बाबा घनानंद घाना वाले

घाना अफ्रीका के पश्चिमी तटीय इलाके में स्थित है. लगभग सवा दो करोड़ की आबादी वाले इस देश में मुझे अंतरनस्लीय शादियों पर आधारित एक फोटो फीचर पर काम करते हुए पता चला कि यहां पर एक ठेठ अफ्रीकी हिंदू मठ भी है. वैसे घाना किसी भी लिहाज से एक ही धर्म को मानने वाला देश नहीं है. सारे देश की बात करें तो यहां ईसाई धर्म की प्रधानता है लेकिन उत्तरी घाना में इस्लाम सबसे ज्यादा प्रभावी है. धर्म से इतर अधिकांश घाना निवासी अब तक अपनी जनजातीय परंपराओं जैसे पूर्वजों की पूजा और ‘दूसरी दुनिया’ में यकीन रखते हैं. घाना में बाहर से आए धर्मों में हिंदू धर्म सबसे नया है, जिसकी जड़ें यहां बसने वाले सिंधी व्यापारियों से जुड़ी हैं. अप्रवासी भारतीयों में इन्हीं सिंधी व्यापारियों का दबदबा है.

अफ्रीकी हिंदू अनुयायियों को अपने परंपरागत अफ्रीकी नाम रखने की पूरी आजादी है. मगर यहां पर कई ऐसे अनुयायी भी हैं जिन्होंने अपने बच्चों को राम और कृष्ण जैसे परंपरागत हिंदू नाम दिए हुए हैं

पहली बार जब मैंने यहां अफ्रीकी हिंदू समुदाय की मौजूदगी के बारे में सुना तो ये मेरे लिए चौंकाने वाली बात थी. मैंने तय किया कि मैं खुद उस जगह जाकर देखूंगी कि आखिर अफ्रीकी हिंदू समुदाय है कहां और कैसा है?

इस समुदाय की तलाश मुझे घाना की राजधानी अक्रा के उपनगरीय इलाके ऑडोरकोर ले गई. यहीं एक सफेद रंग का भवन, अफ्रीकी हिंदू मठ (एएचएम) स्थित है. मठ के प्रमुख स्वामी घनानंद सरस्वती ने 1975 में इसकी स्थापना की थी. कोमल आवाज वाले स्वामी घनानंद का जन्म एक ठेठ अफ्रीकी परिवार में हुआ था. उनके जन्म के बाद मां-बाप ने ईसाई धर्म अपना लिया. घनानंद भी ईसाई बन गए लेकिन, उनके खुद के मुताबिक, उन्होंने अपनी सत्य की खोज जारी रखी. इस बीच हिंदू मान्यताओं का आकर्षण उन्हें भारत ले आया. यहां वे देश भर में घूमे और योग सीखा. वे हिंदू धर्म से इतना प्रभावित हुए कि ऋषिकेश में स्वामी शिवानंद के आश्रम में रहते हुए उन्होंने हिंदू धर्म अपना लिया लिया. 35 साल की उम्र में वे वापस घाना आ गए और जल्द ही घाना वासियों को इस प्राचीन पूर्वी धर्म की शिक्षाओं पर व्याख्यान देने लगे. शुरुआत में उनके व्याख्यानों की तरफ कुछ ज्यादा पढ़े लिखे लोग, जैसे वकील और विश्वविद्यालय के अध्यापक आदि अफ्रीकी मूल के लोग ही आकर्षित हुए, लेकिन जल्द ही उन्हें सुनने भारतीय परिवार भी आने लगे. घाना में हिंदू मठ खोलने की प्रेरणा उन्हें स्वामी कृष्णानंद से मिली जो उस समय भारत से घाना की यात्रा पर थे. कृष्णानंद का कहना थी कि मठ में वे लोगों को वो सब कुछ बता सकते हैं जो उन्होंने भारत में सीखा था.

 

स्वामी घनानंद

आज घाना में तकरीबन 12,500 हिंदू हैं जिनमें से लगभग 10 हजार घनानंद सरस्वती की तरह अफ्रीकी मूल के हैं. हालांकि राजधानी अक्रा में इस समय एक सिंधी और एक सत्य साईं मंदिर है और यहां आनंदमार्गी, इस्कॉन और ब्रह्मकुमारी जैसे हिंदू धार्मिक संगठन भी सक्रिय हैं लेकिन हिंदू धर्म का यहां का सबसे बड़ा उपासना स्थल एएचएम ही है. इस मठ की गतिविधियों में आपको मिश्रित संस्कृति की झलक बड़ी आसानी से देखने को मिल सकती है. मठ के पूजाघर में हिंदू देवी-देवताओं के साथ ईसा की तस्वीर भी लगी हुई है, इसके अलावा दूसरे धर्मो के धार्मिक नेताओं की तस्वीरें भी यहां आपको देखने को मिल जाएंगी. भारत के कुछ धर्म निरपेक्ष नेताओं की तस्वीरें भी यहां पर हैं.

मठ के अनुयायी मानते हैं कि परमसत्ता को यावे (यहूदियों के आराध्य) और अल्लाह जैसे दूसरे नामों से भी जाना जाता है. मुख्य रूप से वैदिक दर्शन को मानने वाले इस मठ के मुख्य देवता विष्णु हैं लेकिन यहां एक शिवमंदिर भी है और दिन की शुरुआत शिवजी के अभिषेक से होती है. इसके बाद आरती होती है. आरती स्वामी घनानंद या उनका कोई शिष्य कराता है. इसके बाद हवन होता है फिर हनुमान चालीसा. अधिकांश भारतीय मंदिरों के उलट हवन में यहां उपस्थित हर व्यक्ति आहुति दे सकता है. हवन के बाद भजन होते जो ज्यादातर हिंदी में ही होते हैं मगर इनमें स्थानीय भाषा का पुट इन्हें असल भजनों से काफी अलग सा बना देता है. सबसे आखिर में वेदों पर चर्चा होती है. यह चर्चा अंग्रेजी या स्थानीय भाषा में होती है.

इस मठ की सबसे बड़ी खूबी ये है कि ये अपने भीतर न केवल कई धार्मिक परंपराओं को समोए हुए है बल्कि हर नस्ल, समुदाय और धर्म का व्यक्ति यहां बेरोकटोक आ सकता है. यहां के धार्मिक आयोजनों में सिंधी ही नहीं बल्कि हाल ही में घाना आए अप्रवासी भारतीय जिनमें प्रबंधकों से लेकर मजदूरों तक की जमात शामिल होती है. लेकिन मठ आने वालों में सबसे ज्यादा संख्या अफ्रीका के मूल निवासियों की ही है. इनमें भी अलग-अलग पृष्ठभूमि के लोग शामिल हैं. जब मैंने मठ के एक अनुयायी से हिंदूओं में पाई जाने वाली वर्णव्यवस्था पर उसकी राय जाननी चाही तो उसका कहना था कि दुनिया में ऐसा कोई समाज नहीं है जिसमें लोगों से भेदभाव न किया जाता हो, फिर चाहे इसका आधार व्यवसाय हो, जन्म-संबंधी हो या फिर नस्ल को लेकर हो. लेकिन घाना में उसके जैसे हिंदुओं का साफतौर पर मानना है कि हर इंसान को शिक्षा, बेहतर जिंदगी और खासतौर पर अपने धर्म को मानने का अधिकार है.

समन्वयवादी और उदार विचारधारा को मानने वाले इस मठ में सिर्फ एक ही व्यक्ति सन्यासी है. इसके बार में घनानंद कहते हैं, ‘यहां हिंदू धर्म एक नई चीज है और मैं नहीं चाहता कि किसी को दीक्षा दी जाए और वो बाद में सन्यास के रास्ते से हट जाए. इससे हिंदू धर्म बदनाम होगा.’ हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले जो लोग अनुयायी बनना चाहते हैं उन्हें यहां छह सप्ताह रह कर एक कोर्स करना पड़ता है. इसके बाद धीरे-धीरे हिंदू धर्म में दीक्षित किये जाने की प्रक्रिया शुरू होती है.

उदाहरण के तौर पर अफ्रीकी हिंदू अनुयायियों को अपने परंपरागत अफ्रीकी नाम रखने की पूरी आजादी है. मगर यहां पर कई ऐसे अनुयायी भी हैं जिन्होंने अपने बच्चों को राम और कृष्ण जैसे परंपरागत हिंदू नाम दिए हुए हैं, ये भी खास बात है कि ये नाम हिंदू रीति से नामकरण संस्कार के बाद रखे गए हैं. शादियों और अंतिम संस्कार में भी ये लोग हिंदू रीतियों का पालन करते हैं हालांकि ऐसा करना अनिवार्य नहीं है. मठ के हिसाब से हर हिंदू अनुयायी को अपने घर में पूजा और प्रार्थना करनी चाहिए. कभी-कभी उत्साह के अतिरेक में नए अनुयायी इस तरह समर्पित होकर धार्मिक क्रियाएं करते हैं कि लगने लगता है कि ये लोग सिर्फ अभिनय तो नहीं कर रहे. मगर आस्था को लेकर इस तरह के क्रियाकलाप हमारे देश में भी होते हैं, होते रहेंगे. क्योंकि आस्था से जुड़ी हर चीज को समझ पाना शायद संभव ही नहीं है.