संपूर्णता को अभ्यासरत

हर व्यक्ति एक महिला को बचाने के लिए चाकुओं से लैस चेन खींचने वाले एक पूरे के पूरे गिरोह को धराशायी नहीं कर सकता.

मगर हरेक के पास मार्शल आर्ट में ब्लैक बैल्टें भी तो नहीं होतीं.

पर ज़्यादातर लोगों के दो पैर होते हैं.

मगर पूरन के पास तो सिर्फ एक ही है.

उत्तर प्रदेश के रामपुर में जन्मे पूरन जब केवल पांच वर्ष के ही थे कि अपने सहपाठियों को एक ट्रक की चपेट में आने से बचाने के प्रयास में अपनी ही दांयीं टांग गवां बैठे. 24 साल के बाद वो कहते हैं कि हर तरह की प्रतिकूल परिस्थितियों ने उन्हें जो वो आज तक हासिल कर चुके हैं वैसा करने की प्ररणा दी. हार शरीर की नहीं दिमागी होती है और मैंने अपने दिमाग को कभी हारा हुआ महसूस नहीं होने दिया.

दुर्घटना के कुछ समय बाद ख़ुद को साबित करने की धुन में पूरन ने मार्शल आर्ट सीखने का फैसला किया. मेरे स्कूल के कोच ने मुझे प्रशिक्षित करने से इनकार कर दिया. जब मैं उनके पास पहुंचा तो मुझसे पूछा गया कि क्या मैं अपना दूसरा पैर भी खोना चाहता हूं. मैने इसे चुनौती की तरह लिया और खुद ही फिल्मों और किताबों के ज़रिये सीखना शुरू कर दिया., वो बताते हैं.

क्योंकि पूरन नहीं जानते थे कि किस चीज़ का कितना अभ्यास करना है इसलिए उन्होंने न केवल ज़रूरत से बहुत ज़्यादा अभ्यास किया बल्कि जूडो, कराटे, कुंगफू, तोइक्वाडों समेत मार्शल आर्ट्स की छ-छ विधाओं में निपुणता हासिल कर ली. लेकिन इन विधाओं की प्रतिस्पर्धाओं में भाग लेना इन्हें सीखने से ज़्यादा टेढ़ी खीर साबित हुआ. मैंने एक पैर के साथ जीना काफी पहले सीख लिया था मगर लोग बजाए इसके कि मैं अपने एकमात्र पैर से क्या-क्या कर सकता हूं मेरे कटे हुए पैर के बारे में ही जानना चाहते थे, पूरन कहते हैं.

लेकिन हर तरह की प्रतिकूल परिस्थितियों के बाद भी पूरन ने मार्शल आर्ट की विभिन्न विधाओं के राष्ट्रीय स्तर के करीब बीस मुकाबले अपने नाम कर लिए. साल 2001 में एक साउथ कोरियन कोच ने पूरन को एक ऐसी ही प्रतियोगिता के दौरान देखा. उनकी कला से प्रभावित हो उसने उनके साउथ कोरिया जाने और आगे के प्रशिक्षण का बंदोबस्त कर दिया. विदेश में एक साल के कठिन प्रशिक्षण के बाद पूरन ने असंभव को संभव कर दिखाया. उन्होने जूडो, कराटे, कुंगफू और ताइक्वांडो सभी में इनके सबसे ऊंचे मुकामों में से एक ब्लैक बैल्ट फिफ्थ डैन हासिल कर लिया.

मगर इतना कुछ करना भी पेट भरने के लिए काफी साबित नहीं हो पा रहा था. स्वदेश वापसी के बाद पूरन कुछ-कुछ निरुद्देश्य सा जीवन बिता रहे थे कि तभी एक महिला को लुटने से बचाने की घटना ने उन्हें दिल्ली पुलिस की निगाहों में ला दिया. उन्हें आला अफ़सरों द्वारा दिल्ली पुलिस को चुस्त-दुरुस्त बनाने की ज़िम्मेदारी संभालने को कहा गया. पुलिस को प्रशिक्षित करने के काम को पूरन राजधानी में बढ़ते अपराधों को कम करने में अपने योगदान के रूप में देखते हैं. पुलिस को ट्रेनिंग देना अपराधों से अप्रत्यक्ष रूप से निपटने जैसा है., वो गर्व के साथ बताते हैं. इसी दौरान पूरन को साहसिक कारनामों के लिए दिये जाने वाले देश के प्रतिष्ठित रेड एंड व्हाइट वीरता पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया.

इसके बाद जो कुछ हुआ वो किसी परी कथा को पूरा करने जैसा था. नैशनल ज्यौग्राफिक ने उनके साहसिक कारनामे को सुन उन्हें सात अंकों वाली मार्शल आर्ट की एक श्रंखला सैवन डैडली आर्ट्स में एक महत्वपूर्ण भूमिका देने का फैसला किया. इस श्रंखला में पूरन ने मशहूर फिल्म स्टार अक्षय कुमार के प्रशिक्षक की भूमिका निभाई. प्रोग्राम ने अप्रत्याशित सफलता अर्जित की. मैंने एक अखबार में पढ़ा था कि कैसे इस शो ने मार्शल आर्ट्स के संस्थानों में प्रशिक्षुओं की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि कर दी और इसका श्रेय निस्संदेह पूरन को जाता है. लोग शायद उन्हें देख कर ये सोचते थे कि अगर पूरन एक टांग खोकर ऐसा कर सकते हैं तो वो दोनों पैरों के साथ ऐसा क्यों नहीं कर सकते?”, कहना है श्रंखला के निर्देशक योगेश साहू का.

भाग्य पूरन के साथ था. मनाली में सैवन डैडली आर्ट्स की शूटिंग के दौरान वो फिल्म निर्देशक अनिल शर्मा के संपर्क में आए जो उस समय अपनी फिल्म अब तुम्हारे हवाले वतन साथियोबना रहे थे. पूरन की प्रतिभा से प्रभावित हो शर्मा ने न केवल फिल्म में उन्हें एक संक्षिप्त सा रोल दिया बल्कि उन्हें प्रतिष्ठित फाइट मास्टर टीनू वर्मा का सहायक भी बना दिया. जिस तरह के करतब उन्होंने दिखाए उसने मुझे भौचक्का कर दिया”, वर्मा याद करते हैं. तब से अब तक पूरन टीनू और महेन्द्र वर्मा के साथ बिग ब्रदर, टॉम डिक एंड हैरी और अपने सरीखी कई फिल्मों में काम कर चुके हैं.

घर पर पांच सालों से उनके सुख-दुख की सहभागी रहीं उनकी पत्नी मंजू उन्हें किसी हीरो से कम नहीं आंकतीं. वो कहती हैं,एक साधारण व्यक्ति जो अट्ठाईस जन्मों में भी नहीं पा सकता वो उन्होंने सिर्फ अट्ठाईस सालों में ही हासिल कर लिया है…उनके जैसा इस दुनिया में कोई है ही नहीं लेकिन चैन से बैठना और अपनी पुरानी उपलब्धियों के सहारे जीना पूरन को रास नहीं आता. वो एक ऐसी फिल्म बनाने की तमन्ना रखते हैं जिसका स्टंट्स के मामले में पूरी दुनिया में कोई भी सानी न हो. इसके अलावा वो जितने संभव हों उतने, शारीरिक रूप से अक्षम व्यक्तियों की, उनके सपनों को साकार करने में हरसंभव मदद भी करना चाहते हैं.

उनकी दृढ़ता और उपलब्धियों को देखकर उनके द्वारा ऐसी किसी भी आकांक्षा के पाले जाने और उसे पूरा करने को दूर की कौड़ी मानना सरासर ग़लत होगा.

संजय दुबे