श्रीलंका के ताजा हालात दक्षिण एशिया के सुरक्षा परिदृश्य के लिए चुनौती हैं. मुंबई और पिछले दिनों पाकिस्तान में श्रीलंकाई क्रिकेट टीम पर आतंकी हमले से इस इलाके में एक नई स्थिति पैदा हो गई है. भारत और दक्षिण एशिया की सुरक्षा के लिहाज से दक्षिण भारत बहुत अहम होता जा रहा है. इसलिए श्रीलंका में शांति स्थापना ऐसा मुद्दा है जिसे भारत के नीतिनिर्माताओं को अपनी प्राथमिकता बनाना ही होगा. इस देश में शांति लाने के लिए आपको यहां के समाज के दो सबसे महत्वपूर्ण तबकों – सिंहली और तमिल – को संतुष्ट करना होगा. जब तक बातचीत या मध्यस्थता के जरिए दोनों पक्ष सौहार्दपूर्ण सहमति पर नहीं पहुंचते तब तक श्रीलंका में अस्थिरता जारी रहेगी.
इस समस्या का समाधान सिर्फ तमिलों से बातचीत और श्रीलंका संविधान के 13 वें संशोधन को लागू करने से ही संभव होगा
तमिलनाडु इस समस्या का एक और महत्वपूर्ण पहलू है. श्रीलंका की अस्थिरता का असर दक्षिण भारत के इस राज्य पर भी पड़ेगा. तमिलनाडु की तटीय रेखा खासी लंबी है और अगर श्रीलंका में शांति स्थापित नहीं होगी तो इस राज्य सहित भारत की समूची दक्षिणी तटीय सीमा पर अस्थिरता का खतरा बना रहेगा.
दावा किया जा रहा है कि श्रीलंका सेना की लिट्टे पर ताजा जीत इस अलगाववादी समूह को जड़ से उखाड़ फेंकेगी और तमिल समस्या का समाधान हो जाएगा. लेकिन सच्चाई इसके उलट है. यदि लिट्टे का पूरी तरह से खात्मा कर भी दिया जाए और इसका मुखिया वी प्रभाकरण मारा जाए तो भी इस समस्या को खत्म नहीं माना जा सकता. असल समाधान तो तब होगा जब तमिलों की समस्याओं को सुलझाया जाएगा.
आज की हालत में श्रीलंका के तमिलों की समस्या भारत के लिए मुश्किलें पैदा कर रही है. इसलिए जरूरी है कि भारत इस मुद्दे के राजनैतिक समाधान के लिए हस्तक्षेप करे. यदि कोई राजनैतिक समाधान नहीं निकलता तो लिट्टे भूमिगत हो सकता है.
श्रीलंका का पूर्वी हिस्सा पिछले एक साल से सेना के नियंत्रण में है लेकिन यहां अभी भी शांति स्थापित नहीं हो पाई है. हाल ही में बट्टी कलोआ के बिशप ने भी कहा था कि उन्हें सेना के नियंत्रण से क्षेत्र में शांति स्थापित होने की उम्मीद थी लेकिन खून-खराबा अब भी लगातार जारी है.
ऐसी और घटनाओं का दोहराव उत्तरी श्रीलंका में भी होगा. इस तमिल बहुल इलाके में यदि श्रीलंका सरकार चुनाव करवाकर अपनी पसंद का उम्मीदवार भी ले आए तो भी यहां स्थिरता लाना मुमकिन नहीं है. इस समस्या का समाधान सिर्फ तमिलों से बातचीत और श्रीलंका संविधान के 13 वें संशोधन को लागू करने से ही संभव होगा. इस संशोधन पर सहमति 1987 में भारतीय प्रधानमंत्री राजीव गांधी और श्रीलंका के तत्कालीन राष्ट्रपति जेआर जयवर्दने के मध्य बातचीत के बाद बनी थी.
इसके तहत निर्वाचित क्षेत्रीय परिषदों को को धीरे धीरे शक्तिशाली बनाया जाना था. तय किया गया था कि भूमि नियंत्रण, पुलिस आदि से संबंधित अधिकार इन परिषदों को सौंपे जाएंगे. लेकिन इस दुर्भाग्य से इस संशोधन को कभी लागू नहीं किया गया. ये परिषद हमेशा अधिकारों से वंचित रहीं. श्रीलंका का संविधान सिंहला और तमिल भाषाओं को बराबरी का दर्जा देने की बात करता है लेकिन आज तक भाषा की समस्या को भी सुलझाया नहीं जा सका है.
अब सवाल है कि भारत इस समस्या के समाधान के लिए क्या कर सकता है? समस्या के समाधान के लिए श्रीलंका सरकार और तमिलों को बातचीत के लिए एक मंच पर आना ही होगा. भारत का भी अपने पुराने रुख पर लौटते हुए कहना है कि दोनों पक्ष सभी मसले सुलझाने के लिए बातचीत करें. यदि श्रीलंका और लिट्टे बातचीत करते हैं तो अब मुद्दा ये होगा कि संविधान के 13वें संशोधन को किस तरह से लागू किया जाए और किस तरह सफलतापूर्वक सत्ता का स्थानीय हस्तांतरण किया जाए.
भारत की असल भूमिका यही है कि इन दोनों पक्षों को बातचीत के लिए राजी करे और इन मुद्दों को बेहतर तरीके से सुलझने में मदद करे. यदि भारत ऐसा नहीं करता तो श्रीलंका में शांति स्थापना दूर की कौड़ी बनी रहेगी.
कोलंबो स्थित थम्बियाईयाह राजनीतिक विश्लेषक हैं