जूते कहां उतारे थे…

उड़ान पिछले 16 साल में पहली ऐसी भारतीय फिल्म है जिसे कांस फिल्म महोत्सव की प्रतियोगी श्रेणी में दिखाने के लिए चुना गया. छोटे बजट की इस बड़ी फिल्म के बारे में बता रहे हैं गौरव सोलंकी

यह छोटे बजट की एक फिल्म की मजबूरी भी कही जा सकती है, लेकिन यदि बड़े होर्डिंग या टीवी पर आने वाले ट्रेलरों की फ्रीक्वेंसी आपके लिए फिल्म का स्तर पूरी तरह तय नहीं करते तो कई वजहें हैं कि आप इसे साल की कुछ बड़ी फिल्मों में से एक मान लें

34 साल के विक्रमादित्य मोटवाने चुप रहना ही पसंद करते हैं. वे चाहते हैं कि इंटरव्यू के सवाल उन्हें भेज दिए जाएं और वे लिखकर जवाब दें. इसी तरह उनका काम भी अपनी तारीफों के पुल पहले नहीं बांधता और अपने देखे जाने का इंतज़ार करता है. पिछले कई महीनों से हमारी इंद्रियों पर चाहे-अनचाहे बरस रहे काइट्स, राजनीति और रावण के प्रमोशन के उलट उनकी पहली फिल्म ‘उड़ान’ के पास इसीलिए एक सभ्य खामोशी है. यह छोटे बजट की एक फिल्म की मजबूरी भी कही जा सकती है, लेकिन यदि बड़े होर्डिंग या टीवी पर आने वाले ट्रेलरों की फ्रीक्वेंसी आपके लिए फिल्म का स्तर पूरी तरह तय नहीं करते तो कई वजहें हैं कि आप इसे साल की कुछ बड़ी फिल्मों में से एक मान लें.

उड़ान पिछले 16 साल में पहली ऐसी भारतीय फिल्म है, जिसे कांस फिल्म महोत्सव की ‘अन सर्टेन रिगार्ड’ श्रेणी में दिखाने के लिए चुना गया. यह कांस की प्रतियोगी श्रेणी है जिसमें दुनिया भर की मौलिक और अलग फिल्में ही चुनी जाती हैं. निर्देशक विक्रमादित्य ने जब ‘उड़ान’ का आइडिया 2003 में अनुराग कश्यप को सुनाया था तो अनुराग ने कहा था कि इसे मेरे सिवा कोई प्रोड्यूस नहीं कर सकता. यह मजाक था पर बाद में मजाक नहीं रहा. उड़ान साल दर साल स्थगित होती रही. दोनों ‘देव डी’ लिखने के दौरान साथ थे और तब तक उड़ान को कोई निर्माता नहीं मिला था. ‘देव डी’ के बाद अनुराग एक बड़े दर्शक-वर्ग के बीच पहचाने जाने लगे थे और इसलिए परिस्थितियां पहले से कुछ सहज हो गई थीं. अनुराग ने तय किया कि वे ही इसके निर्माता बनेंगे, क्योंकि यह कहीं न कहीं जिस तरह विक्रमादित्य की कहानी थी, उसी तरह अनुराग की भी थी. 

उड़ान सोलह-सत्रह साल के एक लड़के की कहानी है जो बोर्डिंग में आठ साल गुजारने के बाद अपने घर लौटता है. जमशेदपुर के अपने घर में उसे ऐसे पिता के साथ रहना है जो ‘पापा’ की बजाय ‘सर’ कहलवाना पसंद करते हैं. बॉलीवुड में जहां पिता-पुत्र के रिश्ते की कहानियां गिनी-चुनी हैं वहीं किशोर मन की कहानियां भी. आप हिंदी फिल्मों की लिस्ट को छानेंगे तो किशोर कहानियों के नाम पर ‘मेरा पहला-पहला प्यार’ जैसी प्रेम-कहानियां दिखेंगी जो परंपरागत प्रेम-कहानियों से सिर्फ इसलिए अलग हैं क्योंकि उनके नायक-नायिका कॉलेज की बजाय स्कूल में पढ़ते हैं या फिर ‘एक छोटी-सी लव स्टोरी’. यह अपनी महत्वाकांक्षाओं के अपमान को हर समय अपने माथे पर रखकर भीतर की सतह पर जमते जाने वाले आक्रोश की कहानी है. कुछ नायकीय नहीं, वही सादी कहानी जो उस उम्र में हममें से बहुत लोग जीते हैं. यही सादगी ‘उड़ान’ की सबसे बड़ी खासियत है. यह उस प्रक्रिया की रिकॉर्डिंग है जिसमें एक लड़का आदमी बनता है और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि विक्रमादित्य ने इस प्रक्रिया के सेक्सुअल पहलू को जान-बूझकर छोड़ दिया है.
विक्रमादित्य संजय लीला भंसाली के सहायक भी रहे. ‘हम दिल दे चुके सनम’ के ‘आंखों की गुस्ताखियां’ का खूबसूरत सांग डायरेक्शन देखकर ही अनुराग ने उन्हें ‘पांच’ के एक गाने के निर्देशन के लिए चुना था. विक्रमादित्य से पूछा जाए कि उन पर भंसाली का ज्यादा प्रभाव रहा या अनुराग का तो वे कहते हैं, ‘मैंने सारी फिल्ममेकिंग भंसाली से ही सीखी. अनुराग से मैंने तुरंत काम करना सीखा. वे तीन दिन में एक स्क्रिप्ट पूरी कर लेते हैं और फिर चौथे दिन उसे शूट करना चाहते हैं. वे कहते हैं कि आप किसी आइडिया को ज्यादा सोचेंगे तो उसे खराब कर देंगे.’

‘आमिर’ के बाद ‘उड़ान’ जैसी अनूठी फिल्म प्रोड्यूस करने वाले अनुराग कश्यप के लिए भी यह खुद का नया और उतना ही भला अवतार है. अनुराग खुद अपनी गर्वीली और साथ ही मासूम मुस्कुराहट के साथ कहते हैं, ‘मैं सच में बहुत अच्छा निर्माता हूं. मैं कभी शूटिंग पर नहीं जाता और एडिट से पहले फिल्म नहीं देखता.’ शायद वे अपने निर्देशकों को उस दखल से बचाना चाहते हैं जिससे वे बार-बार जूझते रहे.

‘उड़ान’ का नायक कविताएं लिखता है और उसकी एक कविता उन नंगे पैरों के बारे में है जो भूल गए हैं कि उन्होंने जूते कहां उतारे थे. 16 जुलाई को रिलीज हई ‘उड़ान’ कुछ भूली तो नहीं है, लेकिन फिर भी सितारों और भव्य प्रचार के बिना उसके पैर नंगे हैं और विक्रमादित्य नहीं चाहते कि कांस की वजह से उनकी सादी-सरल फिल्म पर कला फिल्म होने का अपशकुनी ठप्पा लग जाए.