पहली बार आपको यह कब एहसास हुआ कि आप फिल्मी विरासत वाले परिवार की सदस्य हैं?
जब से मैंने इस दुनिया को समझना शुरू किया. बचपन में मुझे पता रहता था कि मेरे दादा-दादी और करिश्मा की वजह से हमारे परिवार पर ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है. लोगों की नजरें मुझ पर भी रहती थीं. जब मैं स्कूल में थी तभी से हर कोई जानता था कि मैं फिल्मों में ही जाऊंगी. हालांकि इन सब बातों का हमारे ऊपर कोई असर नहीं पड़ा. शायद इसलिए क्योंकि पूरा फिल्म उद्योग हमारा घर है. हमारे परिवार में सिनेमा पर हर किसी की अपनी राय होती है. मेरी मां को गोलमाल और सिंह इज किंग जैसी मसाला फिल्में पसंद हैं. करिश्मा बहुत भावुक है, उसे लव आजकल, जब वी मेट जैसी फिल्में अच्छी लगती हैं. जिन फिल्मों में कलाकारों ने बेहतरीन काम किया हो, जैसे कमीने और थ्री इडियट, मुझे वे पसंद आती हैं. मसाला फिल्में करने के बावजूद मुझे विशाल भारद्वाज और राजकुमारी हिरानी की फिल्में ज्यादा पसंद हैं.
अपने चचेरे भाई रणबीर कपूर के बारे में कुछ बताइए.
बचपन में हमारी बात होती थी, लेकिन बहुत ज्यादा नहीं. आज भी कुछ ऐसा ही है.
बचपन में जब आपके माता-पिता ने अलग-अलग रहने का फैसला किया तो उसका आप पर क्या असर रहा?
वे कानूनी तरीके से अलग नहीं हुए थे. मेरे पापा हर दिन हमसे मिलने आते थे, इसलिए मुझे कभी नहीं लगा कि वे दूर हैं.
करिश्मा ने 16 साल की उम्र से ही फिल्मों में काम करना शुरू कर दिया था, उनका संघर्ष आपके लिए कैसे मददगार साबित हुआ?
हमने दस साल की उम्र से ही अभिनय के बारे में सोचना शुरू कर दिया था. असल में हमें बचपन से ही अपने फैसले लेने की आजादी थी. करिश्मा फिल्मों में जो मुकाम पाना चाहती थी उसे हासिल करने में उसे दस साल लगे. वह फिल्मों में जहां तक पहुंची वहां तक जाने में उसकी असफलताओं का बहुत योगदान है. सुपर हिट फिल्मों से सुपरस्टार बनना बहुत आसान है, लेकिन असफलताओं से उबरकर सुपरस्टार बनना बेहद मुश्किल होता है. ऐसी कई अभिनेत्रियां हैं जो सुपर हिट फिल्मों का हिस्सा रहीं लेकिन उन्हें आसानी से भुला भी दिया गया. मैं आज जो भी हूं अपनी फ्लॉप फिल्मों की वजह से हूं. करिश्मा जब फिल्मों के सेट पर होती थी तो उस दौरान मैं भी वहीं रहती थी. इस वजह से उसके साथ काम कर रहे सभी कलाकारों जैसे अजय देवगन, सलमान या अक्षय कुमार के साथ मेरे अच्छे संबंध बन गए थे. इससे मेरे लिए कई चीजें आसान हो गईं. हालांकि एक साल तक मेरे दिमाग में वकील बनने का विचार भी चलता रहा, लेकिन मुझे जल्दी ही समझ आ गया कि ये मेरे बस की बात नहीं है. उसी समय मैंने तय किया कि मुझे क्या करना है. अपनी सफलता के साथ आगे बढ़ना बेहद आसान होता है. इस लिहाज से मैं किस्मतवाली रही. फिर भी जब मेरी फिल्में फ्लॉप हुईं तब मम्मी और करिश्मा ही थीं, जिन्होंने मुझे कभी हताश नहीं होने दिया.
आपके खयाल से क्या आज महिलाएं ज्यादा स्वतंत्र हैं? और सेक्सुअलिटी के बारे में बेहिचक…
हमारे समाज का एक बड़ा हिस्सा दोहरे मानदंड रखता है. सेक्सी दिखना, सही डाइट लेना या वर्जिश करना दूसरे लोगों के लिए नहीं होना चाहिए- मैं इसे ही महिला का स्वतंत्र होना कहती हूं. यह सब आप अपने लिए करें, अपने बॉयफ्रेंड के लिए या किसी दूसरे को पीछे छोड़ने के लिए नहीं. मेरे खयाल से महिलाओं को मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ महसूस करना चाहिए, चाहे वे कितने बजे भी उठें और कहीं भी काम करने जाएं.
फिल्म उद्योग ऐसी जगह है जहां लोग अपने संबंधों को अकसर छिपाते हैं लेकिन आपके मामले में ऐसा नहीं है.
मेरा ईमानदारी और खुलेपन में पूरा विश्वास है. मेरे अभिभावकों ने मुझे सिखाया है कि हमेशा स्पष्टवादी रहो. कई अभिनेत्रियां मानती हैं कि अपनी उम्र या संबंधों के बारे में बात करने से उनके फैंस की संख्या कम हो जाएगी. काजोल और मेरी बहन जब अपने करियर के शिखर पर थीं तब उन्होंने शादी की, लेकिन आज भी उनके बहुत फैंस हैं.
शाहिद और सैफ में वह कौन-सी बात थी जो आपको उनके नजदीक ले गई?
बीते हुए वक्त के बारे में बात मत कीजिए. मैं चाहती हूं कि वो वक्त अच्छी यादों के रूप में हमेशा मेरे साथ रहे. जहां तक सैफ के साथ (मुस्कराते हुए) संबंधों की बात है, सैफ एक संवेदनशील इनसान है जिसे दुनिया की काफी समझ है. वह सिर्फ उन्हीं फिल्मों में काम करना पसंद करता है जिनपर उसे भरोसा होता है. उसे पढ़ना और घूमना पसंद है. वो काफी एक्टिव और दिलचस्प जिंदगी जीने वाला इंसान है, उसकी यह बात मुझे काफी पसंद है.
पहले मेरी पढ़ने में कोई दिलचस्पी नहीं थी. सैफ ने ही मुझे सिखाया कि पढ़ना मजेदार अनुभव है और पढ़ना-लिखना आपकी जिंदगी और अभिनय को समृद्ध करता है. मेरे साथ ऐसा हुआ भी. मैं धीमी गति से पढ़ती हूं लेकिन मुझे मजा आता है. हम दोनों को फिल्मों के बारे में बातें करना पसंद है, लेकिन एक और बात जो मैंने उससे सीखी वह यह कि काम को कभी घर में मत लाओ.
फिल्म उद्योग में जो बदलाव आए हैं उनके बारे में क्या कहना चाहेंगी?
आर्थिक और तकनीकी रूप से हम आसमानी ऊंचाइयां छू रहे हैं. लेकिन सिनेमा के हर पहलू के बारे में ऐसा कहना मुश्किल है. असल में हमारे यहां दर्शकों की पसंद का पैमाना तय करना काफी मुश्किल है. उन्हें गोलमाल जैसी कॉमेडी फिल्में आज भी पसंद आती हैं. यह एक तरह का कन्फ्यूजन है क्योंकि उन्हें थ्री इडियट जैसी भावुक करने वाली फिल्में भी पसंद आ रही हैं. दर्शकों को फिल्म में एक अच्छी कहानी तो चाहिए लेकिन उसके साथ जूबी डूबी जैसा कुछ मसाला भी हो. यह सब देखकर लगता है कि दर्शकों को आज भी फिल्मों में कुछ जानी- पहचानी चीजें जरूर चाहिए. लीक से हटकर बनी कमीने जैसी अच्छी फिल्में अच्छा बिजनेस नहीं कर पातीं. हमें यह कहना पसंद है कि हम बदल रहे हैं क्योंकि इससे हम ‘कूल’ दिखते हैं, लेकिन मुझे पता नहीं कि हम इस मामले में कितना सच बोल रहे हैं.
राज कपूर के समय से तुलना करें तो सिनेमा इस समय पूरी तरह बदल चुका है. वह असली सिनेमा था. उस समय ‘वैकल्पिक सिनेमा’ की कोई बात नहीं करता था, उस दौर की फिल्में बेहतरीन कहानियां होती थीं- अच्छे-से लिखी हुई और खूबसूरती से से कही गई. आज यदि हम एक अच्छी कहानी कहने की कोशिश करें तो उसे समांतर सिनेमा कह दिया जाता है, लेकिन यदि इसमें कुछ नाच-गाना हो तो वह कमर्शियल सिनेमा बन जाता है. मुझे नहीं पता कि दर्शक इस बारे में क्या सोचते हैं, लेकिन मैं राज कपूर, विजय आनंद और गुरु दत्त के सिनेमा को काफी मिस करती हूं.