ऐसे समय जब जनसंख्या वृद्धि के कारण देश में प्रति व्यक्ति पानी उपलब्धता कम हो रही है और 2001 में 1816 क्यूबिक मीटर के मुकाबले 2021 तक घटकर 1486 रह जाएगी। आशंका है कि 2020 तक भारत के 21 बड़े शहर भूजल-विहीन हो जाएँगे।
साल 1951 में, प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता 5,177 क्यूबिक मीटर थी। और 2011 की जनगणना के आंकड़ों में यह घटकर 1,545 घन मीटर रह गयी है। अर्थात 60 सालों में करीब 70 फीसदी की गिरावट।
देखा जाए तो 1,700 क्यूबिक मीटर से कम प्रति व्यक्ति वार्षिक पानी उपलब्धता को पानी की गम्भीर स्थिति के रूप में परिभाषित किया जाता है। सरकार का अपना आकलन भी यह मानता है कि भारत पानी की कमी जैसी स्थिति की तरफ बढ़ रहा है। कमी का अर्थ है पानी की उपलब्धता 1,000 क्यूबिक मीटर से नीचे होना। साल 2001 में प्रति व्यक्ति औसत जल उपलब्धता 1,820 क्यूबिक मीटर थी और सरकार का अनुमान है कि यह 2025 तक 1,341 क्यूबिक मीटर और 2050 तक 1,140 क्यूबिक मीटर के आंकड़े तक पहुँच सकती है।
9 दिसंबर, 2019 को केंद्रीय जल और सामाजिक न्याय और अधिकारिता राज्य मंत्री, रतन लाल कटारिया ने राज्यसभा में एक लिखित उत्तर में, नीति आयोग के हवाले से, समग्र जल प्रबंधन सूचकांक शीर्षक वाली रिपोर्ट में उल्लेख किया कि 21 प्रमुख शहर 2020 तक भूजल-विहीन हो सकते हैं। यह वार्षिक रिपोर्ट भूजल की पुन: आपूर्ति और इसके निष्कर्षण के अनुमानों पर आधारित है। हालाँकि, इसमें गहरे जलभृत में भूजल उपलब्धता को समायोजित नहीं किया गया है।
केंद्रीय जल आयोग के अनुसार, भारत की वार्षिक पानी आवश्यकता 3,000 बिलियन क्यूबिक मीटर है, जबकि देश में औसतन हर साल 4,000 बिलियन क्यूबिक मीटर बारिश पानी उपलब्ध होता है। समस्या यह है कि 1.3 बिलियन लोगों का देश बारिश जल के तीन-चौथाई पानी का उपयोग करने में विफल रहता है। एकीकृत जल संसाधन विकास पर राष्ट्रीय आयोग (एनसीआईडब्यूआरडी) की रिपोर्ट में बताया गया है कि एक वर्ष में उपयोग योग्य पानी की उपलब्धता 1,123 बिलियन क्यूबिक मीटर है, जिसमें 690 बिलियन क्यूबिक मीटर सतही जल और 433 बिलियन क्यूबिक मीटर प्रतिपूर्ति शुद्ध भूजल शामिल है। बाकी बर्बाद हो जाता है। अंकगणितीय रूप से, भारत अभी भी जल के मामले में सरप्लस है और साल भर में एक अरब से अधिक लोगों की आवश्यकता को पूरा करने लायक वर्षा यहाँ होती है।
केंद्रीय जल आयोग के अनुसार, भारत को एक वर्ष में अधिकतम 3,000 बिलियन क्यूबिक मीटर पानी की आवश्यकता होती है, जबकि उसे 4,000 बिलियन क्यूबिक मीटर पानी बारिश से ही हासिल हो जाता है। लेकिन समस्या यह है कि भारत अपनी वार्षिक वर्षा का केवल आठ फीसदी ही इस्तेमाल कर पाता है, जो दुनिया में सबसे कम है। भूजल देश के लिए पीने लायक सबसे बेहतर उपलब्ध जल है। लेकिन भूजल सिंचाई में अधिक उपयोग होता है और इसका 80 फीसदी जलभृत से निकाला जाता है। विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार सिंचाई में वर्षा, नदियों, तालाबों और अन्य जलाशयों से उपलब्ध पानी भी इस्तेमाल होता है लेकिन भूजल, देश में 60 फीसदी सिंचाई की पूर्ति करता है।
अधिकांश किसान और उद्योग, जो लगभग 12 फीसदी भूजल का उपयोग करते हैं; भूजल निष्कर्षण को उनकी पानी की आवश्यकताओं को पूरा करने का सबसे आसान विकृप पाते हैं। अनुमान के मुताबिक, भारत में घरों तक पहुँचने वाले पानी का लगभग 80 फीसदी सीवरेज के ज़रिये अपशिष्ट प्रवाह के रूप में बाहर निकल जाता है। ज़्यादातर मामलों में, इस पानी को पुन: या कृषि उद्देश्यों के लिए उपयोग नहीं किया जाता है।
नीति आयोग की रिपोर्ट से ज़ाहिर होता है कि जल संसाधनों के कुशल और स्थायी प्रबंधन के लिए सतही जल खासकर भूजल जैसे पारम्पारिक संसाधनों के साझे उपयोग और जल उपयोग में दक्षता बढ़ाने के लिए सभी हितधारकों को बड़े पैमाने पर साथ जोडऩे की ज़रूरत है।
यहाँ यह •िाक्र भी ज़रूरी है कि भारत सरकार ने भविष्य की पानी की माँग की चुनौतियों से निपटने के लिए एक समयबद्ध जल शक्ति अभियान प्रारम्भ किया है, जिसका मकसद भारत में 256 •िालों के पानी के ब्लॉक में भूजल की स्थिति सहित पानी की उपलब्धता में सुधार करना है। इस संबंध में, जल शक्ति मंत्रालय से तकनीकी अधिकारियों के साथ केंद्र सरकार के अधिकारियों की टीमों को पानी की कमी वाले •िालों का दौरा करने और उपयुक्त हस्तक्षेप करने के लिए •िाला स्तर के अधिकारियों के साथ मिलकर काम करने के लिए नियुक्त किया गया था।
चूँकि जल एक राज्य विषय है, भूजल के संरक्षण और प्रबंधन के प्रयास मुख्य रूप से राज्यों की •िाम्मेदारी है। कई राज्यों ने इस सम्बन्ध में बेहतर काम किया है। इनमें से राजस्थान में मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन अभियान, महाराष्ट्र में जलयुक्त सीबर, गुजरात में सुजलाम सुफलाम अभियान, तेलंगाना में मिशन काकातीय और आंध्र प्रदेश में नीरू चेट्टू जैसे अभियानों का उल्लेख किया जा सकता है। केंद्र सरकार मुख्य रूप से महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनेरगा) और प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना- वाटरशेड डेवलपमेंट कम्पोनेंट के माध्यम से जल संचयन और संरक्षण कार्यों में मदद करती है।
ग्रामीण विकास मंत्रालय के अनुसार मनरेगा के तहत 2014-15 से 2019-20 की अवधि के दौरान 19,64,995 जल संरक्षण और जल संचयन कार्य विभिन्न राज्यों में किये गये, जिनमें करीब 31907.32 करोड़ रुपये का व्यय हुआ।
इसके अलावा ग्रामीण विकास मंत्रालय के भूमि संसाधन विभाग के अनुसार पीएमकेएसवाई-डीडीसी घटक के तहत विभिन्न राज्यों में 2014-15 से 2019-20 (सितंबर 2019 तक) की अवधि के दौरान 6,08,384 जल संचयन संरचनाएँ बनायी गयी हैं। 31 अक्टूबर, 2019 तक राज्यों को वाटरशेड विकास परियोजनाओं के कार्यान्वयन के लिए केंद्रीय शेयर के रूप में 17751.75 करोड़ रुपये जारी किये गये हैं। चूँकि जल एक राज्य का विषय है, उपयुक्त माँग पक्ष और जल संसाधनों के संरक्षण और प्रबंधन सहित आपूर्ति पक्ष के हस्तक्षेप की कोशिश मुख्य रूप से राज्यों की •िाम्मेदारी है।
शहरों में वर्ष 2001 और 2011 में औसत वार्षिक प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता का आंकलन क्रमश: 1816 क्यूबिक मीटर और 1545 क्यूबिक मीटर के रूप में किया गया था, जो वर्ष 2021 में घटकर 1486 क्यूबिक मीटर हो सकता है। जल शक्ति मंत्रालय ने जल शक्ति अभियान ( जेएसए) को जल संरक्षण और जल सुरक्षा के लिए शुरू किया है। अभियान के तहत भारत सरकार के अधिकारियों, भूजल विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों ने जल संरक्षण और जल संसाधन प्रबंधन के लिए भारत के सबसे ज़्यादा पानी कमी वाले •िालों में राज्य और •िाला अधिकारियों के साथ मिलकर काम किया।
केंद्र सरकार ने जल संसाधन विकास के लिए एक राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना (एनपीपी) तैयार की है, जो जल की उपलब्धता को बेहतर बनाने के लिए जल अधिशेष बेसिन से जल की कमी के आधार पर जल के हस्तांतरण की परिकल्पना पर आधारित है। सरकार ने शहरों में बुनियादी नागरिक सुविधाओं के विकास पर ध्यान केंद्रित करने के साथ कायाकल्प और शहरी परिवर्तन (अमरुत) 2019-20 के लिए अटल मिशन शुरू किया है। मिशन के जल आपूर्ति घटक के तहत, वर्षा जल संचयन, विशेष रूप से पेयजल आपूर्ति के लिए जल निकायों का कायाकल्प, भूजल के पुनर्भरण आदि से सम्बन्धित परियोजनाओं को जलापूर्ति बढ़ाने के लिए लिया जा सकता है।
सरकार ने जल जीवन मिशन भी शुरू किया है, जिसका उद्देश्य 2024 तक प्रत्येक ग्रामीण परिवार को 55 लीटर प्रति व्यक्ति के सेवा स्तर पर घरेलू नल कनेक्शन प्रदान करना है। यह मिशन स्थानीय स्तर पर पानी की एकीकृत माँग और आपूर्ति प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करेगा, जिसमें वर्षा जल संचयन, भूजल पुनर्भरण और कृषि में पुन: उपयोग के लिए घरेलू अपशिष्ट जल के प्रबंधन के लिए स्थानीय बुनियादी ढाँचे का निर्माण शामिल है।