सलीब पर साहस (2)

बिहार के बक्सर जिले में स्थित सरिन्जा गांव के शिवप्रकाश को कई साल तक यही लगता रहा कि भारत को लोगों को असली आजादी तो 2005 में मिली जब सूचना का अधिकार कानून पास हुआ. लेकिन जब इस आजादी का इस्तेमाल करने की कोशिश में उन्हें और उनके जसे 18 लोगों को मार खानी पड़ी और जेल जाना पड़ा तो उनकी यह खुशफहमी अब दूर हो गई है.

‘डीएम ने मुझे नौ सादे कागज दिए. उन्होंने मुझ पर यह लिखने के लिए दबाव डाला कि मुझे वे सूचनाएं मिल गई हैं, जिनकी मांग मैंने की थी. जब मैंने इसका विरोध किया, तो उन्होंने धमकी देनी शुरू की. वे कहने लगे-’मैं तुम्हें और तुम्हारे परिवार को बरबाद कर दूंगा. मैं तुम्हें जेल भेज दूंगा’

2005 से प्रकाश सूचना के अधिकार का इस्तेमाल उन चीजों से जुड़ी जानकारियां पाने के लिए कर रहे थे जो उनके गांव के किसानों की रोजमर्रा की जिंदगी को प्रभावित करती हैं, जैसे वार्ड कमिश्नर ने अपने कार्यकाल में कितना काम किया है या सरकारी योजनाओं से कितने किसानों को फायदा पहुंचा है आदि. उदाहरण के लिए केंद्र सरकार ने गरीब किसानों के लिए हैंडपंप की खरीद और ट्यूबवेल लगवाने पर 35 प्रतिशत की रियायत दी थी. आरटीआई दस्तावेजों के अनुसार प्रकाश ने पाया कि स्थानीय प्रशासन के दावों में भारी विसंगतियां हैं. वे बताते हैं कि प्रशासन ने स्टेशन रोड स्थित नवीन हार्डवेयर से 1000 ट्यूबवेलों या पीपी रोड स्थित अनिल मशीनरी के यहां से पंपसेटों की खरीद की सूची बनाई है. लेकिन इन दुकानों का अस्तित्व ही नहीं है. खरीद की अधिकतर रसीदें जाली हैं. प्रकाश को अनुमान है कि उनके अपने जिले में ही 10 करोड़ से अधिक का घोटाला हुआ है. उन्हें यकीन है कि इस तरह की धोखाधड़ी पूरे राज्य में चल रही है.

इसके बाद प्रकाश ने कई और सवाल पूछे. आवेदनों की बड़ी संख्या देख कर स्थानीय प्रशासन जवाब देने से कतराने लगा. 2006 में प्रकाश ने बक्सर जिला मजिस्ट्रेट कार्यालय से शिक्षित बेरोजगार योजना के लाभार्थियों और सरकारी रियायती दर पर हैंडपंप और ट्यूबवेल खरीदनेवाले किसानों की सूची मांगी. वे कहते हैं, ‘मुझे लगा कि सरकारी फंड से करोड़ों रुपए फर्जी नामों पर उठाए गए हैं.’ लेकिन उन्हें प्रशासन से कोई जवाब नहीं मिला. इसके बाद प्रकाश ने नियमित अंतराल पर डीएम के कार्यालय को नौ आवेदन भेजे. जब उन्हें कोई जवाब नहीं मिला तो प्रकाश ने बिहार सूचना आयोग से संपर्क किया. उन्हें उम्मीद कम ही थी मगर आयोग ने उनकी शिकायतों पर कार्रवाई की और डीएम से जवाब तलब किया. प्रकाश कहते हैं, ‘इसीलिए डीएम ने तय कर लिया था कि मुझे सबक सिखाना है.’

बक्सर लौटते ही डीएम ने प्रकाश से कहा कि सारी सूचना उनके चेंबर में रखी हुई है और वे आकर उन्हें ले लें. प्रकाश 2 फरवरी, 2008 को डीएम कार्यालय पहुंचे. लेकिन यहां घटी घटना ने प्रकाश के जीवन को एक दूसरी ही दिशा दे दी. प्रकाश बताते हैं, ‘डीएम ने मुझे नौ सादे कागज दिए. उन्होंने मुझ पर यह लिखने के लिए दबाव डाला कि मुझे वे सूचनाएं मिल गई हैं, जिनकी मांग मैंने की थी. जब मैंने इसका विरोध किया, तो उन्होंने धमकी देनी शुरू की. वे कहने लगे-’मैं तुम्हें और तुम्हारे परिवार को बरबाद कर दूंगा. मैं तुम्हें जेल भेज दूंगा.’ जब प्रकाश ने झुकने से इनकार किया तो पुलिस बुला कर उन्हें हिरासत में ले लिया गया. उनके खिलाफ डीएम से रंगदारी वसूलने और उनकी हत्या करने की कोशिश के आरोप में एक एफआईआर दायर की गई. 29 दिन तक हिरासत में रहने के बाद प्रकाश सबूतों के अभाव में छूट गए.

जेल से निकलने के बाद प्रकाश का इरादा और मजबूत हुआ. उन्होंने हर जिले में घूम-घूम कर लोगों को आरटीआई और इसके उपयोग के बारे में बताया. उन्होंने अपने जैसे कुछ लोगों के साथ मिल कर आरटीआई मंच का गठन किया ताकि आरटीआई कार्यकर्ताओं को सुरक्षा दी जा सके. प्रकाश बताते हैं कि अन्य 18 कार्यकर्ताओं को भी निशाना बनाया गया है और उन्हें जेल भेजा गया है. वे कहते हैं, ‘डीजीपी ने खुद स्वीकार किया है कि बिहार में आरटीआई कार्यकताओं के खिलाफ जांच के 30 मामले चल रहे हैं.’

आजादी का शुरुआती भ्रम तेजी से बिखर रहा है. लेकिन प्रकाश अब भी डटे हुए हैं. वे कहते हैं, ‘मेरे घरवालों को यह काम पसंद नहीं. उन्हें हम बेवकूफ लगते हैं. ऐसा लगता है कि केवल भ्रष्ट लोगों को ही दौलत और शोहरत मिल सकती है. सच्चाई के रास्ते पर चलना बड़ा मुश्किल है.’

 ‘मैंने हार मान ली है’

सूर्यकांत शिंदे,  मुंबई

  बांबे पोर्ट ट्रस्ट (बीपीटी) में दो दशक तक काम करने के बाद नवंबर, 2009 में सहायक सुरक्षा अधिकारी सूर्यकांत शिंदे को बरखास्त कर दिया गया. उन्हें पांच लोगों का परिवार पालना था, होम लोन चुकाना था और उनका बैंक खाता लगभग खाली था. 45 वर्षीय शिंदे कहते हैं, ‘मैंने हार मान ली है. अब मैं जनता की भलाई के लिए और काम नहीं करना चाहता.’

अगस्त में शिंदे ने जहाजरानी मंत्रालय से शिकायत की. वे बताते हैं कि मंत्रालय ने शिकायत पोर्ट ट्रस्ट के चेयरमैन को भेजी और चेयरमैन ने इसे उसी मुख्य सुरक्षा अधिकारी के पास भेज दिया जिसके खिलाफ शिंदे ने शिकायत की थी

उनकी इस हताशा की शुरुआत कुछ साल पहले हुई थी जब शिंदे को आपराधिक साजिश रचने और मुंबई बंदरगाह पर आए कंटेनरों से केमिकल चुराने के आरोप में दो माह के लिए जेल भेज दिया गया. स्थानीय पुलिस ने उन्हें मुख्य साजिशकर्ता बताया. हालांकि शिंदे ने ही चोरियों को उजागर करने की कोशिश की थी. वास्तविकता यह थी कि शिंदे का पहले ही उस इलाके से तबादला कर दिया गया था जहां चोरियां हुई थीं. चोरियों के समय वे हेपेटाइटिस से पीड़ित थे और अस्पताल में भर्ती थे. इस मामले में दो वर्ष बाद एक जज ने उन्हें बरी कर दिया. शिंदे पर तीन अधिकारियों ने आरोप लगाए थे. यहां यह उल्लेखनीय है कि कुछ ही महीने पहले शिंदे ने एक घोटाला उजागर किया था, जिसमें मुख्य सुरक्षा अधिकारी समेत यही तीनों लोग संदेह के घेरे में आए थे. बाद में उन्होंने शिंदे को फंसाने की कोशिश की थी.

फरवरी, 2005 में शिंदे ने दवा बनाने के काम आनेवाले महंगे केमिकल्स और दवाओं की तस्करी से संबंधित एक विस्तृत रिपोर्ट सौंपी. 10 करोड़ रुपए से भी अधिक मूल्य की यह तस्करी बंदरगाह पर मौजूद कंटेनरों से छह महीने से हो रही थी. उन्होंने कंटेनरों और उनकी जगह तथा संदिग्धों के बारे में विस्तार से जानकारी दी थी. उनके अनुसार संदिग्धों के नाम थे-बरकत अली, परवेज और अमरसिंह राजपूत. ये सभी वांछित तस्कर थे.

शिंदे कहते हैं कि उन्होंने रिपोर्ट पुलिस, बीपीटी चेयरमैन तथा कस्टम और सतर्कता विभाग को सौंप दी थी लेकिन उस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई. जब अखबार द इंडियन एक्सप्रेस ने चोरियों की खबर छापी तो मुंबई पुलिस की अपराध शाखा हरकत में आई और शिंदे के दफ्तर पहुंची. शिंदे की शिकायत का उल्लेख करते हुए पांच एफआईआर दर्ज की गईं. तस्करों के गिरफ्तार होने तक शिंदे ने पुलिस की मदद की. लेकिन डच्यूटी पर तैनात बीपीटी अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई. शिंदे बताते हैं कि ऐसी चोरियां गेट पास और कंटेनरों की खुफिया सूचना के बिना नहीं हो सकतीं. उन्होंने चोरियों के सात और मामलों को उजागर किया लेकिन अपराध शाखा ने उन मामलों को स्थानीय पुलिस के पास भेज दिया. हैरत की बात यह है कि उनमें से तीन मामलों में शिंदे को ही फंसा दिया गया और 5 जुलाई, 2005 को उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. अप्रैल, 2007 में बरी होने तक उनके दो लाख रुपए मुकदमा लड़ने और जमानत हासिल करने में खर्च हो चुके थे.

1994-97 के बीच शिंदे ने मुंबई बंदरगाह पर आयातित तेल की चोरियों का मामला उजागर किया था. कुछ आरोपित पकड़े गए और कुछ तेल की बरामदगी भी हुई. इससे पहले 1997 में उन्होंने टेट्रासाइक्लिन की चोरी की सूचना दी थी. इसका आरोपित गिरफ्तार हुआ था, लेकिन मुख्य सुरक्षा अधिकारी ने शिंदे से उनके व्यवहार के बारे में जवाब मांगा था. बाद में शिंदे को मानहानि के मुकदमे का सामना करना पड़ा था.

शिंदे कहते हैं, ‘मुझे सुरक्षा देने के बजाय बीपीटी ने मुझे निलंबित कर दिया और मेरा वेतन काट लिया.’ ड्यूटी से गायब रहने को लेकर उनके खिलाफ विभाग में अनेक आरोपपत्र दायर किए गए. अब वे ड्यूटी से गायब रहने और अनुशासनहीनता के आरोप में निलंबित चल रहे हैं. शिंदे के पास इसके सबूत हैं कि जिन दिनों वे ड्यूटी पर नहीं आए थे, उन दिनों उनकी सीबीआई और कस्टम के सामने गोपनीय मामलों में पेशी थी.

केंद्रीय सर्तकता आयोग को भेजी गई शिंदे की शिकायतों पर वर्षों तक कोई कार्रवाई नहीं हुई. पिछले साल अगस्त में शिंदे ने जहाजरानी मंत्रालय से शिकायत की. वे बताते हैं कि मंत्रालय ने शिकायत पोर्ट ट्रस्ट के चेयरमैन को भेजी और चेयरमैन ने इसे उसी मुख्य सुरक्षा अधिकारी के पास भेज दिया जिसके खिलाफ शिंदे ने शिकायत की थी. शिंदे कहते हैं, ‘मैं महाभारत के अभिमन्यु की तरह अकेला पड़ गया हूं. मेरा परिवार सड़क पर है. नई नौकरी मिलने के बाद मैं अपनी तनख्वाह लूंगा और चुपचाप घर चला जाऊंगा.’