जब तक कोई उनके नाम का उपयोग उनके विचारों के बिल्कुल ही उलट न करे तब तक उनकी छवि और नाम का उपयोग करने वालों से मुझे कोई दिक्कत नहीं है
मैं बापू के नाम का ठेकेदार नहीं हूं. जब तक कोई उनके नाम का उपयोग उनके विचारों के बिल्कुल ही उलट न करे तब तक उनकी छवि और नाम का उपयोग करने वालों से मुझे कोई दिक्कत नहीं है. जब तक कोई बंदूक निर्माता या फिर शराब कंपनी वाला उनके नाम का इस्तेमाल नहीं कर रहा है तब तक सब ठीक है. मो ब्लां कंपनी उच्चस्तरीय उत्पादों का निर्माण करती है और लेखकों, चित्रकारों और दुनिया भर के नेताओं का सम्मान करने की उसकी पुरानी परंपरा रही है. 11.39 लाख रुपए कीमत वाली ये संग्रहणीय कलम उनकी बापू को श्रद्धांजलि है. कलम की कीमत को लेकर लोगों की भावनाओं को समझ जा सकता है लेकिन किसी को उन लोगों को रोकने का अधिकार नहीं है जो बापू के नाम का इस्तेमाल कर उन्हें सम्मानित करना चाहते हैं. ये मेरे लिए भी एक अनुभव है कि कोई कलम इतनी महंगी भी हो सकती है. जब मो ब्लां ने मेरी संस्था को चंदा देने की पेशकश की तो मैंने दिलीप दोषी, जिनकी कंपनी भारत में इन कलमों का वितरण करती है, से मजाक में पूछा था – ‘क्या आप मुझे एक कलम देंगे?’ इसकी कीमत की जानकारी मुझे काफी बाद में हुई. ये भी एक विवाद का विषय बन गया कि मैंने उनका उपहार स्वीकार कर लिया.
मो ब्लां ने, बिना मेरे कहे निर्धन बाल श्रमिकों के स्कूल का भवन बनाने के लिए अच्छी खासी रकम भी दान में दी है. महात्मा गांधी फाउंडेशन ने पहले से ही महाराष्ट्र के कोल्हापुर में इन बच्चों के लिए एक बढ़िया आवासीय परिसर बनाने के लिए पांच एकड़ जमीन खरीद रखी है. इसके लिए उन्होंने हमें 72 लाख रुपए का अनुदान दिया है.
अब ‘सेंटर फॉर कंज्यूमर एज्यूकेशन’ ने केरल हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर दी है. मामले को तेजी से निपटाया जा रहा है. ऐसा कैसे किया जा सकता है जबकि हत्यारे यहां आजाद घूम रहे हों, निर्दोष लोग याचिकाओं के लटकने के कारण जेलों में सड़ रहे हों? ‘सेंटर फॉर कंज्यूमर एज्यूकेशन’ का तर्क है कि कलम पर बापू के नाम का इस्तेमाल राष्ट्रीय प्रतीक कानून का उल्लंघन है. यहां बापू की छवि वाले टी-शर्ट से लेकर तमाम उत्पाद बाजार में उपलब्ध हैं, यहां तक कि यादगार के रूप में सोने के सिक्के भी. लोग उनका तहे दिल से सम्मान करते हैं यहां तक कि उनके जीवनकाल में भी ऐसा ही था. विरोध करने वालों का तर्क उस हालत में समझा जा सकता था जब मो ब्लां बापू को अपने ‘ब्रांड अंबेसडर’ के रूप में पेश करती. लेकिन कंपनी का महात्मा गांधी से जुड़ाव सिर्फ एक विशेष श्रंखला की कलम के लिए है. जो लोग ऐसा मानते हैं कि बापू का उपयोग सिर्फ भारतीय उत्पादों लिए किया जाना चाहिए किसी विदेशी कंपनी के लिए नहीं उन्हें ये भी याद रखना चाहिए कि बापू भारतीय सीमाओं से परे जा चुके हैं. आज पूरी दुनिया उन्हें अपना मानती है. एक इतालवी टेलीकॉम कंपनी ने अपने विज्ञापन में बापू का इस्तेमाल किया था और उसे हाल ही में पुरस्कार मिला है. एप्पल कंप्यूटर्स अपने विज्ञापनों में उनका इस्तेमाल करती है. इसकी वजह यही है कि कोई भी बड़ी आसानी से खुद को बापू से जोड़ सकता है. उनकी मशहूर रेखाचित्र वाली छवि की चर्चा पूरी दुनिया में हुई और इसे पूरी दुनिया में कहीं भी पहचाना जा सकता है. यही चीजें कंपनियों को आकर्षित करती हैं. लोगों की स्मृतियों में उनके विचारों को जिंदा रखने के लिए हमें सभी संभव माध्यमों का इस्तेमाल करना चाहिए. ध्यान सिर्फ इस बात का रहे कि वो बापू के विचारों के खिलाफ न हों. भ्रष्ट नेता अपनी छवि चमकाने के लिए लगातार उनका इस्तेमाल करते रहते हैं. मो ब्लां ने तो इसकी तुलना में कुछ भी नहीं किया है.
शुद्धतावादी गांधीवादी हमेशा मेरे पीछे पड़े रहते हैं. ये लोग बापू से भी बड़े महात्मा बन गए हैं और गांधीवाद के प्रति उन्होंने अपनी सोच को जड़ कर लिया है. बापू अंतिम क्षणों तक खुद को परिमार्जित करते रहे. अनुभवों के साथ उनके विचार भी बदलते रहे. इसलिए वो लोगों से कहा करते थे कि अगर मेरे विचारों में कोई विरोधाभास हो तो मेरे आखिरी विचार को मानें. जबकि ऐसे गांधीवादी उन्हें 30 और 40 के दशक में ही समेटे रखना चाहते हैं. उन्हें इस तरह की बंदिशों में समेटना अनैतिक होगा. जब बापू की मर्यादा के साथ खिलवाड़ हो रहा था तब तो इन लोगों ने कोई विरोध नहीं जताया. ये कहने का अधिकार किसको है कि महंगी वस्तुएं बनाने वालों को बापू की छवि का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए?
तुषार गांधी
लेखक महात्मा गांधी के प्रपौत्र और ‘महात्मा गांधी फाउंडेशन’ के मुखिया हैं