जानलेवा साबित हो रही रैगिंग

हाल में केरल के कोट्टायम के सरकारी कॉलेज ऑफ नर्सिंग में सीनियर्स द्वारा जूनियर छात्र के साथ क्रूर रैगिंग की घटना का वीडियो सामने आने के बाद यह एक बार साफ़ हो गया है कि रैगिंग की रोकथाम के लिए बना क़ानून, सर्वोच्च अदालत के दिशा-निर्देश व विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के रैगिंग को रोकने के लिए चलाये जाने वाले कार्यक्रम कारगर नतीजे नहीं ला पा रहे हैं। यह चिन्ता का सबब है। वीडियो में दिख रहा है कि जूनियर छात्र चारपाई पर पड़ा हुआ है और उसके हाथ पैर बाँधे हुए हैं। जब उसके गुप्तांगों पर डंबल रखे जाते हैं, तो वह दर्द से चीखता है और सीनियर्स हँसते हैं। ज्योमेट्री डिवाइडर से उसके शरीर के कई हिस्सों को चुभाया जाता है और पेट पर गोले बनाये जाते हैं। जूनियर के पैर से ख़ून बह रहा है। सीनियर्स अन्य डरे हुए छात्रों को वीडियो बनाने के लिए कहते हैं। जब भयानक कृत्य वाला यह वीडियो सामने आया, तो पुलिस ने जाँच शुरू की और आरोपी पाँचों छात्रों को गिरफ़्तार कर लिया।

उधर केरल नर्सेज एंड मिडवाइव्स काउंसिल ने तृतीय वर्ष के आरोपी इन पाँचों छात्रों को पढ़ाई जारी रखने से रोकने का फ़ैसला किया है। इस काउंसिल की एक सदस्य का मानना है कि यह निर्णय इस तरह से लिया गया है कि उन्हें अपनी पढ़ाई जारी रखने का कोई मौक़ा नहीं मिलेगा। ऐसे व्यक्तियों को नर्सिंग पेशे में आने की अनुमति देना विनाशकारी होगा। यही नहीं इस सरकारी कॉलेज के प्रिंसिपल व एक असिस्टेंट प्रोफेसर को भी निलंबित कर दिया है। इस घटना के बाद इसी कॉलेज के कई और छात्रों ने भी रैगिंग का शिकार होने वाले अपने अनुभवों को अब साझा किया है।

दरअसल भारत के शैक्षणिक संस्थानों में रैगिंग सम्बन्धित केरल की नवीनतम घटना अपने आपमें कोई अपवाद नहीं है। आँकड़ों पर निगाह डालें, तो पता चलता है कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) की हेल्पलाइन पर 2012-2023 के दरमियान 8,000 रैगिंग की शिकायतें दर्ज की गयीं। इन शिकायतों में 208 प्रतिशत का उछाल देखा गया। इन 8,000 शिकायतों में से 1,202 शिकायतें उत्तर प्रदेश की हैं, यह अन्य राज्यों की तुलना में सबसे अधिक हैं। यानी उत्तर प्रदेश पहले नंबर पर है। यह हालात तब हैं, जब यहाँ के बीते सात साल से मुख्यमंत्री पद सँभाले योगी अक्सर यह डंका पीटते सुनायी पड़ते हैं कि इस राज्य में क़ानून का उल्लघंन करने वाले की $खैर नहीं। रैगिंग के कारण 78 छात्रों ने आत्महत्या कर ली। इनमें से सबसे अधिक 10 आत्महत्या के मामले महाराष्ट्र के हैं।

सवाल यह है कि रैगिंग जारी क्यों है? यह सवाल इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि देश में रैगिंग को रोकने के लिए रैगिंग प्रतिषेध अधिनियम-2011 है। इसके तहत जो कोई भी व्यक्ति प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से किसी शैक्षणिक संस्थान के अंदर या बाहर रैगिंग करता है, उसमें भाग लेता है, उसे बढ़ावा देता है या उसका प्रचार करता है, उसके अपराधी साबित होने पर दो साल तक की जेल या 10 हज़ार रुपये तक का ज़ुर्माना या दोनों ही हो सकते हैं। रैगिंग एक संज्ञेय अपराध है यानी ऐसा अपराध, जिसके लिए पुलिस बिना वारंट के अपराधी को गिरफ़्तार कर सकती है। सन् 2009 में सर्वोच्च अदालत ने रैगिंग को रोकने के लिए कई दिशा-निर्देश जारी किये थे।

इसमें रैगिंग को रोकने के लिए शैक्षणिक संस्थानों में प्रॉक्टोरियल समितियाँ बनाना, ऐसी घटनाओं की पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराना आदि शामिल हैं।

इसके अलावा यूजीसी ने भी उच्च शिक्षण संस्थानों में रैगिंग रोकने के नियम बनाये हैं। इन नियमों के तहत दोषी छात्र का कक्षा से निलंबन हो सकता है। छात्रवृत्ति और सरकारी सुविधाओं को रोकना, हॉस्टल से निलंबन या निकालना, उसका दाख़िला रद्द करना आदि। लेकिन अहम सवाल यह उठता है कि कितने शैक्षणिक संस्थानों में ऐसे नियमों का पालन गंभीरता से होता है। कमज़ोर पालन के चलते भी छात्र रैगिंग के शिकार होते हैं। शैक्षणिक संस्थानों के प्रशासन की इस मामले में बरतने वाले सुस्त नज़रिये की सज़ा जूनियर छात्र भुगतते हैं। भारत इस समय सबसे अधिक युवा आबादी वाला देश है और प्रधानमंत्री भी समय-समय पर इस युवा शक्ति की भरपूर ऊर्जा के इस्तेमाल का आह्वान करते रहते हैं। वह बीते 11 सालों से प्रधानमंत्री हैं; लेकिन इस अवधि में रैगिंग के मामलों में वृद्धि हुई है।