साठ साल पहले की बात है. देश आजाद होने वाला था. तारीख तय हुई थी 14 अगस्त. इस दिन भारत और पाकिस्तान नाम के दो देशों का जन्म होना था. मगर कुछ ज्योतिषियों ने जवाहर लाल नेहरू को चेतावनी दी कि किसी देश के जन्म के लिए 14 अगस्त का दिन शुभ नहीं है. नेहरू ने आजादी के समझौते पर दस्तखत करने का समय आधा घंटा आगे बढ़ा दिया और इस तरह देश 15 अगस्त 1947 की रात ठीक 12 बजे वजूद में आया.
बोगोला देवी मंदिर के मुख्य पुजारी पंकज शर्मा इस बात की पुष्टि करते हैं कि सभी पार्टियों के नेता यहां शक्ति का वरदान मांगने आते हैं और कई ऐसे भी होते हैं जो आधी रात के बाद साधना करते हैं किस्सा कितना सा है ये तो पक्के तौर पर कोई नहीं बता सकता मगर ये जरूर है कि केवल एक तिथि के अंतराल पर पैदा हुए भारत और पाकिस्तान का सफर बीते साठ साल के दौरान असाधारण रूप से अलग रहा है. ज्योतिषियों की मानें तो सिर्फ आधा घंटा पहले अस्तित्व में आने से पाकिस्तान की जन्म कुंडली बदल गई और इसलिए उसे लगातार ग्रह-नक्षत्रों का प्रकोप झेलना पड़ रहा है.
और बात अगर सच्ची है तो समझना मुश्किल नहीं कि क्यों चुनाव आते ही नेता ज्योतिष और कर्मकांड की तरफ भागने लगते हैं. इन दिनों भी ऐसा ही हो रहा है. ज्योतिषियों की भारी मांग है. वोटरों को लुभाने से बड़ी चिंता कई नेताओं को इस बात की है कि भगवान और ग्रह नक्षत्रों को कैसे प्रसन्न किया जाए. कहीं बकरों की बलि दी जा रही है तो कहीं 1000 पंडित अनुष्ठान में आहुति दे रहे हैं. कोई उम्मीदवार इस बात का ध्यान रख रहा है कि नामांकन के वक्त उस पर सूरज की रोशनी पड़ रही हो तो कोई अपनी कलाई घड़ी पर नजरें गड़ाए ठीक उस मिनट का इंतजार कर रहा है जब उसे नामांकन दाखिल करना है. भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी ने इसके लिए दोपहर 12:39 का वक्त चुना क्योंकि कहा जाता है कि ये वही समय है जब राम ने रावण का वध किया था. उधर, एक नेता ने चुपके से अपने नाम की अंग्रेजी वर्तनी में एक अतिरिक्त ‘ए’ जोड़ लिया है ताकि उनके सितारे चमक जाएं. कहीं गरीबों को भोजन कराया जा रहा है तो कहीं भैरों बाबा और मां काली के मंदिर में शराब का भोग लगाकर उसे प्रसाद के रूप में भिखारियों में बांटा जा रहा है. ज्योतिषी नेताओं को बता रहे हैं कि चुनाव कार्यालय या मंदिर में प्रवेश करते हुए पहले कौन सा कदम भीतर रखना है और नेता किसी कठपुतली की तरह ऐसा ही कर रहे हैं. बल्कि देखा जाए तो कई नेताओं के तो हर कदम पर ही ज्योतिष और कर्मकांड का असर दिख रहा है.
चटख केसरिया कुरता पहने और माथे पर लंबा टीका लगाए आचार्य राज ज्योतिषी शुक्ला दिल्ली स्थित कांग्रेस मुख्यालय 24 अकबर रोड में नजर आ रहे हैं. उनका यहां दिखना आश्चर्य है क्योंकि उनके मुताबिक भाजपा के पूर्व महासचिव संजय जोशी की तरफ से उन्हें 2006 में पार्टी का राजगुरू मनोनीत किया गया था. शुक्ला कहते हैं, ‘भाजपा के लोगों को मैं पसंद आया क्योंकि मैं कट्टर हिंदुत्व की बात करता था.’
मगर अब शुक्ला अपनी सलाह को सिर्फ भाजपा तक सीमित नहीं रखते. वे ‘दलगत ज्योतिष’ से ऊपर उठ चुके हैं. चुटकी लेते हुए वे कहते हैं, ‘कोई नेता नहीं जानता कि मैं और कहां-कहां जाता हूं.’ शुक्ला बताते हैं कि पिछले दो महीनों में वे 40 सांसदों के लिए पूजाएं कर चुके हैं जिनकी अवधि दो से लेकर 12 घंटे तक रही है. पूजा कितनी बड़ी हो ये इस बात पर निर्भर करता है कि उम्मीदवार के सितारे कितने कुंद और इरादे कितने बुलंद हैं.
कुछ महत्वाकांक्षी नेता तो एक कदम आगे जाकर अपने राजनीतिक प्रतिद्वंदियों की कुंडली ज्योतिषियों के पास लेकर चले आते हैंआस्था और अंधविश्वास के पैमाने पर नेता कहां ठहरते हैं इस बारे में उनसे तो कुछ जान पाना बड़ा मुश्किल है मगर 2004 में बिजनेस इंडिया नामक पत्रिका ने एक अध्ययन कर बताया था कि भारत में ज्योतिष करीब 40,000 करोड़ रुपये का कारोबार है और आम चुनाव के दौरान इस आंकड़े में 600 करोड़ रुपये की बढ़ोतरी हो जाती है.
उपाय कैसे कैसे
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कहा जाता है कि तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष ममता बनर्जी ने हाल ही में अपने असिस्टेंट के जरिए मशहूर अंकशास्त्री श्वेता जुमानी से ये जानने के लिए संपर्क किया कि माकपा से किस तरह पार पाया जाए. जुमानी ने उन्हें सलाह दी कि वे अपने नाम की अंग्रेजी वर्तनी में एक और ‘ए’ जोड़ दें. प. बंगाल में हालात जिस तरह से बदल रहे हैं उससे लगता है कि चुनावों में ममता वाम के लिए बड़ा सिरदर्द साबित हो सकती हैं.
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पिछले साल जब परमाणु समझौते पर संसद में घमासान मचा था और इस पर होने वाले विश्वास मत में सरकार के गिरने की संभावनाएं तक बन गई थीं तो समाजवादी पार्टी के एक विधायक ने सरकार के ऊपर मंडरा रहे संकट को टालने के लिए 302 बकरियों और 17 भैंसों की बलि दे डाली. विधायकों की खरीद-फरोख्त के साथ मिलकर ये कुर्बानी काम कर गई.
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एक वक्त था जब दिल्ली में जालंधरी बाबा का जलवा हुआ करता था. बाबा के दरवाजे पर नेताओं की भीड़ लगी रहती थी जो उन्हें अपना गुरू मानते थे और हर काम उनकी सलाह से ही करते थे. बाबा के भक्त कहते हैं कि अगर कोई बाबा से करीब से जुड़ा हो तो उसे ये बताने की जरूरत भी नहीं होती थी कि वह क्या चाहता है. प्रणव मुखर्जी और लालकृष्ण आडवाणी जैसे बड़े नेता कई मौकों पर उनसे सलाह लेने के लिए आते थे. पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ति ने भी मुख्यमंत्री के रूप में अपने पिता का कार्यकाल बढ़ाने के लिए उनसे मदद मांगी थी. राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष शरद पवार ने भी उनसे अपने कैंसर के इलाज के बारे में पूछा था. बाबा अब इस दुनिया में नहीं हैं.
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तमिलनाडु की राजनीति की बात की जाए तो यहां एआईएडीएमके की मुखिया जयललिता पार्टी से जुड़ी हर बात पर ज्योतिष का ख्याल रखती हैं. एक वरिष्ठ पार्टी नेता ने तहलका को बताया कि जिन लोगों की लोकसभा चुनाव लड़ने की इच्छा थी उन सभी ने अपने आवेदन के साथ अपनी एक जन्मकुंडली भी जमा की थी. इस नेता का कहना था, ‘किसी निर्वाचन क्षेत्र के लिए संभावित उम्मीदवारों में से किसी एक का नाम तय करने के लिए अध्यक्ष को जन्मकुंडली से मदद मिल सकती है.’ राजनीतिक टिप्पणीकार आर बालसुब्रमण्यम कहते हैं, ‘ज्योतिष में अपने विश्वास को लेकर जयललिता में कोई झिझक नहीं है.’ 20 अप्रैल को एआईएडीएमके सभी 23 लोकसभा उम्मीदवारों ने एक साथ दोपहर 12.20 से 1.50 बजे के बीच ‘खास समय में’ नामांकन दाखिल किया. हरे रंग के प्रति जयललिता का लगाव जगजाहिर है. पोएस गार्डन स्थित अपने घर से निकलते हुए वे इस बात का ख्याल रखती हैं कि उनकी कार घर के पास बने भगवान वेंकटेश्वर के मंदिर के सामने से जरूर गुजरे. बताया जाता है कि एक बार जयललिता समर्थकों को संबोधित करने जा रही थीं तो उन्होंने पाया कि एक मंदिर उनके बाईं तरफ पड़ रहा है और भीड़ दाईं तरफ. उन्होंने फौरन यू टर्न लिया ताकि मंदिर दाईं तरफ हो और भीड़ बाईं तरफ और तब जाकर वे सहज हो पाईं.
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1992 के मुंबई दंगों में दोषी करार दिए गए शिवसेना नेता गजानन किरीटकर ये जानने के लिए ज्योतिषियों के पास जा पहुंचे कि उत्तर-पश्चिम मुंबई से पर्चा दाखिल करने के लिए तय दिनों में कौन सा दिन ऐसा होगा जब चंद्रमा अपनी पूर्ण या अधिकतम कला में हो. उम्मीद की जानी चाहिए कि उनका भाग्य राजकुमार पटेल की तरह नहीं होगा. गौरतलब है कि मध्यप्रदेश में विदिशा से कांग्रेस के उम्मीदवार पटेल को उनके ज्योतिषी ने बताया था कि वे अपना नामांकन बिल्कुल आखिरी वक्त पर भरें. दुर्भाग्य से तकनीकी कारणों की वजह से उन्हें कुछ अतिरिक्त दस्तावेज लेने के लिए घर वापस जाना पड़ा और जब तक वे वापस नामांकन केंद्र पर आए तब तक इसकी समय सीमा खत्म हो चुकी थी. शायद सुषमा स्वराज के ज्योतिषी बेहतर रहे होंगे क्योंकि पटेल के अयोग्य घोषित होने से विदिशा में उनके सामने कोई चुनौती नहीं रह गई थी.
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गुजरात में एक बड़े नेता ने एक विशेष यज्ञ के लिए आसाराम बापू की मदद मांगी है जो 30 अप्रैल को उनके घर पर किया जाएगा. शायद ऐसा करने की प्रेरणा उन्हें अपने मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी से मिली होगी जिनके बारे में कहा जाता है कि भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए उन्होंने 17 पुजारियों से रुद्राभिषेक करवाया था.
जाने-माने ज्योतिषी बेजान दारूवाला की वेबसाइट गणोशस्पीक्सडॉटकॉम के सीईओ हेमांग अरुण पंडित कहते हैं, ‘सभी इसमें यकीन रखते हैं पर कई इसे सार्वजनिक तौर पर स्वीकार नहीं करते.’ दारूवाला कहते हैं, ‘देश भर से कई लोग रोज ही मेरे पास आते हैं और नामांकन दाखिल करने की सबसे शुभ तारीख पूछते हैं. वे ये भी जानना चाहते हैं कि उनके प्रतिद्वंदियों ने मुझसे क्या सलाह ली है.’
राजस्थान में अजमेर शरीफ दरगाह पर वसे तो सालभर ही श्रध्दालुओं का तांता लगा रहता है मगर चुनाव के दिनों में इस भीड़ में नेता भी शामिल हो जाते हैं
कुछ महत्वाकांक्षी नेता तो एक कदम आगे जाकर अपने राजनीतिक प्रतिद्वंदियों की कुंडली ज्योतिषियों के पास लेकर चले आते हैं. उत्तर प्रदेश में सक्रिय ज्योतिषी पंडित रमेश दुबे तहलका से कहते हैं, ‘उत्तर प्रदेश में एक विरोधी पार्टी ने मुझसे मायावती की कुंडली पढ़ने के लिए कहा.’
एक और मशहूर ज्योतिषी अजय भांबी कहते हैं, ‘सभी किसी न किसी तरह जीतना चाहते हैं और वे सबसे ज्यादा परेशान चुनावों से पहले रहते हैं.’ इन दिनों भांबी से सलाह लेने वालों की तादाद इतनी ज्यादा है कि उन्होंने दिल्ली से बाहर के अपने सभी दौरे रद्द कर दिए हैं. उनके पास सबसे ज्यादा लोग टिकट बंटने से पहले आते हैं. भांबी कहते हैं, ‘एक बार तो हाल ये हो गया कि मेरे घर पर इकट्ठा नेताओं में कई अलग-अलग पार्टियों के थे जो एक दूसरे को मेरे घर पर पाकर झेंप रहे थे.’ जिनके पास दो पार्टियों के टिकट पर लड़ने का विकल्प होता है वे भांबी से पार्टी और पार्टी मुखिया की कुंडली का अध्ययन करने को भी कहते हैं ताकि ये जान सकें कि उनके नक्षत्रों के साथ किस पार्टी का मेल बेहतर बैठता है.
भांबी का नियति में प्रबल विश्वास है और वे इसे बदलने के लिए कोई उपाय करने से इनकार कर देते हैं. जरूरी नहीं कि ऐसा करना फायदेमंद ही हो. राजनीतिक हलकों में सक्रिय आचार्य किशोर कहते हैं, ‘मैंने माधवराव सिंधिया की कुंडली देखी और उन्हें बताया कि वे कभी प्रधानमंत्री नहीं बन पाएंगे. उनकी पत्नी फौरन मुझे एक तरफ ले गईं और कहा इस तरह की बात मत कीजिए, वे नाराज हो जाएंगे.’
भांबी और आचार्य किशोर उन कुछ लोगों में से हैं जो भविष्यवाणी करने तक ही सीमित रहते हैं. कुछ दूसरे यज्ञ करते हैं. मगर भविष्य को बदलने का दावा करने वाले कुछ ऐसे लोगों का वर्ग तेजी से उभर रहा है जो किसी भी हद तक जाने को तैयार रहते हैं. रात को की जाने वाली विशेष तंत्र साधना इनमें से एक है. इसमें उम्मीदवार के पास चार विकल्प होते हैं -विरोधी को अपने पक्ष में करना, उसे अस्थिर करना, पागल कर देना और उसकी मौत. हेमांग पंडित कहते हैं, ‘नेता सिर्फ प्रार्थना नहीं चाहते वे अपने सितारे बदलना चाहते हैं. हम उनसे कहते हैं कि ये हमारे लिए संभव नहीं है. स्वाभाविक है कि उनमें से ज्यादातर तंत्र साधकों के पास चले जाते हैं.’
इसलिए हैरत की बात नहीं कि कुछ हफ्ते पहले उड़ीसा के वित्त मंत्री प्रफुल्ल चंद्र घडई ने कुछ ही दिन पहले राज्य के जयपुर जिले में स्थित बिरोजा मंदिर में रात में एक तंत्र साधना करवा रहे थे. मगर ये पूरी होती इससे पहले ही घडई को भागना पड़ा क्योंकि तांत्रिक और उन पर धनुष-बाण लिए आदिवासियों ने हमला बोल दिया. ये आदिवासी इस तंत्र साधना का विरोध कर रहे थे.
मगर तंत्र साधना के जरिए शत्रु पर विजय पाने के लिए सबसे प्रसिद्ध है असम की राजधानी गुवाहाटी में स्थित कामाख्या शक्तिपीठ. इन दिनों यहां के बोगोला देवी मंदिर में हर तरफ पीला रंग छाया हुआ है. बोगोला देवी कामाख्या देवी के दस रूपों में से एक हैं. जहां से मंदिर की सीढ़ियां शुरू होती हैं वहां पर पीले फूल बेचती एक बच्ची आवाज देती है, ‘देवी के लिए फूल ले लो. सारे बड़े मंत्री मेरी दुकान से फूल लेते हैं.’
बात करने पर वह बताती है कि नेता वहां पर देर रात आते हैं. मान्यता है कि बोगोला देवी शत्रुओं का नाश करती हैं. जनता की निगाहों से बचकर नेता यहां यही मनोकामना पूरी करवाने के लिए आते हैं. कामाख्या देबुत्तर मंदिर के राजीव शर्मा तो खुलेआम कहते हैं कि कामाख्या मंदिर ज्योतिषियों का नहीं बल्कि तंत्र साधकों का घर है. वे कहते हैं, ‘मगर ज्यादातर नेता ऐसे होते हैं जो ज्योतिषियों की सलाह पर यहां आते हैं.’
बोगोला देवी मंदिर के मुख्य पुजारी पंकज शर्मा इस बात की पुष्टि करते हैं कि सभी पार्टियों के नेता यहां शक्ति का वरदान मांगने आते हैं और कई ऐसे भी होते हैं जो आधी रात के बाद साधना करते हैं. मगर शर्मा किसी का नाम बताने से इनकार कर देते हैं. हालांकि कुछ दूसरे सूत्र तहलका को बताते हैं कि कांग्रेस उम्मीदवार मणिकुमार सुब्बा कामाख्या देवी के बड़े भक्त हैं. उनके दिल्ली स्थित फार्महाउस में एक मंदिर है जहां एक ज्योतिषी नियमित रूप से बैठता है. सूत्रों के मुताबिक सुब्बा दूसरे ज्योतिषियों से सलाह लेने के लिए ऋषिकेश और हरिद्वार भी जाते हैं.
रास्ते और भी हैं. राजस्थान में अजमेर शरीफ दरगाह पर वसे तो सालभर ही श्रध्दालुओं का तांता लगा रहता है मगर चुनाव के दिनों में इस भीड़ में नेता भी शामिल हो जाते हैं. यहां के मुख्य मौलवी कुतुबुद्दीन साकी कहते हैं, ‘कई नेता मुझे फोन और ईमेल करते हैं और अपने लिए दुआ मांगने को कहते हैं.’ वैसे नेता अगर खुद न जा पाएं तो यहां अपनी पत्नी और बच्चों को भेज देते हैं. दरगाह में आने वाले जायरीन पवित्र पत्थर के चारों तरफ एक धागा बांधते हैं और मन्नत मांगते हैं. अगर उनकी मन्नत पूरी हो जाती है तो उन्हें वापस आकर इस धागे की गांठ खोलनी होती है. अतीत में यहां आने वालों में गोविंदा, संजय दत्त और राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत रह चुके हैं. गहलोत यहां विधानसभा चुनाव से पहले आए थे और अपनी जीत के 15 दिन बाद ही गांठ खोलने के लिए वापस आए थे. हाल ही में यहां आने वाले नेताओं में मुलायम सिंह, वसुंधरा राजे, श्रीप्रकाश जायसवाल, शाहनवाज हुसैन और सचिन पायलट हैं. साकी को अब ये उत्सुकता है कि इनमें से कौन यहां गांठ खोलने और अजमेर दरगाह का शुक्रिया अदा करने वापस आता है.
उधर, मुंबई के प्रसिद्ध सिद्धिविनायक में भी पुजारियों और सुरक्षा गार्डों की चिंताएं बढ़ गई हैं. यहां भी देश के कोने से कोने से नेता अपनी मनोकामना पूरी होने की आस में पहुंचते हैं. अपने पिता सुनील दत्त की राजनीतिक विरासत संभालने वाली प्रिया दत्त ज्यादा धार्मिक भले ही न हों पर अपने पिता की सीट बचाए रखने की चिंता ने उनके भीतर एक नई आध्यात्मिकता का उदय कर दिया है. अपना नामांकन दाखिल करने से पहले प्रिया ने शहर के सभी मुख्य धार्मिक स्थलों का फेरा लगाया जिनमें सिद्धिविनायक मंदिर, द माउंट मैरी चर्च और हाजी अली दरगाह शामिल है. प्रिया अकेली नहीं हैं जिनमें आस्था का नया-नया उदय हुआ हो. राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के मुखिया और प्रधानमंत्री पद की लालसा पाले शरद पवार भी उनके हमराह हैं. 1970 के दशक के समाजवादी आंदोलन की अहम शख्सियतों में से एक और खुद को नास्तिक बताने वाले पवार ने पिछले महीने तब सबको चौंका दिया जब नामांकन दाखिल करने से पहले वे ओस्मानाबाद जिले में स्थित तुलजा भवानी मंदिर पहुंच गए. दरअसल देखा जाए तो महाराष्ट्र में शायद ही कोई ऐसा नेता हो जो चुनाव से पहले इस मंदिर में दर्शन करने न गया हो.
कोलकाता में कालीघाट मंदिर एक धारा के पास स्थित है जिसके बारे में लोग कहते हैं कि यह असली गंगा है. कहा जाता है कि कुछ दिन पहले जब घड़ी ने रात के बारह बजाए और बंगाली नववर्ष शुरू हुआ तो अपने दो सहायकों के साथ तृणमूल कांग्रेस नेता ममता बनर्जी का चुपचाप यहां आगमन हुआ और उन्होंने यहां विशेष पूजा की. अगली सुबह उनके कुछ समर्थकों ने एक भोज के लिए 50 बकरों की बलि दे डाली. ढोल-मंजीरे बजाते वे नारे लगा रहे थे, ‘दीदी को जीतना होगा.’ कहा जाता है कि कोलकाता में माकपा नेता मोहम्मद सलीम तक एक हनुमान मंदिर में जाकर जीत की प्रार्थना कर आए.
उधर, दिल्ली में ज्योतिषी आरबी धवन अपने लैपटाप के साथ बैठे हैं जिसमें कई कुंडलियां रखी हुई हैं. वे कहते हैं, ‘कर्मों की ऊर्जा आपके ऊर्जाचक्र को प्रभावित कर सकती है.’ हालांकि ज्योतिषी कहते हैं कि उपायों द्वारा बुरे समय को टाला जा सकता है और अच्छे समय को जल्दी लाया जा सकता है.
इसलिए धवन के मुताबिक ये संयोग नहीं है कि भाजपा ने अचानक ही स्विस बैंकों में जमा धन को चुनावी मुद्दा बना लिया है. वर्तमान में ग्रहों की जो स्थिति है वह राहु, बृहस्पति और शनि के बीच संयोग बना रही है. राहु अंधेरे या काले का प्रतीक है. शनि विदेश यात्रा को दर्शाता है. बृहस्पति धन और धर्म से जुड़ा हुआ है. इसलिए एक चतुर ज्योतिषी को मालूम होगा कि धर्म से जुड़ी कोई पार्टी ग्रहों के इस संयोग को अपने पक्ष में भुनाने की कोशिश कर सकती है. सूत्र बताते हैं कि आडवाणी को सलाह देने के लिए देश के अलग-अलग हिस्सों से ताल्लुक रखने वाले कम से कम पांच ज्योतिषी हैं. धवन को लगता है कि आडवाणी की अचानक स्विस बैंकों में जमा धन के प्रति जिस तरह की दिलचस्पी पैदा हुई है वह इसी का नतीजा है.
मेनका गांधी के बेटे वरुण के ग्रह भले ही खराब चल रहे हों मगर उनके अपने सितारे बढ़िया हैं. उन्हें ज्योतिषियों की बजाय जालंधरी बाबा पर विश्वास है. एक बार उनके एक समर्थक ने उन्हें बताया कि उसने अपनी एक एकड़ जमीन पर इस बात पर दांव पर लगा दी है कि मेनका एक लाख वोटों से जीतेंगी. मतगणना खत्म होने के बाद पता चला कि मेनका अस्सी हजार वोटों से जीती हैं. मेनका ने मन ही मन जालंधरी बाबा से शिकायत की कि उनकी वजह से एक आदमी की एक एकड़ जमीन चली गई और उन्होंने ऐसा होने दिया. वे मन ही मन सोच रही थीं कि गुरूजी ने ऐसा क्यों होने दिया. यूपी बॉर्डर तक आते-आते उनके फोन की घंटी बजी. खबर सुनकर उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा. पता चला कि वोटों की फिर से गिनती हुई थी और मेनका ठीक एक लाख वोटों से जीत गई थीं.
ज्योतिषियों पर नेताओं के इस यकीन की हंसी उड़ाना आसान है पर ये सच है कि नेता भी उसी समाज से आते हैं जिसमें धर्म और अलौकित ताकत पर विश्वास बहुत गहरा है और जब मौका दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में सबसे बड़ी परीक्षा का हो तो मामला लौकिक हो या पारलौकिक, वे कोई कोर-कसर नहीं छोड़ना चाहते.
शांतनु गुहा रे, टेरेसा रहमान, राना अय्यूब और पीसी विनोज कुमार के योगदान के साथ