टीवी चैनलों से लेकर संसद तक में आजकल भारत और पाकिस्तान द्वारा शर्म-अल-शेख में जारी संयुक्त वक्तव्य पर गर्मागर्म बहसों का दौर जारी है. इस वक्तव्य के दो सबसे विवादित वाक्य हैं-
प्रधानमंत्री की नीयत पर शक करने की कोई वजह नहीं मगर ये भी सच है कि संयुक्त बयान भारतीय दृष्टि से एक बहुत बुरे लेखन और लापरवाही का नमूना है
1- ‘आतंकवाद पर कार्रवाई को समग्र वार्ता प्रक्रिया से नहीं जोड़ा जाना चाहिए और इन्हें एक साथ नहीं रखा जाना चाहिए.’ और
2- ‘प्रधानमंत्री गिलानी ने ये उल्लेख किया कि पाकिस्तान के पास बलोचिस्तान और अन्य क्षेत्रों में खतरे के बारे में कुछ जानकारियां हैं.’
जानकार साझा बयान को पाकिस्तान की बड़ी कूटनीतिक सफलता बता रहे हैं. उनका कहना है कि हमारे खिलाफ कुछ भी किये जाने पर भी यदि हम उससे बात करते रहेंगे तो ये तो पाकिस्तान को हमारे खिलाफ गतिविधियां चलाने का लाइसेंस देना हुआ. दूसरा, बलोचिस्तान के जिक्र का मतलब ये हुआ कि भारत में आतंकी गतिविधियों को लेकर जिस तरह के आरोप हम पाकिस्तान पर लगाते हैं, वैसे ही इल्जाम लगाने का मौका हमने भी संयुक्त वक्तव्य की थाली में सजा कर उसे दे दिया है.
मगर संसद में प्रधानमंत्री की सफाई ये थी कि पहले वाक्य का मतलब ये है कि वार्ता हो न हो, आतंकवाद पर कार्रवाई होती रहनी चाहिए और चूंकि बलोचिस्तान के मसले पर हमारी नीयत साफ है और ऐसा उन्होंने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री से कहा भी है, इसलिए उन्हें बातचीत से कोई गुरेज नहीं है.
अब यदि संयुक्त वक्तव्य के दोनों विवादित वाक्यों के आगे-पीछे भी देखें तो अर्थ बिल्कुल स्पष्ट हो जाता है. यदि पहले वाक्य को लें तो इससे ठीक पहले उसी पैरा में लिखा है कि ‘दोनों प्रधानमंत्रियों ने माना कि आगे बढ़ने का एक मात्र रास्ता संवाद ही है’ और वाक्य के ठीक बाद उसी पैरा में लिखा है कि ‘भारत पाकिस्तान के साथ बाकी बचे मसलों सहित सभी मसलों पर बातचीत के लिए तैयार है.’ स्पष्ट है कि जोर यहां बातचीत पर है, आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई पर नहीं.
वाक्य नंबर दो यानी बलोचिस्तान पर पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के पास जानकारियां होने के जिक्र से ठीक पहले संयुक्त वक्तव्य कहता है कि ‘दोनों देश भविष्य में किसी भी आतंकी हमले के बारे में सही समय पर, विश्वसनीय और कार्रवाई योग्य सूचना का आदान-प्रदान करेंगे.’ मगर संयुक्त वक्तव्य कहीं भी इस मसले पर हमारी नीयत साफ होने का जिक्र नहीं करता. ऐसा प्रतीत होता है कि सूचनाएं साझा करने पर सहमति के तुरंत बाद पाकिस्तान ने बलोचिस्तान और ‘अन्य क्षेत्रों’(कौन से अन्य क्षेत्र?) पर हमें सूचना दे डाली और हम उन्हें तुरंत नकारने की बजाय उन पर विचार कर रहे हैं.
हालांकि प्रधानमंत्री की नीयत पर शक करने की कोई वजह नहीं मगर ये भी सच है कि संयुक्त बयान भारतीय दृष्टि से एक बहुत बुरे लेखन और लापरवाही का नमूना है. अगर हम ये मानते हैं कि पाकिस्तान से बातचीत के अलावा हमारे पास कोई और चारा नहीं है और पाकिस्तान मुंबई हमलों में शामिल आतंकियों के खिलाफ अपर्याप्त ही सही मगर कदम उठा रहा है और वो आगे भी ऐसा करता रहे इसके लिए उसे प्रोत्साहित करने और वहां की लोकतांत्रिक सरकार के हाथ थोड़ा मजबूत करने की जरूरत है तो इस दिशा में ये साझा बयान सही तरीके से प्रयास करता नहीं दिखाई देता.
संजय दुबे