मैं असभ्य हूं क्योंकि खुले नंगे पांवों चलता हूं मैं असभ्य हूं क्योंकि धूल की गोदी में पलता हूं मैं असभ्य हूं क्योंकि चीर कर धरती धान उगाता हूं मैं असभ्य हूं क्योंकि ढोल पर बहुत ज़ोर से गाता हूं आप सभ्य हैं क्योंकि हवा में उड़ जाते हैं ऊपर आप सभ्य हैं क्योंकि आग बरसा देते हैं भू पर आप सभ्य हैं क्योंकि धान से भरी आपकी कोठी आप सभ्य हैं क्योंकि ज़ोर से पढ़ पाते हैं पोथी आप सभ्य हैं क्योंकि आपके कपड़े स्वयं बने हैं आप सभ्य हैं क्योंकि जबड़े खून सने हैं आप बड़े चिंतित हैं मेरे पिछड़ेपन के मारे आप सोचते हैं कि सीखता यह भी ढंग हमारे मैं उतारना नहीं चाहता जाहिल अपने बाने धोती-कुरता बहुत ज़ोर से लिपटाए हूं याने! भवानीप्रसाद मिश्र |