भारत देश के तालिबान

कभी ऐसी संसदों सा बर्ताव जहां के कानून लड़कियों को लुप्तप्राय और पति-पत्नी को भाई-बहन बना देते हैं और कभी ऐसी अदालतों सा जहां सच के मायने हैं निर्दोषों की हत्या, बलात्कार और दर-दर की ठोकरें. खाप पंचायतों के तालिबानी कहर पर नेहा दीक्षित की ये रिपोर्ट; फोटो तरुण सहरावत 

राजधानी दिल्ली से महज कुछ किलोमीटर की ही दूरी पर जगह-जगह ऐसी संस्थाएं अस्तित्ववान हैं जिनके लिए संविधान और नियम-कानूनों का कोई मतलब ही नहीं. ये प्यार और शादी करने वाले जोड़ों की हत्या का फरमान सुनाती हैं और उनका आदेश नहीं मानने वालों के बच्चों को बेच भी देती हैं. ये प्यार में पड़कर घर से भाग जाने वाले लड़कों को दंड देने के लिए उनकी मां का सामूहिक बलात्कार भी करवा सकती हैं. इन संस्थाओं के तालिबानी फ़रमान औरतों को सिर्फ लड़के ही पैदा करने की अप्राकृतिक सीमाओं में भी बांध सकते हैं. विचित्रताओं की इस धरती पर ये भी गजब का विरोधाभास है कि एक ओर तो हमारे प्रधानमंत्री तालिबान के सफाए के लिए जी-8 सम्मेलन में पूरी दुनिया को एकजुटता का संदेश देते हैं वहीं संसद भवन की चारदीवारियों से महज कुछ फासले पर मौजूद ऐसी अवैध ताकतों की ओर हम अपनी आंख मूंदे रहते हैं.

9 मई 2008 को ओम प्रकाश ने कथित रूप से गांव वालों के साथ मिल कर अपनी गर्भवती बेटी सुनीता और उसके पति जसबीर के हाथ-पैर बांध कर उनके ऊपर ट्रैक्टर चला दिया था. इसके बाद उन्होंने दोनों के मृत शरीर उनके घरों के बाहर लटका दिए गए

23 जुलाई को जब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह एक अन्य अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में दुनिया को तालिबान के जुल्म से मुक्त करवाने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जाहिर कर रहे थे तो उसी दिन हरियाणा के जींद जिले में सर्व खाप पंचायत के आदेश पर एक पागल भीड़ द्वारा एक युवक की नृशंस हत्या की जा रही थी. उसका गुनाह सिर्फ इतना था कि उसने अपने ही गोत्र की एक लड़की से शादी करने की जुर्रत की थी. तमाम गैर सरकारी संगठनों और मीडिया रिपोर्टों की मानें तो खाप पंचायतों ने पिछले छह महीनों में हर हफ्ते औसतन चार जोड़ों के हिसाब से समान गोत्र में शादी करने वालों को मौत की सजा सुनाई है. दरअसल हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और राजस्थान के एक बड़े हिस्से में खापें किसी जाति के अलग-अलग गोत्रों(उपजातियों) की पंचायतें होती हैं. ये एक ही गोत्र के भीतर होने वाले किसी विवाद के निपटारे या उससे संबंधित नियम तय करने का काम करती हैं. मगर जब कोई मसला एक खाप या गोत्र या फिर इससे भी बढ़कर किसी जाति के दायरे से बाहर का होता है तब सभी संबंधित खापों की एक मिली जुली बैठक बुलाई जाती है जिसका प्रधान सर्वसम्मति से तय किया जाता है. इस मिली-जुली पंचायत को ही सर्व खाप कहते हैं.

बीते पांच सालों के दौरान खाप पंचायतों ने संविधानेत्तर संस्था की छवि बना ली है जो लगातार गंभीर परेशानी में डालने वाले फैसले सुना रही हैं. खाप पंचायतों की पहचान हत्या, बलात्कार और मानव तस्करी करने, पीड़ितों की संपत्ति हड़पने और लोगों के ऊपर प्रतिबंध थोपने वालों की बन गई है. और ये सब अपने समुदाय का गौरव और सम्मान को बचाए रखने के नाम पर हो रहा है. बहुत से मामलों में स्थानीय प्रशासन भी खाप पंचायतों की इच्छा के आगे सिर नवाता नजर आता है.

सजा-ए-मौत

मिशा एक हाथ में हाई कोर्ट का आदेश और दूसरे हाथ में मेरा हाथ पकड़े हुए पूछती हैं, ‘तुम यहां किसलिए आई हो?’ वो चिल्लाती है, ‘तुम सभी नपुंसक हो. तुम उन्हें नहीं बदल सकते. वो तुम्हें भी मार देंगे. हमें उनके इशारों पर ही जीना-मरना है.’ इसी साल मार्च में उनके 26 वर्षीय बेटे आयुर्वेदिक चिकित्सक वेद पाल और 22 वर्षीय सोनिया ने परिवार वालों की मर्जी के खिलाफ घर से भाग कर शादी कर ली थी. जब बनवाला खाप को इसकी जानकारी मिली तो उन्होंने एक आदेश जारी कर दिया जिसके मुताबिक जोड़ा एक ही गोत्र का है इसलिए वो भाई-बहन हुए और उनकी शादी अवैध है. क्योंकि उनका अपराध ‘अक्षम्य’ था इसलिए पूरे समुदाय का सिर नीचा करने के जुर्म में पंचायत ने उन्हें पकड़ कर जान से मार देने का आदेश दे दिया.

तेवतिया खाप ने आदेश दिया कि प्रेमी जोड़े को खोजा जाए और चेतन की मां सिया दुलारी के साथ यादव परिवार के सदस्य बारी-बारी से बलात्कार करेंगे क्योंकि उसके बेटे ने यादव परिवार की प्रतिष्ठा खराब की हैइस फरमान के दो महीने के भीतर ही 22 मई को इस जोड़े को पकड़ लिया गया और दोनों को अलग कर दिया गया. वेद पाल इस अन्याय को बर्दाश्त नहीं कर सका और उसने कानून की शरण ली. उसने हरियाणा हाईकोर्ट से संपर्क किया और अपने लिए पुलिस सुरक्षा का आदेश पाने में सफल रहा. 23 जुलाई को रात में 9 बजे नरवाना सदर थाने के एसएचओ बलवंत सिंह और हरियाणा हाईकोर्ट के वारंट अधिकारी सूरज भान पुलिस दल के साथ मातौर गांव स्थित वेद पाल के घर पहुंचे. उन्होंने वेद पाल को सिंहवाला गांव तक सुरक्षा देने का वादा किया जहां उसकी बीवी सोनिया को जबर्दस्ती रखा गया था. जैसे ही वेदपाल सिंहवाला पहुंचा उसके ऊपर हमला कर दिया गया. उसे सोनिया के घर की छत पर लेजाकर पहले नंगा किया गया फिर लाठियों से पीटा गया, उसके गले और कंधे पर हंसिए और कुल्हाड़ी से वार किए गए. सूरज भान को छत से नीचे फेंक दिया गया. इससे घबराए 15 पुलिस वाले वहां से भाग खड़े हुए. ‘मेरे बेटे के शरीर में एक भी हड्डी सलामत नहीं बची थी. वो उसकी मौत के बाद भी काफी देर तक उसे पीटते रहे’ वेद पाल की मां बताती हैं. मातौर गांव में रहने वाले उसके परिवार को – जो कि सिंहवाला से महज पांच किलोमीटर की दूरी पर है- इसकी जानकारी 14 घंटे बाद हुई. यहां तक कि उन्हें पोस्टमार्टम रिपोर्ट की प्रति भी नहीं मिली है. हालांकि इसके बाद बलवंत सिंह को निलंबित कर दिया गया है और चार ग्रामीणों को गिरफ्तार किया गया है. मगर तब से सोनिया के बारे में किसी को कुछ पता नहीं. नाम न छापने की शर्त पर सोनिया की सहेलियां तहलका को बताती हैं कि उसके परिजनों ने उसकी ईंटों से बुरी तरह से पिटाई की थी. किंतु सोनिया के चाचा सूरत सिंह कहते हैं, ‘उसकी फिर से शादी हो गई है और वो अपने परिवार में खुश है.’ उधर उसकी सहेलियों का कहना है कि ये सब इसलिए कहा जा रहा है ताकि कोई उसकी खोजबीन न करने लग जाए. उन्हें सोनिया की सलामती को लेकर भी तरह-तरह की आशंकाएं सता रही हैं. 

‘इस तरह के बच्चों के साथ और क्या किया जा सकता है?’ कमल पूछती हैं. करनाल जिले के बल्ला गांव में रहने वाले उनके पति ओम प्रकाश और नौ दूसरे लोग पिछले एक साल से जेल में हैं. 9 मई 2008 को ओम प्रकाश ने कथित रूप से गांव वालों के साथ मिल कर अपनी गर्भवती बेटी सुनीता और उसके पति जसबीर के हाथ-पैर बांध कर उनके ऊपर ट्रैक्टर चला दिया था. इसके बाद उन्होंने दोनों के मृत शरीर उनके घरों के बाहर लटका दिए गए ताकि आगे से कोई इस तरह का काम करने की हिम्मत नहीं कर सके. दोनों एक ही गोत्र के थे. उन दोनों की हत्या का फरमान जारी करने वाली कालीरमन खाप के एक सदस्य जगत सिंह कहते हैं, ‘समान गोत्र में शादी करने वाले हरामी हैं. बिरादरी को बचाने के लिए ऐसे आवारा लोगों को मार देना चाहिए.’ गांव वालों ने इन हत्याओं का जश्न बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया. ‘इस तरह के लड़कों के घरवालों को चुपचाप अपने बच्चों को मार देना चाहिए. बिरादरी के प्रति अपनी निष्ठा साबित करने का ऐसा मौका ज्यादा लोगों को नहीं मिलता’ कालीरमन खाप के ही एक और सदस्य जय सिंह कहते हैं.

कालीरमन खाप के एक सदस्य जगत सिंह कहते हैं, ‘समान गोत्र में शादी करने वाले हरामी हैं. बिरादरी को बचाने के लिए ऐसे आवारा लोगों को मार देना चाहिए.’कानून व्यवस्था लागू करने वाली संस्थाओं की घोर अनुपस्थिति में स्वाभिमान और प्रतिष्ठा के नाम पर की जा रही हत्याओं का खेल बेरोकटोक जारी है. संविधान, कानून और प्रशासन जैसी संस्थाएं मानो यहां के लिए अभी अस्तित्व में आईं ही नहीं हैं. ऐसे में कोई आश्चर्य नहीं कि जसबीर की हत्या के मामले की गवाह उसकी बहन अचानक ही अपने बयान से पलट जाती है. खाप के ही एक सदस्य नाम न छापने की शर्त पर तहलका को बताते हैं, ‘खाप ने जसबीर के परिवार से कहा कि अगर उसने केस वापस नहीं लिया तो उन्हें बिरादरी और गांव दोनों से बाहर कर दिया जाएगा.’

जांहिर है आरोपी जल्द ही छूट जाएंगे जिसका अर्थ ये होगा कि सामाजिक मान्यता पा चुकी इस बर्बरता में कोई कमी नहीं आने वाली. बनवाला खाप के एक कार्यकर्ता अजित सिंह कहते हैं, ‘खापों ने हमारे जीवन का एक ढर्रा तय किया है. यहां प्रेम विवाह की इजाजत नहीं है. हमारे बुजुर्गों ने ये नियम लागू किए हैं. हम भी ऐसा ही करेंगे.’

इसीलिए बनवाला खाप ने जून 2007 में कैथल के करौंरा गांव के रहने वाले 23 वर्षीय मनोज और 19 वर्षीय बबली को मौत की सजा सुनाई थी. मनोज और बबली ने 18 मई को घर से भागकर शादी कर ली थी. मगर पुलिस सुरक्षा के बावजूद करनाल के पास बबली के परिवार वालों ने उन्हें एक रोडवेज की बस में धर-दबोचा. बाद में उनकी हत्या कर उन्हें हिसार में एक नहर में बहा दिया गया. ‘जो मेरे पिता ने किया वो औरों के लिए उदाहरण बनेगा. हमारी इज्जत सबसे बड़ी है और हम अपनी इज्जत के लिए ऐसे काम करते रहेंगे’ बबली का 17 वर्षीय चचेरा भाई जिसके पिता भी इस मामले में आरोपी हैं, ठेठ हरियाणवी लहजे में कहता है. मगर न्याय अभी पूरा कहां हुआ है. मनोज के परिवार वालों से किसी भी तरह का रिश्ता रखने वालों के लिए खाप ने ग्यारह सौ रुपये का जुर्माना मुकर्रर कर दिया है. ‘हमारे घर में रोजी-रोटी कमाने वाला केवल मनोज ही था. मेरे पिता पहले से ही नहीं थे. अब अब सारे गांव ने हमारा बहिष्कार कर दिया है. दिन-प्रतिदिन हमारा जीना मुश्किल होता जा रहा है.’ अपनी मां के साथ बैठी मनोज की बहन सीमा रुंधे गले से कहती है.

ग्रामीणों के साथ हफ्तों, महीनों बिताने और बातचीत करने से एक बात बेहद साफ होती है कि खाप पंचायतों द्वारा मौत के फरमान जारी करना कोई दुर्लभ नहीं बल्कि एक बेहद आम बात है. लेकिन जटिल सामाजिक संरचना और बिरादरी से बहिष्कार के डर से ये मौते पुलिस या मीडिया की जानकारी में ही नहीं आती. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के पास प्रतिष्ठा के नाम पर की गई हत्याओं की कोई श्रेणी ही नहीं है इसलिए इनसे जुड़े कोई आधिकारिक आंकड़े नहीं मिलते. खाप पंचायतों के आदेशों पर की गई हत्याओं के कोई आंकड़े उपलब्ध नहीं होने की सूरत में इन पर किसी तरह का शोध आदि भी संभव नहीं हो पाता.

लैंगिक असंतुलन

21 जुलाई को काद्यान खाप ने 23 वर्षीय रवींद्र और उसके परिवार पर एक लाख रूपए का जुर्माना और परिवार के 15 सदस्यों को स्थाई रूप से गांव से बहिष्कृत करने का फरमान सुनाया

हरियाणा में लैंगिक अनुपात के इतने विकराल असंतुलन में भी पुरुष प्रधान रूढ़िवादी खाप पंचायतों की बेहद अहम भूमिका रही है. राज्य में लैंगिक अनुपात पूरे देश में सबसे कम है और ये दूल्हों की मंडी के तौर पर भी बदनाम है. 2004 में तेवतिया खाप दुलेपुर गांव में संपत्ति के विवाद की सुनवाई कर रही थी. खाप ने फैसला दिया कि जिन परिवारों में दो से कम बच्चे होंगे वो संपत्ति विवाद के लिए खाप से सहायता मांगने के अधिकारी नहीं होंगे. इसकी वजह भी उन्होंने बहुत दिलचस्प बताई. ऐसे बदकिस्मत लोगों के मामलों में खानदान का नाम रोशन होने या फिर परिवार की संपत्ति में वृद्धि होने की संभावनाएं बहुत कम होती हैं. यानी सीधे-सीधे वो कम हिस्से के लायक हैं.

इस आदेश के बहुत विनाशकारी परिणाम हुए. दो बेटों की अनिवार्यता को पूरा करने के लिए व्याकुल परिवारों ने हर उन हथकंडों का इस्तेमाल किया जिससे लड़की का जन्म होने से रोका जा सके. प्रतिष्ठित अखिल भारतीय आयर्विज्ञान संस्थान (एम्स) की एक रिपोर्ट से पता लगता है कि बल्लभगढ़ ब्लॉक के 28 गांवों में लैंगिक अनुपात में भयंकर गिरावट आई है. ये सभी गांव तेवातिया खाप के न्याय क्षेत्र में आते हैं. रिपोर्ट से लिंग निर्धारण जांच और कन्या भ्रूण हत्याओं के बीच सीधा संबंध भी देखने को मिलता है. हैरत की बात ये रही कि राज्य सरकार द्वारा भ्रूण लिंग निर्धारण तकनीक कानून को नोटीफाई न किये जाने की वजह से राज्य में अदालतों को कई ऐसे डॉक्टरों को बरी करना पड़ा जो इस तरह की जांच करते थे. जबकि ये कानून बाकी पूरे देश में  लागू है और लिंग निर्धारण जांच को प्रतिबंधित करता है.

सितंबर 2006 से एम्स के बल्लभगढ़ स्थित ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा केंद्र के प्रमुख रहे डॉ आनंद के कहते हैं, ‘ऐसे परिवार बहुत ही कम हैं जिनमें लड़का होने से पहले दूसरी या तीसरी लड़की पैदा हुई हो. इसका समाधान सिर्फ सामाजिक हस्तक्षेप से ही संभव है.’ 2004 में तेवतिया खाप की तरफ से आया बयान इस भयंकर लैंगिक असंतुलन की वजह को स्पष्ट कर देता है. तेवतिया खाप के सदस्य कांता सिंह जो कि तीन बेटों और एक बेटी के बाप हैं कहते हैं, ‘बेटे तो आदमी की संपत्ति होते हैं. मेरे बेटे मेरा नाम रौशन करेंगे और मेरे खेतों का दायरा बढ़ाएंगे. ये मेरी बेटी की शादी और दहेज के लिए पैसे कमाएंगे.’ जब उनसे पूछा गया कि लड़कियों की इतनी कमी होगी तो आपके बेटों के लिए दुल्हनें कहां से आएंगी? इस पर वे अहंकार के साथ कहते हैं, ‘वो इतनी कमाई करेंगे कि उन्हें इसकी चिंता करने की जरूरत ही नहीं है.’ सिंह का ये कहना हरियाणा में दुल्हनों की देश की सबसे बड़ी मंडियों में से एक के होने की ओर इशारा करता है जहां तस्करी के जरिए लड़कियां लाईं जाती हैं और बिकने के बाद वे महज बच्चा पैदा करने की मशीन भर बन कर रह जाती हैं.

खाप की पुरुषवादी मानसिकता सिर्फ महिला भ्रूण हत्या तक ही सीमित नहीं है. वो आज भी पूरे परिवार को सजा देने के लिए बलात्कार जैसा मध्ययुगीन तरीका अपनाते हैं. 2004 में उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जिले में स्थित भवानीपुर गांव का 20 वर्षीय चेतन, पिंकी के साथ घर से भाग गया था. पिंकी इलाके के प्रभावशाली यादव परिवार की बेटी थी जबकि चेतन जाति का नाई था. तेवतिया खाप ने आदेश दिया कि प्रेमी जोड़े को खोजा जाए और चेतन की मां सिया दुलारी के साथ यादव परिवार के सदस्य बारी-बारी से बलात्कार करेंगे क्योंकि उसके बेटे ने यादव परिवार की प्रतिष्ठा खराब की है. ‘उन्होंने उसके साथ सिर्फ बलात्कार ही नहीं किया बल्कि सबूतों को नष्ट करने के लिए उसे जिंदा जला दिया. पुलिस को सब पता है पर उसने कुछ नहीं किया’ चेतन के चाचा राज नरायण कहते हैं. बाद में कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं के हस्तक्षेप से कुछ लोगों की गिरफ्तारी तो हुई पर जल्द ही उन्हें जमानत मिल गई. 

नाच नहीं, क्रिकेट नहीं

तालिबानी तर्ज पर रूहल खाप ने मार्च 2007 में शादियों में डीजे चलाने पर ये कहते हुए रोक लगा दी कि इससे दुधारू पशुओं पर असर पड़ता है. पर असल वजह थी लड़कियों को डांस फ्लोर पर चढ़ने से रोकना. जल्द ही तीन और खाप इस मुहिम में शामिल हो गईं और रोहतक के करीब 83 गांव इसके दायरे में आ गए. रूहल खाप के कार्यकर्ता पंकज रूहल, कहते हैं, ‘युवक तेज संगीत पर शराब पीकर नाचते रहते हैं. इससे रात में गाएं सो नहीं पाती जिसकी वजह से सुबह उन्हें दुहना बहुत मुश्किल हो जाता है. घरों में रहने वाली औरतों ने भी बाहर निकल कर नाचना शुरू कर दिया था. ये हमारी परंपरा के खिलाफ है.’

मई 2001 में तालिबान ने फतवा जारी किया था कि मुस्लिम देशों में क्रिकेट नहीं खेला जाना चाहिए. बिल्कुल इसी तर्ज पर अप्रैल 2007 में जिंद जिले की दादन खाप के मुखिया तेवा सिंह ने 28 गांवों में क्रिकेट खेलने और टीवी पर क्रिकेट देखने पर प्रतिबंध लगा दिया. दादन खाप के सदस्य जोगी राम कहते हैं, ‘जवान लड़के बर्बाद हो रहे थे. बड़े बुजुर्गो को अपने बच्चों से कबड्डी, खो-खो और कुश्ती खेलने के लिए कहना चाहिए. क्रिकेट भी कोई खेल है.’ और इस नियम को तोड़ने वालों के लिए खाप की चेतावनी है कि उनकी ‘सात पुश्तों’ को दंड मिलेगा. एक अपुष्ट खबर के मुताबिक करनाल जिले की एक खाप ने टेलीविजन और रेडियो तक पर प्रतिबंध लगा रखा है.

कमाई का आसान जरिया

परंपराओं के इन तथाकथित पहरुओं द्वारा समान गोत्र के जोड़ों की हत्या तो आम बात है ही इसके अलावा इन्होंने अपनी इस भूमिका को कमाई का जरिया भी बना लिया है. सितंबर 2006 को पवन अपनी पत्नी कविता के साथ करनाल जिले के काटलेहरी गांव स्थित अपनी ससुराल गया था जहां अगले ही दिन कविता ने एक बेटे को जन्म दिया. दस दिन बाद बॉम्बक खाप ने घोषणा की कि लड़का और लड़की दोनों एक ही गोत्र के हैं इसलिए ये बच्चा अवैध है और उनके साथ नहीं रह सकता. पवन की साली उमा ने बताया, ‘दस दिन के बच्चे को खाप के सदस्यों ने जबरन छीन लिया.’ इसके बाद जो हुआ वो तो और भी शर्मनाक था. पंचायत की बैठक में कविता को बेरहमी से तब तक पीटा गया जब तक कि वो अपने पति के हाथ में राखी बांधने के लिए तैयार नहीं हो गई. यानी पति-पत्नी अब भाई-बहन हो गए थे. तीन महीने तक उनका बच्चा गायब रहा. खाप ने कहा कि बच्चा एक संतानहीन दंपत्ति को दे दिया गया है. पवन की मां बीरमती कहती हैं, ‘हमें पता लगा कि खाप ने 50,000 रूपए में बच्चे को बेच दिया था.’ जबर्दस्त हंगामे और मीडिया के हस्तक्षेप के बाद खाप थोड़ा नरम पड़ी और उनके बच्चे को वापस कर दिया गया, लेकिन खाप ने इसके बदले में भी पवन और कविता से 65,000 रूपए वसूले. ये जोड़ा अब मुंबई में रहता है और कभी भी अपने गांव वापस नहीं लौटना चाहता.

यद्यपि खापें अपने सम्मान और स्वाभिमान के सर्वोपरि होने का दावा करती हैं लेकिन अपने इस तथाकथित सम्मान का अपने फायदे के लिए सौदा करने से पहले वे शायद ही सोचती हों. 21 जुलाई को काद्यान खाप ने 23 वर्षीय रवींद्र और उसके परिवार पर एक लाख रूपए का जुर्माना और परिवार के 15 सदस्यों को स्थाई रूप से गांव से बहिष्कृत करने का फरमान सुनाया. ये झर जिले के धराना गांव की घटना है. रवींद्र (गहलावत गोत्र) ने शिल्पा (काद्यान गोत्र) से शादी की थी. दोनों के गोत्र अलग होने के बावजूद रवींद्र का परिवार काद्यान गोत्र के गांव में पीढ़ियों से रहता आया था इसलिए खाप ने उन्हें एक ही गोत्र का अंश मानकर उनकी शादी को अवैध घोषित कर दिया. काद्यान खाप के मुखिया छत्तर प्रधान ने परिवार को 72 घंटे के भीतर अपनी संपत्ति का निपटारा कर गांव से चले जाने या फिर मौत के लिए तैयार रहने का हुक्म सुना दिया. निर्धारित समयसीमा खत्म होने से कुछ घंटे पहले रवींद्र की 90 वर्षीय दादी बिरना का तहलका से कहना था, ‘मैंने रात-दिन अपने खेतों में काम किया है. तब जाकर खेतों को इतना बढ़ा पाई हूं. इस धरती पर अब मैं कहां जाऊं?’ रवींद्र की चचेरी दादी तो और ज्यादा बदहवास हैं. ‘वो केवल रवींद्र और उसकी बीवी को ही गांव-निकाला दे सकते थे. पर पूरा परिवार क्यों?’ वो पूछती हैं. पुलिस सुरक्षा हासिल होने के बावजूद रवींद्र के परिवार ने गांव छोड़ने का फैसला किया. जैसे ही उन्होंने घर छोड़ा उनके घर में पिंडारियों जैसी लूटपाट शुरू हो गई. उनके पशुओं को पत्थर मारे गए. तहलका से उनकी आखिरी मुलाकात के वक्त वो लोग अपना घर-बार सिर पर लादे रोहतक जिले के जुगना गांव की ओर जा रहे थे. चूंकि खाप का ये भी आदेश था कि रवींद्र के परिवार से किसी भी तरह का लेन-देन नहीं किया जा सकता इसलिए औने-पौने दामों में भी उनकी जमीन खरीदने की हिम्मत किसी की नहीं हुई. अब बेहद कीमती 53 एकड़ जमीन पर खाप का कब्जा है. 

पुलिस को ये सब किये जाने में कुछ भी गलत नजर नहीं आता. बेरी थाने के थानाध्यक्ष पूरन सिंह कहते हैं, ‘वो पड़ोस के गांव में संबंधियों से मिलने गए हैं. सबकुछ नियंत्रण में हैं.’  धराना गांव के निर्वाचित सरपंच जयवीर भी ये कहते हुए रवींद्र के परिवार का पक्ष लेने से इनकार कर देते हैं कि, ‘मैं समाज के कानूनों से ऊपर नहीं हूं. अगर समाज ने उन्हें बाहर करने और संपत्ति पर कब्जा करने का आदेश दिया है तो उन्हें  फैसला मानना पड़ेगा.’

मगर इस तरह की जमीन-मकान या उनसे मिलने वाला पैसा आखिर जाता कहां है? अखिल भारतीय आदर्श जाट महासभा के अध्यक्ष परमजीत बनवाला कहते हैं, ‘सारा पैसा सामाजिक कार्यों, मंदिरों और नई गोशालाओं के निर्माण में लगता है.’ जब उनसे पूछा गया कि इन गोशालाओं से होने वाली आमदनी कौन रखता है तो उनका जवाब था, ‘खाप सदस्यों के अलावा और कौन रखेगा?’

खापों को जबर्दस्त राजनीतिक संरक्षण भी प्राप्त है. चुनावों के दौरान खाप अपने पंसदीदा उम्मीदवार का चयन करती हैं और पूरी बिरादरी उसी को वोट देती है. ये जानकर कोई हैरानी नहीं होनी चाहिए कि बीते लोकसभा चुनाव के दौरान नरवाना जिले की 46 खापों ने एक सुर से बिना किसी झिझक हिंदू विवाह अधिनियम को खारिज कर दिया. उन्होंने ऐलान किया कि जो भी नेता वोट मांगने आएगा पहले उसे नए कानून का वादा करना होगा जिसमें समान गोत्र और एक ही गांव में विवाह को वर्जित किया जाए. खापों की ताकत का अंदाजा उस वक्त भी लगाया जा सकता था जब वेद पाल की हत्या के बाद हरियाणा के मुख्यमंत्री भुपिंदर सिंह हुड्डा ने ये कहते हुए हस्तक्षेप से इनकार कर दिया कि, ‘ये एक सामाजिक मसला है और समाज को ही इस पर फैसला करने का हक है.’ एक भी राजनीतिक पार्टी ने इसे सम्मान के नाम पर की गई हत्या और खाप की बर्बरता नहीं कहा. असंध के सामाजिक कार्यकर्ता राज सिंह चौधरी कहते हैं, ‘इस तरह के मामलों में पुलिस को भी कार्रवाई के लिए तैयार करना मुश्किल है क्योंकि वो खुद ही इन खापों में यकीन करती है.’

नतीजतन खापों के अत्याचार के खिलाफ कोई राजनीतिक आंदोलन भी सफल नहीं हो पाता. पूर्व पंचायती राजमंत्री मणि शंकर अय्यर कहते हैं, ‘ये पूरी तरह से अवैध हैं. खाप अलग-अलग जातियों के स्वघोषित ठेकेदार हैं जिन्होंने समय के साथ ही नैतिक ताकत भी हासिल कर ली है. उनके साथ सीधे टकराव करना तो मुश्किल है लेकिन सती प्रथा की तरह ही इसका भी उन्मूलन किया जा सकता है.’ 28 जुलाई को राज्यसभा में अपने लिखित बयान में गृहमंत्री पी चिंदबरम का कहना था, ‘सम्मान के नाम पर हो रही हत्याओं से हमें अपना सिर शर्म से झुका लेना चाहिए.’ उन्होंने ये भी कहा कि सरकार इस तरह के अपराध को अलग श्रेणी में डाल सकती है.

समाजशास्त्री रणबीर सिंह हरियाणा में खापों के प्रभुत्व को लेकर एक दिलचस्प राय देते हैं. अपने एक शोध पत्र में उन्होंने लिखा है, ‘जाट छोटे किसान थे, आर्थिक विकास की उन पर चौतरफा मार पड़ी. एक तो उन्हें हरित क्रांति का ज्यादा फायदा नहीं हुआ क्योंकि उनके पास छोटे-छोटे खेत थे, दूसरे वे आधुनिक पेशों में भी नहीं जा पाए क्योंकि उनके भीतर शिक्षा-दीक्षा का बहुत अभाव था. कई दूसरे पेशों में जाने में उनकी जातिगत श्रेष्ठता की भावना आड़े आ गई. उदारीकरण, निजीकरण और भूमंडलीकरण ने उनके लिए स्थितियां और दुरूह कर दीं. राजनीतिक नेतृत्व से उनके मोहभंग ने उन्हें आगे बढ़ाने की बजाए और पीछे धकेलने का काम किया.’

कहा जा सकता है कि जब तक कानून पूरी तरह से स्पष्ट नहीं होंगे, अपराधियों को दंड नहीं मिलेगा और साथ ही राजनीतिक नेतृत्व में इन मध्ययुगीन परंपराओं के उन्मूलन की इच्छा शक्ति नहीं होगी तब तक खाप पंचायतें अपराध, अज्ञानता और कट्टरता का जहरीला घालमेल बनी रहेंगी.