हर साल ओलाबृष्टि, बादल फटने, कम बर्फबारी और खराब मौसम से लगातार जूझते रहने वाले हिमाचल प्रदेश के किसानों को प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना से बहुत उम्मीदें थीं। इस योजना की शुरूआत हुएतीन साल हो गए है, पर इसका कोई लाभ किसानों को दिखाई नहीं दे रहा। सरकारी दफ्तरों, बैंकों और बीमा कंपनियों के बीच तालमेल की कमी के कारण किसानों का वह जोश ठंडा पड़ गया है जो इस योजनाको लेकर बना था। बैंकिंग क्षेत्र के सूत्रों ने इस बात की पुष्टि की है कि जिन किसानों ने बैंकों से कजऱ् भी ले रखा है वे भी इस योजना को अपनाने से झिझक रहे हैं।
बाकी किसानों की तरह थानाधार(जि़ला शिमला) के एक किसान चेतराम ने 2016 में अपनी सेब की फसल का बीमा करवाया था। खराब मौसम की वजह से सेब की सारी फसल तबाह हो गई। पर बीमा कंपनी नेपूरे गांव को ही बीमा के पैसे नहीं दिए और उन्हें इसके लिए आयोग्य घोषित कर दिया। इस पर किसानों ने चंडीगढ़ में बीमा कंपनी के दफ्तर से संपर्क किया यह जानने के लिए कि आखिर उन्हें आयोग्य क्योंघोषित किया गया है? उन्हें पता चला कि मौसम की जानकारी एकत्र करने वाला उपकरण 9000 फुट की ऊंचाई पर नारकंडा में लगाया गया जबकि उसे 6500 फुट की ऊंचाई पर लगाने का फैसला हुआ था। इसवजह से 9,000 फुट की ऊंचाई पर मौसम सेब के अनुकूल था जबकि 6,500 फुट की ऊंचाई पर नहीं। इस कारण गांव के सभी 400 किसानों के दावे नामंजूर कर दिए गए। किसानों ने इसकी शिकायत सरकारसे भी की पर कोई लाभ नहीं हुआ। किसानों का आरोप है कि सरकारी अफसरों का बर्ताव बहुत रुखा था। उन्होंने उन्हें अदालत में जाने को कहा जिसके लिए न तो किसानों के पास पैसा था और न ही समय।इसके बाद किसानों ने अगले साल से फसल बीमा न करवाने का फैसला किया। इससे कम से कम उनके वे पैसे तो बच गए जो वे प्रीमियम के तौर पर देते थे। हिमाचल प्रदेश के ज़्यादातर किसानों की इस मुद्दे परकमोवेश यही राय थी।
2018-19 में हिमाचल प्रदेश में फसल बीमा करने का काम एग्रीकल्चर एंश्योरेंस कंपनी ऑफ इंडिया को सौपा गया । इससे पूर्व एसबीआई, जनरल एंश्योरेंस, आईएफएफसीओ टोकियो, सीआईसीआईसीआईजनरल एंश्योरेंस, रिलांयस एंश्योरेंस कंपनियों ने भी राज्य में फसल बीमा किया था।
हिमाचल प्रदेश में लगभग आठ लाख किसान है जिनमें से 4.31 लाख के ‘क्रेडिट लिंकस’ हैं। राज्य में 4,64,254 बागवान हैं । योजना के शुरू में सभी में भारी जोश था पर बाद में उन्होंने देखा कि किसानों के सिरपर बीमा कंपनियों मुनाफा कमा रही हैं।
2017-18 में योजना के तहत आने वाले किसालों की गिनती 2016-17 के मुकाबले लगभग 78 फीसद अधिक हो गई, पर 2018-19 में इसमें खासी गिरावट देखने को मिली। हालांकि कजऱ्दार किसानों या किसानक्रेडिट कार्ड रखने वालों को इस योजना के तहत बीमा पालिसी लेनी अनिवार्य है। पर फिर भी वे इससे छूट मांग रहे हैं। बैंक वालों का कहना है कि किसान इस योजना के तहत बीमा करवाने को तैयार नहीं हैं।जिन लोगों ने बीमा कवर लिया भी था वे भी इसे छोड़ रहे हैं। अधूरे मन से शुरू की गई योजना से किसान क्षुब्ध हैं।
‘तहलका’ के सूत्रों ने बताया कि राज्य में 62.62 लाख सेब के पेड़ों का बीमा किया गया है। केवल उन किसानों को इस का लाभ मिला है जो ‘बैंक पोर्टल’ पर ‘लोड’ किए जा चुके थे। पहाडी क्षेत्र में विभिन्नकठिनाईओं के कारण डाटा दर्ज करना काफी कठिन काम है। कई तरह की रूकावटें व ‘ंइंटरनेट’ की धीमी गति भी इस मामले को और जटिल बना देती है। इस कारण किसानों को ‘क्लेम’ मिलने में देरी होतीहै। सभी बैंकों को अपने ‘डाटा’ दर्ज करने होते हैं। इनमें से कुछ स्टाफ पूरी तरह प्रशिक्षित भी नहीं होता।
एचपीएमसी के उपाध्यक्ष प्रकाश ठाकुर ने बताया कि ओलावृष्टि के लिए किसान को अतिरिक्त प्रीमियम देना पड़ता है। पहाड़ी क्षेत्र में सेब के बगीचे 2000-3000 वर्ग फुट में फैले होते हैं। इनकी तुलना में निगरानीकरने वाले स्टेशन बहुत कम होते हैं । इस कारण वे उन सब पर नजऱ नहीं रख सकते जिनका बीमा हुआ होता है। वैसे भी वे ‘निगरानी स्टेशन’ अपनी सुविधा के अनुसार लगाते हैं। बीमा कंपनियों के अफसरों सेसंपर्क भी नहीं हो पाता। इस कारण जल्दी ही इस योजना की धार कुंद हो गई।
हिमाचल प्रदेश चार मौसमी क्षेत्रों में बंटा है। पहला है शिवालिक हिल्स, दूसरा- मिड हिल्स, तीसरा-हाई हिल्स और चौथा- कोल्ड ड्राई ज़ोन। यहां की मुख्य फसलें हैं – सेब, गेंहू, जौ, आलू, मटर, काले चने, अदरक,बीनस, मक्की और सब्जियां। सेब की फसल आमतौर पर मिड, हाई और कोल्ड ड्राई ज़ोन में होती है। शिवालिक हिल्स में गेंहू, मक्की, धान, चने और आलुओं की फसल होती है। यह क्षेत्र कुल राज्य का 30 फीसद है। मिड हिल्स 10 फीसद, हाई हिल्स 25 फीसद और कोल्ड ड्राई ज़ोन 35 फीसद है।
यहां देश के दूसरे प्रांतों की तरह ज़्यादातर किसान एक हैक्टेर से कम के मालिक हैं। 68.17 फीसद किसान इस वर्ग में आते हैं। छोटे किसान जो एक से दो हैक्टेर के मालिक हैं वे 18.7 फीसद हैं। इसके बाद दो सेचार हैक्टेर के मालिक नौ फीसद हैं। चार से 10 हैक्टेर ज़मीन रखने वाले 3.41 फीसद है जबकि बड़े ज़मीदार जिनके पास 10 हैक्टेर से ज़्यादा भूमि है वे केवल 0.48 फीसद हैं।