शादी का पुराना वीडियो : तो बात पक्की

फिल्म तो बात पक्की

निर्देशक केदार शिंदे

कलाकार तब्बू, शरमन जोशी, युविका चौधरी, वत्सल सेठ

केदार शिंदे की तो बात पक्कीउन कच्ची फिल्मों में से है जो शादी के इर्द-गिर्द ही घूमती हैं और जिसमें शादी ही जीवन की सबसे मुश्किल समस्या होती है. जिनमें बच्चे या तो नायक-नायिका की मुलाकातें करवाने का काम करते हैं या चिट्ठियां पहुंचाने का. इसीलिए यह नब्बे के सुनहरेदशक की याद दिलाती है. क्योंकि इसमें फिल्म वालों का पसंदीदा शहर पालनपुर है और ऊटी जैसे किसी शहर की एक सुंदर सड़क पर छोटा-सा जौनपुर बस स्टॉपका बोर्ड लगाकर वहीं जौनपुर और आजमगढ़ बना दिया गया है. अब चुनना आपको है. या तो आप नकली पान की दुकानें और ओवरएक्टिंग करती हीरोइन युविका को देखकर झुंझला सकते हैं या भीड़ वाले दृश्यों में पीछे से कैमरे की तरफ देखकर मुस्कुराते लोगों के साथ मुस्कुरा सकते हैं.

प्रीतम का संगीत कहीं-कहीं फिल्म की जान बचाने की कोशिश करता है, लेकिन पंद्रह साल पुरानी शैली के गाने, उनका वैसा ही फिल्मांकन और हर बीस मिनट में उनका ब्रेक की तरह आना उन्हें असहनीय बना देता है. हजार बार घिसी जा चुकी एक कहानी में किसी का अभिनय जितना अच्छा हो सकता है, तब्बू का अभिनय उतना अच्छा है. यह हम आपके हैं कौनया ऐसी ही किसी फिल्म का खराब संस्करण है. इसी तरह  ऋषिकेश मुखर्जी की फिल्मों का भी.

यह जल्दबाजी में बनी और देर से आई उन फिल्मों में से एक है जिनके चरित्रों को निर्देशक भी ठीक से नहीं जानता. उसके सब शहर तो एक शहर में होते ही हैं, उसके सब किरदार भी एक जैसा सोचते हैं और एक जैसा व्यवहार करते हैं. वे सब अपना जीवन नायक की शादी करवाने या रोकने के लिए ही समर्पित कर देते हैं. सब लोग बेवकूफ होते हैं और उन्हें आसानी से कनफ्यूज किया जा सकता है. निर्देशक शायद इस मिथक के फेर में आकर फिल्म बना देता है कि सब हल्की-फुल्की सुखांत फिल्में चलती ही हैं. यह उबाऊ या बोझिल फिल्म नहीं है, बस बुरी है. इसे झेलना मुश्किल नहीं है मगर इसके विकल्प के रूप में आप अपने घर के किसी सदस्य की शादी का वीडियो या टीवी का कोई सीधा-सरल धारावाहिक भी देख सकते हैं.

गौरव सोलंकी