20 जनवरी को मुंबई पुलिस के आतंकवाद निरोधी दस्ते (एटीएस) ने मालेगांव बम धमाकों से संबंधित 4000 पन्नों का आरोप पत्र न्यायालय में दाखिल किया. पिछले साल सितंबर में हुए इन धमाकों में छह लोग मारे गए थे जिनमें छह साल की एक बच्ची भी शामिल थी. आरोपपत्र लेफ्टि. कर्नल श्रीकांत पुरोहित को मुख्य षड्यंत्रकारी बताता है जिसने विस्फोटकों की व्यवस्था की थी. आरोप ये भी है कि उसका लक्ष्य हिंदू राष्ट्र का निर्माण करना था और वो इजराइल में एक निर्वासित सरकार स्थापित करने की योजना भी बना रहा था. आरोपपत्र में धमाके में इस्तेमाल की गई मोटरसाइकल की मालकिन साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को मुख्य आरोपी बनाया गया है. स्वघोषित धर्मगुरू दयानंद पांडे को कुछ अन्य लोगों के साथ सह-षड्यंत्रकारी बताया गया है. इन अन्य लोगों में 2006 में नांदेड़ में हुए बम धमाकों का आरोपी और हथियार व्यापारी राकेश धवाडे और अभिनव भारत नामक संगठन का कोषाध्यक्ष अजय रहिरकर भी शामिल हैं. ज्यादातर आरोपी इसी संगठन से संबद्ध हैं. इसके अलावा मामले के अन्य आरोपी हैं शिवनारायण कलसांगरा, श्यामलाल साहू, जगदीश म्हात्रे, समीर कुलकर्णी, सुधाकर चतुर्वेदी और रमेश उपाध्याय.
सभी ग्यारह आरोपियों पर मालेगांव में हुए धमाकों के लिए उकसाने उनमें सहयोग करने और उनकी साजिश रचने का आरोप लगाया गया है. जांच अभी भी जारी है क्योंकि संदीप डांगे, रामजी कलसंगरा और प्रवीण पाटिल उर्फ मुतालिक अभी भी फरार हैं. इसके अलावा पुलिस को गुजरात के डांग्स में रहने वाले स्वामी असीमानंद की भी सरगर्मी से तलाश है जो फिलहाल फरार है. इन लोगों के पकड़े जाने की हालत में कई और मामलों, मसलन अजमेर और मक्का मस्जिद के धमाकों, के रहस्य से भी पर्दा उठ सकता है. असीमानंद जिसके बारे में माना जाता है कि उसपर गुजरात के कई ताकतवर लोगों का वरदहस्त है, अभी भी पुलिस की गिरफ्त से दूर है.
आरोप पत्र में दयानंद पांडे के लैपटॉप से मिले ऑडियो और वीडियों रिकॉर्डस, फोन टैपिंग के ट्रांसक्रिप्ट्स, आरोपियों के बीच भेजे गए संदेश, धमाके में आरडीएक्स के इस्तेमाल से जुड़ीं फॉरेंसिक रिपोर्ट्स, आरोपियों की नार्को एनालिसिस रिपोर्ट्स, कुछ आरोपियों की स्वीकारोक्तियां और तकरीबन 300 गवाहों के बयान शामिल हैं. एटीएस अधिकारियों को पूरा विश्वास है कि ये सबूत आरोपियों को सजा दिलाने के लिए पर्याप्त हैं.
जांच के दौरान अभिनव भारत को धन देने वालों में प्रवीण तोगड़िया जैसे नेता का नाम सामने आ चुका है. माना जाता है कि अभिनव भारत की अध्यक्ष हिमानी सावरकर भी आरोपियों के साथ एक बैठक में शामिल हुईं थीं
महाराष्ट्र के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक और वर्तमान में एटीएस का अतिरिक्त कार्यभार संभाल रहे केपीएस रघुवंशी कहते हैं, ‘ये तो इजराइली सरकार से हिंदू राष्ट्र के लिए समर्थन मांगने के लिए भी तैयार थे. ये अपनी विचारधारा से सहमति रखने वालों को अपने साथ जोड़ना चाहते थे.’ दयानंद पांडे के लैपटॉप से मुसलमानों के अत्याचार से जुड़े वीडियो मिले हैं जिनमें तालिबान और इंडियन मुजाहिदीन के दृश्य भी शामिल हैं. इनका उपयोग अभिनव भारत से जुड़े सदस्यों को उकसाने के लिए किया जाता था. कुछ दूसरी वीडियो क्लिप्स में पुरोहित को भारत से मुसलमानों के सफाए की बात करते और अभिनव भारत की बैठकों में धमाके की साजिश रचते हुए दिखाया गया है.
बचाव पक्ष के वकील नवीन चोमल इन आरोपों को सिरे से नकारते हुए कहते हैं कि साध्वी प्रज्ञा को सिर्फ इस आधार पर मुख्य आरोपी नहीं बनाया जा सकता कि धमाके के लिए जिस मोटरसाइकिल का इस्तेमाल हुआ वो उनकी थी. हालांकि बातचीत की ट्रांसक्रिप्ट में साध्वी का धमाकों से संबंध और भी ज्यादा स्पष्ट रूप से सामने आता है. प्रज्ञा शिकायती लहजे में बम रखने के आरोपी रामजी कलसंगरा से कहती हैं – ‘जब तुमने मेरी मोटरसाइकल का इस्तेमाल किया था तब इतने कम लोग क्यों मरे? तुमने इसे भीड़ में क्यों नहीं रखा?’
आरोप पत्र में कहा गया है कि पुरोहित ने अभिनव भारत के लिए 21 लाख रुपए बतौर चंदा इकट्ठा किए थे जिसका उपयोग दुष्प्रचार फैलाने के लिए किया जाना था. इसका वितरण कोषाध्यक्ष अजय रहिरकर ने किया था. आरोपियों ने भोपाल, जबलपुर, कोलकाता, इंदौर और नासिक में 2008 की जनवरी से ही बैठकें करनी शुरू कर दी थीं. 11 अप्रैल 2008 को भोपाल में हुई एक बैठक में मालेगांव को निशाना बनाने के लिए चुना गया. इसके लिए विस्फोटकों का जुगाड़ करने की जिम्मेदारी पुरोहित ने अपने कंधों पर ली. कश्मीर में सेना की खुफिया शाखा में तैनाती से वापस लौटते वक्त वो अपने साथ आरडीएक्स लेकर आया. कलसंगरा, डांगे और मुतालिक ने मिलकर चतुर्वेदी के देवलाली स्थित आवास पर इससे बम तैयार किए. जम्मू का एक हथियार विक्रेता, मिस्त्री, पुरोहित को हथियार बेचता था.
आरोप पत्र आरोपियों को किसी और धमाके से नहीं जोड़ता और एक तरह से इसमें दूसरे दक्षिणपंथी संगठनों को क्लीन चिट दे दी गई है. मगर जांच के दौरान जांचकर्ता अक्सर कहते रहे हैं कि आरोपियों ने भगवा संगठनों के ऐसे कई बड़े नेताओं का नाम लिया है जो उनकी सहायता किया करते थे. इसके अलावा एटीएस के अधिकारी दबे-छिपे इस बात को भी स्वीकार करते हैं कि पकड़े गए 11 आरोपियों के संबंध देश में हुए कई दूसरे धमाकों से होने के भी सबूत मिले हैं. इनमें अजमेर और मक्का मस्जिद में हुए धमाके शामिल हैं. पाकिस्तान द्वारा समझोता एक्सप्रेस में हुए धमाकों के आरोप में पुरोहित के प्रत्यर्पण की मांग पर रघुवंशी का कहना था – ‘सिर्फ एक गवाह ने बताया था कि समझोता एक्सप्रेस में हुए धमाकों में इस्तेमाल आरडीएक्स की आपूर्ति करने का दावा पुरोहित ने किया था. हमारी जांच में ऐसी कोई बात सामने नहीं आई है.’ 4 अक्टूबर 2008 को साध्वी और पुरोहित के बीच हुई बातचीत की ट्रांसक्रिप्ट इशारा करती है कि हो सकता है कि मालेगांव में बम रखने वाले रामजी कलसंगरा की हत्या हो गई हो.
ट्रांसक्रिप्ट
प्रज्ञा ठाकुर: मैंने कुलकर्णी से रामजी कलसंगरा को अपने आश्रम लेकर आने के लिए कहा है. मेरे लोग उसे दयानंद पांडे के पास ले जाएंगे और वहीं हम उससे निपट लेंगे
पुरोहित: मैं कलसंगरा से मिल कर पूछना चाहता हूं कि मालेगांव में क्या चूक हो गई.
प्रज्ञा: अगर आप उससे मिलना चाहते हैं तो जबलपुर आ जाइए.
पुरोहित: क्या रामजी को इस तरह से ठिकाने लगाना ठीक होगा?
प्रज्ञा: बिल्कुल, हम कोई खतरा नहीं उठा सकते.
सूत्र इस मामले में फरार चल रहे आरोपी प्रवीण मुतालिक का संबंध कर्नाटक में हाल ही में गिरफ्तार श्री राम सेना के अध्यक्ष प्रमोद मुतालिक से भी जोड़ते हैं. प्रवीण मुतालिक पर 10 मई 2008 को – सिमी नेता सफदर नागौरी को पेश किए जाने से दो दिन पहले – हुबली में हुए धमाकों में शामिल होने का आरोप है. इस मामले में सबसे अहम सुराग है वो सिमकार्ड जिसका उपयोग मालेगांव में धमाका करने के लिए किया गया. अजमेर और मक्का में भी कुछ इसी तरह से धमाके किए गए थे.
जांच के दौरान अभिनव भारत को धन देने वालों में प्रवीण तोगड़िया जैसे नेता का नाम सामने आ चुका है. माना जाता है कि अभिनव भारत की अध्यक्ष हिमानी सावरकर भी आरोपियों के साथ एक बैठक में शामिल हुईं थीं. इन्हें सबूतों के अभाव में आरोपी नहीं बनाया जा सका. एटीएस का ये भी कहना है कि अन्य धमाकों में इन आरोपियों की भूमिका की जांच करने का काम संबंधित राज्यों की एजेंसियों का है. इसके साथ ही एटीएस ने उन सैन्य अधिकारियों और भगवा संगठनों के कुछ नेताओं को भी क्लीनचिट दे दी है जिनसे उसने जांच प्रक्रिया के दौरान पूछताछ की थी. पूरी जांच के दौरान 400 गवाहों को तलब किया गया था.
आरोप पत्र चार महीने की पड़ताल के बाद दाखिल किया गया है. इस दौरान एटीएस के पूर्व मुखिया हेमंत करकरे – जिन्होंने इस भयावह दक्षिणपंथी आतंक का चेहरा बेनकाब किया था – की शहादत और मुंबई पर हुए हमलों के चलते कई दिनों तक जांच संभव ही नहीं हो सकी