अच्छे गाने और इमरान हाशमी: तुम मिले

फिल्म  तुम मिले

निर्देशक कुणाल देशमुख

कलाकार इमरान हाशमी, सोहा अली खान

इस फिल्म में सोहा अली खान कुछ बड़ी दिख रहीं हैं. वैसे वे रोती अच्छा हैं, जो उनके हीरो इमरान हाशमी ठीक से नहीं कर पाते. इसी तरह वे खुश भी अच्छे से नहीं हो पाते. वे हताशा का अभिनय अच्छा करते हैं और इसके लिए उनकी प्रशंसा भी होनी चाहिए. भट्ट साहब के प्रोडक्शन की फिल्मों का संगीत बहुत मधुर होता है और तुम मिलेका नायक भी उसका संगीत ही है. जहां का भी, जिसका भी संगीत हो, हम इसे प्रीतम का ही मानते हैं और दिल से शुक्रिया कहते हैं.

आप अगर भट्ट कैंम्प की पिछले कुछ सालों की फिल्में देखें, कसूर से लेकर मर्डर, जहर, जन्नत और तुम मिले तक, तो आप यह नहीं बता पाएंगे कि इनमें से कौन-सी, किस निर्देशक की है. इन ज्यादातर फिल्मों की संरचना में एक तरह के अच्छे गीतों और इमरान हाशमी के अलावा कुछ और भी कॉमन है. परिवारों की अनुपस्थिति, स्त्नी-पुरुष के सनातन रिश्ते का प्रेम और तनाव, उसमें शरीर का मुखर अस्तित्व और साथ में चलती एक और अतिरिक्त कहानी जो फिल्म की गहराई बढ़ाने की कोशिश करती है.

तुम मिलेमें 26 जुलाई, 2005 को मुंबई की भारी बारिश की कहानी केवल बैकग्राउंड की तरह है. मुख्य कहानी प्यार, तकरार और महत्वाकांक्षाओं की ही है. इमरान हाशमी की एक और खूबी है कि वे आम लड़के जैसे दिखते हैं जिसमें कोई खूबी न हो. फिल्म में वे एक गरीब चित्नकार हैं और सोहा अमीर पिता की बेटी. प्रेम शुरु होने का ढंग भी वही है और टूटने का भी वही. यानी पहली नजर का प्यार, वह भी दोनों तरफ से और बाद में अहं के कारण अलगाव. एक दोस्त है, जो इमरान से अच्छा अभिनेता है और हैंडसम भी, लेकिन किन्हीं अज्ञात कारणों से फिर भी हीरो नहीं है. वह खुशमिजाज है और हमारा हीरो सदा की तरह धीर-गंभीर. कुछ भी नया नहीं. इमरान-सोहा लिव-इन में रहते हैं और अफसोस कुणाल देशमुख साहब, अब तो यह भी नया नहीं रह गया है. फिर भी तुम मिलेउतना मनोरंजन तो आपको दे ही देती है, जितने का वह दावा करती जान पड़ती है. यह उन फिल्मों की तरह नहीं है जो अच्छे ट्रेलर का जाल बिछाकर आपको फांस लेती हैं और हॉल में पहुंचकर आप ठगे-से रह जाते हैं.

गौरव सोलंकी