चुनाव से बड़ी आईपीएल

बस यही यही नहीं लिखा कि आईपीएल के मैच समय पर होने चाहिए भले ही आम चुनाव आगे बढ़ाने पड़ें. नहीं तो उनने सब लिख दिया कि आईपीएल समय पर करवाना और उसके सभी मैचों और खिलाड़ियों को पक्की सुरक्षा देना किस तरह आतंकवाद को मुंहतोड़ जवाब देना और साबित करना है कि भारत एक शक्तिशाली मजबूत राष्ट्र है और वह आतंकवादियों से डर कर अपनी प्रतिष्ठा और शक्ति के प्रतीकों को कतई नष्ट नहीं होने देगा.

अपने को विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र बता कर गर्वित होने वाला देश क्या आम चुनावों से ज्यादा महत्व बीसमबीस क्रिकेट को देगा जिसे क्रिकेट देखने और समझने वाले बराबर क्रिकेट मानने को भी तैयार नहीं होतेउनने यह भी बताया कि अप्रैल-मई में नहीं हुए तो आईपीएल-2 के मैच हो ही नहीं पाएंगे. अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट का कैलेंडर इतना भरा हुआ है कि भारत भले ही जुलाई से सितंबर तक खाली हो लेकिन दूसरी सभी टीमें आपस में खेल रही होंगी. लगभग सभी बड़े अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी राष्ट्रीय ड्यूटी बजा रहे होंगे. उनके बिना तो लीग हो ही नहीं सकती. इसलिए इस साल लीग रद्द करनी पड़ेगी. (इससे महज एक साल की बच्ची इस कमाऊ लीग का भविष्य ही खतरे में पड़ जाएगा). निवेशकों के करीब दो हजार करोड़ रूपए डूब जाएंगे. टीमें खरीदने वालों ने आगे कमाई की ही उम्मीद में पैसे लगाए हैं. प्रसारकों ने प्रसारण के अधिकार खरीदे हैं. बड़ी-बड़ी कंपनियों ने विज्ञापन और प्रायोजन के बजट बनाए हैं. सब पर पानी फिर जाएगा. लेकिन सबसे बड़ा नुकसान यह होगा कि क्रिकेट और इस लीग के चलने पर निवेशकों का विश्वास टूट जाएगा. मंदी के इस जमाने में यह बहुत बुरा होगा, क्योंकि निवेशकों का विश्वास ही तो अर्थव्यवस्था के पटरी पर आने और मंदी के उतरने का रास्ता है.

इसलिए तारीखों में जैसा भी तालमेल बैठाना हो, बैठाओ. मतदान के 24 घंटे पहले और 24 घंटे बाद मैच हो सकते हैं. गृहमंत्रालय अगर मतदान और आईपीएल के मैच दोनों को एक साथ सुरक्षा नहीं दे सकता तो मैच मतदान के पहले और बाद में करवाए जा सकते हैं. केंद्रीय बल सुरक्षा के लिए सुलभ नहीं हो सकते तो हम राज्यों की पुलिस से काम चला लेंगे. वे भी जिम्मेदारी लेने को तैयार न हों तो हम निजी सुरक्षा एजेंसियों को लगा लेंगे. दक्षिण अफ्रीका की एक सुरक्षा एजेंसी से बात हो ही रही है. गृहमंत्रालय और राज्य सरकारों ने हाथ खड़े कर दिए हैं तब भी निजी सुरक्षा और स्वयंसेवकों से काम चलाया जा सकता है. लेकिन आईपीएल-2 होना तो 10 अप्रैल से 24 मई के बीच ही जायज है. गृहमंत्रालय की चिंता यह है कि क्रिकेट मैचों पर हमले के बहाने हमारे लोकतंत्र की प्रक्रिया में पलीता लगाया जा सकता है. जिस देश में क्रिकेट इतना लोकप्रिय हो और उसमें इतने लोग शामिल होते हों चुनाव के समय उसकी सुरक्षा को लेकर कोई खतरा मोल नहीं लिया जा सकता.

लेकिन बाजार और धंधे के अंधसमर्थक एक अंग्रेजी अखबार के एक स्तंभकार ने तो यहां तक लिख दिया कि यदि आईपीएल- यानी इंडियन प्रीमियर लीग और आईपीएल यानी इंडियन पोलिटिकल लीग- में से जनता को चुनने का मौका दिया जाए तो जनता बीसमबीस के क्रिकेट मैच देखना पसंद करेगी. राजनीति और राजनेताओं से जनता इस कदर ऊबी हुई है कि उसके आदर्श व्यक्तियों की सूची में एक भी राजनेता नहीं आता. सिनेमा के महानायक आते हैं लेकिन उन्हें भी मात देते हैं क्रिकेट खिलाड़ी. राजनीति और चुनाव लोगों को बांटते और लड़ाते हैं. बीसमबीस क्रिकेट उन्हें एक करके उनका मनोरंजन करता है. चुनाव और संसद पैसे की बरबादी है. इन पर खर्च किए गए पैसे से जनता का कोई भला नहीं होता. बीसमबीस क्रिकेट पैसा कमाता है और जनता को मनोरंजित और सुखी रखता है. बताइए आप किस आईपीएल को वोट देंगे? अपने को विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र बता कर गर्वित होने वाला देश क्या आम चुनावों से ज्यादा महत्व बीसमबीस क्रिकेट को देगा जिसे क्रिकेट देखने और समझने वाले बराबर क्रिकेट मानने को भी तैयार नहीं होते.

ये सब बातें मैंने इसलिए लिखीं कि बीसमबीस क्रिकेट की आईपीएल लीग को समय पर करवाने के जितने भी कारण और जितनी भी अनिवार्यताएं बताई गईं हैं उनमें एक भी क्रिकेट के खेल की नहीं हैं. आईपीएल के समर्थक नहीं बताते कि इस साल लीग नहीं हुई तो भारत और संसार में क्रिकेट का क्या नुकसान हो जाएगा.

लोकतंत्र रहेगा तो क्रिकेट तो बहुतेरा हो जाएगा. लेकिन क्या क्रिकेट अराजकता और तानाशाही में पनप और चल सकता है?

मुंबई पर आतंकवादी हमला उसी रात हुआ था जब भारत कटक में इंग्लैंड से पांचवां वनडे खेल रहा था. इस हमले के कारण बाकी के दो मैच रद्द हुए और इंग्लिश टीम भारत से चली गई. तब किसी ने सचिन तेंदुलकर से पूछा, जो अपने घरनगर पर हमले से बुरी तरह हिल गए थे. भारत में पैदा हुए सबसे बड़े क्रिकेट खिलाड़ी ने कहा- क्रिकेट जीवन से बड़ा नहीं है. ऐसे हमले के बाद हम क्रिकेट कैसे खेल सकते हैं? फिर भारत ने पाकिस्तान का क्रिकेट दौरा रद्द कर दिया तो कप्तान धोनी और दूसरे खिलाड़ियों से पूछा गया. सभी ने कहा कि सरकार ने ठीक किया. मुंबई हमले के बाद हम वहां जा कर क्रिकेट नहीं खेल सकते.

किसी खिलाड़ी ने नहीं कहा कि आतंकी हमले के कारण क्रिकेट नहीं होगा तो यह खेल आतंक से हार जाएगा. किसी ने नहीं कहा कि वनडे और पाकिस्तान का दौरा रद्द हुआ तो हमारी इतनी कमाई मारी गई. बाद में अंग्रेज टीम ने आकर दो टेस्ट खेले और दौरा पूरा किया लेकिन किसी खिलाड़ी ने दावा नहीं किया कि क्रिकेट खेलकर हमने आतंक को परास्त किया है. मुंबई पर आतंकी हमले का घाव हमारे खिलाड़ियों पर अब भी है और तीन मार्च को लाहौर के गद्दाफी स्टेडियम के बाहर श्रीलंकाई टीम पर हुए आतंकी हमले से दुनिया भर के खिलाड़ियों को सदमा और दुख पहुंचा है. भारतीय उपमहाद्वीप में वनडे विश्वकप पर सवाल लग गया है. क्रिकेट को सभी बचाना चाहते हैं खासकर भारत में क्योंकि विश्व क्रिकेट का 80 प्रतिशत पैसा भारत से आता है. क्रिकेट के सबसे ज्यादा दर्शक भारतीय उपमहाद्वीप में हैं.

लेकिन लोकतंत्र की अनिवार्य प्रक्रिया- आम चुनाव और बीसमबीस क्रिकेट के मुकाबलों में से किसी एक को सुरक्षा देनी होगी तो क्या आप कहेंगे कि चुनाव बाद में भी हो सकते हैं. पहले लीग मुकाबले होने चाहिए क्योंकि वे बाद में नहीं हो सकते? लोकतंत्र और क्रिकेट के खेल में से किसी को आपको पहले सुरक्षित करना होगा तो क्या आप पहले क्रिकेट को बचाएंगे? लोकतंत्र रहेगा तो क्रिकेट तो बहुतेरा हो जाएगा. लेकिन क्या क्रिकेट अराजकता और तानाशाही में पनप और चल सकता है?

दरअसल यह सवाल ही वाहियात है. लेकिन फिर भी दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में पूछा जा रहा है. क्योंकि हम ऐसे धंधे और ऐसे पूंजीवाद को पिछले बीस सालों से लगातार बढ़ावा दे रहे हैं जो लोकतंत्र और राजनीति को फालतू और विध्वंसक बता कर पैसे को सबसे महत्वपूर्ण बताने में लगा हुआ है.

जो लोग संसद के चुनावों को बीसमबीस क्रिकेट लीग से कम महत्व और अनिवार्यता का बता रहे हैं वे कोई क्रिकेट के खेलप्रेमी नहीं हैं. वे बीसमबीस को धंधा मानते हैं. जानते हैं कि भारत में क्रिकेट मंदी के कारण घाटे का सौदा नहीं हुआ है. फ्लिंटॉफ और पीटरसन आठ करोड़ में खरीदे गए हैं जो कि गए साल की सबसे बड़ी कीमत से भी ज्यादा है. बीसमबीस क्रिकेट अगर इतना कमाऊ धंधा है तो उसे तो सर्वोच्च प्राथमिकता मिलनी ही चाहिए. जी हां पांच साला चुनाव से भी ज्यादा. कोई इनका इलाज करो भाई!