अक्षय घट ऊर्जा के

तीन साल पहले की बात है. एक सुबह मेरे पिता घर से निकले तो कभी वापस नहीं लौटे. वे मेरे तीन साल के बेटे को स्कूल छोड़ने जा रहे थे कि एक हल्की सी कराह के साथ अचानक उनका सिर एक तरफ लटक गया और वे चेतना खोकर हमारे घर के सामने खड़े आम के पेड़ के नीचे गिर गए. डॉक्टरों का कहना था कि उन्हें ब्रेन हेमरेज हुआ था. उनकी उम्र 75 के करीब थी.

जिन लोगों को आप आगे के पन्नों पर देखेंगे उन्होंने साबित कर दिया है कि सच सिर्फ यही नहीं है और कमजोरी, बीमारी और यहां तक कि मौत भी जिंदगी के खेल में बड़ी तुच्छ चीजें है. सभी लोगों ने अपनी इस ऊर्जा के राज के बारे में पूछने पर कई बातें बताई हैं 

इस घटना ने हमें स्तब्ध कर दिया. ये सब अचानक ही हो गया था. ऐसा कुछ भी नहीं हुआ था जिससे हमें इसका कोई पूर्वाभास हो सकता. न कोई बीमारी, न कमजोरी. मेरे पिता कोई मशहूर शख्सियत तो नहीं थे मगर उन्होंने अपने पीछे एक असाधारण विरासत छोड़ी थी. 40 साल तक बतौर डा¬क्टर वे उन इलाकों में काम करते रहे थे जिन्हें भारत के सबसे उपेक्षित हिस्से कहा जा सकता है. इनमें पं. बंगाल के चाय बागान और बिहार का मधेपुरा जिला शामिल है. ये ऐसे इलाके थे जहां चिकित्सा सुविधाओं जैसी कोई चीज नहीं होती थी.

इन सुदूर इलाकों में मेरे पिता अपने मरीजों के लिए हर मर्ज की दवा होते थे. वे खांसी-जुकाम के भी डॉक्टर थे और हड्डियों के भी, बच्चों के भी और स्त्रियों के भी. उनकी सबसे खास बात ये थी कि उनमें एक डॉक्टर के सहज ज्ञान के साथ एक मानवतावादी की बुद्धि भी थी. इसी का कमाल था कि उन्होंने दुष्कर हालात में उतने ही दुष्कर काम अंजाम दिए. गर्भ में (सामान्य स्थिति में बच्चे का सिर नीचे और पैर ऊपर होते हैं) असामान्य स्थिति में पल रहे बच्चे का सुरक्षित जन्म करवाना, हाथी के हमले में घायल किसी आदमी का पेट सिलना और 95 फीसदी जल चुके किसी व्यक्ति की जिंदगी बचाने जैसे काम उनके हाथों कई बार हुए. सुविधाओं के नाम पर उनके पास होता था एक कामचलाऊ ऑपरेशन टेबल और टेबल लैंप. एयर कंडीशनर तो कल्पना से बाहर की चीज थी.

मेरे पिता का एक छोटा सा सिद्धांत था, वे कहते थे कि इच्छाशक्ति के आगे कोई बाधा नहीं टिकती. इसी छोटे से सिद्धांत के बूते उन्होंने कई बड़े-बड़े काम कर डाले. अजीब सी बात ये है कि कुछ महीने गुजरते-गुजरते मेरे मन में उनकी मौत का दुख कम होता गया. अब जब भी मैं उनके बारे में सोचती मेरे होठों पर एक मुस्कराहट आ जाती. मुझे आम और उबले अंडों के प्रति उनकी रुचि याद आती, उनका अचानक जोर से हंस पड़ना, जानवरों और आदिवासियों से जुड़े उनके कई किस्से..अचानक ही मौत की जैसे कोई अहमियत नहीं रह गई थी. खोने के दुख की जगह एक अजीब सी शांति ने ले ली थी. ये शांति उस अहसास की थी कि मेरे पिता ने अपनी जिंदगी पूरी जिंदादिली और बिना किसी दुख के जी.

तहलका का ये विशेष परिशिष्ट उम्र और मौत के हमलों के बीच जिंदगी की जीत का उत्सव है. इसमें हमने उन असाधारण लोगों को स्थान दिया है जो उम्र के 75वें पड़ाव के बाद भी युवाओं सरीखी ऊर्जा के साथ जिंदगी की राह पर आगे बढ़ रहे हैं. ऐसे लोग जिनका उत्साह और जिनकी ऊर्जा आज भी वैसी ही है जैसी 50 साल पहले हुआ करती थी.

मिसाल के तौर पर 94 साल के एमएफ हुसैन को ही लें जो किसी आधुनिक बंजारे की तरह नंगे पांव पूरी दुनिया घूमते हुए नए-नए चित्र बना रहे हैं. 86 वर्षीय राम जेठमलानी आज भी भ्रष्ट शक्तियों के खिलाफ मोर्चा खोले हुए तो हैं ही, साथ ही वे अपनी उम्र से कहीं छोटे लोगों को बैडमिंटन के मैदान पर भी धूल चटा रहे हैं. 85 साल के आरके लक्ष्मण आज भी भारत पर रोज एक नए व्यंग्य के साथ लोगों को सोचने पर मजबूर कर रहे हैं.

79 साल के एम बालमुरलीकृष्ण की आवाज आज भी लोगों को सम्मोहित कर रही है तो 82 वर्षीय सुंदरलाल बहुगुणा आज भी हिमालय को बचाने की अलख जगा रहे हैं. उधर, उम्र के 101वें पड़ाव पर भी उस्ताद अब्दुल राशिद खान अपने सुरों से समां बांध रहे हैं और 92 साल के बीकेएस अयंगार आज भी रोज आधा घंटे तक शीर्षासन करने के साथ देस-परदेस में अनगितन लोगों के लिए योग सीखने की प्रेरणा बने हुए हैं.

ये लोग उम्र के जिस दौर में हैं वहां अकेलापन, निराशा, अवसाद जैसी चीजों का जिक्र बार-बार होता है. थकावट और हड्डियों में दर्द जैसे शब्द बार-बार सुनाई देते हैं. मगर जिन लोगों को आप आगे के पन्नों पर देखेंगे उन्होंने ये साबित कर दिया है कि सच सिर्फ यही नहीं है और कमजोरी, बीमारी और यहां तक कि मौत भी जिंदगी के खेल में बड़ी तुच्छ चीजें है. सभी लोगों ने अपनी इस ऊर्जा के राज के बारे में पूछने पर कई बातें बताई हैं. सुबह उठना, नियमित व्यायाम, स्वस्थ खानपान आदि. मगर सबकी बातों पर गौर करने पर पता चलता है कि इसका सबसे बड़ा राज है जीवन के प्रति उनका प्रचंड जोश. हर चीज से आनंद का असीम रस खींचने का इन लोगों का गुण प्रेरणादायी है. शांति भूषण बालिका वधू जैसे धारावाहिकों के शौकीन हैं तो भानु अथैया अपने हेयरबैंड्स की. जुनून, उत्सुकता, काम में तल्लीनता और शिकायत न करने की प्रवृत्ति जैसी चीजें इन सभी को निरंतर गतिमान रखे हुए हैं.

94 साल के हुसैन में किसी बच्चे जैसी जिज्ञासा है. इन दिनों वे अरबी भाषा सीख रहे हैं. वे नई तकनीक, नए आविष्कारों और युवाओं के विचारों से काफी रोमांचित होते हैं. जीवन की सांध्य बेला में उन्हें अपने देश से दूर रहने को मजबूर होना पड़ा मगर उन्होंने शिकायत करने में वक्त बर्बाद नहीं किया. उन्होंने अपनी एक नई दुनिया बनाई और आगे बढ़ चले. वे इस तरह जी रहे हैं जैसे जिंदगी का कोई अंत न हो. और यही वजह है कि वह अंत जब आएगा तो वे उसकी अहमियत को खत्म कर चुके होंगे.

ये परिशिष्ट भले ही 75 से ऊपर के लोगों पर केंद्रित हो मगर इसकी प्रेरणा का लक्ष्य युवा हैं. हमने मशहूर लोगों को इसलिए चुना ताकि उनकी कहानियां हर किसी के भीतर एक अनुगूंज पैदा करें. मैंने कभी भी ये महसूस नहीं किया कि मेरे पिता उम्रदराज हो रहे हैं. उन्होंने इसका कोई संकेत नहीं दिया था. यहां तक कि उन्होंने अपनी मौत का भी कोई संकेत नहीं दिया. इसलिए जब वे गए तो हमारे पास उस समृद्ध व्यक्ति की याद और उसकी जिंदगी के आनंद का तेजस्वी अमृत बचा था. साल गुजरते रहते हैं. वक्त का चलते रहना अनिवार्य है. मगर ये कतई अनिवार्य नहीं है कि बुढ़ापे को एक अभिशाप के तौर पर ही जाना जाए. ये सभी लोग इस बात का सबूत हैं.

शोमा चौधरी