फिल्म बम बम बोले
निर्देशक प्रियदर्शन
कलाकार अतुल कुलकर्णी, दर्शील सफारी, जिया
यूं तो समस्याएं कई हैं. जैसे फिल्म का नाम जो ‘बम बम भोले’ न होकर ‘बम बम बोले’ है. यह भी ‘तारे जमीन पर’ के एक गाने से उठाया गया है और उसका फिल्म से उतना ही लेना-देना है जितना प्रियदर्शन की बाकी फिल्मों मसलन हंगामा, हलचल और दे दना दन का था.
फिल्म के तीन नायक हैं, पीनू (दर्शील), उसके गरीब पिता खोगीराम (अतुल कुलकर्णी) और एडिडास. इसीलिए यह बच्चों और जूतों की फिल्म है और अपनी मासूमियत को अपने ही लोभ से (या बाजार की मजबूरी से) बार-बार तोड़ती है. यह ऑस्कर जीतने वाली ईरानी फिल्म ‘चिल्ड्रन ऑफ हेवन’ का अधिकृत रीमेक है और अच्छी बात यह है कि यह सिर्फ बच्चों की परीकथाओं वाली फिल्म नहीं है, जैसी इसकी छवि प्रचार के दौरान पेश की गई. यह उत्तर-पूर्व के एक गांव की कहानी है और फिल्म में आतंकवाद, बेकारी, क्षेत्रीयता और गरीबी की गंभीर बातें हैं. हमारे यहां जो गिनी-चुनी बाल फिल्में बनी हैं. उनमें दुनिया की इन समस्याओं का कभी जिक्र नहीं होता और ‘बम बम बोले’ इसीलिए अलग है. साथ ही वह आसानी से अपनी मासूमियत नहीं खोती. हां, यह बात और है कि गरीबी में जब भाई-बहनों के पास एक जोड़ी जूते ही बचे हैं और चूंकि उनका स्कूल का समय अलग-अलग है, इसलिए वे दोपहर में एक जगह मिलते हैं, ताकि चप्पल और जूतों की अदला-बदली कर पहन सकें, तब भी वे जूते एडिडास के ही हैं. लेकिन फिर भी पीनू की छोटी बहन रिमझिम (जिया) की मासूमियत आपको कई बार सम्मोहित करती है और वह फ्रेम से दर्शील का हिस्सा बार-बार छीनती है.
दर्शील के साथ भी वही कमियां हैं जो बाकी सितारों के साथ होती हैं. उन्हें पहली फिल्म ने (जो अच्छी तो थी, लेकिन अभूतपूर्व नहीं ) उस आसमान पर बिठा दिया है जो अपनी आलोचना करने की गुंजाइश भी नहीं छोड़ता. तब आपको अपने हर अंदाज में खूबियां ही नजर आती हैं और आप इस बात पर ध्यान नहीं देते कि जब आपको दुखी और डरा हुआ दिखना है तब आपके चेहरे पर गुस्से वाले भाव क्यों होते हैं? एक छोटा बच्चा, जो क्लास में हमेशा देर से आता है और बमुश्किल 3 मिनट के लिए स्क्रीन घेरता है, उसके पास फिल्म के सबसे अच्छे दृश्य हैं.
कहानी छोटी-सी है और फिल्म लंबी है लेकिन बच्चों के लिए लंबी नहीं है. यह छुट्टियों की पारिवारिक फिल्म है और फुर्सत हो तो आप
इसे इसकी प्राकृतिक सुंदरता और प्रियदर्शन के बिना हास्य वाले सिनेमा के लिए देख सकते हैं. वैसे आपकी शिकायत भी सुस्त एडिटिंग और हॉर्लिक्स-एडिडास के बड़े-बड़े पोस्टरों से ही रहेगी और बच्चों के दौड़ने के दृश्यों से, जिन्होंने फिल्म का कम से कम आधा घंटा ले लिया है.
गौरव सोलंकी