मायावती का ब्राह्मणवादी भाई-भतीजावाद

मायावती कभी सिर्फ दलितों की मसीहा थीं मगर फिर उन्होंने ब्राह्मणों और मुसलमानों को साथ मिलाकर एक ऐसा अजेय गठजोड़ बनाया कि प्रदेश की सत्ता उनकी हो गई. मगर जिस तरह से वे अब अपने करीबी विश्वासपात्र सतीश चंद्र मिश्र को पुरस्कृत करने पर तुली हैं उससे इस गठजोड़ के कुछ कमजोर पड़ने का खतरा पैदा हो गया है.

समस्या विकलांगों के लिए बनने वाले एक विश्वविद्यालय से पैदा हुई है जिसे मिश्र की मां डॉ. शकुंतला मिश्रा के नाम पर बनाया जा रहा है. शिया मुसलमान ये कहकर इसका विरोध कर रहे हैं कि इस विश्वविद्यालय के नाम जो जमीन स्थानांतरित की गई है उसका एक हिस्सा ऐतिहासिक शाहदरा मस्जिद की भूमि का है. विवाद तीन फरवरी 2008 को इस प्रस्तावित विश्वविद्यालय की घोषणा के साथ ही शुरू हो गया था. पहले तो राज्य के तत्कालीन मुख्य सचिव पी के मिश्र ने 74 एकड़ जमीन नि:शुल्क डॉ शंकुतला मिश्रा सेवा संस्थान नामक ट्रस्ट के नाम स्थानांतरित किए जाने संबंधी फाइल पर हस्ताक्षर करने से ही इनकार कर दिया. फिर उन्हें निर्देश मिला कि वे या तो फाइल पर हस्ताक्षर करें या इसका नतीजा भुगतने के लिए तैयार रहें. कथित रूप से मायावती ने उनसे कहा कि उन पर सतीश मिश्र का बहुत अहसान है और ये विश्वविद्यालय तो कुछ नहीं है, वे उनके लिए कुछ भी कर सकती हैं. यद्यपि मुख्य सचिव का कार्यकाल खत्म होने में तीन महीने शेष थे फिर भी मिश्र ने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति का विकल्प चुनने का फैसला किया. हालांकि तहलका ने जब इस संबंध में उन्हें टटोलने की कोशिश की तो उनका बस यही कहना था, “मेरे पास इस मुद्दे पर कहने के लिए कुछ नहीं है.” मुस्लिम मामलों के जानकार इब्ने हसन सवाल करते हैं, “पास में ही इतनी सरकारी जमीन पड़ी हुई है. तो मस्जिद की ही जमीन लेने की क्या जरूरत है.?” 

मायावती ने सतीश मिश्र की अध्यक्षता वाले ट्रस्ट को 51 लाख रुपये भी दिए. मगर नि:शुल्क भूमि विवाद और मुख्य सचिव की सेवानिवृत्ति के चलते उन्हें थोड़ा पीछे हटना पड़ा. सात जून 2008 को हुई एक कैबिनेट बैठक में उन्होंने अपने पहले वाले फैसले को बदलते हुए ऐलान किया कि विश्विविद्यालय की स्थापना अब ट्रस्ट की बजाय उनकी सरकार करेगी. इसके तुरंत बाद विकलांग कल्याण विभाग को विश्वविद्यालय की चाहरदीवारी बनाने का काम सौंपा गया जबकि दूसरे विभागों से कहा गया कि वे अपने बजट से विश्वविद्यालय के लिए सड़क बिजली और पानी की सुविधाएं सुनिश्चित करें. 

मगर भूमि अधिग्रहण से मुसलमानों का गुस्सा भड़क गया. उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार जो जमीन ले रही है उसमें से 27.2 बीघा शाहदरा मस्जिद की है जिसे 1820-27 के दौरान अवध के पहले नवाब गाजीउद्दीन हैदर शाह की बीवी मल्लिका किश्वर जहां ने बनवाया था. उधर, लखनऊ के जिला मजिस्ट्रेट चंद्रभानु मस्जिद की जमीन के अधिग्रहण से इनकार करते हैं. उनके मुताबिक विश्वविद्यालय विकलांग कल्याण विभाग की जमीन पर बनाया जा रहा है और इसके अलावा थोड़ी सी जमीन ग्राम सभा से ली गई है. 

लखनऊ-मोहन रोड पर स्थित काकोरी के पास स्थित शाहदरा मस्जिद का शुमार सबसे पुरानी और सम्मानित मस्जिदों में होता है. मस्जिद प्रशासन के पास उपलब्ध रिकॉर्ड्स की मानें तो ये जमीन शिया मुसलमानों के नाम पर है और इसका पंजीकरण यूपी मुस्लिम वक्फ बोर्ड एक्ट 1936(जिसमें 1960 और 1995 में सुधार किया गया था) के तहत हुआ है. इसका पंजीकरण नंबर है I-1564-B (1968). 

इससे पहले मस्जिद की भूमि पर अधिकार को लेकर शिया वक्फ बोर्ड नादवा कॉलेज के साथ भी लंबी लड़ाई लड़ चुका है. इस मामले में 2001 में हाईकोर्ट ने एक आदेश पारित कर यथास्थिति बनाए रखने का निर्देश दिया था. पिछले 40 साल से शाहदरा मस्जिद के मुत्तवल्ली डॉ बकार मेहदी नाराजगी भरे स्वर में कहते हैं, “जब भी मायावती सत्ता में आती हैं तो मस्जिद की जमीन हड़पने की कोशिश की जाती है.” मेहदी का आरोप है कि अगस्त 1995 में भी भूमि माफिया द्वारा खाली पड़ी मस्जिद की जमीन पर अतिक्रमण की ऐसी ही कोशिश की गई थी. शाहदरा मस्जिद बचाओ संघर्ष समिति के सचिव सिकंदर हुसैन कहते हैं, “उन्होंने कई पेड़ काट दिए हैं और मजदूरों के रहने और निर्माण सामग्री के रखने हेतु अस्थाई शेड्स बनाने के लिए सात कब्रों को उजाड़ दिया है. ये समिति विधानसभा के सामने एक धरने पर बैठ गई है. 

मगर शायद उत्तर प्रदेश के नौकरशाहों के लिए मुख्यमंत्री के आदेश कोर्ट के फैसले से ज्यादा बड़े हैं इसलिए वे जी-जान से मिश्रा के सपनों को हकीकत का जामा पहनाने में जुटे हैं. बुलडोजर और मशीनों की मदद से काम जारी है. कई पेड़ उखाड़े जा चुके हैं, जमीन समतल कर दी गई है और चाहरदीवारी के लिए बुनियाद खोदने का काम भी शुरू हो चुका है. निर्माण स्थल पर चौबीसों घंटे पुलिस का भारी पहरा रहता है. मिश्रा जब भी लखनऊ में होते हैं तो अक्सर काम की तरक्की का मुआयना करने निर्माण स्थल पर आते रहते हैं. 

मगर शिया मुसलमान इस मामले में हार मानने को तैयार नहीं हैं. तीन जुलाई को दरगाह हजरत अब्बास में आयोजित एक बड़े फरियादी जलसे में उन्होंने ऐलान किया कि वे इस मुद्दे पर सीधे सरकार से आर-पार की लड़ाई लड़ेंगे. शिया नेता मौलाना कल्बे जव्वाद के करीबी विश्वासपात्र मौलाना सैफ अब्बास नकवी का कहना था, “हम मस्जिद की एक इंच जमीन भी नहीं देंगे. हम विकलांगों के लिए विश्वविद्यालय के नहीं बल्कि इसके विवादित जमीन पर बनाए जाने के विरोध में हैं.” 

मुस्लिम मामलों के जानकार इब्ने हसन सवाल करते हैं, “पास में ही इतनी सरकारी जमीन पड़ी हुई है. तो मस्जिद की ही जमीन लेने की क्या जरूरत है.?”  आल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रवक्ता ने अपने समुदाय के सदस्यों से अतिक्रमण के खिलाफ आंदोलन छेड़ने का आह्वान किया है. मेहदी चेतावनी देते हैं, “अगर सरकार हमारी जमीन से नही हटी तो हम सड़कों पर उतरेंगे.” मस्जिद प्रशासन इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में इस मुद्दे पर एक याचिका दायर करने वाला है. 

उधर, दूसरी पार्टियों ने भी इस मुद्दे को लेकर राजनीति शुरू कर दी है. समाजवादी पार्टी नेता शिवपाल सिंह यादव ने मायावती पर मुस्लिम विरोधी होने का आरोप लगाते हुए यहां तक कह डाला कि उनका मानसिक संतुलन बिगड़ गया है. 

हालांकि राज्य सरकार ने मस्जिद प्रशासन के दावों की जांच करने के लिए एक तीन सदस्यीय समिति तो बना दी है पर मिश्र पर मायावती के वरदहस्त और मुस्लिम समुदाय में पैदा हुई नाराजगी को देखते हुए इस मामले में अंतिम मुठभेड़ अवश्यंभावी लगती है. अब इसका मायावती के वोट समीकरणों पर क्या असर पड़ेगा ये तो वक्त ही बता सकता है. 

श्रवण शुक्ला