बदली राजनीति, बदलती तकदीरें

समाजवादी पार्टी की विंडफाल टैक्स की धार को कुंद करने के वास्ते रिलायंस इंडस्ट्रीज़ के मुखिया मुकेश अंबानी ने प्रधानमंत्री कार्यालय और कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी से मुलाक़ात करके ये बात साफ कर दी कि छोटे भाई अनिल अंबानी के साथ हालिया टकराव में वो इतनी आसानी से सरकार को अनिल का पक्ष नहीं लेने देंगे।

एक तरफ बड़े अंबानी सत्ता के गलियारों में चारा फेंक रहे हैं तो दूसरी ओर ये चर्चा भी गर्म है कि अमर सिंह और उनकी पार्टी से नजदीकी के चलते आजकल अनिल का 10 जनपथ के साथ हॉटलाइन संपर्क हो गया है। जैसे ही अमर सिंह ने घोषणा की कि उनकी पार्टी सरकार पर निजी तेलशोधक कंपनियों पर विंडफाल टैक्स लगाने का दबाव डालेगी, मुकेश अपने निजी जेट विमान से सरपट दिल्ली दरबार की ओर दौड़े। अमर सिंह का तर्क है कि वैश्विक तेल बाज़ार की तेज़ी में इन कंपनियों ने अप्रत्याशित कमाई की है। अगर इस टैक्स की घोषणा की जाती है तो इसका सीधा असर आरआईएल द्वारा भारत में स्थापित किए जाने वाले अब तक के सबसे बड़े तोलशधक संयंत्र की योजना पर पड़ेगा।

भारतीय अर्थव्यवस्था का पांच फीसदी हिस्सा अंबानी भाइयों के विशालतम व्यापारिक साम्राज्य से आता है। दोनों भाइयों ने 90 के दशक के बाद—जब दोनों भाई मिलकर अपने पिता धीरूभाई के मार्गदर्शन में सत्ता को साधे रखते हुए एक के बाद एक कंपनियों को धराशायी कर रहे थे– लंबी दूरी तय कर ली है। एक दौर था जब उनकी ताकत इतनी थी कि देश के बड़े-बड़े उद्योगपति भी तब इनसे पंगा लेने की हिम्मत नहीं जुटा पाते थे क्योंकि ऐसा करने पर पूरे सरकारी तंत्र के उनके खिलाफ चले जाने का खतरा मंडराने लगता था। धीरूभाई की मौत के बाद एक बार फिर से दोनों को लड़ता देख अब वही लोग अपनी खुशी को दबा नहीं पा रहे हैं। 10 जुलाई को वामपंथियों द्वारा मनमोहन सरकार से समर्थन वापस लेने और समाजवादी पार्टी द्वारा सरकार को समर्थन देने के फैसले के बीच दोनों भाइयों की इस ताज़ा तरीन लड़ाई के राजनीतिक रंग लेने का ख़तरा पैदा हो गया। इसका संकेत बाज़ार में भी साफ देखा जा सकता है। जिस दिन सपा ने यूपीए सरकार को समर्थन देने का एलान किया उस दिन बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज में मुकेश की कंपनी आरआईएल के शेयर छह फीसदी गिर गए। 

समाजवादी पार्टी और अनिल अंबानी के बीच स्वाभाविक गठजोड़ और इसमें मुकेश को नुकसान पहुंचा सकने की क्षमता का संकेत बाज़ार में भी साफ देखा जा सकता है। जिस दिन सपा ने यूपीए सरकार को समर्थन देने का एलान किया उस दिन बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज में मुकेश की कंपनी आरआईएल के शेयर छह फीसदी गिर गए। ये रूझान विंडफाल टैक्स के ख़तरे के प्रति निवेशकों की हताशा को दर्शाते हैं। 

विंडफॉल टैक्स लगाने की मांग के अलावा अमर सिंह ने अनिल की आर कॉम और दक्षिण अफ्रीकी कंपनी एमटीएन के विलय को रोकने की मुकेश अंबानी की कोशिशों की भी आलोचना की। यहां ये दीगर है कि अगर अनिल अंबानी का एमटीएन से समझौता पक्का हो जाता है तो ये न सिर्फ दुनिया की सबसे बड़ी टेलीकॉम कंपनियों में शुमार हो जाएगी बल्कि अनिल की कुल संपत्ति भी मुकेश से ज्यादा हो जाएगी। मुकेश ने धमकी दी थी कि अनिल को आरकॉम के शेयरों को बेचने के लिए उनकी सहमति लेनी होगी अन्यथा वो क़ानूनी कार्रवाई करेंगे। इस बाबत एक समाचार चैनल पर अमर सिंह ने कहा कि अनिल और एमटीएन के बीच प्रस्तावित समझौते पर बड़े भाई का रवैया बहुत ही घृणित है। उन्होंने प्रधानमंत्री से दोनों भाइयों के मामले में हस्तक्षेप की भी मांग कर डाली। 

एमटीएन को लेकर पैदा हुए विवाद की जड़ में दरअसल वो समझौता है जिसे दोनों भाइयों ने तीन साल पहले अपने पिता के व्यापारिक साम्राज्य को आपस में बांटने के लिए किया था। इस समझौते की सबसे अहम बात ये थी कि दोनों भाई अलग-अलग क्षेत्रों में काम करेंगे और एक दूसरे के व्यापार में स्पर्धा नहीं करेंगे। मुकेश का दावा है कि समझौते में ये भी था कि अगर कभी अनिल रिलायंस कम्युनिकेशंस के शेयर बेचना चाहें तो मुकेश द्वारा उन्हें न खरीदने की हालत में ही शेयरों को किसी तीसरी कंपनी को बेचा जा सकता है। 

अनिल धीरूभाई अंबानी समूह (एडीएजी) इस बात से इनकार करता है। एडीएजी का कहना है कि जिस वक्त ये समझौता हुआ था बोर्ड में मुकेश समर्थकों का दबदबा था और उन्होंने अनिल के एकमात्र प्रतिनिधि के विरोध को अनदेखा कर दिया था। खुद अनिल का कहना है कि उन्होंने उसी वक्त इस समझौते का कड़ा विरोध किया था। 

2004 में मनमोहन सिंह के सत्ता में आने के बाद से ही दिल्ली के सत्ताधारी प्रतिष्ठानों में छोटे अंबानी की हैसियत किसी अछूत जैसी रही है। वजह वही थी, अमर सिंह से उनकी नज़दीकी जो खुद भी राजनीतिक कारणों से सत्ताधारी गठबंधन की मुखिया यानी कांग्रेस के लिए अछूत बने हुए थे। अनिल को इसके व्यापारिक परिणाम भी भुगतने पड़े। दिल्ली, मुंबई हवाई अड्डे के निजीकरण के लिए अनिल का आवेदन ठुकरा दिया गया जबकि तकनीकी मूल्यांकन में उन्हें सबसे ऊपर रखा गया था। लेकिन अब अमर सिंह और कांग्रेस के बीच संबंध नाटकीय रूप से सुधर गए हैं तो अनिल अंबानी भी व्यवस्था के लिए अछूत नहीं रहे। अब ये धारणा आम हो चली है कि अमर सिंह सरकार पर रिलायंस कम्युनिकेशंस और एमटीएन सौदे को सुचारूपूर्वक संपन्न कराने का दबाव डाल रहे हैं। व्यापार जगत पर निगाह रखने वालों का मानना है कि आर-कॉम—एमटीएन समझौता हो या न हो मगर इस विवाद से भारत की व्यावसायिक छवि अंतरराष्ट्रीय बाज़ार और निवेशकों के बीच दागदार जरूर हो जाएगी।   

अमर सिंह ने ये भी आरोप लगाया है कि व्यापारिक घराने सरकार गिराने के लिए लोकसभा सांसदों की खरीद फरोख्त कर रहे हैं। ज़ाहिर है ऐसा कहते हुए उनका इशारा मुकेश अंबानी की तरफ ही रहा होगा। 

अपनी नई दिल्ली यात्रा के दौरान मुकेश अंबानी प्रधानमंत्री के अलवा ताकतवर कैबिनेट सचिव से भी मिले जिनका रसूख पेट्रोलियम सचिव एमएस श्रीनिवासन की सेवानिवृत्ति के बाद और भी बढ़ने वाला हैं। इसके अलावा वो कांग्रेसी दिग्गज अहमद पटेल से भी मिले (जामनगर से उनका जुड़ाव सबको याद है)। यहां तक कि हाल ही में उन्होंने दक्षिण अफ्रीका की यात्रा भी की जहां उन्होंने एमटीएन के चेयरमैन सिरिल रामाफोसा और सीईओ पीएफ हेल्को को पत्र लिखकर एडीएजी और एमटीएन के खिलाफ क़ानूनी कार्रवाई की धमकी दी। इधर एडीएजी के अंदरूनी सूत्र बताते हैं उन्हें एमटीएन को समझौते का प्रस्ताव देने का हक़ है क्योंकि कंपनी एक्ट उन्हें इस बात की इजाजत देता है कि किसी भी कंपनी के शेयर आसानी स्थानांतरित किए जा सकते हैं और इसमें किसी को भी हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है। 

व्यापार जगत पर निगाह रखने वालों का मानना है कि आर-कॉम—एमटीएन समझौता हो या न हो मगर इस विवाद से भारत की व्यावसायिक छवि अंतरराष्ट्रीय बाज़ार और निवेशकों के बीच दागदार जरूर हो जाएगी। शेयर बाज़ार में सूचीबद्ध भारत की ज्यादातर कंपनियां आज भी परिवारों के नियंत्रण में हैं और इस तरह की लड़ाइयां ये साबित करती हैं कि भारतीय व्यावसायिक घराने आज भी निजी व्यापारिक हितों से ऊपर नहीं उठ सके हैं। इस बात की चर्चाएं पहले से ही हैं कि कुछ स्वार्थी तत्व आर-कॉम के शेयरों की कीमतें गिराने में लगे हुए हैं और कहा जा रहा है कि ये कड़वाहट दिनों दिन बढ़ती ही जाएगी अगर राजनीति और व्यापार जगत के कुछ शक्तिशाली दोस्तों ने इसमें बीच बचाव नहीं किया। 

फिलहाल तो स्थिति ये हे कि अगर समझौता आगे बढ़ता है तो मुकेश अंबानी क़ानूनी लड़ाई की शुरुआत कर सकते हैं– उनके वकील पहले ही छोटे भाई को ढेर सारी क़ानूनी चेतावनियां भेज चुके हैं। और अगर ये नहीं होता है तो (दक्षिण अफ्रीकी अख़बार द टाइम्स के मुताबिक एडीएजी से बातचीत खत्म होने के कगार पर है और एमटीएन फिर से एयरटेल से बातचीत करने का मन बना रही है) उस हालत में अनिल अंबानी भी चुप बैठेने वाले नहीं हैं। वो अपने नए राजनीतिक रसूख का फायदा उठाने की कोशिश कर सकते हैं। 

दोनों भाइयों ने बंटवारे के बाद अपने व्यापारिक साम्राज्य को हर तरह से आगे बढ़ाया है। दोनों इससे भी तेज़ रफ्तार से तरक्की कर सकते हैं अगर वे एक दूसरे की राहों को काटने की बजाय अपनी-अपनी राह चलें।

शांतनु गुहा रे