फिल्म काइट्स
निर्देशक अनुराग बसु
कलाकार ऋतिक रोशन, बारबरा मोरी, कंगना
‘काइट्स’ का नाम कुछ भी रखा जा सकता था. ‘बादल’ भी और तब शुरुआती सीन में पतंगों की जगह दो बादल दिखाकर एक भावुक-सा डायलॉग मार दिया होता. वैसे ‘गुब्बारे’ ज्यादा मुफीद होता क्योंकि फिल्म के एक दृश्य में गुब्बारे में उड़कर नायक-नायिका अपनी जान बचाते हैं और हमें कृतज्ञ करते हैं. वैसे उन दोनों को नायक-नायिका कहना मजबूरी ही है, नहीं तो वे झूठे, धोखेबाज और पैसे के लिए किसी भी हद तक जाने वाले खलनायकों जैसे ही हैं. जब मधुर बैकग्राउंड संगीत उन्हें मासूम दिखाने की कोशिश करता है तो गुस्सा आता है.
खैर, उन्हें प्यार हो ही जाता है और यह अमर महान प्रेम स्वीमिंग पूल में नहाने के बदन-दिखाऊ दृश्य में होता है. फिर वे दोनों पैसे को भूलने लगते हैं और एक बड़े डॉन से पंगा ले लेते हैं जैसे वे क्रिश हों. हां, कुछ समस्या यह भी है, राकेश रोशन और ऋतिक रोशन, दोनों क्रिश की शक्तियों से बाहर नहीं निकल पाए हैं. फिल्म में जब ऋतिक-बारबरा का पीछा बीसियों कारें करती हैं और ऋतिक कलाबाजियां दिखाते हैं और हर वाहन चलाना जानने का सुबूत देते हैं, तब यह भी लगता है कि यह फिल्म ‘धूम’ का अगला सीक्वल सोचकर बनाई गई है. और आह! कितनी कारें तोड़ी गई हैं, कितनी सुंदर प्राकृतिक लोकेशन बेजान दृश्यों में बर्बाद कर दी गई हैं और ऋतिक जैसे कमाल के डांसर और एक्टर को अतीत में पैर जमाए बैठे पिता जी ने इतना जाया किया है कि मत पूछिए.
दूसरी समस्या भाषा की भी है. आखिर तक यह समझ नहीं आता कि नायक कितनी स्पेनिश जानता है और नायिका कितनी अंग्रेजी. केवल वही किरदार हिंदी बोलते हैं, जिनसे आप उम्मीद नहीं करते होंगे. वैसे पूरी गलती फिल्म बनाने वालों की भी नहीं है. बहुत साल पहले हमने ही ‘कहो न प्यार है’ के लचक भरे डांस देखकर यह छूट दी थी कि कहानी से हमें खास मतलब नहीं है. राकेश रोशन ने धीरे-धीरे इसका ‘खास’ भी हटा दिया और यह समझ लिया कि हमें कहानी से मतलब है ही नहीं. हम तो बस उनके बेटे का सुडौल शरीर और गोरी हीरोइन देखकर तालियां पीटेंगे. यह भी हो जाता मगर उन्होंने अनुराग बसु जैसा प्रतिभावान निर्देशक चुन लिया. जिस तरह नागेश कुकुनूर अच्छी ‘तस्वीर’ और विशाल भारद्वाज अच्छी ‘कमीने’ नहीं बना सकते, उसी तरह अनुराग बसु कितने भी मेहनताने में अच्छी ‘काइट्स’ नहीं बना सकते थे. बिना आत्मा और सिर्फ स्टार वाली कहानियों को साधारण लोग, प्रतिभावान लोगों से कहीं बेहतर ढंग से कह सकते हैं. छोटी और अच्छी फिल्में बना चुके सब निर्देशक बड़े बैनरों के साथ लगातार डूबते ही जा रहे हैं. हमें उम्मीद है कि बड़े सितारों के साथ ‘बॉम्बे वेलवेट’ बनाने निकले अनुराग कश्यप अपने स्तर का खयाल रखेंगे.
गौरव सोलंकी