पंडित जसराज, उम्र: 79 शास्त्रीय गायक
रियाज करते वक्त वे टीवी चलाकर उसकी आवाज बंद कर देते हैं, ताश के पत्ते बिस्तर पर बिछा देते हैं और फिर गाने बैठ जाते हैं. देश के वरिष्ठतम शास्त्रीय संगीतकारों में से एक पंडित जसराज मंच पर आते ही आशीर्वाद की मुद्रा में दोनों हाथ ऊपर उठा देते हैं. मगर उनका भाव ये नहीं होता. जैसा कि वे कहते हैं, ‘लोग सोचते हैं कि मैं साधु बनने की कोशिश कर रहा हूं. पर ऐसा कुछ नहीं है. ये मुद्रा तो उस ईश्वर के आलिंगन का संकेत है जो सबके अंदर उपस्थित है और ये स्वभाव मुझमें अनजाने में ही आ गया है.’ पं. जसराज अपनी धीरता और संगीत की ताकत का ज्यादातर श्रेय अपनी अगाध श्रद्धा को देते हैं. वे बताते हैं, ‘युवावस्था में मैं हनुमान भक्त था,’ मगर अब वे खुद को गहराई से कृष्ण के साथ जुड़ा हुआ महसूस करते हैं. उनके व्यक्तित्व में कृष्ण जैसे लक्षण भी हैं. वे विनोदप्रिय हैं और शांतचित्त भी. वे कहते हैं, ‘सुंदरता देवत्व का एक रूप है. सुंदर युवा नारी अधखिले फूल की तरह होती है. सुंदरता का आंखों से रसपान आपको युवा बनाए रखता है.’
पंडित जसराज के मुताबिक निजी तौर पर उनकी जिंदगी किसी अविवाहित व्यक्ति की तरह है. वे कहते हैं, ‘बेडरूम में मैं अपने कपड़े इधर-उधर फेंक देता हूं.’ वे स्वीकार करते हैं कि शास्त्रीय संगीतकार बदलावों के साथ तालमेल बिठाने में वक्त लेते हैं. वे बताते हैं, ‘लेकिन बदलाव ही जीवन है. जो खुद को इसके हिसाब से बदल लेता है वही जिंदा रहता है. मैं किस्मत वाला हूं कि उम्र बढ़ने के साथ मेरी आवाज में बहुत कम बदलाव आया है. ये जरूर है कि अब मैं वे चमत्कार नहीं कर सकता जो मैं अपनी जवानी के दिनों किया करता था मगर ये बात भी अपनी जगह है कि उन दिनों मुझे उन करामातों की जानकारी भी नहीं थी जो मैं अब किया करता हूं.’
तृषा गुप्ता
काम अविराम
रोज एक घंटे की साइकिल सैर करना कभी नहीं भूलते. ये बात अलग है कि बंदूकों से लैस कमांडो से घिरे इस शख्स को ये सैर मजबूरी में घर के लॉन में ही करनी पड़ती है
केपीएस गिल उम्र: 75 पंजाब पुलिस के पूर्व महानिदेशकगिल की जिंदगी अब उस गोली वाली रफ्तार से तो नहीं भाग रही जिसका अनुभव उन्हें असम और पंजाब में तैनाती वाले दिनों में होता था. मगर उम्र के 75 पड़ाव पूरे कर चुका ये शख्स अब भी इसका उतना ही आनंद ले रहा है पंजाब पुलिस के मुखिया वाले दौर के बाद घर-घर में चर्चित केपीएस गिल से जब हम पूछते हैं कि क्या उन्हें लगता है कि वे बूढ़े हो रहे हैं तो वे कहते हैं, ‘बिल्कुल नहीं.’ जब हम उनसे पूछते हैं कि इस उम्र में भी उनकी ऊर्जा का राज क्या है, तो वे चीजों की एक लंबी लिस्ट गिना देते हैं-कविता से लगाव, अच्छी संगत, समय-समय पर मिलने वाली चुनौतियां, मानसिक मजबूती वगैरह वगैरह.
गिल को उस शख्स के तौर पर जाना जाता है जिसने पंजाब में आतंकवाद पर उस वक्त लगाम लगाई जब ये अपने सबसे हिंसक दौर में था और जब खालिस्तान के नाम पर राज्य में हिंदुओं की नृशंस हत्याएं हो रही थीं. हालांकि वे विवादों में भी खूब रहे. कभी मानवाधिकारों के उल्लंघन, कभी एक वरिष्ठ महिला नौकशाह के चिकोटी काटने तो कभी 2002 नरसंहार के बाद नरेंद्र मोदी का एडवाइडर बनने के लिए. भारतीय हॉकी संघ के अध्यक्ष के तौर भी उनका कार्यकाल विवादों का विषय रहा है.छह फीट लंबे इस पूर्व पुलिस अधिकारी के लिए रिटायरमेंट विराम बनकर नहीं आया है. उनकी रफ्तार अब भी कायम है. वे बताते हैं कि जब वे एक दैनिक अखबार के लिए नक्सलवाद पर लेख नहीं लिख रहे होते तो वे वृंदावन में होते हैं जहां वे गरीब बच्चों के साथ वक्त बिताते हैं. गिल इन बच्चों को मुफ्त चिकित्सा सहायता भी देते हैं. गाहे-बगाहे अलग-अलग मुद्दों पर वे खबरिया चैनलों के पर्दे पर भी प्रकट होते रहते हैं.हां, ये बात जरूर है कि उनकी जिंदगी अब उस गोली वाली रफ्तार से नहीं भाग रही जैसी असम और पंजाब पुलिस के मुखिया के तौर पर तैनाती के दौरान भागा करती थी. इस रफ्तार में थोड़ी सी कमी जरूर आई है. मगर फिर भी गिल इसका आनंद ले रहे हैं. हालांकि दिल्ली के लुटियन जोन स्थित उनके बंगले में उन्हें कड़ी सुरक्षा के बीच रहना पड़ता है.
वे दुश्मनों के निशाने पर हैं और इसलिए बंदूक थामे कमांडो हर पल उनकी सुरक्षा में तैनात रहते हैं. उस दौरान भी जब वे अपने घर के हरे-भरे लॉन में एक घंटे की साइकिल सैर कर रहे होते हैं जो कि उनकी दिनचर्या का एक अभिन्न हिस्सा है.गिल आज भी जिंदगी को पूरी जिंदादिली के साथ जी रहे हैं. लोग अब भी उनसे मिलने आते रहते हैं. एक वक्त था जब दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में उनका नियमित आना-जाना हुआ करता था मगर अब वे इसकी बजाय किताबों को ज्यादा प्राथमिकता देते हैं और उनके वक्त का अच्छा-खासा हिस्सा इनकी संगति में बीतता है. वे कहते हैं, ‘किताबें हमेशा मुझे उत्साहित करती हैं.’वैसे गिल अगर पीछे मुड़कर देखें तो कई किताबें तो अपनी यादों के आधार पर ही लिख सकते हैं.
हरिंदर बवेजा
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