छापे, पूछताछ, हिरासत, गिरफ्तारी और जेल

किताब का ये अंश उस भयानक अनुभव की बानगी भर है एक फैसला किस तरह से जिंदगी की कश्ती को मुश्किलों के तूफान में पटक सकता है इसे शंकर शर्मा और देविका मेहरा से बेहतर भला कौन समझेगा. शंकर और देविका ने जब तहलका में पैसा लगाने का फैसला किया तो उन्हें अंदाजा भी नहीं रहा होगा कि ये उनकी तबाही की वजह बन जाएगा. एक छोटे से निवेश की कीमत उन्हें अपने कारोबार की बर्बादी, पुलिस के छापों, पूछताछ, अदालतों के चक्कर और आखिर में जेल के रूप में चुकानी पड़ी. शंकर को जेल एक ऐसे कानून के तहत हुई जिसे संसद डेढ़ साल पहले खत्म कर चुकी थी. एक साल के भीतर ही उन्हें  अलग-अलग विभागों और एजेंसियों द्वारा पूछताछ के लिए 300 से भी ज्यादा सम्मन भेजे गए, प्रवर्तन निदेशालय, आयकर विभाग, आबकारी विभाग, कंपनी मामले विभाग और रिजर्व बैंक सबने शंकर और देविना को हर तरह से जांचा. आयकर विभाग ने उनके घर पर 15 बार छापा मारा. कंपनी एक्ट के तहत उन पर 22 मामले दाखिल किए गए. एक मामला फेरा के तहत भी दर्ज हुआ. शंकर का पासपोर्ट जब्त कर लिया गया जबकि देविका ने अपना पासपोर्ट जब्त होने से बचाने के लिए स्टे ऑर्डर या दूसरे शब्दों में कहें तो कुछ और अदालती चक्कर मोल ले लिए.

आप सोच रहे होंगे कि आखिर ये शंकर शर्मा और देविना मेहरा हैं कौन? और अगर तहलका कांड के बाद भी इनका नाम ज्यादा लोग क्यों नहीं जानते?

 वो दोनों नए और उभरते भारत का उदाहरण हुआ करते थे मगर उनके साथ जो हुआ वो इसका उदाहरण बन गया कि इस देश की व्यवस्था में क्या गड़बड़ है

साधारण पारिवारिक पृष्ठभूमि से ताल्लुक रखने वाले शंकर और देविना ने मैनेजमेंट की पढ़ाई के बाद 1994 में फर्स्ट ग्लोबल स्टॉकब्रोकिंग प्राइवेट लिमिटेड नाम की एक कंपनी शुरू की थी. वे दोनों कंपनी के निदेशक थे. अगले सात साल में फर्स्ट ग्लोबल भारत में शेयरों का कारोबार करने वाली सबसे बड़ी कंपनियों में से एक बन गई. तहलका कांड से पहले तक देश के अलग-अलग शहरों में इसकी 18 शाखाएं थी जिनमें 300 से भी ज्यादा लोगों को रोजगार मिला हुआ था. लंदन और न्यूयॉर्क में भी उनके ऑफिस थे. फर्स्ट ग्लोबल ग्रुप लंदन स्टॉक एक्सचेंज की सदस्यता हासिल करने वाली पहली भारतीय कंपनी थी और एशिया मनी मैगजीन द्वारा इसे भारत के तीन सबसे बड़े ब्रोकरेज हाउसेज में से एक कहा गया था. जनवरी 2001 में भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने फर्स्ट ग्लोबल को विदेशी संस्थागत निवेशक का दर्जा दिया था. इससे ये कंपनी विदेशों से भी पूंजी इकट्ठा कर सकती थी. वर्ष 1999-2000 में फर्स्ट ग्लोबल ग्रुप का ट्रेडिंग टर्नओवर 7432 करोड़ रुपये का था. शंकर और देविना व्यक्तिगत रूप से भारत से सबसे बड़े करदाताओं की सूची में थे और उन पर या उनके कारोबार के दामन पर कभी भी टैक्स चोरी या कानून का उल्लंघन जसा कोई दाग नहीं लगा था.

मगर सफलता की उड़ान भर रहे शंकर और देविना अप्रैल 2001 में तब जमीन पर आ गिरे जब फर्स्ट ग्लोबल को जबर्दस्ती बंद करवा दिया गया. वो दोनों नए और उभरते भारत का उदाहरण हुआ करते थे मगर उनके साथ जो हुआ वो इसका उदाहरण बन गया कि इस देश की व्यवस्था में क्या गड़बड़ है. शंकर और देविना जब उन घटनाओं के बारे में बताते हैं जो तहलका कांड के बाद उनके साथ हुईं तो अहसास होता है कि कैसे जांच की आड़ में किसी इंसान को नर्क में झोंका जा सकता है.

शंकर और देविना के पास खानदानी दौलत नहीं थी. न ही उन पर किसी नेता या बड़े आदमी का हाथ था. वो दोनों उन मध्यवर्गीय परिवारों से आते थे जहां बच्चों की बेहतरी के लिए सबसे अच्छी चीज शिक्षा को माना जाता है. देविना ने कॉलेज में आठ स्वर्ण पदक जीते थे और लखनऊ विश्वविद्यालय में स्नातक की पढ़ाई के दौरान सर्वाधिक अंकों के मामले में 60 साल पुराना रिकॉर्ड तोड़ दिया था. भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम) अहमदाबाद में भी देविका गोल्ड मेडेलिस्ट थीं और उन्हें दोनों साल स्कॉलरशिप मिली थी. उधर, शंकर ने अपना एमबीए मनीला स्थित एशियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट से किया था जहां वो सबसे प्रतिभाशाली छात्रों में गिने जाते थे. पढ़ाई खत्म होने के बाद देविना ने सिटीबैंक के साथ अपना करिअर शुरू किया मगर उनकी दिलचस्पी रिसर्च में ज्यादा थी. 1990 में उन्हें कैलीफोर्निया यूनिवर्सिटी में पीएचडी के लिए दाखिला मिल गया मगर फिर उन्हें लगा कि फाइनेंस में पीएचडी करके ज्यादा फायदा नहीं. 1993 में जब भारतीय बाजार विदेशी निवेश के लिए खुला और स्टॉक मार्केट में उद्योगों और कंपनियों से संबंधित रिसर्च की अहमियत बढ़ी तो देविना ने शंकर के साथ मिलकर काम शुरू किया.

 तहलका से संबंध ने उनके लिए जो मुसीबतें खड़ीं कीं उन पर भी उनका नजरिया किसी बुद्धिजीवी जैसा ही है

काम चल निकला. शंकर और देविना ने खूब तरक्की की. दोनों ने साथ-साथ कंपनी खड़ी की. कंपनी की बर्बादी के दौरान भी दोनों साथ-साथ रहे और अब दोनों साथ-साथ ही इसे फिर से खड़ा कर रहे हैं. किसी सवाल का जवाब दोनों अक्सर एक ही तरीके से और एक जैसे शब्दों में देते हैं. हालांकि इन समानताओं के बावजूद शंकर और देविना में कई चीजें ऐसी हैं जो उन्हें एक-दूसरे से अलग व्यक्तित्व भी बनाती हैं. मसलन बात करते हुए शंकर जहां बेहद बेफिक्र नजर आते हैं वहीं देविना शब्दों के चयन में सावधानी बरतती हैं. वो इस बारे में कहीं ज्यादा सजग दिखती हैं कि वो किससे बात कर रही हैं और उनके शब्दों का परिणाम क्या हो सकता है, खासतौर पर उनके छपने के बाद. शंकर और देविना को कारोबार की दुनिया के बुद्धिजीवियों के तौर पर देखा जाता है. उनके कई लेख अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रकाशित हो चुके हैं. तहलका से संबंध ने उनके लिए जो मुसीबतें खड़ीं कीं उन पर भी उनका नजरिया किसी बुद्धिजीवी जैसा ही है. ये बात उस लंबी बातचीत के इन हिस्सों से भी झलकती है जो मैंने उनसे इस बारे में की.

देविना मेहरा : अब हमें महसूस हो गया है कि किसी का भी (जेल के) बाहर होना इस वजह से है क्योंकि कोई आपको भीतर नहीं भेजना चाहता. अगर वो कोई ऐसा चाहे तो किसी भी पल आप सलाखों के पीछे हो सकते हैं. भारत में क्रूरता अक्सर खुलेआम नहीं होती. इसकी योजना इस तरह से बनाई जाती है कि ऊपर से ऐसा लगे कि सब कुछ अपने तरीके से हो रहा है और कानून बिना भेदभाव अपना काम कर रहा है. ठीक वैसे ही जैसे अपनी बहू के खिलाफ जहर पाले कोई सास दिन भर पूजा करती हुई नजर आती है और जब परिवार के बाकी लोग देख न रहे हों तो बहू पर अप्रत्यक्ष छुरियां चलाती रहती है. जब इस तरह का कोई (सरकारी) अभियान चलता है तो कभी भी लिखित निर्देश नहीं दिए जाते, न ही फोन पर कोई बात की जाती है. ये निर्देश आमने-सामने की मुलाकात के दौरान दिए जाते हैं जिसका कोई गवाह नहीं होता. ये स्थिति खुले तौर पर तानाशाही वाले शासन से कहीं बदतर होती है…

13 मार्च 2001 की सुबह पहले जब शंकर ने तरुण तेजपाल से बात की तो उस समय उनकी चिंता सिर्फ ये थी कि तरुण उनका पैसा बर्बाद करने वाले हैं और तहलका से बाहर निकलने की उनकी योजना खटाई में पड़ने वाली है. हालांकि शंकर का उस समय भी मानना था कि तरुण को तहलका में सुभाष चंद्रा के निवेश तक इंतजार करना चाहिए था जो जल्द ही होने वाला था. उधर, तरुण को सरकार की ताकत का पता था और उनके पास कोई विकल्प नहीं था.

शंकर शर्मा : अगर आपने कोई स्टिंग ऑपरेशन किया और इसके सार्वजनिक होने से पहले ही इन गुंडों को इसका पता चल गया तो इसका मतलब है कि आपको जासूसी के आरोप में जेल की हवा खानी पड़ेगी. कल्पना कीजिए कि अगर ये सावर्जनिक नहीं हुआ होता और इन लोगों को मैथ्यू सैमुअल या किसी और की असलियत का पता चल जाता तो उन्होंने उसे सीधे रास्ते से हटा दिया होता, वो उसे सीधे आईएसआई का जासूस या मुजाहिदीन करार दे देते.

मधु त्रेहन : तहलका  में पैसा लगाने के परिणाम आपको पहली बार कब महसूस होने शुरू हुए?

शंकर : तब जब द इकॉनॉमिक टाइम्स  के दिल्ली संस्करण में मनगढ़ंत खबरें छपनीं शुरू हुईं. 15 मार्च से अजीब-सी कहानियां सामने आने लगीं. हमें लगने लगा कि कुछ न कुछ खिचड़ी पक रही है. फिर बंगारू के जाने के बाद भाजपा के अध्यक्ष बने जन कृष्णमूर्ति का बयान आया कि ये साजिश है. फिर किसी ने कहा कि ये कांग्रेस की साजिश है

देविना : बीजेपी ने बैंगलोर में मोर्चा निकाला और मांग की कि तहलका के पीछे कौन है इसका पता लगाया जाए.

शंकर : तहलका के वित्तीय स्रोत के बारे में सवाल उठाए जा रहे थे. हमें डर लगने लगा. 16 मार्च 2001  को हमने मुंबई में एक प्रेस कांफ्रेंस की. हमने अपने सौदों के सभी रिकॉर्ड्स दिखाए. हमने कहा कि इनकी हर तरह से जांच कर ली जाए. अपने 10 साल के कारोबार में हमने काफी सम्मान कमाया था…

शंकर और देविना की अप्रैल के पहले हफ्ते तक न्यूयॉर्क में रहने की योजना थी मगर उनके मुंबई दफ्तर से आए एक फोन ने इसे बदल दिया

प्रेस कांफ्रेंस करने के बाद उसी रात शंकर और देविना न्यूयॉर्क रवाना हुए जहां उन्हें अमेरिकी स्टॉक एक्सचेंज नैस्डेक की मान्यता हासिल करने के लिए इंटरव्यू देने थे. उड़ान के दौरान उन्होंने इस पर चर्चा की कि उनके लिए इस प्रकरण से क्या मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं. शंकर बताते हैं, ‘हमें लगा कि बुरे से बुरा ये हो सकता है कि आयकर विभाग का छापा पड़ जाए. मगर यदि उन्हें कुछ नहीं मिलेगा तो फिर वो भी क्या कर सकते हैं? भारत में हर कंपनी को पता होता है कि आज नहीं तो कल इन्कम टैक्स डिपार्टमेंट के लोग आएंगे ही. इसका मतलब किसी भी तरह से ये नहीं कि सब कुछ खत्म हो गया.’

शंकर और देविना की अप्रैल के पहले हफ्ते तक न्यूयॉर्क में रहने की योजना थी मगर उनके मुंबई दफ्तर से आए एक फोन ने इसे बदल दिया. ये फोन इन्कम टैक्स ऑफिसर ए ए शंकर का था जिन्होंने लगभग हड़काने वाले अंदाज में शंकर को बताया कि उनका घर सील कर दिया गया है और चूंकि चाबियां उनके पास हैं इसलिए वो तुरंत वापस लौट आएं ताकि घर खोलकर उसकी तलाशी ली जा सके. शंकर और देविना अगली ही फ्लाइट पकड़कर मुंबई पहुंचे. कोलाबा स्थित घर चूंकि सील था इसलिए उन्हें नजदीक के एक होटल में ठहरना पड़ा.

शंकर : मुझे याद है कि ये बड़ा ही अजीब सा अनुभव था. आप अपने घर के बाहर खड़े हैं और आपको अपने घर में सोने की इजाजत नहीं है. मुझे बहुत गुस्सा आया. मैं अपने ही घर में नहीं घुस सकता यार.

देविना : विडंबना ये थी कि उससे पिछले ही साल हमने 20 करोड़ रुपये से भी ज्यादा राशि का टैक्स भरा था. अगर इतना टैक्स भरने के बाद भी आपके साथ ऐसा हो तो टैक्स भरने का मतलब क्या है?

अगली सुबह उन्होंने इनकम टैक्स डिपार्टमेंट को फोन किया. थोड़ी ही देर में उनके घर पर आधा दर्जन अधिकारी आ धमके और उन्होंने घर खंगालना शुरू कर दिया. कपड़े, किताबें, अलमारियां इधर-उधर बिखरने लगे. इसी दौरान समाचार चैनल स्टार न्यूज पर खबर चलने लगी कि शंकर और देविना को मुंबई एयरपोर्ट पर गिरफ्तार कर लिया गया है. शंकर कहते हैं,‘ये खबर चलवाई गई थी. हर तरह की ऊटपटांग खबरें छपवाई जा रही थीं. हम लोग सोच रहे थे कि परिवार में कोई ये खबर पढ़ेगा तो घबरा जाएगा. ये आपकी इज्जत की भी बात होती है यार. गिरफ्तार होना, छापे..बाद में आप पक्के होकर इन चीजों के आदी हो जाते हैं मगर उस समय ये एक बड़ी बात थी.’

शंकर और देविना से नौ दिन तक पूछताछ की गई जो 12 घंटे लंबी भी खिंच जाती थी. एक इनकम टैक्स अधिकारी ने अनौपचारिक तौर पर उन्हें बताया कि छापों का संबंध सिर्फ तहलका से है

उन्होंने अपने परिवार को फोन कर बताया कि वो गिरफ्तार नहीं हुए हैं बल्कि घर पर हैं. शंकर ने फिर स्टार न्यूज में राज रॉय को फोन लगाया और कहा, ‘आप ये क्या बकवास चला रहे हैं? मैं अपने घर पर बैठा हूं.’ रॉय ने शंकर को बताया कि ये रिपोर्ट दिल्ली से आई है. फिर रात नौ बजे के बुलेटिन में ये गलती सुधार ली गई. इनकम टैक्स का छापा आधी रात तक जारी रहा.

शंकर: उन्होंने खाने का ऑर्डर दिया. मेरा गुस्सा बढ़ता जा रहा था. कोई आपके घर आता है और आपका हर सामान उलट-पुलट कर रख देता है.

देविना: बिल्कुल. निजी तौर पर उन सबका कहना था कि ये सब तहलका की वजह से हो रहा है.

शंकर: वो कह रहे थे. हम क्या कर सकते हैं. हमें दिल्ली से ऑर्डर मिले हुए हैं. हम ऐसा करने के लिए मजबूर हैं. मैंने कहा, ठीक है, जो मन में आए करो.

देविका: जल्द ही उन्हें अहसास हो गया कि घर में कुछ नहीं है. वास्तव में कुछ था भी नहीं. घर में ज्यादातर किताबें ही हैं, और कुछ नहीं.

शंकर: सिर्फ एक चीज जिस पर हमें गर्व है वो है हमारी लाइब्रेरी.

शंकर और देविना से नौ दिन तक पूछताछ की गई जो 12 घंटे लंबी भी खिंच जाती थी. एक इनकम टैक्स अधिकारी ने अनौपचारिक तौर पर उन्हें बताया कि छापों का संबंध सिर्फ तहलका से है और इनका अघोषित संपत्ति का पता लगाने से कोई वास्ता नहीं. उसका कहना था कि तहलका पर कोई मामला बनाना जरूरी है.

सेबी अधिकारियों ने शंकर और देविना को आश्वस्त किया कि उन्हें चिंता करने की जरूरत नहीं है क्योंकि दो मार्च 2001 के जिस दिन शेयर बाजार में भारी गिरावट आई थी उस दिन उन्होंने खरीदारी ज्यादा की थी. इसलिए गिरावट से उनका संबंध नहीं जोड़ा जा सकता था जो जांच का ऊपरी मकसद दिख रहा था.

इसके बाद के दिनों में पूछताछ के लिए इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने शंकर और देविना को 230 के करीब सम्मन भेजे. कुछ बार तो ऐसा हुआ कि उन्हें सुबह 11 बजे तीन अलग-अलग जगहों पर पेश होने के सम्मन मिले. उनकी जिंदगी पर डर का घना कोहरा छा गया था. तीन दिन तक उनके घर के बाहर सफेद रंग की एक मारुति वन खड़ी रही. उनके हर कदम पर निगाह रखी जा रही थी. शंकर और देविना आज हंसते हुए बताते हैं कि उस समय उन्होंने सबसे पहला काम ये किया कि ऐसी किताबें खरीद लाए जो तलाशी व जब्ती और भारत के नागरिक के अधिकारों से संबंधित जानकारी पर आधारित थीं.

उनके दफ्तर पर इन्कम टैक्स डिपार्टमेंट के छापे के दौरान 25 साल के एक कर्मचारी को 24 घंटे तक एक कमरे में बंदकर धमकाया गया और इस दौरान उसे न खाना मिला और न पानी. फर्स्ट ग्लोबल के लिए कंसल्टेंट का काम करने वाले नीरज खन्ना से सारी रात पूछताछ की गई. उन्हें सोने नहीं दिया गया जबकि कई अधिकारी अपनी नींद पूरी करते हुए बारी-बारी से उनसे सवाल करते रहे. खन्ना को धमकी दी गई कि अगर उन्होंने शंकर और देविना के खिलाफ लिखे गए बयान पर दस्तखत नहीं किए तो उनका कारोबार लाइसेंस रद्द कर दिया जाएगा. स्टाफ के दूसरे लोगों को भी परेशान किया जा रहा था. जब शंकर और देविना ने उन्हें तलाशी और जब्ती से संबंधित कानून गिनाने शुरू किए तो अधिकारी और भी गुस्से में आ गए. उन्होंने सबसे पहले जो सवाल पूछे वो सब के सब तहलका के बारे में थे. जब शंकर ने उन्हें बताया कि कानून के मुताबिक उन्हें सिर्फ आय से संबंधित सवाल पूछने का अधिकार है तो अधिकारियों का पारा आसमान पर चढ़ गया और वो आईपीसी की धारा 179 के तहत आपराधिक मामला दर्ज करने की धमकी देने लगे. शंकर भी इस पर अड़े रहे कि वो सिर्फ उन्हीं सवालों का जवाब देंगे जो आयकर कानूनों के तहत आते हैं.

पूछताछ तीन से 17 अप्रैल तक चलती रही. मुख्य तौर पर ये तहलका के बारे में थी. जब्त किया गया सब पत्राचार भी तहलका से ही संबंधित था. फर्स्ट ग्लोबल के किसी दूसरे निवेश को लेकर कोई सवाल नहीं पूछा गया जबकि उनके पूरे कारोबार को देखा जाए तो तहलका में उन्होंने अपने बाकी निवेशों की तुलना में शायद सबसे कम निवेश किया था.

फिर रिजर्व बैंक, जिसे पक्षपातरहित संस्था माना जाता है, की तरफ से भी उत्पीड़न शुरू हो गया. नौ अप्रैल 2001 को बैंक ने फर्स्ट ग्लोबल से कहा कि वह लंदन स्थित अपनी इकाई की सालाना प्रदर्शन रिपोर्ट दे जो नियमों के हिसाब से उस साल 31 जुलाई के बाद दी जानी थी. बैंक ने ये भी धमकी दी कि अगर तय दिन तक रिपोर्ट न सौंपी गई तो वो इस मामले को प्रवर्तन निदेशालय को सौंप देगा. समयसीमा के भीतर ये रिपोर्ट बैंक को दे दी गई.

फिर 17 अप्रैल को शंकर को एक आयकर अधिकारी का फोन आया जिसमें कहा गया कि वो अगली सुबह उनके सामने पेश हों. जब शंकर ने ये कहते हुए इसका विरोध किया कि उन्हें कुछ बैठकों में हिस्सा लेना है तो अधिकारी का जवाब था कि उन्हें पेश होना ही होगा. शंकर अगली सुबह 11 बजे उपनिदेशक आर लक्ष्मण के दफ्तर में पहुंचे. कमरे में एक अन्य व्यक्ति नोटपैड और पेन लेकर बैठा हुआ था. लक्ष्मण ने शंकर को बताया कि उनका बयान रिकॉर्ड किया जाएगा. शंकर ने उनसे पूछा कि उन्हें बिना सम्मन दिए उनका बयान कैसे रिकॉर्ड किया जा सकता है तो लक्ष्मण ने कहा कि उन्हें सम्मन भेजने की जरूरत नहीं है. शंकर ने जवाब दिया कि उन्हें भी कानून की जानकारी है और उसके मुताबिक सम्मन जरूरी है. तकरीबन डेढ़ घंटे तक बहस चलती रही और आखिरकार लक्ष्मण ने एक सम्मन तैयार करवाकर शंकर को दिया. शंकर ने फिर पूछा कि कोने में नोटपैड और पेन लेकर बैठा व्यक्ति कौन है. लक्ष्मण ने कहा कि उन्हें कमरे में मौजूद किसी दूसरे आदमी की पहचान बताने की जरूरत नहीं है. शंकर अड़ गए कि वो किसी ऐसे आदमी के सामने अपना बयान दर्ज नहीं करवाएंगे जिसके बारे में उन्हें कुछ भी पता न हो.

18 अप्रैल को रात के साढ़े नौ बजे शंकर को अपने दफ्तर से फोन आया कि कोई फैक्स आया है जो किसी लेटरहेड पर तो नहीं है पर लगता है कि जैसे सेबी ने भेजा हो

शंकर: मैंने कहा, ठीक है, हम यहां दिन भर बैठे रहकर अपना वक्त बर्बाद करते रहेंगे मगर आपको मुझसे कोई जानकारी नहीं मिलेगी. मगर वो उस व्यक्ति की पहचान बताने को तैयार नहीं थे. आखिरकार उस आदमी को कमरे से बाहर जाना पड़ा. मुझे लगता है कि वो आईबी या किसी दूसरी जगह से था. वो बड़ा अजीब सा आदमी दिखता था. उसके जाने के बाद लक्ष्मण ने बयान रिकॉर्ड करना शुरू किया.

देविना: जब हम बयान दर्ज करवाने के दौरान ऐसा भी होता था कि हम एक पेज रिकॉर्ड करते और वो आदमी बाहर जाता और गर्व से अपने बॉस को वो बयान फैक्स कर देता. फिर उधर से फोन आता कि ये वो फलां फलां सवाल हैं जो जरूर पूछने हैं. तो कुल मिलाकर बात ये थी कि हर पेज दिल्ली जा रहा था और वहां से वापस आ रहा था..

18 अप्रैल को रात के साढ़े नौ बजे शंकर को अपने दफ्तर से फोन आया कि कोई फैक्स आया है जो किसी लेटरहेड पर तो नहीं है पर लगता है कि जैसे सेबी ने भेजा हो. शंकर और देविना खाना छोड़कर दफ्तर की तरफ भागे. शंकर बताते हैं कि फैक्स बड़ा अजीब था. ये किसी लेटरहेड पर नहीं था, इसमें किसी के दस्तखत नहीं थे और ये अधूरा लगता था. उन्हें लगा कि ये फर्जी भी हो सकता है क्योंकि इसमें सेबी एक्ट की धारा 11बी का हवाला देते हुए फर्स्ट ग्लोबल को उसके खिलाफ जांच के चलते अपना कारोबार बंद करने का आदेश दिया गया था. शंकर जानते थे कि किसी बोर्ड को ऐसा फैसला करने का अधिकार नहीं है और सिर्फ सेबी अध्यक्ष किसी सूचीबद्ध कंपनी को अपना कारोबार बंद करने का आदेश दे सकता है. इस कानून का इस्तेमाल आपात स्थिति में किया जाता है. इसलिए देखा जाए तो तत्कालीन सेबी अध्यक्ष डी आर मेहता ने कानून का अधिकतम इस्तेमाल कर डाला था. शंकर और देविना सेबी के दफ्तर पहुंचे जहां एक गार्ड ने उन्हें बताया कि सभी अधिकारी अभी-अभी निकले हैं. शंकर के पास एक अधिकारी के घर का फोन नंबर था और उन्होंने उसे फोन लगाया. शंकर बताते हैं, ‘उसका व्यवहार अच्छा था. उसने कहा, ऑर्डर मिल गया आपको? मैंने पूछा, ऐसा क्यों किया जा रहा है. उसने जवाब दिया, कोई कारण हो तो बताऊं. मैंने कहा कि मैं आपसे मिलना चाहता हूं. उसने कहा, मैं इतना शर्मिंदा हूं कि आपसे नहीं मिल सकता. अपने करिअर में मैंने ये सबसे बुरा काम किया है. क्योंकि ये अंतरिम आदेश है इसलिए इसे चुनौती नहीं दी जा सकती और अपना कारोबार चलाने के लिए आपको तत्काल राहत मिलना नामुमकिन है.’ शंकर और देविना अब ये चर्चा करने लगे कि कैसे 300 लोगों को नौकरी से निकाला जाएगा और अपने आफिसों को बंद किया जाएगा…

संयोग की बात है कि ये तब हुआ कि जब फर्स्ट ग्लोबल नैस्डेक की सदस्यता प्रक्रिया से गुजर रही थी. नैस्डेक की टीम अमेरिका से भारत आई हुई थी और उन्होंने फर्स्ट ग्लोबल से इस बारे में सवाल पूछे कि क्यों उनका अपना नियामक ही उन्हें कारोबार बंद करने का आदेश दे रहा है. नैस्डैक टीम ने बारीकी से फर्स्ट ग्लोबल के दस्तावेजों की जांच की और निष्कर्ष दिया कि शंकर और देविना को अपने कारोबार से जुड़ी किसी भी गलती के लिए नहीं सताया जा रहा है. उसने ये भी कहा कि अगर अमेरिका में नैस्डेक ने इस तरह का कोई आदेश दिया होता तो उल्टे ऐसा आदेश देने वालों को लेने के देने पड़ जाते.

घबराए शंकर और देविना लगातार वकीलों से बात कर अगले कदम के बारे में सोच रहे थे. दोपहर तीन बजे सादे कपड़ों में तीन पुलिस सब इंसपेक्टर उनके केबिन में पहुंचे. उन्होंने पूछा कि क्या शंकर का एक दिन पहले किसी इनकम टैक्स डिपार्टमेंट वाले से झगड़ा हुआ है. जब शंकर ने कहा कि नहीं तो उन्होंने कहा कि उनके पास तो यही सूचना है. उसके बाद पुलिसकर्मियों ने शंकर को बताया कि एक अधिकारी ने उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाई है और उन्हें तारदेव पुलिस थाने में चलना होगा. शंकर इसके लिए तैयार हो गए क्योंकि उन्हें पता था कि इस बात में कोई सच्चाई नहीं है. कार में उनके साथ बैठे पुलिसकर्मी ने उन्हें बताया कि उन्हें गिरफ्तार किया गया है और उन पर एक इनकम टैक्स अधिकारी को जान से मारने की धमकी देने का आरोप है. शंकर को अपने कानों पर यकीन नहीं हुआ. देविना का जिंदगी में पहली बार वकीलों से वास्ता पड़ रहा था और उन्हें समझ में नहीं आया कि किस वकील से संपर्क किया जाए.

शंकर को तारदेव थाने लाया गया. दोस्तों की सलाह पर देविना ने क्रिमिनल लॉयर गिरीश कुलकर्णी को फोन लगाया और उनसे मदद मांगी. कार में मौजूद पुलिसकर्मी पहले ही शंकर को बता चुके थे कि इनकम टैक्स कमिश्नर ने पुलिस कमिश्नर को फोन कर कैसे भी उन्हें उसी दिन गिरफ्तार करने को कहा है. शंकर बताते हैं कि पुलिसकर्मियों का व्यवहार अच्छा था और उन्होंने भरोसा जताया कि ऐसी कोई वजह नहीं है कि रात से पहले उन्हें जमानत न मिले. पुलिस शंकर को मजिस्ट्रेट के पास ले गई. पुलिस ने जमानत का विरोध नहीं किया मगर मजिस्ट्रेट ने फिर भी जमानत की अपील ठुकरा दी और शंकर को जेल भेज दिया.

मधु त्रेहन: जेल में घुसते हुए क्या लग रहा था?

शंकर: ये अजीब और डरावना अहसास था. वो मुझे पीछे की तरफ ले गए. फिर हम सीढ़ियों से ऊपर चढ़े जहां लॉकअप था. वहां चार-पांच लोग थे जो किसी दलाल या तस्कर जैसे लग रहे थे. रोशनी बहुत कम थी. फर्श पत्थर का था और जगह-जगह से टूटा हुआ था. तीन तरफ दीवारें थीं और सामने सलाखें. एक खिड़की थी जो काफी ऊंचाई पर थी और आप बाहर नहीं देख सकते थे. सब जेलों में छत बहुत ऊंची होती है. दीवारें गंदी थीं, वहां कोई पंखा नहीं था. मैं फर्श पर बैठा रहा.

मधु : सबसे पहले आपके मन में क्या ख्याल आया?

शंकर: मैं खुद से कह रहा था, आखिर ये सब कहां जाकर खत्म होगा? या आगे क्या होगा? ये कैसे हो गया? शायद ये कोई बुरा सपना हो? फिर एक घंटे बाद मुझे बाहर निकालकर फिर से थाने ले जाया गया…

25 सितंबर 2001 को शंकर और देविना चेन्नई एयरपोर्ट पर लंदन के लिए अपनी फ्लाइट का इंतजार कर रहे थे. इमिग्रेशन ऑफिसर ने शंकर का पासपोर्ट देखा और उन्हें रोक दिया. फिर उसने फोन पर किसी से बात की. इसके बाद उसने पूछा, ‘क्या आप वही शंकर शर्मा हैं जिन्होंने तहलका में निवेश किया है?’ शंकर ने पूछा कि इसका इमिग्रेशन क्लियरेंस से क्या लेना-देना है. अधिकारी ने उन्हें बताया कि उन्हें तब तक इंतजार करना होगा जब तक उसे दिल्ली स्थिति वित्त मंत्रालय से अगला निर्देश नहीं मिलता. इंतजार में कई घंटे बीत गए और अधिकारी कुछ भी बताने से इनकार करता रहा. आखिरकर उनका सामान जहाज से उतार दिया गया. अब वो 15 अधिकारियों के बीच खड़े थे जो आपस में खुसर-फुसर करते हुए उनके सामान की तरफ इशारा कर रहे थे. आखिरी अंतर्राष्ट्रीय उड़ान भी जा चुकी थी और एयरपोर्ट लगभग खाली हो चुका था. उनके पासपोर्ट अधिकारियों के कब्जे में थे, उन्हें फोन करने की इजाजत नहीं जा रही थी और दिल्ली से अगले आदेश का इंतजार किया जा रहा था. शंकर और देविना बताते हैं कि ऐसा लग रहा था जसे वो किसी बाहरी देश में हैं. उन्हें ये भी डर लग रहा था कि उनके सामान में ड्रग्स या कोई अवैध चीज रखकर कहीं उन्हें फंसाने की साजिश न हो रही हो. चेन्नई में अपने आफिस के पांच सदस्यों के सिवा वो किसी को भी नहीं जानते थे जिनसे मिलने वो इस शहर में आए थे. शंकर बताते हैं कि वो दोनों इतने डर गए थे कि अगर उनकी उम्र 15 साल ज्यादा होती तो उन्हें दिल का दौरा पड़ जाता. जब शंकर ने कहा कि अब वो और इंतजार नहीं करने वाले तो अधिकारी ने कहा कि जब तक वित्त मंत्रालय से उसे कोई निर्देश नहीं मिलता वो कहीं नहीं जा सकते. तड़के साढ़े तीन बजे एक सीनियर ऑफिसर पहुंचा और उसने कहा कि शंकर के खिलाफ एक लुकआउट नोटिस जारी हुआ है ताकि वो देश से बाहर न जा सकें. आमतौर पर इस तरह का नोटिस सारे हवाई अड्डों के लिए जारी होता है ताकि भगोड़े अपराधी देश से बाहर न जा सकें. शंकर ने कहा कि जब वह मुंबई स्थित अपने घर में किसी आम आदमी की तरह रह रहे हैं तो नोटिस का क्या मतलब है. जब शंकर ने उस अधिकारी से ये नोटिस दिखाने को कहा तो उसने इससे इनकार कर दिया. सुबह पांच बजे दो इनकम टैक्स अधिकारी एयरपोर्ट पहुंचे. उन्होंने अपने नोटपैड निकाले और शंकर और देविना से कहा कि वो उनसे पूछताछ करेंगे. जब शंकर ने उनसे पूछा कि वो किस नियम के तहत ये कर रहे हैं तो उनका जवाब था कि वो इनकम टैक्स डिपार्टमेंट से हैं और कोई भी सवाल पूछ सकते हैं. उनका पहला सवाल था, आप दोनों का नाम क्या है. शंकर ने कहा, ‘अगर आप पहले मेरा नाम पूछते हैं और फिर मेरी तलाशी लेते हैं तो बात समझ में नहीं आती. मेरी तलाशी से पहले आपको मेरा नाम पता होना चाहिए.’ फिर शंकर ने उन्हें आयकर कानून गिनाए और पूछा कि आखिर उनसे किस कानून के तहत पूछताछ की जा रही है. आखिरकार अधिकारियों ने घुटने टेक दिए और कहा कि वो अपने बॉस के आने का इंतजार करेंगे. जल्द ही उनका बॉस भी एक सर्च वारंट के साथ प्रकट हो गया और उसने कहा कि शंकर और देविना के सामान में कुछ कीमती चीजें होने की सूचना मिली है. अधिकारियों ने सामान खंगालना शुरू किया. हर सामान की उलट-पुलट कर तलाशी ली गई. कुछ नहीं मिला. फिर लैपटॉप को खंगाला गया. उसमें भी कुछ नहीं मिला. थकहारकर 11 बजे उन्होंने पंचनामे पर दस्तखत किए और शंकर और देविना को आखिरकार जाने देने का फैसला किया. 30 घंटे तक लगातार जागे रहे और बुरी तरह थके शंकर और देविना ने एयरपोर्ट के सबसे नजदीक स्थित होटल में जाकर आराम करने का फैसला किया. उनकी योजना दिन भर आराम कर शाम को मुंबई की फ्लाइट पकड़ने की थी.

देविना : और फिर फोन की घंटी बजी.

शंकर : देविना ने फोन उठाया

देविना : हां, और आवाज आई, क्या मैं शंकर शर्मा से बात कर सकता हूं?

शंकर : चेन्नई में किसी को भी मालूम नहीं था कि हम थोड़ी ही देर पहले ट्राइडेंट होटल में आए हैं. हमें आए 10 मिनट ही हुए थे. यहां तक कि हमारा अपना स्टाफ भी ये बात नहीं जानता था.

देविना : उसने कहा, प्रदीप सक्सेना. मैंने कभी ये नाम नहीं सुना था इसलिए मैंने पूछा कि आप कौन हैं? उसने कहा कि वो शंकर का पुराना दोस्त है. मुझे अजीब लगा. मैंने कहा कि पुराने दोस्त का मतलब क्या है? आप उन्हें कैसे जानते हैं? उसने कहा कि वो उनके कालेज के दिनों का दोस्त है. मैंने पूछा कि कौन सा कालेज? वो रूम नंबर जानना चाहता था क्योंकि होटल के स्टाफ ने उसे ये नहीं बताया था. आखिर मैंने फोन रख दिया. पांच मिनट बाद 12 लोग कमरे के दरवाजे पर खड़े थे. उन्होंने कहा कि उनके पास सर्च वारंट है और वो कमरे की तलाशी लेंगे.

शंकर: इनमें कुछ लोग वही थे जो एयरपोर्ट पर थे. मैंने उससे कहा कि आप लोग पहले ही मेरी तलाशी ले चुके हैं. एयरपोर्ट पर आपके सामने ही मैंने होटल में कमरा बुक किया था और अब मुझे होटल के इस कमरे में फिर से अपना सामान बिखराना पड़ेगा ये .

देविना: बहुत अजीब था.

अधिकारियों ने होटल के कमरे और उनके सामान की फिर से तलाशी ली. इस बार उनके साथ एक कंप्यूटर विशेषज्ञ भी था जिसने शंकर के लैपटॉप की जांच की. शंकर ने पूछा कि जब उसी लैपटॉप की पहले भी जांच हो चुकी है तो ये कवायद दोहराने का क्या मतलब है. विशेषज्ञ ने ऐलान किया कि लैपटॉप में कुछ नहीं है.

शंकर : मैं पहले ही कह चुका था कि इसमें कुछ भी नहीं है. उस अधिकारी को झटका लगा क्योंकि उनकी नजर में मैं जेम्स बांड की तरह था.(हंसते हैं) मैं एक सूटकेस लेकर चल रहा हूं, मेरे पास एक सिगरेट लाइटर है, एक लैपटॉप है और लैपटॉप में कुछ नहीं है. उनका कहना था कि ये नामुमकिन है.

मैंने कहा कि ऐसा ही है…फिर भी वे लैपटॉप ले गए…

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छापे, पूछताछ, हिरासत, गिरफ्तारी और जेल भाग-2