पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की हालिया घोषणाओं को महिला मतदाताओं तक अधिक से पहुँच बनाने की कवायद के तौर पर देखा जा रहा है। तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो के नाते वह चाहती हैं कि पार्टी को महिलाएँ अधिक से अधिक वोट करें। मुख्यमंत्री कई अवसरों पर कह भी चुकी हैं कि तृणमूल कांग्रेस की अगुवाई वाली सरकार राज्य में पुलिस बल में भी लैंगिक अनुपात ठीक करेगी।
2021 विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखकर टीएमसी का राजनीतिक मोर्चा-बंगो जननी पश्चिम बंगाल में ज़्यादा-से-ज़्यादा महिलाओं तक पहुँचने के लिए सामाजिक आन्दोलन के तौर पर सबसे आगे होगा। बता दें कि राज्य में कुल मतदाताओं में महिला मतदाताओं की संख्या 48 फीसदी से अधिक है। 2019 लोकसभा चुनाव के दौरान राज्य के 6.98 करोड़ मतदाताओं में से, 3.39 करोड़ या लगभग 48 फीसदी मतदाता महिलाएँ थीं। इसका मतलब साफ है किसी भी प्रत्याशी को जीत के लिए महिला मतदाताओं को अपने पक्ष में करना होगा। टीएमसी में महिला उम्मीदवारों की संख्या भी सबसे ज़्यादा रही है।
2019 के आम चुनावों में बंगाल में टीएमसी के 41 फीसदी उम्मीदवार में महिला उम्मीदवार थे। 2011 में तृणमूल कांग्रेस के लिए चुनाव लडऩे वाली महिला उम्मीदवारों की संख्या 31 फीसदी थी, जबकि 2016 में यह संख्या बढ़कर 45 फीसदी हो गयी थी। वास्तव में जब 2019 में तृणमूल कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव, पार्टी प्रमुख और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता के लिए अपनी उम्मीदवार सूची जारी की, तब इस पर फोकस किया गया। बनर्जी ने कहा मुझे खुशी है कि अब महिला उम्मीदवारों को प्राथमिकता दी जा रही है। यह हमारे लिए गर्व का पल है। हम महिला सशक्तिकरण पर ध्यान देना चाहते हैं। हमने अपने आप को न्यूनतम 33 फीसदी तक सीमित नहीं किया है, जो सरकार संसद में महिलाओं की संख्या के लिए निर्धारित करने की कोशिश ही कर रही है। मुख्यमंत्री और पार्टी सुप्रीमो ने कहा है कि पार्टी की महिला कार्यकर्ता राज्य के 70,000 ऐसे बूथों पर जाएँगी, जहाँ पर विषम हालात हैं; साथ ही 20 टीमें पार्टी के विकास के कराये कामों से लोगों को अवगत कराएँगी।
टीएमसी ने ‘दीदी के बोलो’ (दीदी को बताएँ) एक पहल शुरुआत की थी, ताकि लोग उसे अपनी चिन्ताओं और शिकायतों को बता सकें। बंगो जननी और राज्य महिला और बाल विकास मंत्री के महासचिव शशि पांजा ने कहा कि बंगो जननी जैसा एक राजनीतिक मंच बेहतर होगा; क्योंकि कई महिलाएँ एक राजनीतिक पार्टी में शामिल होने के लिए अनिच्छुक हो सकती हैं। लेकिन एक राजनीतिक मोर्चे के माध्यम से लडऩा पसन्द करेंगी।
सत्ता सँभालने के बाद से ही महिला सशक्तिकरण ममता बनर्जी सरकार के विकास के मुद्दों का एक मुख्य हिस्सा रहा है। यह उन दर्ज़नों कल्याणकारी योजनाओं के ज़रिये अपनाया गया है, जिनमें सरकार की कन्याश्री योजना भी शामिल है। इसका मकसद नकद प्रोत्साहन का उपयोग करके शिक्षा को बढ़ावा देना और बाल विवाह को रोकना है। वास्तव में पिछले आठ वर्षों में तृणमूल सरकार ने अपनी लोकलुभावन नीति निर्माण में महिलाओं और लड़कियों को विशेष रूप से लक्षित किया है।
तृणमूल सरकार द्वारा शुरू की गयी, इस परियोजना ने 13से 18 उम्र के बीच की लड़कियों को नकद राशि प्रदान की जाती है; बशर्ते वे अविवाहित हों और पढ़ाई कर रही हों। इस प्रकार बाल विवाह को रोकने और लड़कियों को स्कूल छोडऩे से रोकने के लिए एक मौद्रिक प्रोत्साहन दिया गया। कन्याश्री योजना ने एशिया-प्रशान्त क्षेत्र में संयुक्त राष्ट्र लोक सेवा पुरस्कार जीता है।
2018 में पश्चिम बंगाल सरकार ने रूपश्री नाम से महिला मतदाताओं को लक्षित एक और बड़े पैमाने पर लोकलुभावन नकद हस्तांतरण योजना शुरू की। इसके माध्यम से आर्थिक रूप से कमज़ोर परिवारों की महिलाओं के लिए विवाह सहायता का प्रस्ताव दिया। कन्याश्री की तरह रूपश्री योजना में 18 वर्ष से अधिक आयु की महिला की शादी पर नकदी प्रदान की जाती है।
टीएमसी वर्षों से महिला मतदाताओं को उचित महत्त्व दे रही है। लेकिन सत्तारूढ़ दल के पास अब इनको लुभाने के लिए और ज़्यादा ध्यान देने की समय आ गया है; क्योंकि भारतीय जनता पार्टी महिला मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए जी-तोड़ से लगी है। 2021 पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी की अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के महिला वोटरों में सेंध लगाने के लिए भगवा पार्टी बूथ स्तर की संगठनात्मक गतिविधियों की व्यवस्था कर रही है; जिसे ममता बनर्जी का महत्त्वपूर्ण आधार माना जाता है। भाजपा का महिला मोर्चा (महिला विंग) हर बूथ और मंडल में पदयात्राएँ आयोजित करता रहा है और युवा मोर्चा कार्यकर्ता साइकिल रैली और प्रभात फेरी (सुबह की रैलियाँ) आयोजित कर रहे हैं।
पार्टी हाईकमान ने हर बूथ और मण्डल समिति में कम-से-कम चार महिलाओं को शामिल करने का भी सुझाव दिया है। पार्टी ने राज्य को पाँच संगठनात्मक क्षेत्रों में विभाजित किया था, ताकि पार्टी में अधिक महिलाओं को काम करने में शामिल किया जा सके। पश्चिम बंगाल में पिछले कुछ वर्षों में भाजपा ने नाटकीय ढंग से अपना पैठ बनायी है। 2019 के लोकसभा चुनाव में बंगाल की 42 संसदीय सीटों में से 18 सीटों में जीत हासिल कर इतिहास बनाया। ज़मीन पर इसके प्रयास करके इसे हासिल किया; क्योंकि 2014 के आम चुनाव में उसे सिर्फ दो सीटें ही मिली थीं। टीएमसी को जहाँ 2014 में 34 सीटें मिलीं, वहीं 2019 में 22 से ही संतोष करना पड़ा। राज्य में भाजपा का वोट शेयर (आम चुनाव में) 2019 के आम चुनाव में 40.6 फीसदी हो गया। भगवा पार्टी का यह वोट शेयर टीएमसी के 43.6 फीसदी के करीब पहुँच गया।
देश के सियासी दल महिलाओं के समर्थन के लिए भरपूर मेहनत कर रहे हैं। इसकी वजह यह है कि अब चुनावों में महिलाएँ रिकॉर्ड मतदान कर रही हैं। इससे अब वो परम्परा टूट रही है, जिसमें यह कहा जाता था कि परिवार का मुखिया जो कहेगा वही होगा; यानी पितृसत्ता से मुक्ति मिल रही है। यही वजह है कि देश के मुख्य राजनीतिक दलों ने महिलाओं का समर्थन पाने के लिए वादों की लम्बी पेशकश की है, जिसमें यह भी गारंटी है कि संसद और राज्य विधानसभाओं के निचले सदन में 33 फीसदी सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित की जाएँगी। अगर 2014 के मुकाबले 2019 में लोकसभा चुनाव के चार चरणों में कुल मिलाकर हुए मतदान को देखें, तो इससे यह और स्पष्ट हो जाता है। चुनाव आयोग द्वारा जारी किये गये चरण-वार आँकड़ों के अनुसार, कई राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में महिला मतदाताओं ने मतदान करने में पुरुषों को पछाड़ दिया है। अरुणाचल प्रदेश में पिछले चुनाव की तुलना में कुल चुनावी मतदान 77.38 फीसदी में 52.05 फीसदी मतदान का हिस्सा महिलाओं का ही था। मणिपुर, छत्तीसगढ़, मिजोरम, ओडिशा, लक्षद्वीप, आंध्र प्रदेश और उत्तराखण्ड में भी पुरुषों से ज़्यादा महिलाओं ने मतदान किया।
महिला मतदाताओं के महत्त्व को सन् 1960 के बाद से देखा जा सकता है। 1960 के दशक में प्रत्येक 1,000 पुरुष मतदाताओं की तुलना में 715 महिला मतदाता थीं। 2000 के दशक में हर 1000 पुरुष मतदाताओं की तुलना में 883 महिला वोटर हो गयीं। सन् 2014 के लोकसभा चुनावों में महिला मतदाताओं ने बिहार और ओडिशा के साथ कई राज्यों में पुरुष मतदाताओं को पछाड़ दिया। 1962 और 2018 के बीच पुरुषों के मतदान के विपरीत महिला मतदाताओं की संख्या में 27 फीसदी की वृद्धि हुई, जबकि इस दौरान पुरुष वोटरों में महज 7 फीसदी की वृद्धि हुई। हाल ही के वर्षों में महिला मतदाताओं के हिस्सा लेने में बहुत अधिक वृद्धि हुई है और महिलाओं के मुद्दे अब चुनाव अभियानों में प्रमुखता से दिखते हैं। इसमें संदेह नहीं होना चाहिए कि पश्चिम बंगाल में लैंगिक समानता के मामले में मूलभूत धुरी के रूप में उभरा है। दरअसल महिला मतदाताओं को एक रुचि समूह या निर्वाचन क्षेत्र के रूप में अलग से लक्षित करना लोकतंत्र में एक नयी घटना है, जहाँ वोट माँगने के लिए अभी तक जाति, धर्म, क्षेत्र और जातीयता सियासी दलों के लिए अहम कारक रहे हैं।