2009 के आम चुनावों से ठीक पहले ज्योतिषियों और भविष्यवक्ताओं की मानो चांदी हो गई थी और उनके कहे-सुने पर चलने वाले नेताओं में भी मानो होड़ सी मची हुई थी मसलन कोई गायों को तो कोई भिखारियों को खाना खिला रहा था, कुछ बकरियों की बलि दे रहे थे, कोई महीने भर के भीतर 200 हवन करने में लगा हुआ था तो कोई एक विशेष रंग के कपड़े दान कर रहा था. बहरहाल नतीजे सामने आ चुके हैं और ढेर सारी चर्चा बटोर चुके भविष्य की रेखाएं पढ़ने में माहिर इन खिलाड़ियों की चमक अब फीकी पड़ गई है. (अपवाद सिर्फ ममता बनर्जी के अंकशास्त्री रहे जिनकी सलाह पर ममता ने अंग्रेजी स्पेलिंग में एक अतिरिक्त ए जोड़ा और बंगाल में लाल झंडे की लुटिया डुब गई).
दिल्ली में रहने वाले ज्योतिषशास्त्री आरबी धवन को अचानक ही अहसास हो रहा है कि अपनी भविष्यवाणियों के लिए उन्होंने ज्योतिष की गलत शाखा को चुन लिया था
‘जीवन में किसी चीज का पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता.’ गलत पूर्वानुमानों के बाद गंभीर चिंतन में डूबे बेजान दारूवाला दार्शनिक अंदाज में कहते हैं, ‘अगर हम गलत सिद्ध होते हैं तो हमें ये मानना चाहिए कि आखिर हम भी इंसान हैं.’
चुनाव नतीजों से पहले तहलका से बात करते हुए दारूवाला ने बताया था कि नतीजे 23 जून से पहले स्पष्ट नहीं होंगे. कांग्रेस के जीतने की स्थिति में प्रधानमंत्री के तौर पर राहुल गांधी का भविष्य उनके शपथ ग्रहण समारोह पर निर्भर होगा और अगर आडवाणी सत्ता में आते हैं तो उनकी पारी ज्यादा लंबी नहीं चलेगी क्योंकि इस देश की किस्मत में कांग्रेस का शासन लिखा है. ‘मेरी भविष्यवाणियां पूरी तरह से सही नहीं रहीं. मैं कांग्रेस के लिए और ज्यादा कठिनाइयों की उम्मीद कर रहा था,’ वो स्वीकार करते हैं, ‘फिर भी मैं कहता रहा था कि कांग्रेस ही सत्ता में आएगी. मैं 85 फीसदी सही था’.
इस मामले में चेन्नई के भविष्यदृष्टा सेल्वी अपने व्यावहारिक ज्ञान का बेहद चतुर प्रदर्शन करते नजर आते हैं. श्रीलंका के पूर्व प्रधानमंत्री रनिल विक्रमसिंहे जैसे हाई प्रोफाइल लोगों का भविष्य बताने वाले सेल्वी ने बताया था कि प्रधानमंत्री का पद किसी ऐसे व्यक्ति के पास जाएगा जो इस दौड़ में नहीं होगा जैसे कि कोई दलित, ईसाई या मुस्लिम. जब तहलका ने उनसे दोबारा संपर्क किया तो वो छूटते ही बोल पड़े, ‘मेरा कहना था कि प्रधानमंत्री का पद किसी अल्पसंख्यक के पास ही जाएगा.’
दिल्ली में रहने वाले ज्योतिषशास्त्री आरबी धवन को अचानक ही अहसास हो रहा है कि अपनी भविष्यवाणियों के लिए उन्होंने ज्योतिष की गलत शाखा को चुन लिया था. उन्होंने भविष्यवाणी की थी कि भाजपा सबसे ज्यादा सीटें जीतने वाली पार्टी बनेगी मगर वो गठबंधन की सरकार बनाने से इनकार कर देगी जिसकी वजह से पहले तीसरे मोर्चे की एक अल्पायु सरकार बनेगी और इसके बाद आडवाणी प्रधानमंत्री बनेंगे. उन्होंने तो ये भी कहा था कि एआर अंतुले को राष्ट्रपति मनोनीत किया जा सकता है. अंतुले के मामले में धवन अभी भी अपनी भविष्यवाणी पर कायम हैं.
उनका ये भी मानना है कि पूरे देश की सम्मिलित कुंडली व्यक्तिगत कुंडली पर भारी पड़ जाते हैं. ‘मेरी भविष्यवाणी एक व्यक्ति की कुंडली पर आधारित थी. आडवाणीजी की कुंडली कह रही थी कि वो प्रधानमंत्री बन सकते हैं पर हो सकता है किसी और की कुंडली उनसे भी ज्यादा ताकतवर रही हो,’ धवन कहते हैं. ‘बड़े पैमाने पर कोई सटीक भविष्यवाणी करने के लिए ज्योतिषशास्त्र की एक अन्य शाखा का उपयोग किया जा सकता है जिसे ‘संहिता’ कहते हैं, इसमें सम्मिलित गुणों को ध्यान में रखा जाता है. भारत में बहुत कम लोग इसका अध्ययन करते हैं. मैंने भी संहिता का उपयोग नहीं किया इसीलिए मेरी चुनावी भविष्यवाणियां गलत हो गईं,’ वो कहते हैं.
दूसरे भविष्यवक्ता काफी सावधानी बरत रहे हैं. दिल्ली के ही एक और भविष्यवक्ता अजय भाम्बी ने गठबंधन सरकार के लक्षण देखे थे जो तीन सालों से ज्यादा चलती नहीं दिख रही थी. ‘मैंने जो कहा था उसे बदल नहीं सकता हूं. पर इस समय मैं कुछ भी नहीं कहूंगा क्योंकि मैं फिर से गलत सिद्ध हो सकता हूं’ इस बारे में पूछने पर भाम्बी कहते हैं.
ऐसा लगता है कि देश की बड़बोली भाविष्यक्ताओं की टोली को मुंह की खानी पड़ी है, पर सवाल ये उठता है कि क्या इसके बाद भी 2014 के चुनावों में राजनेता इन चक्करों से उबर पाएंगे?