भारत के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने 92 साल की उम्र में 26 दिसंबर 2024 की रात 9 बजकर 51 मिनट पर इस दुनिया को छोड़ दिया। तबीयत ख़राब होने की वजह से उन्हें दिल्ली के एम्स अस्पताल में उस दिन रात 8:00 बजे के क़रीब भर्ती कराया गया था। पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के देहांत के बाद देश के अलावा पूरी दुनिया से शोक संदेश आये और बड़ी संख्या में लोगों को उनके किये गये अच्छे काम और दुनिया भर में छाई मंदी के दौरान जब भारत के पास महज़ 15 दिन का पैसा बचा था और आर्थिक मामलों में देश दुनिया में बहुत पीछे खड़ा था, तब उन्होंने भारत की बाग़डोर सँभालकर न सिर्फ़ आर्थिक रूप से मज़बूत करके दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी ताक़त बनाया था, बल्कि देश में विकास भी ख़ूब किया। लेकिन उन्हीं पढ़े-लिखे प्रधानमंत्री को साल 2014 में सत्ता परिवर्तन के बाद प्रधानमंत्री बने नरेंद्र मोदी ने कभी मौन मोहन सिंह कहा, तो कभी रेन कोट पहनकर नहाने वाला प्रधानमंत्री कहा। आज भारत जिस आर्थिक संकट और महँगाई से गुज़र रहा है, वो यह साफ़ करता है कि एक पढ़े-लिखे अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और आज के डींगें हाँकने वाले 56 इंची छाती का दावा करने वाले घुमक्कड़ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी में क्या अंतर है? इसे लेकर अब देश-विदेश में चर्चा भी हो रही है।
आज न सिर्फ़ बैंकों में आर्थिक संकट है, बल्कि देश पर चार गुने से ज़्यादा क़र्ज़ पिछले 10 वर्षों में हो चुका है। डॉलर के मुक़ाबले रुपया भी जितनी तेज़ी से कमज़ोर हुआ है और जितनी तेज़ी से बेरोज़गारी और महँगाई बढ़ रही हैं, वो सब चीज़ें उन्हीं मौन मोहन सिंह जैसे प्रधानमंत्री को याद करने को लोगों को मजबूर कर रही हैं। हालाँकि ये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शब्द हैं। लोगों की नज़र में तो पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के लिए एक सम्मान है, जो हमेशा रहेगा। क्योंकि उनके समय में भारत की जनता जितनी सुखी थी, उतनी आज किसी भी एंगल से नहीं दिखती। आज एक भी क्षेत्र ऐसा नहीं दिखायी देता, जिसमें मोदी सरकार ने मनमोहन सिंह सरकार से ज़्यादा अच्छा काम किया हो। फिर भी अपनी पूर्ववर्ती सरकारों को पानी पी-पीकर कोसने वाले देश के पहले और इकलौते प्रधानमंत्री मोदी डींगें हाँकने में पीछे नहीं हैं।
साल 2004 में एनडीए की अटल सरकार के कार्यकाल पूरे होने पर लोकसभा चुनाव जीतकर यूपीए सरकार बनने पर उस समय की कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने अर्थशास्त्री डॉ. मनमोहन सिंह को देश का प्रधानमंत्री पद सँभालने का न्योता दिया और उन्होंने पूरे 10 साल जून, 2014 तक प्रधानमंत्री के रूप में देश की सेवा की। अपनी सादगी और गंभीर सोच के लिए पहचाने जाने वाले डॉ. मनमोहन सिंह ने अपने प्रधानमंत्री के इस दो पंचवर्षीय कार्यकालों के दौरान 100 से ज़्यादा प्रेस कॉन्फ्रेंस कीं। उनकी गिनती न सिर्फ़ भारत के जाने-माने अर्थशास्त्रियों में होती है, बल्कि उनका लोहा पूरी दुनिया मानती थी। वे कभी किसी विदेशी प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति के जबरन गले नहीं पड़े; लेकिन उनका सम्मान पूरी दुनिया में होता था। प्रधानमंत्री बनने से पहले डॉ. मनमोहन सिंह वित्त मंत्रालय के आर्थिक सलाहकार, वित्त सचिव और देश के सबसे बड़े केंद्रीय बैंक भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर जैसे महत्त्वपूर्ण पदों पर रहकर देश की सेवा कर चुके थे। वे आरबीआई के 15वें गवर्नर थे। शान्त, विनम्र और गंभीर स्वभाव के प्रधानमंत्री के रूप में अपनी पहचान बनाने वाले डॉ. मनमोहन सिंह इतने समझदार थे कि उन्हें कभी डींगें हाँकते या ग़ुस्सा करते हुए नहीं देखा गया। ईमानदारी के मामले में भी वे लाल बहादुर शास्त्री जैसे प्रधानमंत्री और डॉ. अब्दुल कलाम जैसे राष्ट्रपति की क़तार में खड़े दिखते हैं। प्रधानमंत्री रहते हुए भी उनकी संपत्ति में सरकारी पेंशन और तनख़्वाह के अलावा कोई अतिरिक्त बढ़ोतरी नहीं देखी गयी। साल 2013 में प्रधानमंत्री के तौर पर डॉ. मनमोहन सिंह ने अपनी संपत्ति का एक हलफ़नामे में ख़ुलासा करते हुए बताया था कि उनके पास दो घर (दिल्ली और चंडीगढ़), क़रीब 3.46 करोड़ रुपये बैंक बैलेंस, 150.80 ग्राम सोना और एक मारुति कार 800 उस समय थी। उनकी दी गयी जानकारी के मुताबिक, उनकी नेट बर्थ महज़ 15 करोड़ 77 लाख रुपये के आसपास थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भले ही उन्हें मौन मोहन सिंह और रेनकोट पहनकर नहाने वाला प्रधानमंत्री कहा; लेकिन आज तक डॉ. मनमोहन सिंह पर न तो किसी प्रकार के भ्रष्टाचार का आरोप लग सका और न ही उनके ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार सम्बन्धी कोई शिकायत या टिप्पणी कोई कर सका। इसके पीछे न सिर्फ़ उनकी ईमानदारी थी, बल्कि उनका सरल और देश को तरक़्क़ी देने वाला स्वभाव था।
साल 2004 से साल 2014 तक डॉ. मनमोहन सिंह भारत के प्रधानमंत्री रहे, और उनकी पहचान एक ईमानदार, चिंतक, दूरदर्शी, समझदार प्रधानमंत्री के रूप में दुनिया भर में स्थापित हुई। अपने विरोधियों के भला-बुरा कहने, आलोचना होने और मीडिया के सवालों पर पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह कभी विचलित नहीं हुए और हर सवाल का जवाब उन्होंने देश को दिया। देश हित में वेलफेयर प्रोग्राम की शुरुआत करने वाले वे पहले प्रधानमंत्री बने। इन प्रोग्राम्स में नेशनल रूरल इंप्लाइमेंट गारंटी एक्ट (नरेगा) और राइट टू इनफार्मेशन एक्ट (सूचना का अधिकार) जैसे महत्त्वपूर्ण प्रोग्राम शामिल हैं। उनकी सोच शहरों की तरह गाँव के लोगों को गाँव में ही रोज़गार देने के प्रयास की रही, जिससे शहरों में भीड़ न बढ़े और निम्न स्तर पर गुज़र-बसर करने वाले मज़दूरों को भी कम-से-कम 100 दिन का सरकारी कामों में रोज़गार मिल सके। उनकी सरकार ने मनरेगा के ज़रिये ग़रीबों को सशक्त करने और गवर्नेंस को बेहतर बनाने पर काम किया। आज उनकी तारीफ़ न सिर्फ़ भारत के मित्र देशों, बल्कि भारत के दुश्मन देशों के नेता भी करके उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं। इमरान ख़ान की पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ़ के नेता फ़वाद चौधरी ने तो अपने एक्स के सोशल अकाउंट पर लिखा है कि ‘डॉ. मनमोहन सिंह के निधन के बारे में सुनकर दुख हुआ। भारत आज जिस आर्थिक स्थिरता का आनंद ले रहा है, वह काफ़ी हद तक उनकी दूरदर्शी नीतियों के कारण है। उनका जन्म झेलम के गाह गाँव में हुआ, जो अब पंजाब (पाकिस्तान) के चकवाल में पड़ता है। झेलम के बेटे डॉ. सिंह इस क्षेत्र के लोगों के लिए एक प्रेरणा की तरह है।
बता दें कि डॉ. मनमोहन सिंह का जन्म 26 सितंबर, 1932 को अंग्रेजी हुकूमत के समय अविभाजित भारत के पंजाब राज्य के गाह गाँव में हुआ था, जो अगस्त, 1947 के भारत विभाजन के दौरान पाकिस्तान के हिस्से में चला गया। मनमोहन सिंह की प्रारंभिक शिक्षा उनके गाँव में ही हुई। अपने घर से सम्पन्न मनमोहन सिंह की बाद की पूरी उच्च शिक्षा प्रतिष्ठित कैम्ब्रिज और ऑक्सफोर्ड जैसी यूनिवर्सिटीज में हुई। साल 1991 में जब भारत गंभीर आर्थिक संकट से गुज़र रहा था, तब डॉ. मनमोहन सिंह ने भारतीय अर्थव्यवस्था को मज़बूत करने के लिए उदारीकरण की दिशा में कई ऐतिहासिक क़दम उठाये। इसी तरह उनके प्रधानमंत्री के कार्यकाल के दौरान भारत दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थ-व्यवस्थाओं में शामिल हुआ। उनकी विदेश नीति और विदेश व्यापार नीति इतनी जबरदस्त थी कि उनके कार्यकाल में भारत ने दुनिया में कई नये आयाम स्थापित किये। इसी तरह शिक्षा, स्वास्थ्य और ग्रामीण विकास में भी उनकी दूरदर्शी सोच का मुक़ाबला उनके बाद की केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री नहीं कर सके। पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की ईमानदारी, दूरदर्शिता, उनकी नीतियाँ और उनके नेतृत्व की क्षमता भारतीय राजनीति में उनकी एक अलग पहचान बनाती हैं। उनके समय में भारत के पाकिस्तान से विवाद कम हुए थे। चीन की भी उनके शासनकाल में भारतीय सीमा में घुसने की कभी हिम्मत नहीं हो सकी।
अपने कार्यकाल के दौरान साल 2009 में प्रधानमंत्री रहते हुए जब डॉ. मनमोहन सिंह गंभीर रूप से बीमार हुए और दिल्ली के एम्स में उन्हें भर्ती कराया गया, तब उनकी क़रीब 10-12 घंटे की लंबी कोरोनरी बाईपास सर्जरी हुई थी। उस समय डॉ. मनमोहन सिंह की सर्जरी करने वाले वरिष्ठ कार्डियक सर्जन डॉ. रमाकांत पांडा ने हाल ही में पूर्व प्रधानमंत्री के परलोक सिधारने पर एक चैनल पर दिये साक्षात्कार में बताया है कि इतनी लंबी सर्जरी के बाद जब डॉ. मनमोहन सिंह को होश आया, तो सबसे पहले उन्होंने अपनी सेहत को लेकर नहीं, बल्कि देश और कश्मीर की ख़ैरियत को लेकर पूछा था। जब उनकी साँस लेने वाली पहली नली निकाली गयी, जिससे वह बात कर सकें, तो उन्होंने मुझसे सबसे पहले यही पूछा कि मेरा देश कैसा है? कश्मीर कैसा है? मैंने कहा कि लेकिन आपने मुझसे अपनी सर्जरी के बारे में कुछ नहीं पूछा? तो उनका जवाब था कि मुझे सर्जरी की चिन्ता नहीं है। मुझे अपने देश की ज़्यादा चिन्ता है। वरिष्ठ सर्जन डॉ. रमाकांत पांडे ने बताया कि जब सर्जरी हो गयी थी, उसके बाद डॉ. मनमोहन सिंह जाँच के लिए एम्स जाते थे, तो हम उन्हें लेने गेट पर जाते थे। लेकिन वह हमेशा हमसे ऐसा करने को बड़ी विनम्रता से मना करते थे। डॉ. रमाकांत ने यहाँ तक कहा है कि वे (डॉ. मनमोहन सिंह) एक महान् इंसान, विनम्र व्यक्ति और देशभक्त थे। वह मेरे आदर्श थे।
पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को भारत के आर्थिक सुधारों का वास्तुकार कहा जाता है। एनडीए की सरकार में प्रधानमंत्री रहे अटल बिहारी वाजपेई के पाँच साल के शासन के बाद पूरे 10 साल तक वह देश के प्रधानमंत्री रहे; लेकिन कभी किसी कंट्रोवर्सी में नहीं फँसे और न ही जनता में उनकी निंदा इस क़दर हुई कि वह आलोचना के पात्र बन सकें। उनके बयानों में भी कभी कोई कंट्रोवर्सी रही और न ही उन्होंने कभी अपनी पूर्ववर्ती सरकारों को कोसा। उन्हें जहाँ से देश की बाग़डोर मिली, वहीं से अपनी ज़िम्मेदारी सँभालते हुए देश को आगे बढ़ाया और एक दूरदर्शी प्रधानमंत्री की तरह उतनी ही विदेश यात्राएँ कीं, जितनी देश के कामों के लिए ज़रूरी थीं। पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने कभी भी भारत या किसी अन्य देश में जाकर न ही अपने चहेते लोगों को ठेके दिलाने का काम किया और न ही किसी पूँजीपति से कोई दोस्ती का रिश्ता रखा। अपने रिश्तेदारों और सहयोगियों की भी मदद भी उन्होंने कभी अपने पद की गरिमा तार-तार करके नहीं की। अन्ना हजारे के आन्दोलन में जिस प्रकार से उनके नेतृत्व वाली यूपीए सरकार, ख़ासकर कांग्रेस पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे; डॉ. मनमोहन सिंह का उससे दूर-दूर तक कोई नाता नहीं दिखा। ऐसे महान् भारत के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के न रहने पर उन्हें आज सिर्फ़ भारत के समर्थक और विरोधी नेताओं के साथ-साथ देश की जनता ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया भावभीनी श्रद्धांजलि देकर याद कर रही है। वह हमेशा हमें एक अच्छे प्रधानमंत्री के रूप में याद रहेंगे और इस बात की प्रेरणा हर उस देश भक्त अच्छे नागरिक को दिलाते रहेंगे कि देश हित में काम किस तरह से ख़ामोशी से किया जाता है। अलविदा डॉ. मनमोहन सिंह!