'मौजूदा दौर में लेखकों के बीच लेखन का जिक्र कम हो रहा है'

आपकी पसंदीदा लेखन शैली क्या है?

उपन्यास मुझे बहुत प्रिय है. दुनिया भर के उपन्यास मुझे पसंद हैं. इसके अलावा यात्रा वृत्तांत और आत्मकथाएं बहुत पसंद हैं.

अभी क्या पढ़ रहे हैं?

उग्र जी की आत्मकथा अपनी खबर मैंने पढ़ी. यह मुझे बहुत दिलचस्प लगी. भाषा और कथ्य के लिहाज से यह अनूठी किताब है. साथ ही मार्क्वेज का हंड्रेड ईयर्स ऑफ सॉलिट्यूड भी हाल में पढ़ा है.

वे रचनाएं या लेखक जिन्हें आप बेहद पसंद करते हों?

नागार्जुन, फैज, शमशेर और केदारनाथ अग्रवाल मुझे बहुत प्रिय हैं. शमशेर मुझे शाम को याद आते हैं, नागार्जुन कड़ी धूप में और अग्रवाल बादलों के छाने पर. गालिब, निराला, मराठी के विंदा करंदीकर, पंजाबी के सुरजीत पातर, मलयालम के शंकर पिल्लै, उड़िया के रमाकांत रथ और कश्मीरी के रहमान राही भी पसंद हैं.

कोई जरूरी रचना जिसपर नजर नहीं गई हो?

जो लोग पढ़ते हैं, वे रचनाओं का आपस में जिक्र भी करते हैं. दुनिया की दूसरी भाषाओं में एकदम नया कवि भी एकदम पुराने कवियों का जिक्र करता है. लेकिन मौजूदा दौर में लेखकों के बीच लेखन का जिक्र कम हो रहा है. हिंदी में बहती गंगा (शिव प्रसाद रुद्र ‘काशिकेय’) और माटी की मूरतें (रामवृक्ष बेनीपुरी) अच्छी किताबें हैं, पर इनकी चर्चा नहीं होती.

कोई रचना जो बेवजह मशहूर हो गई हो?

कोई भी रचना बेवजह मशहूर नहीं होती. कुछ लोग होते हैं जो उसे चाहते हैं और अगर वे प्रभावशाली हुए तो रचना मशहूर हो जाती है. लेखन में विभिन्न आंदोलनों के जरिए भी कुछ किताबें चर्चा में आती हैं, लेकिन आखिर वही बचता है जो बचने लायक रहता है.

पढ़ने की परंपरा कायम रहे, इसके लिए क्या किया जाना चाहिए?

हिंदी में प्रकाशक बड़े आत्ममुग्ध हैं. पैसे से अलग होकर उन्हें पाठकों तक ठेले पर किताबें ले जाने के बारे में सोचना होगा.

रेयाज उल हक