समाचार चैनलों की यह ‘खोजी’ प्रवृत्ति उस समय कहां चली गई थी, जब आईपीएल के तमाशे के पीछे यह बड़ा खेल चल रहा था?
चैनल तमाशे के बिना नहीं चल सकते. वे हमेशा किसी न किसी तमाशे की खोज में रहते हैं. चाहे वह फिल्मी तमाशा हो, क्रिकेट का तमाशा या फिर राजनीतिक तमाशा. उन्हें चौबीसों घंटे कोई न कोई तमाशा चाहिए. अगर कोई सचमुच का तमाशा न हो तो उन्हें तमाशा गढ़ने में भी कोई संकोच नहीं होता. हालांकि इन दिनों चैनलों के दिन अच्छे चल रहे हैं. उन्हें तमाशे गढ़ने की उतनी जरूरत नहीं पड़ रही है. सानिया-शोएब की शादी का तमाशा खत्म होते-होते उन्हें उपहार की तरह आईपीएल-ललित मोदी-शशि थरूर का ‘लव, सेक्स, धोखा’ मार्का तमाशा हाथ लग गया. चैनलों को और क्या चाहिए था? एक तो क्रिकेट, उसपर से आईपीएल और फिर उसमें राजनीति, षड्यंत्र, पैसा, सुंदरियों और सत्ता की सनसनीखेज छौंक. देखते-देखते चैनलों पर सुनंदा पुष्कर और शशि थरूर के किस्से छा गए. मोदी के कारनामों पर से पर्दा उठने लगा. उनके पिछले जीवन के इतिहास से लेकर मौजूदा कारगुजारियों के कच्चे चिट्ठे खोले जाने लगे. उनकी जीवनशैली, कार्यशैली और बड़बोलेपन पर टीका-टिप्पणी होने लगी. आईपीएल टीमों और उनके असली-नकली मालिकों की खोज-खबर ली जाने लगी और खुलासे होने लगे कि कैसे आईपीएल टैक्स चोरी, मनी-लांडरिंग, बेनामी निवेश से लेकर हितों का टकराव का अखाड़ा बन गया है. यह भी कि इस खेल में अनेक नेता और मंत्री भी आकंठ डूबे हुए हैं.
इस तमाशे के बीच सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह है कि आईपीएल और मोदी को लेकर जो चैनल अचानक इतनी ‘खोजी पत्रकारिता’ करते दिख रहे हैं, उनकी यह ‘खोजी’ प्रवृत्ति उस समय कहां चली गई थी, जब आईपीएल के तमाशे के पीछे यह बड़ा खेल चल रहा था? चैनलों ने ये सवाल तब क्यों नहीं खड़े किये, जब टीमों और खिलाडि़यों के लिए बोलियां लग रही थीं? उन्हें मोदी की कारगुजारियों, हाई-फाई जीवनशैली, बड़बोलेपन और पिछले इतिहास का ध्यान उस समय क्यों नहीं आया जब मोदी को आईपीएल की ‘शानदार कामयाबियों’ और उसे एक ‘ग्लोबल ब्रांड’ बनाने के लिए बधाइयां दी जा रही थीं?
क्या खबरिया चैनलों को यह सब पता नहीं था? या वे जान-बूझकर अनजान बने हुए थे? लगता तो यही है कि उन्हें सब पता था लेकिन वे भव्य तमाशे और उसकी उत्तेजना, यूफोरिया और धूम-धड़ाके में सब जानते-बूझते हुए भी न सिर्फ चुप रहे, बल्कि उसमें खुद भी पूरी तरह से शामिल हो गए. आईपीएल के इर्द-गिर्द एक यूफोरिया खड़ा करने में मीडिया और खासकर समाचार चैनलों की सबसे बड़ी भूमिका रही.
असल में, मोदी के अपराधों में मीडिया और खासकर समाचार चैनल भी बराबर के भागीदार हैं क्योंकि आईपीएल का तमाशा चैनलों की सक्रिय भागीदारी के बिना खड़ा ही नहीं हो सकता था. याद रहे, यह क्रिकेट तमाशा चैनलों के लिए ही तैयार किया गया था. चैनलों का क्रिकेट प्रेम किसी से छुपा नहीं है. लेकिन चैनलों की क्रिकेट से यह मुहब्बत सिर्फ किसी अद्वैत प्रेम के कारण नहीं बल्कि ठोस कारोबारी कारणों से है. आईपीएल के मुख्य प्रसारणकर्ता सेट मैक्स (सोनी) के नेतृत्व में चैनलों के वितरण पार्टनरशिप ‘वन एलायंस’ से कई बड़े समाचार चैनल भी जुड़े हुए हैं. समाचार चैनल ‘न्यूज 24’ में कोलकाता की टीम के मालिक शाहरुख का पैसा भी लगा हुआ है. एक और बड़े समूह- एनडीटीवी के एक चैनल में बंगलुरु की टीम के मालिक विजय माल्या ने निवेश कर रखा है. सहारा मीडिया के मालिक अब खुद पुणे की टीम के मालिक हैं. एक और बड़ा मीडिया समूह जी टीवी पहले खुद आईपीएल जैसा तमाशा खड़ा करने की असफल कोशिश कर चुका है.
अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि चैनल आईपीएल के ‘खेल’ और मोदी के बारे में सब-कुछ जानकर भी अनजान क्यों बने रहे. यह साफ तौर पर हितों के टकराव का मामला है. आश्चर्य नहीं कि आईपीएल और मोदी पुराण पर चैनलों के कवरेज में भी हितों का यह टकराव साफ दिख रहा है. सबसे अहम सवाल, इतनी गंदगी सामने आने के बावजूद आखिर सभी चैनल आईपीएल को बचाने में एकजुट क्यों हैं? चैनलों का यह कौन-सा अपराध शास्त्र है जो अपराधी (मोदी) से घृणा और अपराध (आईपीएल) से प्रेम का पाठ पढ़ाने में लगा हुआ है? जरा सोचिए, इस तमाशे का खेल खुल चुका है.
आनंद प्रधान