मध्य प्रदेश में सोमवार को होली के दिन मध्य प्रदेश में कांग्रेस के गुलदस्ते से एक रंग निकल गया। पिता माधवराव सिंधिया की जन्मजयंती पर ज्योतरादितीय सिंधिया उस कांग्रेस से अलग हो गए, जिसे उनके पिता पार्टी की भीतरी द्वंदों के बावजूद बहुत प्यार करते थे। सिंधिया के इस्तीफे और उनके चिर प्रतिद्वंदी भाजपा के साथ हाथ मिलाने की घोषणा के साथ ही उनकी अब तक अपनी पार्टी रही कांग्रेस ने उन्हें ”जयचंद” घोषित कर दिया। निश्चित ही ज्योतरादितिया ने उस समय भाजपा का दामन थामा है जब वो राज्यों में सिकुड़ रही है और उसके केंद्र में सरकार के बहुत से फैसलों पर सवाल उठने शुरू हो गए हैं।
अब मध्य प्रदेश में कमलनाथ सरकार का जो हो सो हो, कांग्रेस को यह सोचना होगा कि राज्यों में बड़े नेताओं के बीच वह क्यों तालमेल बनाने और उन्हें अलग-थलग होने से रोकने में क्यों नाकाम हो रही है।
कांग्रेस राज्यों में संतुलन की इस जंग में राजस्थान में दिक्कत महसूस कर सकती है, जहां युवा तुर्क और लोकप्रिय गुज्जर नेता सचिन पायलट बहुत ज्यादा खुश नहीं हैं। हालांकि, उनके भाजपा में जाने की संभावना बहुत कम इसलिए लगती है कि मोदी सरकार में उनके ससुर फारूक अब्दुल्ला और साले उमर अब्दुल्ला को जेल में नजरबंद कर रखा है।
कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव के बाद सिंधिया को बहुत ज्यादा तबज्जो नहीं दी जबकि वो सोनिया गांधी के नेतृत्व में एक बेटे की तरह पार्टी की हर नीति-रणनीति का हमेशा बड़ा हिस्सा रहे। हो सकता है सिंधिया की पद को लेकर कुछ महत्वकांक्षाए रही हों, इसमें भी कोइ दो राय नहीं कि कांग्रेस में उनके लिए संभावनाएं बहुत थीं।
हो सकता है भाजपा उन्हें केंद्र में मंत्री बना दे, राज्य सभा में भी भेज दे लेकिन मध्य प्रदेश राज्य की राजनीति में भाजपा के दूसरे नेता उन्हें आगे जाने के लिए तश्तरी में रखकर सबकुछ परोस देंगे, इसकी संभावना बहुत काम दिखती है। राज्य में कमलनाथ की सरकार गिरने पर शिवराज सिंह चौहान के ही मुख्यमंत्री बनने की संभावना ज्यादा है।
कुलमिलाकर भाजपा का मध्य प्रदेश में कमलनाथ (कांग्रेस) सरकार गिराने का सपना सिंधिया के जरिये पूरा हो गया है। राजस्थान की भाजपा नेता और ज्योतरादितिया की रिश्तेदार पूर्व सीएम वसुंधरा राजे सिंधिया का भी उन्हें भाजपा में लाने में बड़ा रोल रहा है। यह राजघराना अब लगभग पूरी तरह भाजपा में चला गया है।
दिल्ली और उससे पहले महाराष्ट्र और झारखंड में लोगों की तरफ से चुनावों में अस्वीकार कर देने दिए जाने और अपनी सरकार खो देने के बाद भाजपा में बहुत गहरी निराशा भर रही थी। उसके पास जनमत लेकर फिलहाल कोइ और सरकार बना लेने की निकटवर्ती संभावना नहीं थी ताकि वो इस निराशा से बाहर आ सके।
दिसंबर के विधानसभा चुनाव में बिहार में भी भाजपा के लिए बहुत कठिन चुनौती रहने वाली है, लिहाजा उसने सिंधिया की कांग्रेस के प्रति ”नाराजगी” को भुनाया और अपनी हारों के सिलसिले से मिली निराशा को कम करने के लिए पिछले दरवाजे से सरकार बनाने का फैसला किया। सिंधिया को भाजपा में शामिल करवाकर उसने जनता को यह सन्देश देने की कोशिश की कि उसने कांग्रेस की सरकार नहीं गिराई, बल्कि यह कांग्रेस लड़ाई का नतीजा है।
लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधिरंजन चौधरी ने यह स्वीकार कर लिया है कि सिंधिया का जाना कांग्रेस का बड़ा नुक्सान है। जो १९ विधायक सोमवार को बागी हुए थे, वे स्पीकर को इस्तीफा दे चुके हैं। यह सभी सिंधिया समर्थक हैं। कमलनाथ सरकार अब लगभग जा चुकी है और इसका राज्य सभा के चुनाव पर भी असर पड़ेगा। हो सकता है अब कुछ और विधायक पलटी मारें। राजनीति चलती का नाम गाड़ी है।
मध्य प्रदेश के इस आपरेशन की स्क्रिप्ट काफी दिन से भाजपा लिख रही थी। कांग्रेस मुगालते में रही कि सिंधिया जैसा उनका चर्चित और पक्का कार्यकर्ता पार्टी छोड़ देगा। लेकिन कांग्रेस के साथ-साथ यह कमलनाथ की बड़ी नाकामी है। भाजपा जब जनमत के कारण राज्यों में हार रही है, पिछले दरवाजे से सत्ता हासिल करने का भी उसका यह कोइ नया उदहारण नहीं है। बिना जनमत के उसने एक राज्य अपने खाते में जोड़ लिया है, इसलिए वो बधाई की पात्र तो है ही। सबका साथ, सबका विकास की राजनीति शायद इसी को कहते हैं !