पहाड़ी सूबे हिमाचल में भले ठण्ड पडऩे लगी हो, चुनाव की गर्मी बढऩे लगी है। मुख्य निर्वाचन आयुक्त अचल कुमार ज्योति के हिमाचल में विधानसभा चुनाव की तारीखों के ऐलान के साथ ही विधानसभा की 68 सीटों के लिए जंग शुरू हो गयी है। मतदान 9 नवम्बर को होगा हालांकि नतीजे के लिए करीब एक महीना इंतज़ार करना होगा क्योंकि वोटों की गिनती 18 दिसंबर को होगी जब गुजरात के चुनाव भी पूरे हो जायेंगे।
बता दें कि हिमाचल में अभी कांग्रेस पार्टी की सरकार है। कांग्रेस के पास कुल68 सीटों में से 36 सीटें हैं जबकि बीजेपी के पास 27 सीटें हैं। इनके अलावा5 निर्दलीय विधायक भी हैं। वहीं, 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने हिमाचल प्रदेश की चारों सीटों पर कब्जा किया था। इस बार सत्ता में काबिज होने के लिए बीजेपी ने पूरी ताकत झोंक दी है। बीजेपी ने हाल ही में पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह की रैली करवाकर प्रदेश में सियासी पारा चढ़ा दिया है। वहीं, कांग्रेस ने भी चुनाव के मद्देनजर अपनी कमर कस ली है। हाल ही में ही मंडी में राहुल गांधी की रैली करवाकर कांग्रेस ने चुनावी अभियान का आगाज किया है। साथ ही वीरभद्र सिंह को ही चुनाव अभियान का जिम्मा सौंपकर राहुल ने साफ कह दिया कि कांग्रेस की सरकार बनी तो वीरभद्र सिंह ही मुख्यमंत्री होंगे। पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह को राहुल गांधी चुनाव से पहले मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर गए थे और इस बार हिमाचल में उन्होंने यही किया है। मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह को उन्होंने न केवल कांग्रेस का मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया बल्कि गुजरात की भाजपा सरकार से तुलना करते हुए यह भी कह दिया कि उनकी सरकार का काम कहीं ज्य़ादा बेहतरीन रहा है। हाल के दिनों तक प्रदेश कांग्रेस में जिस तरह से जंग चल रही थी उससे पार्टी की खूब जगहंसाई हो रही थी।
पिछले दिनों दिल्ली में वीरभद्र सिंह की राहुल गांधी से भेंट के बाद प्रदेश कांग्रेस में सुलह के आसार दिखे थे। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुखविंदर सिंह सुक्खू, जिन्हें अध्यक्ष पद से हटाने की मांग वीरभद्र सिंह कर रहे थे, ने भी अचानक तेवर बदलते हुए कहना शुरू कर दिया कि वीरभद्र सिंह बड़े नेता हैं। सुक्खू को पद से हटाने की मांग भी अचानक ठंडी पड़ गयी। इस तरह सम्भावना यही दिख रही है कि कांग्रेस अब चुनाव मैदान में एकजुट होकर उतरेगी। चूँकि वीरभद्र सिंह का नाम लेकर राहुल गांधी उनके नेतृत्व में चुनाव में उतरने का ऐलान कर गए हैं, उनका विरोध अब शायद ही कोई कर पायेगा। हाँ, इससे वीरभद्र सिंह का खेमा जरूर ताकतवर होकर उभरा है। हो सकता है टिकट वितरण में भी वीरभद्र सिंह को तरजीह मिले और उनके समर्थकों को ज्य़ादा टिकट मिलें। वैसे सम्भावना यही है कि आलाकमान इस मामले में संतुलन रखेगी और टिकट में जीत सकने की सामथ्र्य को तरजीह मिलेगी। पार्टी के प्रदेश प्रभारी सुशील कुमार शिंदे इस का संकेत दे चुके हैं।
कांग्रेस सूत्रों के मुताबिक राहुल इस बात पर भी सहमत हो गए हैं कि प्रदेश युवा कांग्रेस अध्यक्ष विक्रमादित्य सिंह को शिमला ग्रामीण सीट से टिकट दिया जाए। विक्रमादित्य मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के पुत्र हैं। 2012 के चुनाव में वीरभद्र सिंह इस सीट से चुनाव लड़े थे। वीरभद्र सिंह अपना हल्का बदल रहे हैं और आलाकमान ने उन्हें अपनी पसंद की सीट से लडऩे की इजाजत दे दी है।
सूत्रों के मुताबिक वीरभद्र सिंह शिमला जिले में ही ठियोग से चुनाव लड़ेंगे जहाँ वरिष्ठ मंत्री विद्या स्टोक्स उनके लिए सीट खाली करने को तैयार हो गयी हैं। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुखविंदर सुक्खू नादौन से चुनाव लड़ेंगे।
राहुल की रैली के बाद कांग्रेस अचानक काफी सक्रिय हो गई है। राहुल की साफ घोषणा के बाद वीरभद्र सिंह खेमा अब पूरी तरह चुनाव की रणनीति बनाने में जुट गया है। इस खेमे की तरफ से हरेक विधानसभा सीट के लिए प्रत्याशियों की सूची तैयार की जा रही है। सम्भावना है कि टिकटों को लेकर दुबारा वीरभद्र सिंह और उनके विरोधी खेमे में जंग छिड़े। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुखविंदर नहीं चाहेंगे कि वीरभद्र सिंह समर्थकों को ज्य़ादा टिकट मिलें। मुख्यमंत्री पद के दूसरे दावेदार कौल सिंह और गुरमुख सिंह बाली को ज़रूर झटका लगा है जबकि आशा कुमारी पूरी तरह वीरभद्र सिंह के साथ दिख रही हैं। उन्होंने राहुल गांधी के वीरभद्र सिंह को चुनाव की कमान सौंपने के तुरंत बाद अपने फेसबुक अकाउंट पर राहुल का धन्यवाद किया।
भाजपा में स्थिति अस्पष्ट
कांग्रेस के विपरीत भाजपा में चुनाव में नेतृत्व को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं है। वैसे कांग्रेस की तरफ से वीरभद्र सिंह के नेता घोषित होने के बाद भाजपा आलाकमान पर दबाव बढ़ा है। सूत्रों ने बताया कि भाजपा ने अपनी पहली बैठक में पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सतपाल सत्ती का नाम फाइनल कर दिया है। इसके अलावा 12 पूर्व विधयकों के नाम भी मंजूरी के लिए आलाकमान को भेज दिए हैं। बाकी नामों पर आम सहमती नहीं बन पा रही है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी बिलासपुर रैली में इस बात का कोई संकेत नहीं दिया था कि पार्टी किसके नेतृत्व में चुनाव में उतरेगी। मुकाबला पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल और केंद्रीय स्वास्थय मंत्री जगत प्रकाश नड्डा में दिख रहा है। यदि पार्टी ने साझे नेतृत्व में चुनाव लड़ा तो जीतने की स्थिति में पार्टी किसी तीसरे को भी मुख्यमंत्री बना सकती है। धूमल दावा करते रहे हैं कि भाजपा 50 से ज्य़ादा सीटें जीतकर सरकार बनाएगी।
पार्टी में बेशक नड्डा को लेकर उत्सुकता है, पर ज्य़ादा नेता यही मान रहे हैं कि धूमल को नेता घोषित कर भाजपा को चुनाव में जाने का ज्य़ादा लाभ मिलेगा। पिछले पांच साल से वही मैदान में भाजपा की कमान संभालते रहे हैं और ऐसे में उन्हें पीछे किया जाता है तो इससे नुकसान उठाना पड़ सकता है। कांग्रेस का नेता चुनाव से पहले घोषित होने से भाजपा पर निश्चित ही मनोवैज्ञानिक दबाव बना है। चुनाव को एक ही महीना बचा है और पार्टी कार्यकर्ताओं को यह मालूम ही नहीं कि वे किस नेता के नेतृत्व में चुनाव मैदान में उतरेंगे। गौरतलब है कि 2007 के चुनाव में भाजपा ने धूमल को आगे करके चुनाव लड़ा था और 42 सीटें जीती थीं। अभी कुछ समय है लिहाजा इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि पार्टी नेता का ऐलान कर ही दे।
पार्टी में वैसे जंग इसी बात की है। पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार नड्डा और धूमल में किसे समर्थन देते है अभी साफ नहीं है। पिछले दिनों चर्चा थी कि उन्होंने धूमल से अपने मतभेद सुलझा लिए हैं। हालांकि शांता के बारे में किसी तरह की भविष्यवाणी करना कठिन है। कुछ मौकों पर वे नड्डा का भी समर्थन करते रहे हैं। संघ से जुड़े नेता भी सक्रिय दिख रहे हैं। उन्हें लगता है कि हरियाणा और उत्तराखंड की तरह यहाँ भी किसी संघनिष्ठ को कमान मिल जाए तो हैरानी नहीं होगी। बिलासपुर में एम्स का नींव पत्थर रख मोदी पहले ही भाजपा के लिए चुनाव प्रचार का बिगुल फूंक चुके हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बिलासपुर दौरे के बाद मंडी में कांग्रेस की तरफ से राहुल गांधी के चुनावी मोर्चे पर ताल ठोकने और चुनाव की तारीखें घोषित होने के बाद पूरी तरह माहौल चुनावमय हो गया है। आने वाले समय में कांग्रेस, भाजपा और वामपंथी दलों के बड़े नेताओं की रैलियां होने की सम्भावना है। प्रदेश का इतिहास रहा है कि यहाँ हर बार चुनाव के बाद सरकार बदल जाती है, हालांकि 2012 में भाजपा ने इस परंपरा को बदलने के लिए जी तोड़ मेहनत की लेकिन सत्ता का हार कांग्रेस के गले की शोभा बना। इस बार कांग्रेस भी भाजपा की तर्ज पर ‘मिशन रिपीटÓ का दम भर रही है और देखना है कि उसकी कोशिशें कितनी सफल होती हैं। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी 7 अक्टूबर की मंडी रैली में मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह को कांग्रेस की चुनावी कमान साफ शब्दों में सौंप गए, हालांकि भाजपा में इस मसले पर अभी दुविधा की स्थिति बनी हुई है।
प्रदेश में चुनाव को अब एक महीने से भी कम समय रह गया है और दोनों प्रमुख दल कांग्रेस और भाजपा पूरी तरह मैदान में डट गए हैं। प्रदेश में तीसरे मोर्चे के नाम पर वामपंथी दल – माकपा और भाकपा – ही कुछ इलाकों में प्रभाव रखते हैं। आम आदमी पार्टी (आप) ने हिमाचल में दूसरे दलों से छिटके कुछ नेताओं के बूते पाँव पसारने की कोशिश की थी लेकिन उसे सफलता नहीं मिली। अब इस बात की कम ही सम्भावना है कि वह मैदान में उतरने की सोचेगी। वाम दल कुछ सीटों पर मजबूत निर्दलियों को समर्थन दे सकते हैं जो कांग्रेस या भाजपा से न जुड़े हों।
क्या होगा तीसरे विकल्प का?
यदि 2012 के विधानसभा चुनाव नतीजों को देखा जाये तो साफ जाहिर हो जाता है कि प्रदेश में लोगों ने तीसरे मोर्चे को तरजीह नहीं दी। हाँ, वे निर्दलीय ज़रूर जीते जो कांग्रेस या भाजपा का टिकट नहीं मिलने पर बागी होकर लड़े थे। जो जीते वे भी चुनाव के बाद अपनी-अपनी विचारधारा के दलों के सम्वद्ध सदस्य बन गए। पिछले विधानसभा चुनाव में कुल पड़े 72.69प्रतिशत वोटों में मुख्या हिस्सा कांग्रेस और भाजपा का ही रहा था। कांग्रेस ने68 सीटों की विधानसभा में 42.81 प्रतिशत वोटों के साथ 36, भाजपा ने38.47 प्रतिशत वोटों के साथ 26 सीटें जीती थीं। पांच निर्दलीय जीते जिन्हें अच्छे खासे 12.14 प्रतिशत वोट मिले। माकपा को बिना सीट के 1.16 और भाकपा को बिना सीट जीते 0.19 प्रतिशत वोट ही मिल पाए। बसपा को 1.17और राष्ट्रवादी कांग्रेस को 0.36 प्रतिशत वोट मिले थे।
भाजपा से नाराज होकर अपनी पार्टी हिमाचल लोकहित पार्टी बनाने वाले महेश्वर सिंह ज़रूर अपनी सीट से जीते थे और उनके दल को 2.40 प्रतिशत वोट मिले थे। यह अलग बात है कि तीसरा राजनीतिक दल वे जी तोड़ मेहनत करके भी खड़ा नहीं कर पाए और आखिर कुछ महीने पहले अपनी पार्टी को खत्म कर भाजपा में लौट आए। प्रदेश में पिछले दो दशक में यदि तीसरे मोर्चे के नाम पर कोइ नेता कुछ कर पाया है तो वे पूर्व केंद्रीय मंत्री सुख राम हैं। उन्होंने हिमाचल विकास कांग्रेस बनाकर भाजपा को समर्थन देकर कांग्रेस के हाथ से 1998 में सत्ता छीन ली थी। सीटें वे भले पांच ही जीत पाए थे, लेकिन इससे ही सत्ता की कुंजी उनके हाथ आ गयी थी। दिलचस्प यह कि सुख राम भी इसके बाद अपने बूते पार्टी को बचा नहीं पाए और उन्हें कांग्रेस में लौटना पड़ा। हिमाचल में मतदाताओं का इतिहास रहा है कि वे अपने वोट को जाया नहीं जाने देते। यह इस बात से जाहिर हो जाता है कि 2012 के चुनाव में जो 459 उमीदवार मैदान में उतरे थे उनमें से 304की जमानत जब्त हो गयी थी।
जहाँ तक वाम दलों की बात है उसका प्रदर्शन शिमला जिले को छोड़कर बाकी जगह अच्छा नहीं रहा था। पार्टी के सबसे अनुभवी नेता राकेश सिंघा ठियोग में 18.74 प्रतिशत मतों के साथ 10,388 वोट लेकर तीसरे स्थान पर रहे थे। सिंघा दो दशक पहले शिमला में चुनाव जीतकर विधायक रह चुके हैं। टिकेंद्र पंवर शिमला में 24.70 प्रतिशत वोट लेने में तो सफल रहे लेकिन 7973 वोट लेकर वे भी तीसरे नंबर पर रहे थे। टिकेंद्र पिछले चुनाव में शिमला नगर निगम के लिए सीधे हुए चुनाव में उप मेयर बने थे। 2012 में ही कसुम्पटी से कुलदीप तंवर 4798 वोट लेकर चौथे स्थान पर रहे थे। मंडी के जोगिन्दर नगर में खुशाल भारद्वाज 2048 वोट के साथ चौथे और मंडी में भाकपा के देश राज 1459 मतों के साथ पांचवें स्थान पर रहे थे।
वीरभद्र ठियोग से लड़ेंगे
कांग्रेस ने टिकटों के आंवटन को लेकर अपनी तैयारी भी शुरू कर दी है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने तीन सदस्यीय स्क्रीनिंग कमेटी को स्वीकृति दे दी है। यह कमेटी हिमाचल में टिकटों के आवंटन का कार्यभार देखेगी। बहरहाल, तीन सदस्यीय कमेटी में पूर्व सांसद जितेंद्र सिंह. विधायक विजय इंद्र सिंगला और सांसद गौरव गगोई को चुना गया है, कमेटी के जितेंद्र सिंह अध्यक्ष, जबकि बाकी दो सदस्य होंगे। तीन सदस्यीय कमेटी हिमाचल में टिकटों के आवंटन का कार्यभार देखेगी। उम्मीदवार 16 से 23 अक्तूबर तक नामांकन दाखिल कर सकते हैं। सीएम वीरभद्र सिंह अगला विधानसभा चुनाव ठियोग विधानसभा सीट से लड़ेंगें। वीरभद्र सिंह 20 अक्टूबर को ठियोग में अपना नामांकन पत्र दाखिल करेंगे। उस दिन ठियोग में कांग्रेस की भारी जनसभा भी होगी। सीएम ने कहा कि ठियोग उनके लिए कोई नया इलाका नहीं है। ठियोग हलके से जीत कर मंत्री बनीं विद्या स्टोक्स ने कांग्रेस आलाकमान को लिखकर दे दिया कि वे चुनाव नहीं लड़ेंगी और इस सीट से वीरभद्र सिंह जीत सकते हैं।
माकपा की सूची
विधानसभा चुनाव के लिए माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने प्रदेश के 13विधानसभा क्षेत्रों के लिए प्रत्याशियों के नाम घोषित कर दिए हैं। राजधानी शिमला से पूर्व महापौर संजय चौहान माकपा के प्रत्याशी होंगे। उनके अलावा ठियोग से राकेश सिंघा, कसुम्पटी से कुलदीप तंवर, रामपुर बुशहर से विवेक कश्यप, आनी से जिला परिषद सदस्य लोकिंद्र सिंह, जोगिंद्रनगर से कुशाल भारद्वाज, धर्मपुर से भूपेंद्र सिंह, सरकाघाट से मनीष, सोलन शहर से अजय भट्टी, लाहौल-स्पीति से सुनील जस्पा, हमीरपुर से अनिल मनकोटिया, सुजानपुर से जोगिंद्र और नाहन विधानसभा क्षेत्र से विश्वनाथ को पार्टी चुनाव मैदान में उतारेगी।
चुनाव कार्यक्रम
हिमाचल में विधानसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा के साथ ही चुनावी बिगुल बज गया है। हिमाचल में 9 नवंबर को मतदान होगा और इसके नतीजे 18 दिसंबर को आएंगे। चुनाव आयोग की चुनाव की घोषणा के साथ ही आदर्श आचार संहिता लागू हो गई है।
16 अक्तूबर को अधिसूचना जारी होगी
नामांकन 16 से 23 अक्तूबर तक किए जा सकते हैं
24 अक्तूबर पत्रों की जांच
26 अक्तूबर तक नाम वापिस लिए जा सकेंगे
इस बार 65 लाख मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे
7521 पोलिंग स्टेशन होंगे
वोट डालने के लिए फोटो आईडी का इस्तेमाल होगा
सभी पोलिंग स्टेशन ग्राउंड फ्लोर पर स्थित होंगे
सभी पोलिंग स्टेशनों में वीवीपैट का इस्तेमाल होगा
पोलिंग स्टेशनों, रैलियों और काउंटिंग रैलियों की वीडियोग्राफी का फैसला
निष्पक्ष चुनाव करवाने के लिए सीआरपीएफ और स्थानीय पुलिस की तैनाती