83 के विश्व विजयी वीरों का सम्मान

घर में नया रंगीन टीवी जून 83 में इसीलिए ही आया था। इसी जून की 25 तारीख को क्रिकेट के मक्का माने जाने वाले लॉर्ड्स के मैदान पर विश्व कप का फाइनल होना था। यह क्रिकेट का तीसरा विश्व कप था। पहले दो विश्व कप वेस्टइंडीज़ जीता था। महत्वपूर्ण रहा कि भारतीय टीम विश्व कप से पहले वेस्टइंडीज़ का सफल दौरा करके इंग्लैंड पहुंची थी।

आज जब 25 साल बाद उन्हीं विश्वविजेताओं का सम्मान हो रहा है तो मन आनंदित है। आईसीएल औऱ आईपीएल से जुड़े खिलाड़ियों की सोच, जरूरतों और द्वंद के बाद उनका एकजुट कर सम्मान करने में एक अलग रोमांच पैदा हुआ है। इसका श्रेय सुनील गावस्कर और कपिल देव दोनों को जाता है।

एक टीवी कार्यक्रम में गावस्कर से पूछा गया कि कपिल से आपकी लगातार नोक झोंक लगी रहती थी तो आप लोग कैसे निभाते थे। गावस्कर ने सवाल का बवाल न बनाते हुए व्यंग्य में कहा, “मैं और कपिल रोज़ नाश्ते के समय से लड़ना शुरू कर देते थे। नाश्ते में दलिया खाएं या कॉर्न फ्लेक्स, अंडे उबले खाएं या फ्राइड, डबल रोटी व्हाइट या ब्राउन इन्हीं बातों की नेकझोंक से हमारा दिन शुरू होता था।” यही सवाल जब कपिल से पूछा गया तो उन्होंने कहा, “मुझे वही करना पड़ता था जो मेरे से ज्यादा अनुभवी खिलाड़ी कहते थे। जैसे अगर गावस्कर कहते उबला अंडा खाने को तो हमें वही खाना पड़ता था।” लेकिन कपिल ने यह भी कहा कि सोच अलग तो आज भी है पर मिलकर चलने की प्रतिबद्धता उसको नज़रअंदाज़ करती है।

25 साल बाद यह मनगढ़ंत व्यंग्य आश्चर्य और हंसाने वाला लगता है। गावस्कर और कपिल भारतीय क्रिकेट के दो महानतम खिलाड़ी हैं। उनके समय के लोगों से सुनें तो पता चलेगा कि अख़बार कैसे भरे रहते थे इन दोनों के आत्मकेंद्रित निर्णय और फैसलों से। सब जानते हैं इसमें काफी कुछ अख़बार वालों की रची रचाई होती थी पर ऐसा भी नहीं था जैसा गावस्कर और कपिल 25 साल बाद दर्शा रहे हैं। छ: महीने पहले ही कपिल ने आईसीएल का हाथ पकड़ा और गावस्कर ने आईपीएल का। सब जानते है कि टी-20 क्रिकेट की इन लीगों में फर्क सिर्फ आधिकारिकता का ही है।

इन दो महानतम भारतीय खिलाड़ियों की खेलने के समय से लगातार होड़ रही है। बढ़ती उम्र और हालात ने दोनों को हाथ मिलाने पर मजबूर किया है। दोनों के लिए और भारतीय क्रिकेट के लिए यह समझौता अच्छा और लाभदायक होगा। इसलिए दोनों के साथ 83 के सूरमाओं का सम्मान करना जरूरी और ऐतिहासिक है। 25 साल बाद गावस्कर और कपिल की अगुवाई में जिस जोश और लगन से भारतीय खिलाड़ी एक मंच पर इकट्ठा हुए वह सम्माननीय और गौरवान्वित पल है। उसे संजो कर रखने के लिए सभी खिलाड़ियों का सम्मान आवश्यक था। 83 विश्व कप में सभी खिलाड़ियों का समयोचित योगदान था। इसलिए 25 साल बाद भी खिलाड़ियों और देशवासियों को गर्व होना स्वाभाविक है।

इस विश्व कप विजय से भारत में क्रिकेट की लोकप्रियता चौगुनी हुई। तब की लोकप्रियता के कारण ही खेल के प्रति आज का दीवानापन है। इन्हीं खिलाड़ियों को देखकर भारतीय जानमानस में खेल के प्रति जागरुकता बढ़ी। इन्ही विजेताओं को देख कर सचिन तेंदुलकर, राहुल द्रविड़, सौरभ गांगुली, अनिल कुंबले और लक्ष्मण ने भारत के लिए खेलने के सपने संजोए। भारतीय क्रिकेट को हाल के इस जनून तक ले जाने के लिए इन्हीं विश्वविजेताओं का योगदान रहा है। उनके इस सम्मान से आज के युवा खिलाड़ियों को 25 साल पहले महानायकों के बारे में जानने का मौका मिलेगा और वे प्रोत्साहित होंगे। खेल के इतिहास और विजेताओं को जानना उतना ही जरूरी होता है जितना अपने पूर्वजों को।

जब हम आराम से नए आए टेलीविज़न पर मैच का आनंद ले रहे थे तो खिलाड़ियों मे जीत का जज्बा और सपना था। विश्व कप की शुरुआत के समय भारतीय टीम को कोई भाव नहीं दे रहा था। इंग्लैंड की नमी भरी घास वाली पिचों पर भारत ज्यादा कुछ नहीं कर पाएगा- ऐसा माना जा रहा था। एकदिवसीय खेलों का अनुभव भी ज्यादा नहीं था। पर वेस्टइंडीज़ दौरे से मिले आत्मविश्वास ने खिलाड़ियों को प्रोत्साहित किया।

सेमीफाइनल में पहुंच कर भारत ने मेजबान इंग्लैंड को आसानी से हराया। फाइनल में दो बार विश्वविजेता रही क्लाइव लॉयड की महान वेस्टइंडीज़ का सामना नामुमकिन सा लग रहा था। लेकिन नामुमकिन कुछ नहीं होता। कपिला के सूरमाओं ने गजब कर दिखाया। फाइनल में सभी खिलाड़ियों का योगदान रहा। तब के अख़बार इस आकस्मिक विजय को फ्लूक मान रहे थे। विजय थी ही इतनी आकस्मिक और अविश्वसनीय। भारतीय खिलाड़ी जब अपने ब्लेज़र पहन कर लॉर्ड्स की बालकनी पर विश्व कप लेने आए तो मनोभाव और गर्व से गदगद थे। ऐसा ही हाल हर भारतीय का था। मेरे जैसे तमाम युवाओं ने उस पल को समेटा और आनंद लिया था।

25 साल बाद इन गर्वीले खिलाड़ियों का सम्मान होते देख मन रोमांच से भर गया। सम्मान तो 25 साल पहले भी बहुत मिला था और लता मंगेशकर के सहारे थोड़ा बहुत पैसा भी जुटा लिया था। पर 25 साल बाद सम्मानित राशि ने खिलाड़ियों को एकजुट कर एक मंच पर खड़ा कर दिया। भारत 83 विश्व कप के बाद सिर्फ एक ही बार फाइनल में पहुंचा है। 2003 के दक्षिण अफ्रीका विश्व कप में ऑस्ट्रेलिया से हार गया था। इसलिए 83 विश्व कप ही भारतीय क्रिकेट इतिहास की सबसे महान जीत है। उस पल को याद कर मन आज भी गदगद होता है। उन खिलाड़ियों का भी होगा। सब मनमुटाव झगड़े ताक पर रख कर अगर हम उन खिलाड़ियों के सामने नतमस्तक हैं तो भारतीय क्रिकेट चलाने वालों के लिए सौभाग्य का अवसर है। सारे देश को नाज है। 

देशवासी 83 विश्वविजेताओं को नमन करते हैं और वे 25 जून की याद संजो कर रखेंगे।