दो साल पहले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जिस बस्ती के विद्यालय में एक सभा को सम्बोधित करके गये थे, अब उस बस्ती के लोगों से उनके घरों को खाली करने के लिए नोटिस जारी किया जा चुका है। मामला सोनभद्र में राबट्र्सगंज विकास खण्ड के ग्राम पंचायत बहुअरा का है, जहाँ के 64 परिवारों को सिंचाई विभाग मीरजापुर नहर प्रखण्ड के ज़िलेदार (द्वितीय) की ओर से एक नोटिस भेजा गया है। इनमें से एक नोटिस में लिखा है- ‘आपको सूचित किया जाता है कि आपके द्वारा सिंचाई विभाग की ज़मीन में ग्राम-बहुअरा के आराजी नं.-….में रकबा 0.037 पर कच्चा, पक्का मकान/जोत-कोड़ करके अतिक्रमण किया गया है, जो कि अवैधानिक कार्य है। इस सम्बन्ध में यदि आपको कोई आपत्ति हो, तो दिनांक 26/06/2020 को 10 बजे दिन कार्यालय ज़िलेदारी द्वितीय मिर्ज़ापुर नहर प्रखण्ड राबट्र्सगंज सोनभद्र में उपस्थित होकर अपनी सफाई पेश करें। अन्यथा मियाद गुज़रने के बाद कोई आपत्ति नहीं सुनी जाएगी और यह समझा जाएगा कि उक्त घटना सत्य है तथा आपके विरुद्ध वैधानिक कार्यवाही अमल में लायी जाएगी।’
उत्तर प्रदेश सिंचाई विभाग के अधीन मीरजापुर नहर प्रखण्ड के ज़िलेदार (द्वितीय) का यह नोटिस राबट्र्सगंज विकास खण्ड के ग्राम पंचायत बहुअरा निवासी करीब 60 वर्षीय निर्मल कोल को मिला है। निर्मल कोल आठ सदस्यों के परिवार के मुखिया हैं। अब कोल और उनके परिजन परेशान हैं। कोल का कहना है कि वह यहीं जन्मे। यहाँ उनके परिवार की बसावट यहाँ करीब 70 साल से है। हमारे बाप-दादा यहीं रहे और मरे। अब हम लोग कहाँ जाएँगे? कोल के दर्द भरे बयान का वीडियो ‘तहलका’ के पास उपलब्ध है। कोल के परिवार में उनकी पत्नी श्याम प्यारी, बेटा शिव शंकर, बेटी ज्योति, शिव शंकर की पत्नी सरोज, उसका एक बेटा और एक बेटी है। राबट्र्सगंज तहसील प्रशासन की रिपोर्ट की मानें, तो निर्मल कोल भूमिहीन हैं और 0.037 हेक्टेयर (करीब तीन बिस्वा) ज़मीन पर बने कच्चे मकान में रहते हैं।
बस्ती के सभी 64 परिवारों का करीब-करीब ऐसा ही हाल है। नहर प्रखण्ड की नोटिस के बाद उन्हें हर वक्त बेघर होने का डर सता रहा है। प्रशासन की गाडिय़ाँ बस्ती की ओर मुड़ते ही ये लोग डर से काँप जाते हैं कि कहीं उन्हें बेघर न कर दिया जाए? बस्ती के लोग पूछते हैं कि दशकों से बाप-दादा के समय से जमी-जमायी गृहस्थी लेकर आिखर हम लोग कहाँ जाएँगे? हमारे पास कोई अन्य ज़मीन भी नहीं है। इसी चिन्ता में निर्मल कोल और बस्ती के अन्य 63 परिवारों की रातों की नींद उड़ी हुई है। क्योंकि बहुअरा बंगला स्थित बस्ती के सभी 64 परिवारों का कहना है कि नहर प्रखण्ड की ओर से उन्हें नोटिस मिला है। अब कोरोना-काल में उन्हें कभी भी बेघर किया जा सकता है। यह सब भाजपा के उत्तर प्रदेश विधान परिषद् सदस्य (एमएलसी) केदारनाथ सिंह के एक पत्र पर हुआ है।
वाराणसी (स्नातक) निर्वाचन क्षेत्र से एमएलसी केदार नाथ सिंह उत्तर प्रदेश विधान परिषद् में भाजपा विधायक दल के मुख्य सचेतक भी हैं। उन्होंने एमएलसी बनने के बाद ग्राम पंचायत बहुअरा में अपने बेटे अमित कुमार सिंह के नाम 2.692 हेक्टेयर (करीब 10.73 बीघा) ज़मीन और इससे सटे ग्राम पंचायत तिनताली में अपनी बहू प्रज्ञा सिंह की कम्पनी ‘जीवक मेडिकल ऐंड रिसर्च सेंटर प्राइवेट लिमिटेड’ नाम से 0.253 हेक्टेयर (एक बीघा) ज़मीन खरीदी है। दोनों ही खेती वाली ज़मीनें हैं; जबकि उत्तर प्रदेश सरकार ने इन दोनों ज़मीनों को गैर-कृषि ज़मीन घोषित करके लगान से मुक्त कर दिया है; जबकि ग्राम पंचायत बहुअरा वाली ज़मीन में अभी भी खेती हो रही है।
इतना ही नहीं, ‘तहलका’ के हाथ लगे सुबूतों और सूचनाओं के मुताबिक, एमएलसी केदार नाथ सिंह ने पद का दुरुपयोग करते हुए विधायक निधि से अपनी बहू की कम्पनी वाली ज़मीन के चारों ओर लाखों रुपये खर्च करके आरसीसी चकरोड, पक्की नाली, विद्युत लाइन, पुलिया आदि की व्यवस्था करा ली है।
ग्राम पंचायत बहुअरा में अपने बेटे अमित कुमार सिंह के नाम से खरीदी ज़मीन तक विधायक निधि के करोड़ों रुपये खर्च करके तिनताली मोड़ से विद्युत लाइन पहुँचायी गयी है। इस विद्युत लाइन की दूरी करीब डेढ़ किलोमीटर है। उनके बेटे की ज़मीन को विद्युत लाइन से घेर दिया गया है। उसमें ट्रांसफॉर्मर की भी व्यवस्था की गयी है। विधायक निधि से इस ज़मीन पर सरकारी हैंडपम्प भी लगाया गया है, जबकि इस ज़मीन के पास कोई घर तक नहीं है।
एमएलसी केदार नाथ सिंह ने गत 17 फरवरी को उत्तर प्रदेश सरकार की समन्वित शिकायत निवारण प्रणाली (आईजीआरएस) के माध्यम से मुख्यमंत्री को शिकायत कर ग्राम पंचायत बहुअरा स्थित उत्तर प्रदेश सरकार की 3.470 हेक्टेअर (करीब 15 बीघा) ज़मीन अवैध कब्ज़ेदारों से मुक्त कराकर बाउण्ड्री बनवाकर सरकारी प्रयोग के लिए सुरक्षित किये जाने की गुहार लगायी थी। अगले ही दिन उन्होंने अपने लैटर पैड पर यह शिकायत मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से लखनऊ में की।
केदारनाथ सिंह ने अपने पत्र में लिखा है- ‘वाराणसी-शक्तिनगर मार्ग पर उत्तर प्रदेश सरकार की लगभग 15 बीघा ज़मीन स्थित है। इस सरकारी ज़मीन को वहाँ के स्थानीय दबंगों द्वारा 10 रुपये के स्टाम्प पर एक लाख से तीन लाख बिस्वा बेचकर अवैध रूप से कब्ज़ा दिया जा रहा है। इसमें अधिकांश बाहरी मुस्लिम समुदाय के लोग हैं। नौ बीघा ज़मीन परती खाली ज़मीन है। इस पर बाउंड्री बनवाकर सरकारी कार्य हेतु सुरक्षित कराया जाना जनहित में अति आवश्यक है।’ वह आगे लिखते हैं- ‘उपरोक्त भूखण्ड एसएच-5ए पर स्थित है, जो कीमती है। यह उत्तर प्रदेश सरकार के नाम से दर्ज है। इसे अवैध कब्ज़ा धारकों से मुक्त कराया जाना प्रशासनिक हित में है। जो लोग अवैध कब्ज़ा किये हुए हैं। एवं जिन लोगों ने पैसा लेकर यह अवैध कब्ज़ा करवाया है, उनसे भू-राजस्व की तरह वसूली कराने एवं उनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करायी जानी आवश्यक है। इससे भविष्य में लोग उत्तर प्रदेश सरकार की ज़मीन पर कब्ज़ा न कर सकें।’ उन्होंने पत्र की प्रति सोनभद्र के ज़िलाधिकारी, प्रमुख सचिव (राजस्व) और विंध्याचल मण्डल के आयुक्त को भी प्रेषित की।
मुख्यमंत्री कार्यालय के विशेष कार्याधिकारी आर.एन. सिंह ने 20 फरवरी को एमएलसी के पत्र पर मिर्ज़ापुर के मण्डलायुक्त से दो सप्ताह के अन्दर जाँच आख्या तलब की। मण्डलायुक्त ने भी 22 फरवरी को सोनभद्र के ज़िलाधिकारी को पत्र लिखकर मामले की जाँच करके कार्रवाई करने का निर्देश दिया। मामला एमएलसी से जुड़ा होने की वजह से सोनभद्र ज़िला प्रशासन ने तुरन्त मामले की जाँच का आदेश दे दिया।
राबट्र्सगंज तहसील के उप-ज़िलाधिकारी ने तहसीलदार और क्षेत्रीय राजस्व निरीक्षक से मामले की जाँच कराकर गत 6 मार्च को जाँच आख्या ज़िलाधिकारी को प्रेषित की। ‘तहलका’ के पास जाँच आख्या की छायाप्रति (फोटो कॉपी) मौज़ूद है। इसमें लिखा है कि ग्राम बहुअरा के आकार पत्र-45 में कुल 19 गाटा (रकबा 3.7470 हेक्टेयर) खाता संख्या-5 पर उत्तर प्रदेश सरकार (एनजेडए) के नाम से दर्ज है, जिसका प्रबन्धन नहर विभाग के पास है। जाँच आख्या में यह भी लिखा है कि मौके पर 64 परिवारों की घनी आबादी है। कुछ आराज़ी नम्बर पर त्रिभुवन सिंह और किशुनलाल ने खेती की है। शेष चार बीघा रकबा रास्ते और गड्ढे के रूप में खाली है। तहसील प्रशासन ने शासन को यह भी सूचित किया है कि मामले में कार्यवाही के लिए सम्बन्धित नहर विभाग को अलग से रिपोर्ट प्रेषित कर दी है।
अगर राबट्र्सगंज तहसील प्रशासन की रिपोर्ट में उल्लिखित विवादित ज़मीन पर निवास करने वाले वर्ग की बात करें, तो इसमें आरक्षित वर्गों के कोल, चमार, बहेलिया, बिन्द, नाई, भाँट, बियार, फकीर, कहार, लोहार, कोइरी, कुर्मी, अहीर, मुस्लिम-अंसार समुदायों के लोग आधे बिस्वा से लेकर पाँच बिस्वा ज़मीन पर कच्चे-पक्के मकान बनाकर रह रहे हैं।
अगर एमएलसी केदारनाथ सिंह के पत्र में उल्लिखित मुस्लिम समुदाय के कब्ज़ेदारों की बात करें, तो कुल 21 मुस्लिम परिवारों को नगर प्रखण्ड की नोटिस मिला है। नोटिस पाने वाले शेष 43 परिवार हिन्दू समुदाय के हैं। इनमें करीब 18 परिवार अनुसूचित जाति वर्ग के हैं। शेष पिछड़ी जाति वर्ग के हैं। केवल एक परिवार उच्च जाति वर्ग से आने वाले पठान समुदाय का है। या यूँ कहें कि नोटिस पाने वालों में से कोई भी उच्च जाति वर्ग से आने वाले एमएलसी केदार नाथ सिंह के समुदाय का नहीं है।
उत्तर प्रदेश सिंचाई विभाग के अधीन मीरजापुर नहर प्रखण्ड के ज़िलेदार (द्वितीय) ने राबट्र्सगंज तहसील प्रशासन की रिपोर्ट पर कार्रवाई करते हुए ग्रामीणों को कोविड-19 वायरस से उपजे वैश्विक संकट के बीच नोटिस भेजकर एक सप्ताह के अन्दर जवाब माँगा। नोटिस मिलते ही ग्रामीणों में हड़कम्प मच गया। कोरोना वायरस जैसी महामारी के संकट में आर्थिक हालत से जूझ रहे ये गरीब अपने-अपने घरों को बचाने के लिए नेताओं और अधिकारियों का चक्कर लगा रहे हैं; लेकिन उन्हें अभी तक कोई राहत नहीं मिली है।
विवादित ज़मीन पर बसे जाटव समुदाय से आने वाले मेवा लाल की पत्नी गीता नोटिस मिलने की बात से ही गुस्से में भरी बैठी हैं। वह कहती हैं कि नोटिस भेजा गया है ताकि हम लोग यहाँ से उजड़ जाएँ। लेकिन हम लोग कानूनी लड़ाई लड़ेंगे, घर छीनने वालों से झगड़ा करेंगे, मगर यहाँ से नहीं जाएँगे। गीता ने ऑन रिकॉर्ड (एक वीडियो) में ये बातें कही हैं।
गीता के परिवार में भी कुल आठ लोग हैं। वह और उनके पति मज़दूरी कर अपने परिवार का खर्च चलाते हैं। उनके तीन बेटे हंसलाल, पिंटू, मिंटू और एक बेटी लक्ष्मीना है। सभी साथ में रहते हैं। बड़े बेटे हंसलाल की शादी हो चुकी है। उसकी पत्नी पिंकी और उनकी लड़की शिवानी की ज़िम्मेदारी भी उन पर है। उन्होंने बताया कि उनकी बहू गर्भवती है। ऐसे हालात में हम कहाँ जाएँगे? हमारे पास इसके अलावा कोई ज़मीन या दूसरा घर भी नहीं है।
गीता के पति मेवा का घर तो प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत ही बना है। ये लोग उसी में रहते हैं और उनके बेटे आवास के पीछे कच्चे मकान में रहकर जीवनयापन कर रहे हैं। इनके पास शौचालय और विद्युत कनेक्शन भी है; लेकिन प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के तहत इनको अभी तक गैस कनेक्शन नहीं मिला है।
फिलहाल नोटिस पाने वाले बस्ती के 64 परिवारों के मुखियाओं ने मिर्ज़ापुर नहर प्रखण्ड के ज़िलेदार (द्वितीय) को लिखित जवाब भेज दिया है और उनसे नोटिस को वापस लेने और निरस्त करने की माँग की है। जवाब में बस्ती वालों ने लिखा है कि उनके द्वारा जारी नोटिस बिल्कुल अवैधानिक और साज़िशन है। उन्होंने सम्बन्धित नोटिस पर सवाल उठाते हुए लिखा है कि नोटिस में आराज़ी संख्या और अतिक्रमण स्थल की चौहद्दी नहीं दी गयी है। आपके द्वारा जारी नोटिस पर कोई विधिक कार्रवाई किया जाना महज़ पद का दुरुपयोग है।
अगर सरकारी ज़मीन पर 64 परिवारों की बस्ती के विकास की बात करें, तो यहाँ सभी घरों में सरकारी विद्युत कनेक्शन दिया गया है। पूरी बस्ती तक आरएसीसी चकरोड (सड़क) का निर्माण कराया गया है।
इंदिरा आवास योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना और मुख्यमंत्री आवास योजना के तहत यहाँ दर्ज़नों घर बने हैं। अधिकतर घरों में सरकार की तरफ से शौचालय का निर्माण कराया गया है। यानी पूरी बस्ती के विकास कार्य में उत्तर प्रदेश सरकार के विभिन्न विभागों द्वारा करोड़ों रुपये खर्च किये गये हैं। अब सवाल उठता है कि अब तक सोनभद्र ज़िला प्रशासन और सिंचाई विभाग का नहर प्रखण्ड क्यों सोता रहा? ज़िला प्रशासन ने बिना वैधानिक ज़मीन के इनके निर्माण को मंज़ूरी किस आधार पर दे दी? फिलहाल उत्तर प्रदेश सिंचाई विभाग के अधीन मीरजापुर नहर प्रखण्ड की ओर से विवादित खाली ज़मीन पर पिछले महीने सिंचाई विभाग के अधिशासी अभियंता, मिज़ापुर की तरफ बोर्ड लगा दिया गया, जिस पर लिखा है कि यह ज़मीन सिंचाई विभाग की है। स्थानीय लोगों ने बताया कि उसी दिन विभाग के अधिकारियों ने खाली पड़ी ज़मीन को ट्रैक्टर से जुताई भी करायी।
बता दें कि ग्राम पंचायत बहुअरा वही गाँव है, जहाँ सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने करीब दो साल पहले 12 सितंबर, 2018 को आये थे। विवादित ज़मीन पर बसी 64 परिवारों की बस्ती से महज़ 25 मीटर दूर स्थित प्राथमिक विद्यालय में आयोजित कार्यक्रम में उत्तर प्रदेश में मुसहरों के विकास के लिए विभिन्न योजनाओं समेत मुख्यमंत्री आवास योजना की शुरुआत की थी। उस समय उनके साथ भाजपा एमएलसी केदारनाथ सिंह भी मौज़ूद थे। मंच से उन्होंने ग्राम पंचायत बहुअरा को गोद लेने की सार्वजनिक घोषणा भी की थी और अब वह इसे खाली कराने पर आमादा हैं, जिससे बस्ती के लोग बहुत परेशान हैं।