पुस्तक : न्याय का स्वरूप (लेख संग्रह)
लेखक : अमर्त्य सेन
कीमत :425 रुपए
प्रकाशक: राजपाल एंड संस
डॉ अमर्त्य सेन अर्थशास्त्रीय अध्ययन के लिए ही नहीं जाने जाते बल्कि उनके सामाजिक सरोकार भी दुनिया को अलग-अलग प्रसंगों में आकृष्ट करते रहे हैं. उनके अर्थशास्त्र की परिधि में वे तमाम मुद्दे स्वयं आ जाते हैं जो न सिर्फ मनुष्य मात्र को किसी भी तौर से प्रभावित करते हैं बल्कि सामाजिक अध्ययन के विभिन्न पहलुओं को समझने में भी सहायक होते हैं.
दरअसल, दर्शन के प्रति सेन का लगाव उनकी दृष्टि को एक ऐसी ऊंचाई देता है जहां से वे मनुष्य की अनिष्टकारी शक्तियों की कार्यपद्धति को बारीकी से समझते-समझाते दिखते हैं. गरीबी, अकाल और मनुष्य की सभ्यता के विकास का ही वे अध्ययन नहीं करते, वे वहां तक जाते हैं जहां अलग-अलग परिवेश में जी रहे मनुष्य के प्रति विभिन्न स्तरों पर अन्याय हो रहा है.
इन दिनों अमेरिका के हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में दर्शन और अर्थशास्त्र के प्रोफेसर सेन की हाल ही में प्रकाशित नई किताब ‘द आइडिया ऑफ जस्टिस’ इसकी एक और मिसाल है जिसका हिंदी अनुवाद ‘न्याय का स्वरूप’ नाम से प्रकाशित हुआ है. अनुवाद भवानीशंकर बागला ने किया है.
किताब में सेन न्याय की अवधारणा और अन्याय के विभिन्न स्वरूपों की विस्तृत व्याख्या केवल तथ्यात्मक आधार पर नहीं करते बल्कि इस क्रम में उस करुणा तक भी जाते हैं जो उनके आशयों को केवल सामाजिक अध्ययन बनने से बचाती है. दुनिया की सारी कृतियां किसी न किसी रूप में न्याय और अन्याय को ही परिभाषित करती रही हैं. इस क्रम में सेन की इस कृति को देखा जाना चाहिए जो हमें न्याय के प्रति अपनी अवधारणा को अद्यतन करने में सहायता पहुंचाती है.
अपने प्राक्कथन की शुरुआत ही सेन चार्ल्स डिकेंस के उपन्यास ‘ग्रेट एक्सपेक्टेशंस’ के उल्लेख से करते हैं और अन्याय के अहसास की चर्चा करते हैं. यह जो ‘अहसास’ का उल्लेख है वह उनके अध्ययन को अधिक अर्थवान, अधिक मानवीय और अधिक प्रासंगिक बनाता है. सेन इस निष्कर्ष तक हमें ले जाते हैं कि यह अहसास ही है जो अन्याय के खिलाफ आवाज बुलंद करने को तैयार करता है.
उन्होंने स्पष्ट किया है कि इस कृति का क्या उद्देश्य है- ‘हम किस प्रकार अन्याय को कम करते हुए न्याय का संवर्धन कर सकते हैं.’ सेन किसी भी सिद्धांत या मत को अंतिम मानने से परहेज करते हैं और कहते हैं, ‘हम न्याय की अन्वेषणा किसी भी विधि से करने का प्रयास करते रहें पर मानव जीवन में यह अन्वेषणा कभी समाप्त नहीं हो सकती.’
इस तरह एक नई सोच के साथ यह कृति अन्याय के विरुद्ध एक सार्थक आवाज उठाती है और न्याय की एक नई व्यवस्था की रूपरेखा प्रस्तुत करती है. भारतीय समाज के लिए यह और भी प्रासंगिक है क्योंकि यहां खाप पंचायतों का अस्तित्व अब भी है जो इज्जत के नाम पर किसी की हत्या तक के फरमान जारी कर देती हैं तो कहीं कोई पंचायत किसी महिला को डायन कहकर प्रताड़ित करने से गुरेज नहीं करती. यह किताब मानवाधिकार के परिप्रेक्ष्य में न्याय की व्याख्या है.
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