दिव्य दृश्य है. ऐसा ग्रह संयोग कम बनता है. दिन-रात बाबाओं स्वामियों और ज्योतिषाचार्यों की जय-जयकार करने वाले समाचार चैनलों ने अचानक इच्छाधारी बाबाओं और स्वामियों के खिलाफ अभियान-सा छेड़ दिया है. इसे समय का फेर ही कहना चाहिए कि चैनल इच्छाधारी बाबाओं और स्वामियों के अन्त:पुर की कहानियां चटकारे ले-लेकर बता रहे हैं. बाबाओं के सेक्स रैकेट, आपराधिक नेटवर्क और नैतिक पतन से लेकर आम जनता के प्रति उनकी असंवेदनशीलता (कृपालु महाराज प्रकरण) को लेकर उनकी खूब लानत-मलामत की जा रही है.
धरम-करम के कारोबार में बराबरी के हिस्सेदार हिंदी समाचार चैनल अपनी वर्तमान मुहिम को और कितना आगे ले जा पाएंगे?
वजह चाहे जो हो लेकिन चैनलों की सक्रियता का असर हुआ है. तमाम बाबाओं, स्वामियों और महाराजों को अपनी पोल खुलने का डर सताने लगा है. अयोध्या के साधुओं ने फैसला किया है कि वे महिला भक्तों से अकेले में नहीं मिलेंगे. ऐसे में, चैनलों के रुख से एक क्षीण-सी ही सही लेकिन उम्मीद जगती है कि वे अपनी इस मुहिम में डटे रहेंगे और उनके कैमरों की निगाहें उन बाबाओं, स्वामियों और गुरुओं की ओर भी जाएंगी जो अभी भी धर्म की आड़ में तमाम गैर कानूनी धंधे कर रहे हैं. लोगों को ठग रहे हैं. लेकिन यह आशंका भी है कि तारों-ग्रहों और धरम-करम के धंधे में खुद भी शामिल चैनल इस मुहिम को और कितना आगे ले जा पाएंगे?
आशंका बेबुनियाद नहीं. क्या यह सच नहीं कि जिन चैनलों को आज अचानक इच्छाधारी बाबाओं, स्वामियों, महाराजों के पतित और पथभ्रष्ट होने का दिव्य ज्ञान हुआ है वे खुद ऐसे बाबाओं, बापुओं, स्वामियों, महाराजों आदि को अपने चैनलों पर बैठाकर उनका महिमा-मंडन करते रहे हैं और आज भी कर रहे हैं? असल में चैनलों की बाबाओं, स्वामियों आदि में अटूट आस्था अब भी बनी हुई है. आश्रम में 63 महिलाओं और बच्चों की भगदड़ में मौत के मामले में आपराधिक असंवेदनशीलता बरतने और उससे पहले बलात्कार के आरोपों में घिरे होने के लिए जिन कृपालु महाराज की इतनी लानत-मलामत की जा रही है वे देश के सर्वश्रेष्ठ चैनल पर अब भी बिला नागा सुबह साढ़े छह बजे भक्तों को प्रवचन दे रहे हैं.
यही नहीं, बाबाओं, स्वामियों आदि की करतूतों के बारे में होने वाली गर्मागर्म चर्चाओं में भी फैसला तमाम गणमान्य और पहुंचे हुए संत, बाबा, स्वामी आदि ही कर रहे हैं. चैनलों के घाट पर इनकी भीड़ लगी हुई है. वे दर्शक को आश्वस्त करने में लगे हैं कि फिलहाल जो कुछ मामले सामने आए हैं, वे गेरुआ पहनकर धरम-करम के पवित्न क्षेत्न में घुस आए गिने-चुने ढोंगियों और कपटियों की करतूतें हैं, बस कुछ अपवाद, बाकी सब बिलकुल ठीक और कुशल से है. आश्चर्य नहीं कि चैनल भी उन्हीं बाबाओं, स्वामियों आदि के खिलाफ खोजी रिपोर्टें दिखाने में जुटे हुए हैं जो न सिर्फ छोटी मछलियां हैं बल्कि जिनका भंडाफोड़ चैनलों की खोजी पत्नकारिता के कारण नहीं, आपसी प्रतिद्वंद्विता और पुलिस कार्रवाई के कारण हुआ है. यही नहीं, अगर इच्छाधारी बाबा भीमानंद या स्वामी नित्यानंद के मामले में सेक्स का एंगल नहीं होता तो शायद ही चैनल इन मामलों में इतनी दिलचस्पी लेते.
सच्चाई यह है कि एकाध अपवादों को छोड़कर अधिकांश हिंदी समाचार चैनल खुद भी इच्छाधारी प्रतीत होते हैं. काल, कपाल, महाकाल से लेकर स्वर्ग की सीढ़ी तक और तेज तारे से लेकर तीन देवियां तक ये इच्छाधारी चैनल भांति-भांति के रूप धरते रहे हैं. एक चैनल ने तो सिर्फ ऐसे ही कार्यक्रमों के जरिए वह ख्याति हासिल कर ली है कि बड़े-बड़े बाबा, स्वामी आदि उसके संपादकों के आगे पानी भरें. क्या नहीं है उस इच्छाधारी चैनल पर? मृतात्माओं से मुलाकात, काला जादू और भूत-प्रेत से लेकर सृष्टि ख़त्म हो जाने की भविष्यवाणियों तक उसकी लीलाओं ने बाबाओं, स्वामियों आदि को भी शर्मिंदा कर दिया है. उसका प्राइम टाइम अंधविश्वास, जादू-टोने और झाड़-फूंक पर टिका है. मजे की बात यह है कि वही चैनल इन दिनों इच्छाधारी बाबा और स्वामी नित्यानंद के किस्से सॉफ्ट पोर्न के रूप में चटकारे ले-लेकर दिखा रहा है. कई और चैनल उससे बराबरी की टक्कर में हैं.
दरअसल, चैनल भी उस विशाल धर्म उद्योग के हिस्से बन गए हैं जो आम लोगों की आस्थाओं का दोहन करके खड़ा हुआ है. अरबों रुपए के इस उद्योग के विस्तार और उसकी ब्रांडिंग में चैनलों ने सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. अपने नागरिकों को एक बेहतर जीवन और सामाजिक सुरक्षा दे पाने में भारतीय राज्य की विफलता की कब्र पर धर्म उद्योग का यह कारोबार दिन दूना रात चौगुना बढ़ रहा है. इसे सत्ता और कॉर्पोरेट जगत का पूरा समर्थन हासिल है. चैनल इस कारोबार में बराबर के हिस्सेदार हैं. उन्हें कृपालु महाराजों की प्रतिष्ठापना के बदले करोड़ों रुपए मिल रहे हैं. लेकिन बाकी उद्योगों की तरह इस उद्योग में भी बढ़ती प्रतिस्पर्धा के कारण अपराधीकरण बढ़ रहा है. उद्यमी स्वामी, बाबा लोग कारोबार को नए-नए क्षेत्नों (सेक्स और नशा व्यापार) में ले जा रहे हैं. इसमें न तो कोई नई बात है और न ही हैरान करने वाला कुछ है. ऐसे में, कुछ दिनों में चैनल फिर बाबाओं, स्वामियों आदि की सेवा में नजर में आएं तो आश्चर्य क्यों होना चाहिए?
आनंद प्रधान