कामकाज के दौरान 25% महिला सांसदों को झेलनी पड़ी यौन हिंसा, 76% ने बताई मानसिक प्रताड़ना

अंजलि भाटिया 

नई दिल्ली:  जिसे देश का सबसे गरिमामयी और सुरक्षित संस्थान माना जाता है, वहीं की महिला सांसदों को अपने ही सहयोगियों से यौन उत्पीड़न, मानसिक प्रताड़ना और भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है। इंटर-पार्लियामेंटरी यूनियन (आईपीयू) की ताज़ा रिपोर्ट ने इस गंभीर सच्चाई को उजागर कर पूरे सिस्टम पर सवाल खड़े कर दिए हैं।

आईपीयू द्वारा एशिया-प्रशांत क्षेत्र के 42 देशों में कराए गए इस सर्वेक्षण में सामने आया कि महिला सांसद और महिला स्टाफ सदस्यों को न सिर्फ मानसिक और यौन हिंसा सहनी पड़ रही है, बल्कि कई मामलों में उन्हें शारीरिक उत्पीड़न और सोशल मीडिया पर ट्रोलिंग का भी शिकार होना पड़ा है।

 रिपोर्ट में बताया गया है कि  76% महिला सांसदों और 63% महिला स्टाफ ने मानसिक उत्पीड़न की शिकायत की। 25% महिला सांसदों और 36% महिला कर्मचारियों को यौन हिंसा का सामना करना पड़ा। 24% महिला सांसदों और 27% कर्मचारियों को सोशल मीडिया पर ऑनलाइन उत्पीड़न का शिकार होना पड़ा।13% महिला सांसदों और 5% कर्मचारियों ने शारीरिक हिंसा की घटनाएं बताईं।

40% महिला सांसदों ने स्पष्ट रूप से कहा कि वे कार्यस्थल पर खुद को असुरक्षित महसूस करती हैं।

85% मामलों में उत्पीड़न करने वाले उनके ही पुरुष सहयोगी या पार्टी के सदस्य पाए गए।

संसद भवन में महिलाएं सिर्फ कानून नहीं बना रहीं, बल्कि खुद को सुरक्षित रखने की भी लड़ाई लड़ रही हैं। रिपोर्ट में दर्ज शिकायतें बताती हैं कि महिला सांसदों को घूरने, छूने, अश्लील इशारे करने और अपमानजनक टिप्पणियों का सामना करना पड़ा — वो भी उन्हीं लोगों से जो देश की संसद में जनता की आवाज़ बनकर बैठे हैं।

संसद परिसर में ही पुरुष सांसदों द्वारा महिला सांसदों के साथ गलत व्यवहार किया जाता है।

कुछ महिला सांसदों ने स्वीकार किया कि बहस के दौरान उनके विचारों को नजरअंदाज किया गया, उन्हें बार-बार टोका गया और नीचा दिखाया गया।

85% महिला सांसदों ने बताया कि जब उन्होंने किसी मुद्दे पर आवाज उठाई, तो उन्हें ही टारगेट किया गया।

ऑस्ट्रेलिया, फिजी, भारत, मलेशिया, फिलीपींस, इंडोनेशिया, न्यूजीलैंड और नेपाल जैसे देशों की संसदों ने महिला सांसदों की सुरक्षा के लिए कड़े कदम उठाए हैं। भारत में 77 महिला सांसदों में से 47 ने माना कि उन्हें मानसिक या कार्यस्थल उत्पीड़न का अनुभव हुआ है।

भारत, चीन, इंडोनेशिया, मलेशिया, नेपाल, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और फिलीपींस जैसे देशों की महिला सांसदों ने सर्वेक्षण में हिस्सा लिया। ज़्यादातर ने माना कि महिलाओं को अब भी संसद जैसे पवित्र मंच पर समान और सुरक्षित वातावरण नहीं मिल पा रहा है।