छत्तरपुर में बने फिल्म के इस सेट पर काफी हलचल है. हलचल उस केबिन में भी है जहां फिल्म का एक अहम किरदार अभी-अभी लखनऊ से कांग्रेस की एक रैली में शामिल होकर हेलिकॉप्टर से लौटा है. इतनी थका देने वाली रैली के बावजूद भोजपुरी के इस सुपरस्टार के लिए यह आराम का वक्त नहीं है, रवि किशन को जल्दी ही फिल्म के अगले शॉट की तैयारी करनी है. हिंदी के मुख्यधारा के सिनेमा में तेजी से स्थान बना रहे रवि की यही वह खूबी है जिसकी बदौलत उन्हें भारत के सफलतम निर्देशक मणिरत्नम की रावण और अमेरिकी कंपनी पन फिल्म्स की द मैन फ्रॉम बनारस में काम करने का मौका मिला. रावण में वे अभिषेक बच्चन के बड़े भाई के किरदार में हैं तो अंगेजी फिल्म द मैन फ्रॉम बनारस में वे एक नंग-धड़ंग अघोरी बने हैं. वैसे इस खालिस देसी कलाकार के अंतरराष्ट्रीय फिल्मों से जुड़ाव की यह पहली घटना नहीं है. पिछले दिनों जब कोलंबिया पिक्चर ने स्पाइडर मैन-3 को भोजपुरी में डब करने की योजना बनाई तो कंपनी की एक ही शर्त थी – स्पाइडर मैन के लिए रवि किशन की आवाज ही चाहिए.
‘ बिग बॉस के प्रतिभागी मुझे भोजपुरी एक्टर कहकर बुलाते थे, जबकि मैं उतनी ही अच्छी बंगाली, मैथिली और मराठी बोल सकता हूं, सालों तक मैंने उर्दू थिएटर में काम किया है ‘
इस सुपरस्टार की एक और बड़ी खासियत है उनका हिंदी पट्टी वाला मिलनसार मिजाज. यही वजह है कि बिग बॉस – 2 के दौरान रवि छोटे पर्दे पर सबसे ज्यादा देखे जाने वाले कलाकारों में शामिल रहे और यहीं से वह एक लाइन ‘जिंदगी झंडवा फिर भी घमंडवा ‘ इस अभिनेता की पहचान बन गई. आज रवि, रजनीकांत जैसे भारत के उन गिन-चुने क्षेत्रीय अभिनेताओं में शामिल हो चुके हैं जो शहरी कुलीन तबके के बीच खासा जाना-पहचाना नाम है. अपने केबिन में लगे पलंग पर आराम की मुद्रा में बैठे रवि से जब हमारी मुलाकात होती है तो हमारा पहला वास्ता उनके भोजपुरी सहजता वाले मिजाज की बजाय कुछ किताबी सभ्याचार से पड़ता है. वे अपनी सिगरेट जलाने के पहले औपचारिकता निभाते हुए हमें भी सिगरेट पीने का प्रस्ताव देते हैं. इन औपचारिकताओं को एक बार किनारे कर जब हम बातचीत शुरू करते हैं तो हमें अहसास होता है कि इस अभिनेता का एक ही फलसफा है, जिंदगी अभिनय है और अभिनय जिंदगी. सेट पर लगी फ्लोरेसेंट लाइटों की ओर इशारा करते हुए रवि हमसे कहते हैं,’मैं जब घर में होता हूं तब भी मुझे इस तरह की लाइटिंग पसंद आती है.’
जौनपुर में जन्मे रवि किशन की अभिनय यात्रा की शुरुआत स्थानीय नौटंकियों से हुई थी. यहां वे रामलीला में सीता बना करते थे. लेकिन यह बात उनके पिता को नापसंद थी, रवि बताते हैं, ‘मेरे पिता डिप्टी कलेक्टर थे, जब उन्हें पहली बार मेरे रामलीला में काम करने की बात पता चली तो उन्होंने मेरी बेतरह पिटाई की.’ हालांकि इस दौरान रवि की मां हमेशा उनके साथ खड़ी रहीं. पिता से पिटाई के बाद भी उन्होंने अपने बेटे को सीता की भूमिका के लिए साड़ियां देना जारी रखा. अपनी मां के बारे में बात करते हुए रवि कहते हैं, ‘जब एक नन्हा पंछी उड़ना चाहता है तो उसकी मां को उसे आगे बढ़ाना चाहिए ताकि वह पंखों का इस्तेमाल करना सीख सके.’ बातचीत में अक्सर इस तरह के दार्शनिक अंदाज में आ जाने की खूबी भी रवि के लिए ‘राखी का स्वयंवर’ (जहां उनका काम राखी सावंत के बड़े भाई बनकर शादी के इच्छुक उम्मीदवारों को जांचना-परखना था) और ‘राज पिछले जनम का’ (इस कार्यक्रम में उन्हें खुद के बारे में पता चला कि वे एक नागा साधु थे, इस बारे में वे कहते हैं कि उन्हें पता था कि उनकी पिछली जिंदगी उनकी दो सबसे पसंदीदा चीजों- सेक्स या शिव से जुड़ी रही होगी) के दौरान काफी काम की साबित हुई. अपने संघर्ष के दिनों में कई साल मुंबई के लोखंडवाला के एक कमरे वाले फ्लैट के भीतर रहते हुए रवि का एक ही सपना था- अगला अमिताभ बच्चन बनना. हालांकि आज 20 से ज्यादा हिंदी फिल्मों और जय हनुमान जैसे प्रसिद्घ टीवी धारावाहिकों में काम करने के बाद रवि देश में एक जाना-माना चेहरा जरूर बन गए हैं फिर भी बॉलीवुड का महानायक बनने की राह पर उन्हें अभी लंबा सफर तय करना है.
रवि के संघर्ष के दिनों में जब एक दोस्त ने पहली बार यह सलाह दी थी कि उन्हें भोजपुरी फिल्मों में अपनी किस्मत आजमानी चाहिए तब रवि की इस पर गुस्से में प्रतिक्रिया थी, ‘ भोजपुरी फिल्में देखता कौन है? क्या तुम मेरा करियर बर्बाद करना चाहते हो?’ लेकिन बाद में अपनी मां के कहने पर रवि ने इस तरफ सोचना शुरू कर दिया. उस समय भोजपुरी सिनेमा एक ऐसी सल्तनत थी जिसका कोई बादशाह नहीं था. इसी समय 2003 में रवि की पहली भोजपुरी फिल्म सैंया हमार रिलीज हुई. अपनी पहली ही फिल्म से रवि ने उत्तर प्रदेश और बिहार में तूफान मचा दिया और इस फिल्म के बाद ही यह माना जाने लगा कि रवि किशन के रूप में भोजपुरी फिल्मों को सबसे बड़ा सितारा मिल गया है. फिल्म से मिली लोकप्रियता के बारे में बात करते हुए रवि बताते हैं, ‘बिहार में एक फिल्म की शूटिंग के दौरान शाम के सात बजते ही मुझे अपने कमरे में बंद कर दिया जाता था क्योंकि वहां की भीड़ मुझसे मिलने के लिए ऐसे टूट पड़ती थी जैसे हमारा होटल ही तोड़ डालेंगे. महिलाएं सिंदूर और मालाएं लेकर बाहर खड़ी हो जाती थीं.’
रवि को अपना और भोजपुरी सिनेमा का ‘गॉडफादर’ मानने वाले उनके सहायक सागर हमें यह जानकारी देते हैं कि रवि की बदौलत आज भोजपुरी सिनेमा 100 करोड़ से ज्यादा का उद्योग है और इसमें 40 हजार से ज्यादा लोगों को रोजगार मिला हुआ है. रवि के मेकअप मैन हितेश के लिए वे उसके असली हीरो हैं. तकरीबन 130 भोजपुरी फिल्मों में रवि का मेकअप कर चुके हितेश कहते हैं, ‘मैं अपने आखिरी वक्त तक सर के साथ रहना चाहता हूं.’ फिल्म वेलकम टू सज्जनपुर के निर्देशक श्याम बेनेगल रवि के बारे में कहते हैं, ‘मैंने उन्हें अपनी फिल्म (वेलकम टू सज्जनपुर) के लिए इसलिए चुना था क्योंकि उन्हें हर तरह की भूमिका में महारत हासिल है, साथ ही उनमें भोजपुरी अंदाज की सहजता भी है. हालांकि उनके साथ काम करते हुए मैंने पाया कि वे जितने कमाल के अभिनेता हैं उतनी ही जबर्दस्त उनकी कॉमेडी टाइमिंग है, इसके अलावा वे खूबसूरत तो हैं ही.’
रवि किशन के लिए बिग बॉस से बाहर होना भी बेहद यादगार मौका था. उस वक्त उन्हें कई लोगों ने फोन किए थे. तब रवि को पहली बार एहसास हुआ था कि शहरी अंग्रेजीदां युवा उनको उसी सहजता के साथ स्वीकार कर रहा है जितना वह अक्षय कुमार को करता है. लेकिन उन्हें यह भी एहसास था कि उन्हें अक्षय के गढ़ बॉलीवुड में स्वीकार्यता के लिए अभी काफी इंतजार करना है. इससे जुड़ी अपनी पीड़ा बताते हुए रवि कहते हैं, ‘बिग बॉस के प्रतिभागी मुझे भोजपुरी एक्टर कहकर बुलाते थे, जबकि मैं उतनी ही अच्छी बंगाली, मैथिली और मराठी बोल सकता हूं. सालों तक मैंने उर्दू थिएटर में काम किया है. फिर भी वे मेरे साथ ऐसा व्यवहार करते थे जैसे मैं उनकी कैटिगरी का नहीं हूं.’
भोजपुरी सिनेमा में रवि किशन सबसे बड़ा नाम हैं. ऐसे में बॉलीवुड के चरित्र किरदारों के लिए चुने जाने से पहले रवि के सामने सबसे पहली चुनौती इस छवि से निजात पाना ही थी. रवि के लिए मुख्यधारा के हिंदी सिनेमा में प्रवेश का काम श्याम बेनेगल ने सुगम बनाया. उन्होंने अपनी फिल्मों वेलकम टू सज्जनपुर और वेलडन अब्बा में उन्हें मौका देकर उनके आगे की राह साफ कर दी. बेनेगल कहते हैं, ‘उन्होंने बॉलीवुड का सपना जिया है, और उन्हें उसमें बुरी तरह असफल होने का भी एहसास है. इसलिए इस आदमी में सिर उठाकर और एक ताजेपन के साथ आगे बढ़ने की काबिलियत है.’ तो क्या बॉलीवुड में देर से लेकिन इतनी जबर्दस्त पहचान उनके सालों के संघर्ष का मुआवजा है? इस सवाल पर रवि कहते हैं, ‘यह सब किस्मत की बात है. मैं पूरी जिंदगीभर शिवभक्त रहा. मुझे पता था कि सफलता के लिए जिंदगीभर इंतजार नहीं करना पड़ेगा- अब मेरा वक्त आ चुका है.’