असली संकट की बेहतरीन फ़िल्म: संकट सिटी

फिल्म  संकट सिटी

निर्देशक पंकज आडवाणी

कलाकार  केके मेनन, अनुपम खेर, रिमी सेन, चंकी पांडे, यशपाल

पैसे के पीछे भागते दर्जन भर मुख्य किरदारों के कमीनेपन और लालच के पीछे यह गीता के ‘न कुछ खोना है, न कुछ पाना है वाले दर्शन की कहानी है

सब उम्मीदें डूब जाने के बाद के के निराश बैठे हैं. बैकग्राउंड में ढलता हुआ सूरज है. के के हाथ बढ़ाकर उसे छूते हैं और बुझा देते हैं. यह किसका कमाल है? सिनेमेटोग्राफर का, एडिटर का, अभिनेता का, निर्देशक का या फ़िल्म के पीछे छिपी हुई उस कविता का, जिसमें मुम्बई के बाहर कचरे की पहाड़ियों पर एक दाढ़ी वाला साधुनुमा आदमी बन्दूक लेकर बैठा है और उसे ही अपना घर बता रहा है? जब नोटों से भरा दो करोड़ का बैग फट जाता है और हवा में राख की तरह उड़ते नोटों को बटोरने के लिए कचरा बीनने वाले बच्चे दौड़ रहे हैं तो यह दृश्य अपने आप में पूरा समाजवाद है. हमारे समय के सबसे अच्छे सम्भावित सुखांतों में से एक.

हैंडहेल्ड कैमरा से फ़िल्माए गए बहुत सारे दृश्य संकट सिटी को आपके इतना क़रीब ला देते हैं कि आप भी फ़िल्म में किसी पात्र की तरह शामिल हो जाते हैं. शुरुआत में दर्शकों को हँसाने की कुछ नाकाम और झुंझलाहट पैदा करने वाली कोशिशों को छोड़ दिया जाए तो संकट सिटी एक शानदार फ़िल्म है, बशर्तें आप इससे आसान कॉमेडी की उम्मीद न करें. फिर तो ऐसा होगा कि अपने वक़्त पर यह आपको इतनी देर तक भी हँसाएगी कि कमाल की गति से बढ़ती इस फ़िल्म में हँसी के चक्कर में आपका एकाध अगला दृश्य छूट जाएगा. लेकिन इसे कॉमेडी कहना ऐसा ही है जैसे पेड़ को देखकर कहना कि यह फल है और तने, जड़, पत्तियों को भूल जाना. एक ड्राइवर का अपनी चोर दोस्त को शरमाकर बताना कि उसने गर्लफ्रेंड कर ली है और एक सस्ती वेश्या से उसके मासूम प्रेम पर आप मोहित हो जाते हैं. इतने कि जब अपनी प्रेमिका के अपमान का बदला लेने के लिए वह अपने अमीर मालिक को मार डालना चाहता है तो उसके सीमित रोल के बावज़ूद आप उसे दिल खोलकर कहानी का नायक स्वीकार कर लेते हैं.

यह चोरों की कहानी है जिनमें अय्याश धर्मगुरु भी हैं और बी ग्रेड फ़िल्म प्रोड्यूसर भी. पैसे के पीछे भागते दर्जन भर मुख्य किरदारों के कमीनेपन और लालच के पीछे यह गीता के न कुछ खोना है, न कुछ पाना है वाले दर्शन की कहानी है. यह मुम्बई की कहानी है मगर लाइफ इन ए मेट्रो नहीं है. महानगरों के असल संकट में फँसे लोग पत्नियाँ बदलने वाले अमीर एग्ज़ीक्यूटिव नहीं हैं और न ही व्यभिचार असली समस्या है. असली संकट मौत का वह भय है जो यशपाल शर्मा बख़ूबी जी गए हैं. असली संकट ख़ूबसूरत और अमीर चेहरों के पीछे छिपी वीभत्स क्रूरता है, जिससे बचने के लिए बहुत सारे भावुक गरीब भी चोर और हत्यारे हो गए हैं.

गौरव सोलंकी