आपकी मनपसंद लेखन शैली क्या है ?
रचना का फॉर्म, शैली, गठन या बुनावट कोई भी या कैसी भी हो, यह आवश्यक है कि उसमें बेहतरी और बदलाव की आकांक्षा व्यक्त हुई हो. सब चीजों के ऊपर जीवन का महत्व रेखांकित हुआ हो. लेखन को करियर मानने वाले लेखकों और फैशनेबल, बनावटी, यांत्रिक, अलंकृत लेखन से मुझे अरुचि है.
इन दिनों क्या लिख-पढ़ रहे हैं?
इन दिनों नूर जहीर का हाल ही में प्रकाशित कहानी संग्रह ‘रेत पर खून’ पढ़ रहा हूं. यह किताब उदाहरण है कि उर्दू की रवायत से जुड़े लोग जब हिंदी में लिखते हैं तो क्या जादू पैदा करते हैं.
रचना या लेखक जो आपके बेहद करीब हों.
दोस्तोयेव्स्की, तोल्स्तोय, तुर्गनेव, चेखव, हावर्ड फास्ट, जैक लंडन, रसूल हमजाजोव, ब्रेख्त, लोर्का, मयाकोवस्की, इजाबेल आयेंदे, चिनुआ अचेबे, प्रेमचंद, रेणु, मुक्तिबोध, शमशेर, ज्ञानरंजन, मंटो, इस्मत चुगताई.
कोई महत्वपूर्ण रचना जो अलक्षित रह गई हो.
हमारी भाषा में चर्चा का तंत्र किन्हीं और आधारों पर चलता है, किताबों की श्रेष्ठता के आधार पर नहीं. सर्वश्रेष्ठ किताबों की चर्चा नहीं होती. नूर जहीर और मंजूर एहतेशाम की कोई चर्चा नहीं होती. हाल ही में विष्णु खरे के द्वारा किया गया गोएठे की कालजयी कृति ‘फाउस्ट’ का बहुत पठनीय अनुवाद प्रकाशित हुआ है, उसके बारे में भी किसे पता है?
क्या किया जा सकता है कि किताबें पढ़ने की परंपरा खत्म न हो?
हिंदी में ‘सरकारी खरीद’ नाम की अलालत ने किताबों को पाठकों से दूर किया है. इसे खत्म होना चाहिए जिससे प्रकाशक पाठकों की क्रय क्षमता के अनुसार किताबों के मूल्य कम रखने के लिए बाध्य हों.
गौरव सोलंकी