ईएसपीएन के कमेंटेटर हर्षा भोगले को गुंडप्पा रंगनाथ विश्वनाथ के साथ अपनी पहली मुलाकात आज भी याद है, हालांकि वो मुलाकात आमने-सामने की नहीं थी. 1969 में सिकंदराबाद के सेंट जॉन स्कूल की चौथी कक्षा के छात्र हर्षा ने किसी तरह से अपने प्रधानाचार्य को कानपुर में चल रहे टेस्ट मैच की कमेंट्री छात्रों को सुनाने के लिए तैयार कर लिया था. उनके उतावलेपन की वजह एक युवा बल्लेबाज था जो मैच की दूसरी पारी में रनों की बारिश किये जा रहा था. आकाशवाणी के उस जमाने में श्रोताओं के लिए उस कलात्मक बल्लेबाज की मजबूत कलाइयों से निकलने वाले ताकतवर शॉट देख पाना संभव नहीं था जिसने अपनी रफ्तार से बल्लेबाजों को कंपा देने वाली ऑस्ट्रेलियाई चौकड़ी – मैकेंजी, ग्लीसन, कोनोली और मैलेट की हालत पतली कर दी थी. उस पारी में विशी ने 25 बार गेंद को सीमा रेखा के पार पहुंचा कर भारतीय टीम में अपनी जगह पक्की की थी. ‘वो बिल्कुल जादू जैसा था’ हर्षा याद करते हैं, वहीं उनके जोड़ीदार रहे सुनील गावस्कर, गुंडप्पा को एक ही गेंद को कई तरीके से खेल सकने वाला इकलौता खिलाड़ी मानते हैं.
ये बेहद दुखद है कि टेलीविजन का युग शुरू होने से पहले ही उनका युग खत्म हो चुका था. कल्पना कीजिए 15 कैमरों के सामने उन्हें बल्लेबाजी करते देखना कितना सुखद होता
चाहे जिस तरह की भी गेंदबाजी रही हो विशी के पास हमेशा शॉट्स के ढेरों विकल्प रहते थे. सिर्फ 91 टेस्ट मैचों में 6080 रन और प्रथम श्रेणी की बात करें तो कुल 17,970 रन उनकी बेहतरीन प्रतिभा की कहानी बयान करते हैं. 1975 में चेन्नई के चेपक स्टेडियम में उनकी नाबाद 97 रनों की पारी ने पूरी श्रंखला में आग उगलते रहे एंडी रॉबर्ट्स को शांत करके एक समय श्रंखला में 0-2 से पीछे चल रहे भारत को सीरीज में बराबरी तक पहुंचा दिया था.
विशी इंग्लिश खिलाड़ी बॉब टेलर को दोबारा मैदान में बुलाए जाने के लिए भी याद किए जाते हैं. वाकया 1979 के बीसीसीआई स्वर्ण जयंती टेस्ट मैच का है जब अंपायर हनुमंत राव ने उन्हें आउट करार दिया था. ‘गावस्कर के बाद भारत के दूसरे सबसे बड़े मैच-जिताऊ खिलाड़ी को अब जाकर वाजिब सम्मान दिया गया है’ 60 वर्षीय विश्वनाथ को बीसीसीआई द्वारा सीके नायडू लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार दिए जाने पर क्रिकेट इतिहासकार बोरिया मजूमदार कहते हैं. विशी की तारीफ करने वाले लोगों में सिर्फ भोगले और मजूमदार नहीं हैं. उनके लाखों प्रशंसक हैं और उनसे जुड़ी हजारों कहानियां हैं. एक दिलचस्प कहानी है गणपति होटल के मालिक की जो कपिल, अजहर, वेंगसरकर और श्रीकांत के खराब खेल से आजिज आकर अपना फिलिप्स का रेडियो कैश काउंटर पर दे मारते थे – ‘ये सब बेकार खिलाड़ी हैं. आज अगर विश्वनाथ खेल रहा होता तो हम मैच जीत जाते या कम से कम मैच में रोमांच तो रहता.’
इस तरह की घटनाओं पर विश्वनाथ हंस देते हैं. सामान्यत: वो अपने क्रिकेट जीवन की यात्रा के बारे में ज्यादा बात नहीं करते लेकिन थोड़ा दबाव डालने पर वो अपनी बेहतरीन पारियों की सूची में दो-चार नाम और जोड़ देते हैं.
1976 में न्यूजीलैंड दौरे पर क्राइस्टचर्च टेस्ट की 83 और 79 रनों की पारियों को वो अपनी बेहतरीन पारियों में मानते हैं. तब उनके सामने हेडली और आरओ कोलिंज जैसे स्तरीय तेज गेंदबाज थे. ‘हम इस टेस्ट को ड्रॉ कराने के साथ-साथ तीन मैचों की श्रंखला में 1-0 की बढ़त बनाने में भी कामयाब रहे,’ विश्वनाथ तहलका को बताते हैं.
उस मैच में विकेट पर टिके रहने में कामयाब रहे सैयद किरमानी याद करते हैं, ‘सन्नी 22 रन बना कर आउट हो चुके थे, वेंगी 16, ब्रजेश 8 और सुरिंदर अमरनाथ 11 रन बनाकर पैवेलियन में लौट चुके थे. अब सारा दबाव विशी के कंधों पर था. मुझे नहीं पता कि वो कितनी देर तक बैटिंग करते रहे. 178 मिनट का खेल बाकी था. लेकिन मोहिंदर के 45 रनों और मेरे 27 रनों की सहायता से उन्होंने जो 83 रन बनाए उसके सहारे भारत 270 रन बनाने में कामयाब रहा.
वो अद्भुत थे. उनके शॉट्स का कोई जवाब नहीं था’ ये भी विडंबना ही है कि खेल से जुड़े हर व्यक्ति ने कभी न कभी उनकी लंबाई को लेकर उन पर निशाना साधा. लेकिन विशी के बल्ले से निकलने वाले रनों की बाढ़ नें सभी विरोधियों का मुंह बंद करने के साथ ही पहले कर्नाटक और फिर राष्ट्रीय टीम में उनकी जगह पक्की कर दी.
उस समय मुख्य चयनकर्ता रहे मंसूर अली खान पटौदी ने एक बार मजाक में कहा, ‘असल में कर्नाटक अकेले ही पूरी टीम बना सकता है.’ उन दिनों दक्षिण भारत का भारतीय क्रिकेट टीम में दबदबा हुआ करता था और अकेले कर्नाटक से उस वक्त टीम में छह खिलाड़ी हुआ करते थे- विश्वनाथ, बृजेश पटेल, आर. सुधाकर राव, बीएस चंद्रशेखर, सैयद किरमानी और ईएएस प्रसन्ना. कई मायनों में इसने भारतीय क्रिकेट के मक्का की मुंबई की छवि को खत्म कर दिया था. विशेषकर 1973-74 में कर्नाटक द्वारा पहली बार रणजी ट्रॉफी जीतने के बाद. ‘हमने बेहतरीन क्रिकेट खेली’ पूछने पर अपने खिलाड़ियों और अपने राज्य के बारे में विश्वनाथ बस इतना ही कहते हैं.
विशी के टीम के जोड़ीदार और मित्र बृजेश पटेल एक कदम और आगे जाकर कहते हैं, ‘विशी हम सभी से बेहतर था, कोई भी उससे बढ़िया नहीं था.’ उनकी शख्सियत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब कर्नाटक सरकार ने राज्य का नाम रौशन करने वाली प्रतिभाओं पर एक किताब लिखवाई तो उसमें विश्वेस्वरैया, जनरल करियप्पा और थिम्मैया, प्रोफेसर हिरियन्ना और शांता राव जैसी महान हस्तियों के साथ गुंडप्पा विश्वनाथ को भी राज्य की महान विभूतियों में शामिल किया गया था.
विश्वनाथ के बारे में कहा जाता है कि उन्हें कभी कोई झुका-दबा नहीं सका, यहां तक कि आम बल्लेबाजों के दिलों में सुरसुरी दौड़ा देने वाली कैरेबियाई पेस चौकड़ी भी नहीं. उनकी लयबद्ध 112 रनों की पारी के सहारे ही भारत पोर्ट ऑफ स्पेन के ऐतिहासिक टेस्ट मैच में 403 रनों के रिकॉर्ड लक्ष्य को सफलतापूर्वक हासिल कर 6 विकेट की एक संपूर्ण जीत अर्जित कर पाया था. ‘सिर्फ साहस की बदौलत ही उनसे निपटा जा सकता था’ विशी याद करके हंसते हैं कि कैसे उन समेत पांच भारतीय बल्लेबाज शॉर्ट गेंदों और बाउंसर से जख्मी होकर एक टेस्ट में खेल ही नहीं सके थे.
‘उन्होंने उन काले दिनों के दौरान हमारी नैया पार लगाई थी’ गायकवाड़ याद करते हैं. ‘ये बेहद दुखद है कि टेलीविजन का युग शुरू होने से पहले ही उनका युग खत्म हो चुका था. कल्पना कीजिए 15 कैमरों के सामने उन्हें बल्लेबाजी करते देखना कितना सुखद होता.’
गायकवाड़ की बात सोलह आने सही है. विशी को अपनी जादुई कलाइयों से अपना पसंदीदा शॉट – स्क्वेयर कट – लगाते देखना वाकई एक अलग ही अनुभव होता जिसे सुनकर नहीं, देख कर ही महसूस किया जा सकता था.