माटी के सुरों की साधिका

2008 की सर्दियों में एक फिल्म रिलीज हुई जिसके संगीत में घुली ठेठ पंजाब और हरियाणा की महक ने सबका ध्यान अपनी तरफ खींचा. ये फिल्म थी ओए लकी लकी ओए और इसमें संगीत दिया था 24 साल की स्नेहा खानवलकर, जगत बाई और ऊषा खन्ना के बाद स्नेहा, बॉलीवुड के इतिहास में सिर्फ तीसरी महिला संगीतकार हैं. ये बात उन्हें भी कुछ अजीब लगती है क्योंकि उनका मानना है कि फिल्म इंडस्ट्री महिलाओं के लिए आदर्श जगह है.

 ‘अपनी यात्रा के दौरान मुझे जो लोग मिले उनकी मेरी उम्र और शादी की योजनाओं में ज्यादा दिलचस्पी थी.’इंदौर के एक मराठी परिवार में जन्मी स्नेहा इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने मुंबई आई थीं. पर 18 साल की उम्र में ही उन्हें अहसास हो गया कि इंजीनियरिंग की बजाय उनकी दिलचस्पी फिल्मी दुनिया में ज्यादा है. वे बताती हैं, ‘मेरी मां के परिवार में ग्वालियर घराने से ताल्लुक रखने वाले संगीतकार रहे हैं इसलिए मैंने छोटी उम्र से ही संगीत सीखना शुरू कर दिया था. परिवार में कोई भी आयोजन होता तो हमसे गाना गाने को कहा जाता था इसलिए कुछ समय तक मैं संगीत की काफी विरोधी भी रही. मगर मुझे फिल्में बहुत पसंद थीं. स्कूल बस में जाते हुए मेरे दिमाग में रंगीला का संगीत गूंजता रहता था. मैं कल्पना करती जैसे मैं उर्मिला जैसी ड्रेस पहने हेलीकॉप्टर से स्कूल पहुंची हूं. जब मैंने संगीतकार बनने का फैसला किया तो इसके बारे में अपने दोस्तों को कुछ नहीं बताया. दरअसल मेरी योजनाएं कई बार बदलती रहती थीं.’

स्नेहा को सबसे पहला मौका मिला फिल्म हासिल से सुर्खियों में आए निर्देशक तिगमांशु धूलिया के साथ जो द किलिंग नाम की फिल्म बना रहे थे. मगर ये प्रोजेक्ट कुछ समय बाद ठंडे बस्ते में चला गया. इसके बाद उन्होंने रुचि नारायण की फिल्म कल में संगीत दिया. फिर अचानक किस्मत उन पर मेहरबान हुई और उन्हें रामगोपाल वर्मा कैंप की फिल्म गो मिल गई. जब स्नेहा को पता चला कि खोसला का घोंसला के निर्देशक अपनी नई फिल्म के लिए संगीतकार की तलाश में हैं तो उन्होंने अपनी किस्मत आजमाने की सोची. उन्होंने बनर्जी को इतना परेशान कर दिया कि वे स्नेहा से मिलने और फिल्म के बारे में बात करने पर सहमत हो गए. बनर्जी उनसे प्रभावित हुए और इस तरह स्नेहा को मौका मिल गया. उन्होंने सोचा कि वे बिल्कुल ही अलग तरह का संगीत खोजेंगी जो फिल्म के लिए प्रासंगिक हो. इसके लिए उन्होंने उत्तर भारत के ग्रामीण इलाकों की खाक छानने की सोची.

मगर ये उनके लिए बड़ा ही दिग्भ्रमित करने वाला अनुभव रहा. जैसा कि स्नेहा कहती हैं, ‘कहीं हमें बिल्कुल कूड़ा सुनने को मिलता और कभी-कभी कोई असाधारण चीज सुनाई देती जिससे हम अभिभूत हो जाते जैसे कि देसराज लखानी का संगीत जिन्होंने फिल्म में जुगनी नामक गाना गाया था.’

स्नेहा आगे बताती हैं, ‘अपनी यात्रा के दौरान मुझे जो लोग मिले उनकी मेरी उम्र और शादी की योजनाओं में ज्यादा दिलचस्पी थी.’ उन्होंने हरियाणा के गांवों में रात में होने वाली कई रागिनी प्रतियोगिताएं देखीं. वे कहती हैं, ‘मेरे मन में ख्याल आता था कि काश मुझमें गायब होने की शक्ति होती क्योंकि वहां पर मैं अकेली लड़की होती थी.’

स्नेहा ने जो संगीत तैयार किया उसमें लोक और आधुनिक संगीत की कई परतें थीं. उन्होंने लोकगायकों का बड़ी खूबसूरती से इस्तेमाल किया. 72 साल के देसराज लखानी से उन्होंने ठेठ पंजाबी जुगनी गवाया तो 11 साल के राजबीर से रागिनी में डूबा तू राजा की राजदुलारी.

अपने प्रयोगों के लिए काफी तारीफ बटोरने वाली स्नेहा चाहती हैं कि बॉलीवुड की पहचान रही गानों की पारंपरिक शैली(सॉन्ग एंड डांस सीक्वेंस) भी बरकरार रहे. वे उत्साह के साथ बताती हैं कि इंडस्ट्री में उनके जैसे युवा संगीतकारों के लिए अथाह संभावनाएं हैं और अगर आपमें प्रतिभा है तो आपको कोई नहीं रोक सकता.