अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डेमोक्रेटिक उम्मीदवारी के दावेदार बराक ओबामा ने जब लगातार हिलेरी क्लिंटन को मात दी तो रिपब्लिकन खेमे के एक प्रमुख रणनीतिकार मार्क मैकिनन का कहना था कि ओबामा के खिलाफ काम करने की बजाय वो रिटायर हो जाना पसंद करेंगे. इसके बाद एक साक्षात्कार के दौरान मैकिनन के शब्द थे, “मैं ऐसे किसी भी अभियान में शामिल होने पर असहज महसूस करुंगा जिसमें बराक ओबामा पर हमला करना ज़रूरी होगा”
ओबामा के विरोधी भी उनके मुरीद हैं.
उत्तर पश्चिमी राज्य ऑरेगॉन के पोर्टलैंड शहर में 18 मई को ओबामा को सुनने के लिए 75,000 लोगों का अपार जनसमूह इकट्ठा हुआ. इसके दो दिन बाद ही मैकिनन ने इस्तीफा दे दिया. गौरतलब है कि ये शख्स सन 2000 और 2004 में राष्ट्रपति जॉर्ज बुश के चुनावी अभियान का भी सूत्रधार रहा था.
वाशिंगटन पोस्ट के जाने-माने स्तंभकार माइकल गर्सन ने बाद में बताया कि मैकिनन ने पिछले साल उन्हें ओबामा द्वारा लिखी ‘द ऑडेसिटी ऑफ होप’ पढ़ने के लिए दी थी और कहा था कि अगर ओबामा डेमोक्रेटिक उम्मीदवार होंगे तो वे रिपब्लिकन अभियान का हिस्सा नहीं बनना चाहेंगे. अपने लेखों में गर्सन ने ओबामा की विचारधारा और मिजाज़ के कई पहलुओं में खोट निकाले मगर ये भी कहा कि मैकिनन का ये कदम एक तरह से रिपब्लिकन पार्टी के लिए चेतावनी है कि उन्हें ओबामा को हल्के में नहीं लेना चाहिए. ओबामा एक गंभीर, बुद्धिमान और शालीन व्यक्तित्व हैं जो दूसरे गंभीर, बुद्धिमान और शालीन लोगों को अपनी ओर आकर्षित करेंगे. उनमें कुछ स्वाभाविक मानवीय कमजोरियां जरूर हैं मगर जो प्रेरणा वो जगाते हैं वो वास्तविक है…उनकी कहानी फर्जी नहीं है.”
मैकिनन जैसे विरोधियों की उनके खिलाफ लड़ने की अनिच्छा जैसे कारकों ने ही 46 वर्षीय ओबामा के 12 साल के राजनीतिक सफर को आज एक ऐसे पड़ाव तक पहुंचा दिया है जहां वे दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश के पहले अश्वेत राष्ट्रपति बनने से कुछ ही कदमों की दूरी पर हैं.
राजनीति की दौड़ में ओबामा बार-बार अप्रत्याशित विजेता साबित होते रहे हैं. हमेशा उन्हें कमतर करके आंका गया मगर हमेशा वो अपने प्रतिद्वंदियों पर भारी पड़ते रहे. 1996 में जब वो इलिनॉय सीनेट के लिए चुनाव लड़ रहे थे तो ज्यादातर लोगों को ओबामा के प्राइमरी चुनाव जीतकर डेमोक्रेटिक पार्टी का नामांकन हासिल करने पर भी शक था. मगर न केवल ऐसा हुआ बल्कि उन्होंने चुनाव में रिपब्लिकन उम्मीदवार को पटखनी भी दे डाली. आठ साल पहले उन्होंने हाउस ऑफ रिप्रेंजेटेटिव के लिए चुनाव लड़ा और असफल रहे. मगर 2004 में वो अमेरिकी सीनेट के लिए खड़े हुए और शानदार जीत दर्ज की. इसी साल डेमोक्रेटिक पार्टी के एक सम्मेलन में दिये गये उनके एक भाषण ‘द ऑडेसिटी ऑफ होप’ ने पूरे अमेरिका में तहलका मचा दिया. लोग उनके मुरीद हो गए और राजनीति के पंडितों ने भविष्यवाणियां कर दीं कि ये शख्स भविष्य में अमेरिका के राष्ट्रपति पद का दावेदार होगा. इसी भाषण पर आधारित, इसी शीर्षक की 2006 में आई उनकी एक किताब ने लोकप्रियता के कई रिकॉर्ड्स तोड़े.
पिछले साल तक हर तरफ हिलेरी क्लिंटन का जलवा था और ज्यादातर लोग मान रहे थे कि ओबामा उनके मुकाबले टिक नहीं पाएंगे. मगर उन्होंने एक बार फिर सबको गलत साबित कर दिया. अब इस साल अगस्त में ओबामा एक बार फिर से डेमोक्रेटिक सम्मेलन को संबोधित कर रहे होंगे और वो भी राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में.
तो सवाल उठता है कि ओबामा की इस मिथकीय सफलता का राज क्या है? इसका जवाब उनकी लोकप्रिय किताब ‘द ऑडेसिटी ऑफ होप’ में मिलता है जिसने मैकिनन और लाखों दूसरे लोगों को परंपरागत राजनीति के इतर देखने और ओबामा के शांति व परिवर्तन के संदेश में विश्वास करने की प्रेरणा दी. ओबामा की राजनीति सिद्धांतवादी है मगर उसमें हठता नहीं है, उसमें आत्मविश्वास है मगर नम्रता भी है. उनकी राजनीति समझौतावादी न होते हुए भी व्यावहारिक है और सबकी भागीदारी को प्रोत्साहन देती है. उनका 12 साल का राजनीतिक सफर इसकी मिसाल है.
ओबामा खुद को एक दार्शनिक राजा की तरह पेश करते हैं. वो एक ऐसे मनीषी की तरह भी लगते हैं जो निष्पक्षता से न सिर्फ अमेरिका बल्कि पूरी दुनिया के लोगों के लिए सामाजिक न्याय और बराबरी का सपना देखता है. ओबामा को सिर्फ नारे देने वाला नेता कहने वाले लोगों को उनकी किताब ध्यान से पढ़ने की जरूरत है. उन्हें पता चल जाएगा कि ओबामा के पास कितनी विशाल दृष्टि है.
ओबामा एक ऐसे दुर्लभ अफ्रीकी-अमेरिकी राजनीतिज्ञ हैं जो बेहिचक मानते हैं कि बेरोजगार अश्वेतों के कल्याण के लिए बनाए गए सकारात्मक कदम वाले कार्यक्रमों ने दरअसल इस वर्ग का नुकसान ज्यादा किया है. उनके शब्दों में “पीढ़ियों से चली आ रही गरीबी को हटाने के लिए अगर कोई योजना बनती है तो वो कार्य के अवसर देने पर केंद्रित होनी चाहिए न कि कल्याण पर, क्योंकि काम आपको न सिर्फ आत्मनिर्भर बनाता है बल्कि लोगों की जिंदगी में व्यवस्था, आत्मसम्मान और तरक्की के अवसर भी पैदा करता है.” अमेरिका में कौन दूसरा ऐसा अश्वेत नेता है जो सामाजिक कल्याण की योजना का इस तरह सीधा विरोध कर सकता हो? आम नेताओं की तरह ओबामा हर लोकलुभावन नीति के प्रति अपना समर्थन नहीं जताते. पिछले हफ्ते जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में बढ़ती तेल की कीमतों से निपटने के लिए हिलेरी और मैकन गैसोलीन पर टैक्स खत्म करने का सुझाव दे रहे थे तो ओबामा इसका तीखा विरोध कर रहे थे.
मगर इसका मतलब ये नहीं है कि ओबामा वंचितों और गरीबों का हित नहीं चाहते. पिछले सप्ताह उन्होंने एलान किया कि वो उन 15 लाख अमेरिकियों के लिए 10 अरब डॉलर के एक फंड की स्थापना करेंगे जो अर्थव्यवस्था में आई मंदी के चलते कर्ज नहीं चुका पाने की वजह से अपना घर खो चुके हैं या इस खतरे का सामना कर रहे हैं.
वर्तमान सरकार की नीतियों के आलोचक होने के बावजूद ओबामा में दलगत राजनीति से ऊपर उठकर आम आदमी का भला करने की ज़बर्दस्त उत्सुकता साफ नजर आती है. अपने व्यस्त अभियान के बावजूद उन्होंने तीन जून को रिपब्लिकन सीनेटर टॉम कोबर्न के साथ मिलकर सीनेट में एक नया विधेयक पेश किया जिसमें सरकार द्वारा अपने विभिन्न मदों की जानकारियां सार्वजनिक करने का प्रावधान है ताकि प्रशासनिक पारदर्शिता को बढ़ावा मिल सके. इससे www.usaspending.gov नामक उस वेबसाइट की उपयोगिता बहुत बढ़ जाएगी जो पिछले साल दिसंबर में इन दोनों सीनेटर्स के प्रयासों से पारित हुए ओबामा-कोबर्न ट्रांसपेरेंसी कानून के तहत अस्तित्व में आई थी. नैतिक मूल्यों पर जोर देने वाले ओबामा, सरकार में लॉबीइस्ट्स और दलालों के प्रभाव को कम करने की भी वकालत करते हैं.
लेकिन शायद उनका सबसे निर्भीक कदम रहा है अमेरिका की विवादित विदेश नीति की आलोचना. ओबामा मानते हैं कि उनका देश अपनी स्वार्थपूर्ति के लिए दुनिया भर में कई जगहों पर तानाशाही करता रहा है. ईराक युद्ध के खिलाफ उनका रुख तो जगजाहिर है ही. अपनी किताब में वो इस बात का भी वर्णन करते हैं कि किस तरह अमेरिकी प्रशासन ने 1965 में इंडोनेशिया में जनरल सुहार्तो द्वारा राष्ट्रपति सुकर्णो की लोकतांत्रिक सरकार के तख्तापलट को समर्थन दिया जिसके बाद सुहार्तो के शासनकाल में दस लाख से भी ज्यादा लोगों की हत्या कर दी गई. ये देखकर और भी हैरानी होती है कि 2006 में ये जानते हुए भी कि वो भविष्य में राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार हो सकते हैं उन्होंने अपनी किताब में पश्चिमी ताकतों के प्रभुत्व वाले विश्व मुद्रा कोष की नीतियों की आलोचना करने का खतरा मोल लिया.
शायद ओबामा की इस आदर्श सोच और दूरदृष्टि के पीछे उनकी पृष्ठभूमि का भी अहम योगदान है. केन्या से ताल्लुक रखने वाले अश्वेत पिता और श्वेत अमेरिकी मां की इस संतान के बचपन का काफी हिस्सा हवाई और इंडोनेशिया में बीता. उन्होंने अपने पिता को कभी नहीं देखा और एक तरह से देखा जाए तो उनका लालन-पालन उनके नाना-नानी के हाथों हुआ. न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय से अंतरराष्ट्रीय संबंध और राजनीति विज्ञान में स्नातक की डिग्री हासिल करने के बाद वे शिकागो में समाज सेवा के काम में जुट गए. फिर 1991 में उन्होंने हार्वड लॉ स्कूल में दाखिला लिया जहाँ वे हार्वड लॉ रिव्यू के पहले अफ्रीकी अमेरिकी अध्यक्ष भी रहे. इसके बाद ओबामा दोबारा शिकागो लौटे और यहां कानून के शिक्षक बन गए. इसके साथ ही उन्होंने जमीन स्तर पर अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत की. इस दौरान उन्होंने अफ्रीकी-अमेरिकी नागरिकों के लिए कई सफल मतदाता पंजीकरण अभियान चलाए.
अब वो एक ऐसे मुकाम पर हैं जहां इतिहास उनका इंतजार कर रहा है. वो कामयाब हो सकते हैं और ऐसा भी हो सकता है कि उनके प्रशंसकों को निराश होना पड़े. ये भी हो सकता है कि राष्ट्रपति बनने के बाद उनके आदर्शों पर राजनीति की दूसरी मजबूरियां भारी पड़ जाएं.
अजित साही