाकात के दौरान सलमान ने गरीबों के लिए तीनों खान के नाम से एक मेडिकल इंश्योरेंस स्कीम बनाने की बात बार-बार की थी. हालांकि यह विचार तो हकीकत नहीं बन सका मगर आज सलमान का अपना एक चैरिटी ट्रस्ट है. इसका नाम है बीइंग ह्यूमन. वे मोतियाबिंद के सैकड़ों ऑपरेशनों का खर्च उठा रहे हैं, साइकिलें दान कर रहे हैं, बोन मैरो बैंक के लिए पैसा दे रहे हैं. जल्दी ही वे अपने ट्रस्ट के लिए पैसा जुटाने के मकसद से कपड़ों और घड़ियों का अपना ब्रांड लांच करने वाले हैं. सलमान बताते हैं, ‘आम तौर पर जब आप महंगे प्रोडक्ट खरीदते हैं तो फायदा अरमानी और वर्साचे जैसे लोगों को जाता है जो और अमीर होते हैं. मेरे ब्रांड के कपड़े खरीदने पर यह पैसा बीमारियों का इलाज करने और लोगों की जिंदगी बेहतर बनाने के लिए जाएगा. और दानदाता को इसके बदले कुछ मिलेगा भी. जींस, टी शर्ट, घड़ी जो भी वह चाहे. मैं लोगों से सिर्फ यह नहीं कह रहा कि मेरी चैरिटी के लिए दान दे दीजिए.’

दिलचस्प है कि सलमान की उदारता के किस्से आज उसी प्रमुखता से सुनने को मिल रहे हैं जितनी प्रमुखता से कभी उनके बारे में नकारात्मक चीजें सुनने को मिलती थीं. उनके करीबी दोस्त और संगीतकार साजिद, जो अपने करिअर का श्रेय ही सलमान को देते हैं, कहते हैं, ‘गलतियां सभी करते हैं मगर सलमान इससे झिझकते नहीं. वे फकीर हैं. ऐसे आदमी हैं जो कभी किसी से कुछ नहीं मांगता. उन्होंने लोगों को सिर्फ दिया ही है, उनकी मदद ही की है.’

दबंग में सलमान खान को देखकर एक बार फिर से हैरानी होती है कि कैसे परदे से इतर इतना गंभीर रहने वाला यह शख्स कैमरे पर आते ही इतना शरारती हो जाता है. यह कहना गलत है कि उन्हें ज्यादा एक्टिंग नहीं आती. सलमान कहते हैं, ‘आपको अपनी सोच जवान बनाए रखनी होती है. जिस दिन आपका दिमाग बूढ़ा हो गया खेल खत्म.’

ज्यादातर लोगों का मानना है कि बॉलीवुड में सलमान की विरासत यही होगी कि उन्होंने सुघड़ काया का चलन शुरू किया. और शायद अब मूंछ का भी. मगर ऐसा करना असल मुद्दे को न देखना होगा. सलमान खान की वास्तविक और आगे जाने वाली विरासत यह है कि वे इंसान रहे. यही खूबी उनके प्रशंसकों को उनसे जोड़े रखती है. उनमें सितारों जैसी रहस्यात्कमकता और इंसानों जैसी संवेदनशीलता का मेल है.

गीतकार और विज्ञापन फिल्म निर्माता प्रसून जोशी कहते हैं, ‘सलमान का स्टारडम बिना शर्त वाला है. यहां तक कि जब वे सबसे खराब फिल्में भी साइन करते हैं तो भी उनके प्रशंसक हॉल तक जाते हैं. अगर उन्हें निराशा हुई तो वे कभी सलमान को दोष नहीं देते. मैंने एक बार उनकी फ्लॉप फिल्म देखकर बाहर आ रहे कुछ लोगों की बात सुनी. वे कह रहे थे-भाई को गलत फिल्म साइन करवा दिया.’
दर्शकों का यही प्यार भरा जुड़ाव सलमान खान की कहानी है.

(ऋषि मजूमदार के सहयोग के साथ)