1984 में हुए सिखों के कत्लेआम के मामले में आज से करीब 15 साल पहले हर किशन लाल भगत और सज्जन कुमार के खिलाफ आपराधिक मामले चलाने की सिफारिश कर चुके डी के अग्रवाल (रिटायर्ड उप पुलिस महानिदेशक उत्तर प्रदेश) को आज इस मामले पर बोलना ही बेमतलब जान पड़ता है. वे कहते हैं, ‘फैसला तो नेताओं को करना है.’ थोड़ा और कुरेदने पर वे कहते हैं, ‘उनकी मिलीभगत साफ दिखती है. लेकिन हमारा न्याय तंत्र ऐसा है कि एक बार लंबा समय बीता नहीं कि सबूत कमजोर पड़ जाते हैं या उनमें फेरबदल किये जाने से उनकी विश्वसनीयता जाती रहती है.’
दंगों में अपने पति को खो चुकीं अनेक कौर ने एक शपथपत्र दाखिल करके सज्जन कुमार और उनके दो सहयोगियों जय सिंह और जय किशन के खिलाफ तमाम जानकारियां दी थी
अग्रवाल और दिल्ली हाईकोर्ट के सेवा निवृत्त जज जेडी जैन को 1990 में सिख नरसंहार मामले की जांच के लिए गठित एक समिति का मुखिया बनाया गया था. दंगों के बाद ये छठवीं जांच समिति थी जिसने अपनी रिपोर्ट 1993 में सरकार को सौंप दी थी जिसके बाद इस रपट का जो होना था वही हुआ यानी ये अपनी परमगति को प्राप्त हो गई.
अगस्त 2005 में जीटी नानावती आयोग (इस मामले की दसवीं जांच) की सिफारिशों के बाद कहीं जा कर सज्जन कुमार के खिलाफ तीन मामले दर्ज हुए. पहला मामला दिल्ली छावनी इलाके के राजनगर में 18 सिखों की हत्या के मामले में दर्ज हुआ. इस मामले में पांच गवाहों ने सीबीआई के समक्ष ये बयान दिया कि उन्होंने सज्जन कुमार को भीड़ की अगुवाई करते हुए देखा था. सीबीआई के सामने सज्जन कुमार के खिलाफ गवाही दे चुकी निरप्रीत कौर तहलका को बताती हैं कि 2 नवंबर की सुबह उसने देखा कि सज्जन कुमार पुलिस की जीप में सवार होकर एलान कर रहे थे- ‘कोई भी सिख जिंदा नहीं रहना चाहिए. किसी ने अगर सिखों को अपने घर में छिपाया तो उसे जला दिया जाएगा.’
दूसरा मामला उत्तर पश्चिम दिल्ली के सुल्तानपुरी का है, यहां छह लोगों ने सज्जन कुमार की पहचान भीड़ की अगुवाई करने वाले के तौर पर की. लेकिन पुलिस अभी तक दोनों मामलों में चार्जशीट तक दाखिल नहीं कर सकी है. तीसरे मामले की जांच ही रोक दी गई. ‘पुलिस किस चीज का इंतजार कर रही है? सज्जन कुमार को सजा दिलाने के पर्याप्त सबूत मौजूद हैं’ पीड़ितों के वकील एचएस फूल्का कहते हैं.
8 अक्टूबर 2005 के अंग्रेजी संस्करण में तहलका ने उन बिचौलियों का खुलासा किया था जो सज्जन कुमार और एचकेएल भगत की तरफ से चश्मदीद गवाहों और पीड़ितों के परिजनों को बहला-फुसला और धमका रहे थे.
दंगों में अपने पति को खो चुकीं अनेक कौर ने एक शपथपत्र दाखिल करके सज्जन कुमार और उनके दो सहयोगियों जय सिंह और जय किशन के खिलाफ तमाम जानकारियां दी थी. उनके शपथपत्र के मुताबिक पुलिस भी भीड़ को सिखों की हत्या के लिए उकसा रही थी. लेकिन 1994 में अनेक ने सज्जन कुमार के खिलाफ दिया अपना बयान वापस ले लिया.
सतनामी बाई और दर्शन कौर ने भगत की पहचान की थी लेकिन उनके खिलाफ मामला 1995 में औंधे मुंह गिर पड़ा क्योंकि सतनामी कोर्ट में अपने बयान से पलट गईं
बाद में उनकी सास साहिबजादी ने तहलका के एक स्टिंग ऑपरेशन में स्वीकार किया कि राठी नाम का कोई आदमी किसी कागजात पर अनेक के अंगूठे का निशान ले गया था. इसके बाद अनेक की ननद मिशरी कौर भी छिपे हुए कैमरे पर ये कहते हुए पाई गईं कि सज्जन कुमार ने अनेक के आरोप वापस लेने की सूरत में उसे फ्लैट दिलाने का प्रस्ताव दिया था. उसने ये भी कहा कि सज्जन कुमार ने उनका जीवन भर का खर्च उठाने का प्रस्ताव भी दिया था. दो साल तक परिवार को ये खर्च मिला भी. ‘2001 में अपनी मृत्यु से पहले अनेक ने मुझसे और अपनी बेटी से कहा कि सज्जन कुमार से पैसा लेते रहना वरना पुलिस में गवाही दे देना,’ मिशरी याद करके बताती है. अनेक ने उनसे ये भी कहा- ‘याद रखना वो तुम्हारे बाप का कातिल है.’ दर्जन भर के करीब समितियां बनाने के बावजूद सबकी सिफारिशें राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव में ठंडे बस्ते में डाल दी गईं.
समय-समय पर सरकार ने जांच में सामने आए तथ्यों को झुठलाने की कोशिश भी की. उदाहरण के तौर पर नानावती आयोग ने खेर सिंह नाम के एक आदमी का नाम लिया था जो 84 के एक मामले का गवाह था. खेर सिंह ने अपने शपथ पत्र में कहा था, ‘स्थानीय सांसद सज्जन कुमार भीड़ को संबोधित करते हुए कह रहे थे सिखों ने हमारी मां को मार डाला इसलिए इस इलाके में एक भी सिख बचने न पाए.’
लेकिन तहलका ने अपने खुफिया जांच में पाया कि सरकार की कार्रवाई रिपोर्ट में बिल्कुल उल्टी बात कही गई है ‘कोई भी ऐसा चश्मदीद गवाह सामने नहीं आया जिसके पास घटना से संबंधित कोई विशिष्ट सबूत या सुराग हो. लिहाजा मामले को रद्द करने के लिए भेज दिया गया और संबंधित कोर्ट ने इसे स्वीकार कर लिया.’
सतनामी बाई और दर्शन कौर ने भगत की पहचान की थी लेकिन उनके खिलाफ मामला 1995 में औंधे मुंह गिर पड़ा क्योंकि सतनामी कोर्ट में अपने बयान से पलट गईं. दर्शन आपनी जान का खतरा होने के बावजूद भी अपने बयान पर अटल रही और भगत का नाम लेती रही. लेकिन जो नुकसान होना था वो हो चुका था. नानावती ने कहा कि सिर्फ एक गवाह के आधार पर एक पूर्व केंद्रीय मंत्री को आरोपी नहीं ठहराया जा सकता. उन्हें सजा दिलवाने के लिए ये पर्याप्त नहीं है.
तहलका के स्टिंग ऑपरेशन में साफ हुआ कि पश्चिमी दिल्ली के तिलक विहार इलाके के प्रतिष्ठित सिख नेता आत्मा सिंह लुभाना ने सतनामी को बयान बदलने के एवज में 12 लाख रूपए देने का सौदा किया था. 1996 में तिलक विहार स्थित शहीदगंज गुरुद्वारे में एक पंचायत के दौरान सतनामी से इस लेन देन से संबंधित सवाल भी पूछे गए थे.
इसके दस्तावेज सिखों के धार्मिक मामलों की प्रभावशाली संस्था दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (डीएसजीएमसी) के पास आज भी मौजूद हैं. 1984 नरसंहार की तमाम पीड़ित विधवाओं की उपस्थिति में उसने गुरु ग्रंथ साहिब की शपथ लेकर स्वीकार किया कि डीएसजीएमसी के पूर्व सदस्य लुभाना ने उसे 12 लाख रूपए देने का प्रस्ताव दिया था जिसके चलते वो अपने बयान से पलट गई. बाद में तहलका के खुफिया कैमरे पर सतनामी ने माना कि उसने अपना बयान इसलिए बदला क्योंकि उसे जान का खतरा था, लेकिन उसने पैसा लेने से इनकार किया. ‘भगत के गुंडो ने मुझे धमकाया कि अगर मैंने अपना बयान नहीं बदला तो वो मेरे भाई और बच्चों को मार देंगे’ उसने कहा, ‘हम पहले से ही डरे हुए थे, इस दबाव के आगे मैं झुक गई.’
दूसरी पीड़िता दर्शन कौर ने तहलका को बताया कि लुभाना ने उसे बयान से पलटने के एवज में 25 लाख रूपए देने का प्रस्ताव दिया था. जब उसने इनकार किया तो लुभाना ने उसकी पिटाई की (इस आरोप के बाद सिखों की सर्वोच्च धार्मिक संस्था अमृतसर की अकाल तख्त ने 1998 में लुभाना को सम्मन जारी किया था). तहलका के खुफिया कैमरे पर लुभाना ने स्वीकार किया कि उसने पंचायत द्वारा लगाए गए 5.28 लाख रूपए का दंड भुगता है लेकिन उसने दर्शन कौर को धमकाने के आरोप को नकार दिया.
29 अक्टूबर 2005 को भगत अपनी मृत्यु के साथ ही पूर्वी दिल्ली के अपने निर्वाचन क्षेत्र में सिखों के सबसे बड़े नरसंहार से जुड़ी तमाम जानकारियां भी हमेशा के लिए अपने साथ लेते गए. शायद 1984 के सिख नरसंहारों की स्मृतियां दिनोंदिन और धूमिल ही पड़ती जाती अगर पत्रकार जरनैल सिंह ने जगदीश टाइटलर को सीबीआई की क्लीनचिट के विरोध में गृहमंत्री पी चिदंबरम के ऊपर अपना जूता न उछाला होता.
टाइटलर और सज्जन कुमार के लोकसभा टिकट आनन-फानन में काटने के कांग्रेस के फैसले से सिखों में उत्साह फैला है लेकिन पीड़ितों के वकील फूल्का चेतावनी देते हैं कि टिकट काटना एक वक्ती राहत भर है. ‘ये कोई निर्णायक अंत नहीं है. लड़ाई जारी है क्योंकि मूल मुद्दे पर ध्यान दिया जाना अभी बाकी है’ वे चेताते हैं.