इन दिनों जहाँ देखो, वहाँ हाहाकार मचा पड़ा है। यह कैसा न्यू इंडिया है? जहाँ सपने बेचकर काँटों की गहरी खाई में डाला जा रहा है और दूसरी ओर देश का पैसा उन कामों में ख़र्च किया जा रहा है, जिनकी ज़रूरत तब ठीक थी, जब देश में ख़ुशहाली होती। लेकिन यहाँ तो लोग ज़िन्दगी की भीख माँगने को मजबूर हो रहे हैं। सवाल यह है कि आज जब पूरे देश में लोग ऑक्सीजन, दवाओं और इंजेक्शन के बग़ैर तड़प-तड़प कर मर रहे हैं, तब प्रधानमंत्री मोदी का अपने सपनों का हवा महल बनवाना कितना उचित हैं? अस्पतालों में ऑक्सीजन पहुँचने की समय सीमा तय नहीं है। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी का नया आवास बनकर तैयार होने की समय-सीमा तय हो चुकी है। जब कोरोना महामारी में तमाम लोग पैदल चलकर मर रहे थे, तब प्रधानमंत्री मोदी ने अपने लिए क़रीब 8,500 करोड़ का विमान ख़रीदा था। जानकार कहते हैं कि इसकी प्रति घंटा उड़ान का ख़र्च ही क़रीब 1 करोड़ 30 लाख रुपये आता है। आख़िर प्रधानमंत्री इतने शौक़िया और क़ीमती ख़र्चे करके देश की सम्पदा को नष्ट क्यों कर रहे हैं? वह भी तब, जब पिछले एक साल से देश का दम घुट रहा है। इतने पर भी दिल्ली में नया प्रधानमंत्री आवास क्यों बनवाया जा रहा है? नया संसद भवन क्यों बनवाया जा रहा है? विदित हो कि इस परियोजना का नाम है- ‘सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट’। अलग-अलग ख़बरें इस प्रोजेक्ट का ख़र्च अलग-अलग बताती हैं। किसी ख़बर में कहा जाता है कि इसकी लागत क़रीब 12,000 करोड़ रुपये आएगी, तो किसी में कहा जाता है कि यह क़रीब 20,000 करोड़ रुपये में बनेगा।
अब ख़बरें आ रही हैं कि नया प्रधानमंत्री आवास, जो इस प्रोजेक्ट का हिस्सा है; दिसंबर, 2022 तक बनकर तैयार हो जाएगा। नया उप राष्ट्रपति आवास भी मई, 2022 तक इसी परिसर में तैयार होगा। देश की राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में लॉकडाउन है। जन-जीवन ठप है। लोगों को इलाज नहीं मिल रहा है। कमाने-खाने के संसाधन छिन रहे हैं। लेकिन सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को निर्माण की ‘ज़रूरी सेवाओं’ में शामिल किया गया है। मगर आज तक देश के बुद्धिजीवियों, न्यायालयों, मीडिया संस्थानों और उच्चाधिकारियों ने सरकार से यह सवाल नहीं किया है कि सरकार को लाशों के ढेर पर सेंट्रल विस्टा को बनाने की इतनी जल्दी क्यों है? हमारे पास दुरुस्त संसद भवन है। लेकिन किसी ने नहीं कहा कि नव-निर्माण छोडक़र आज कोरोना वायरस के संक्रमण से फैली महामारी की भयावह स्थिति में सरकार की प्राथमिकता सर्वप्रथम लोगों की जान बचाने की होनी चाहिए। अस्पतालों में ऑक्सीजन पहुँचाने के बारे में क्या फ़ैसला सरकार ने लिया है? देश को नहीं मालूम है। एक महीने से लोग ऑक्सीजन, बेड, वेंटिलेटर और दवा के बिना जान गवाँ रहे हैं। हर दिन 4,000 से अधिक लोगों के मारे जाने का रिकॉर्ड बन चुका है। देश की जनता को कोरोना-टीके लगवाने के लिए मोदी सरकार के पास पैसा नहीं है। लेकिन हवा महल बनवाने के लिए पैसे हैं; जो लोगों को आश्चर्य में डाल रहा है और आवेशित भी कर रहा है।
जो भारत अपने ग़रीबी के दिनों में भी अपने नागरिकों का मुफ़्त टीकाकरण करता आया है, उसी भारत में अब टीकाकरण के लिए पैसे वसूले जाएँगे। एक-तिहाई से ज़्यादा ग़रीब आबादी का टीकाकरण कैसे होगा? यह सोचने वाला कोई नहीं है। न ही उस पर कोई बहस हो रही है। देशवासियों को निरंतर बताने का प्रयास हो रहा है कि प्रधानमंत्री मोदी बहुत मज़बूत हैं। परिवार को भी साथ नहीं रखते; किसी चीज़ का उन्हें मोह नहीं है। केवल खिचड़ी खाते हैं। कभी-कभी बाजरे की रोटी और पालक की सब्ज़ी खाते हैं। आम के मौसम में आम भी खा लेते हैं। केवल चार घंटे ही सोते हैं। साधारण कपड़े पहनते हैं। इसलिए उनसे प्रश्न करना ‘देशद्रोह’ की श्रेणी में आता है।
अब उनसे यह सवाल कौन पूछे कि जनता की जान बचाना ज़रूरी है या महामारी के चलते लाशों के ढेर पर हवा महल बनवाना ज़रूरी है? हमारा लोकतंत्र रोज़ क्रूरता के नये कीर्तिमान लिख रहा है। कुछ लोग कहने लगे हैं कि ‘मोदी सरकार हर दिन बर्बरता का नया अध्याय लिखती प्रतीत होने लगी है। जनता के पैसे से ही जनता की जान बचाने में मुस्तैदी नहीं है। हवा महल बनवाने में मुस्तैदी है। आज जिस समय भारत पर 50 साल का ऐतिहासिक आर्थिक संकट है। जिस समय महामारी से रोज़ाना हज़ारों लोग मर रहे हैं। जिस समय लोग ऑक्सीजन जैसी मामूली चीज़ के अभाव में तड़पकर मर रहे हैं। उस समय मोदी सरकार की प्राथमिकता प्रधानमंत्री, उप राष्ट्रपति के लिए नया आवास और नयी संसद बनवाना क्या उचित है? मेरे विचार से यह कोई प्रोजेक्ट नहीं, बल्कि यह पूरी भारत की जनता पर किया जा रहा एक क्रूरतम अपराध है। इसको एक तानाशाह की सनक का नतीजा कहना कोई ग़लत नहीं होगा; जो करोड़ों लोगों की जान बचाने की जगह इतिहास में अपना नाम दर्ज कराने पर आमादा है। क्या भारत की जनता ने ऐसे दुर्दिन कभी पहले भी देखे थे?’
बहरहाल मेरे विचार से देश में लाखों लोगों की मौतों को देखते हुए राष्ट्रीय शोक के हालात में और राष्ट्र सर्वोपरि भावना को दृष्टिगत रखते हुए नये संसद भवन, नये प्रधानमंत्री और उप राष्ट्रपति आवास के निर्माण को तत्काल स्थगित किया जाना चाहिए। इसके अलावा सरकार को चाहिए कि वह देश में चल रही तमाम अन्य ख़र्चीली योजनाओं को रोककर उस धन को कोरोना-मरीज़ों की जान बचाने पर ख़र्च करे और राष्ट्र धर्म का पालन करे।
अस्पतालों में ऑक्सीजन और दवाइयों के अभाव में लाखों लोगों की मौतें जारी रहने की स्थिति में नये संसद भवन, नये प्रधानमंत्री और उप राष्ट्रपति आवास का निर्माण कार्य जारी रखना, पीडि़तों और देश की तमाम जनता के साथ अन्याय है। अत: राष्ट्रहित में इनका निर्माण तुरन्त प्रभाव से रोका जाना ज़रूरी है।
माननीय प्रधानमंत्री जी से मेरा अनुरोध है कि उन्हें ऐसी अन्य और विशेषकर इन दो परियोजनाओं को फ़ौरन स्थगित करना चाहिए। इन पर ख़र्च होने वाले धन को महामारी को रोकने और कोरोना-मरीज़ों के जीवन को बचाने में लगवाना चाहिए। देश के लोगों का जीवन बचाना सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट से कहीं बहुत अधिक महत्त्वपूर्ण है। देश स्वतंत्र भारत के इतिहास में सबसे नाज़ुक़ और प्रलयकारी दौर से गुज़र रहा है। यह समय प्रधानमंत्री की परीक्षा का समय है कि वह भव्य इमारतें बनवाने पर राष्ट्रीय सम्पदा को ख़र्च करते हैं या देश के लोगों की जान बचाने के लिए बड़े क़दम उठाते हैं। आज देश में अस्पताल कम पड़ गये हैं। अस्पतालों में मरीज़ों का दा$िखला न के बराबर हो रहा है। लोगों की जान बचाने के लिए हर ज़रूरी चीज़ का अभाव है। यह भी चेतावनी मिल चुकी है कि कोरोना वायरस की तीसरी लहर और भयावह होगी। फिर भी निर्माण कार्यों में दिलचस्पी दिखाना मन में खिन्नता और ग़ुस्सा पैदा तो करेगा ही।
प्रधानमंत्री जी! मुझे बड़े दु:ख और अफ़सोस के साथ कहना पड़ रहा है कि देश मेडिकल आपातकाल की स्थिति में रहा, लेकिन आपके चुनाव एवं रैलियाँ चलती रहीं और महामारी सूनामी बनती रही; लेकिन आपने इसकी ओर ध्यान नहीं दिया। अब भी समय है कि आपकी केंद्र सरकार को और राज्य सरकारों को अपने पास मौज़ूद सभी संसाधनों और सम्पदाओं को लोगों की जान बचाने में लगा देना चाहिए।
दिसंबर, 2022 में प्रधानमंत्री आवास पूर्ण करने और नवंबर, 2022 में ही संसद भवन तैयार करने के निर्देश आपने दिये हैं। 20,000 करोड़ रुपये में सेंट्रल विस्टा को 2022 में पूरा किया जाएगा। हालात ये भी हो सकते हैं कि भारतीय जनमानस इस चकाचौंध को देखकर ग्लानि ही नहीं, अपितु क्षोभ और क्रोध से भर उठे। यही नहीं, सम्भवत: विदेशी आगंतुक बाद में मज़ाक़ उड़ाएँ कि भारत में लाखों लोगों की मौतों के दौरान ये भव्य इमारतें बनी हैं। मान्यवर! देशवासियों की जान की परवाह करें। ये जीएँगे, तो देश जीएगा और हम दुनिया में फिर से बेहतर स्थिति में खड़े हो पाएँगे।
(लेखक दैनिक भास्कर के राजनीतिक संपादक हैं और यह उनके निजी विचार हैं।)