मैं आभारी हूं आपका

मैं आभारी हूं आपका,

कि आपने मुझे शहीद मानकर

एक सुंदर पत्थर पर मेरा बारीक नाम

मेरे साथियों के साथ लिखवा दिया है.

पर मुझे सैल्यूट कर,

नम आंखों से मेरा बारीक धुंधला नाम पढ़कर,

मुझे शर्मिदा ना करें,

उसे साफ पढ़ने की कोशिश,

आपकी आंखों में कई परेशान सवाल खड़े कर देगी,

और उनके जवाबों में,

पसीना, अचकचाहट, लरजती जबान,

और झंकती बगलों के सिवा कुछ और नहीं मिलेगा,

आप नाहक परेशान ना हों.

मेरे सवाल, मेरा मकान, मेरी पेंशन,

और मेरे बच्चों की पढ़ाई नहीं हैं.

मैं इनके जवाब तो वैसे भी उम्रभर नहीं ढूंढ़ पाया था,

पर इनसे बेखौफ आंखें मिलाकर,

मैंने जी हल्का कर लिया था.

मेरे पास कुछ और सवाल हैं,

जो मेरे सहमे हुए बच्चों से भी ज्यादा मासूम हैं,

कि जैसे कौन तय करता है कि मरेगा कौन,

और किस कीमत पर,

कौन तय करता है कि बचेगा कौन,

और उसकी बोली कैसे लगती है,

किसके हाथ में है कि बचे हुओं को,

रोज तिल-तिल मारा जाए,

कौन है जो किसी का मरना और किसी का मारना,

दूरबीन लगाकर बस देखता रहता है,

किसने चुना उसके लिए ये किरदार,

और चुनकर चुप क्यूं नहीं,

जीते जी मैं इनको भाता क्यूं नहीं,

मैं सचमुच अपना भाग्य विधाता क्यूं नहीं.

आपके जुलूस आपके उबाल,

आपकी मोमबत्ती और आपका लिखवाया,

मेरा बारीक नाम,

मैं शत शत आभारी हूं आपका,

पर मुझे चाहिए मेरे जवाब.

और भी हैं लेकिन,

मैं ज्यादा सवाल पूछकर,

आपको शर्मिदा नहीं करना चाहता.

                               तजेन्द्र लूथरा

 

 

लेखक दमन दीव और दादरा नगर हवेली के उप पुलिस महानिरीक्षक हैं

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