'हिंदी में हर लेखक को, किसी न किसी स्तर पर, अपने अलक्षित रह जाने का अफ़सोस है'

आपकी मनपसंद लेखन शैली क्या है?

मेरी कोई पसंदीदा शैली नहीं है. शायद ऐसा होता भी न हो. हर रचना अपनी शैली ख़ुद ले आती है. आप अपनी अभिव्यक्ति की नवीनता के लिए उस शैली में कुछ सोचाविचारा, छेड़छाड़ भर करते हैं. भाषा, चरित्नों को सुनने और उन्हें समझने के लिए मैं हर बार अलग शैलियों की ओर गया, जाता रहा हूं.

इन दिनों क्या लिखपढ़ रहे हैं?

जो लिख रहा हूं, वह क्या है, नहीं पता. लेकिन पिछले दिनों जो पढ़ा, उनमें मुख्य हैंओरहन पामुक की द म्यूजि़यम ऑफ इनोसेंस, जे एम कोएट्जी की समरटाइम, हेर्टा म्यूलर की द लैंड ऑफ ग्रीन प्लम्स, बेई दाओ की कविताएं और पीटर हैंडके का स्लो होमकमिंग. ठीक इस समय मैं यियून ली का उपन्यास द वैग्रेन्ट्स पढ़ रहा हूं.

रचना या लेखक जो आपके बेहद करीब हों?

ऐसे कई हैं. रघुवीर सहाय और विष्णु खरे. अरुण कोलटकर और भाऊ पाध्ये. बोर्खेज और माक्व्रेज. पामुक और कोएट्जी. नेरूदा और चेस्लाव मिवोश. अमोस ओज और हारुकि मुराकामी. किताबों में क्राइम एंड पनिशमेंट, एकांत के सौ वर्ष, रेसीदेंसीया एन ला तिएर्रा से लेकर माय मायकल और एपोकैलिप्स तक. महाभारत, ओडिसी और बाइबल (ओल्ड और न्यू टेस्टामेंट समेत) की ओर मैं बारबार जाता हूं.

कोई महत्वपूर्ण रचना जो अलक्षित रह गई हो.

हिंदी में हर लेखक को, किसी न किसी स्तर पर, अपने अलक्षित रह जाने का अफ़सोस है. उसका एक विशाल, बहुधा सुनियोजितटयूंड विलाप भी है.

क्या किया जा सकता है कि किताबें पढ़ने की परंपरा, जो धीरेधीरे खत्म हो रही है, खत्म न हो?

मैं इससे सहमत नहीं. रीडरशिप के तुलनात्मक आंकड़े देख लें, बुक्स तक पढ़ी जा रही हैं. हमारी भाषा में भी पाठक बढ़े हैं, बस, हमारे पास उन्हें मापने, उनकी तादाद जांचने के उपकरण नहीं हैं. इसके बावजूद, हिंदी किताबों को और सुलभ होना होगा.

गौरव सोलंकी